17 सितंबर 2025
16 सितंबर 2025 की देर रात गया जी को अलविदा करके हम लोग झारखंड में प्रवेश किये। गया जी प्रवास के बाद पिण्ड दान से मुक्ति मिल चुकी थी। मन मस्तिष्क पर कोई दबाव का जोर नहीं रहा। पंडे पुजारी का दबदबा से लगभग छुटकारा मिल गया था। अब आगे हमारी यात्रा का मुख्य उद्देश्य शिवगंगा सरोवर में स्नान, देवघर के बैजनाथ मंदिर का दर्शन और उसके बाद उसके बासुकीनाथ का दर्शन करना था। रात में सोई अवस्था में कब कहां पहुचे यह आभास नहीं हो पाया ।
शिवगंगा सरोवर
17 सितंबर के प्रातःसमय बस एक स्टैंड पर रुकी और वहां से कपड़े टूथपेस्ट ब्रश आदि लेकर हम लोग पास में ही स्थित शिवगंगा सरोवर में स्नान के लिए गए। शिवगंगा रावण द्वारा मुक्का मार कर जल निकाला गया स्रोत था। जो उसने लघु शंका के बाद अपने हाथ धोने के लिए उत्पन्न किया था । यहां कई प्राइवेट शौचालय थे जो साफ सुधरे नहीं थे और इनमें किसी में भी कमबोर्ड स्टाइल की सीट नहीं थी। शिवगंगा धाम झारखंड के देवघर जिले में बाबा बैद्यनाथ मंदिर के समीप ही पैदल चलने की दूरी पर स्थित है। श्रद्धालु पहले शिवगंगा में स्नान कर फिर बाबा बैद्यनाथ पर जलाभिषेक करते हैं। यहां के स्नान को पापों के शमन और कष्टों की निवृत्ति का प्रतीक माना जाता है। इसे सप्त कुंड भी कहा जाता है। शिवगंगा को पहले वरवोघर कुंड के नाम से जाना जाता है। इसमें स्नान करना पुण्य की भागीदारी के बराबर होता है.
भक्त जब बाबाधाम आते हैं, तो शिवगंगा में स्नान करना जरूरी समझते हैं.शिवगंगा के जल का उतना ही महत्व है, जितना गंगाजल का है.कांवरिया जब बाबा धाम पहुंचते है तो सबसे पहले इसी शिवगंगा में स्नान करते हैं और फिर जल लेकर बाबा धाम पर जलार्पण करते हैं. ऐसा माना जाता है कि शिवगंगा में स्नान करना पुण्य की भागीदारी के बराबर होती है। देवताओं के वैद्य अश्विनी कुमार को जब भयानक शारीरिक बीमारी हो गई थी, तब उन्होंने भी शिवगंगा में स्नान किया था. जिसके बाद उनकी बीमारी खत्म हो गई थी.कहा जाता है कि ये जल पाताल गंगा से आई है. इसलिए इस जल का खास महत्व है. इसमें नहाने से शरीर की कई बीमारियां दूर हो जाती है. भक्त इस शिवगंगा के जल को गंगाजल की तरह ही इस्तेमाल करते हैं.यह कुंड हमेशा जल से भरा रहता है और स्थानीय लोगों की मान्यता है कि इसका जल पवित्र और औषधीय गुणों से युक्त है। इसे पाताल जल स्रोत माना जाता है जो रावण के तप और शक्ति का प्रतीक है।
सरोवर में स्नान करके सामान घाट के एक पंडा के यहां रखा। यहां से फूल पत्ती पूजन सामग्री लेकर और झोला व चप्पल छोड़कर हम लोग बाबा धाम दर्शन के लिए निकले । बाबा धाम मंदिर, बैद्यनाथ धाम के नाम से भी जाना जाता है, झारखंड के देवघर में स्थित एक प्रसिद्ध हिंदू मंदिर है जो भगवान शिव को समर्पित है. यह 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है और कामना लिंग के रूप में भी जाना जाता है, जहाँ भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं. सावन के महीने में यहां सबसे बड़ा धार्मिक मेला लगता है, जिसमें बिहार के सुल्तानगंज से कांवड़िये गंगाजल लेकर आते हैं।
पंचशूल चित्र
बाबाधाम मंदिर (बैद्यनाथ मंदिर, देवघर) के शिखर पर लगा पंचशूल एक रक्षा कवच का काम करता है और इसे महाशिवरात्रि से कुछ दिन पहले एकादशी पर उतारा जाता है। यह पंचशूल बाबा के भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करने और मंदिर की रक्षा करने की मान्यता से जुड़ा है।
प्रातः का समय था भीड़ कम थी । एक सुहाना माहौल था । वायु में स्फूर्ति थी । बाबाधाम के प्रवेश द्वार पर एक सीढी से मंदिर में प्रवेश किया। यह मंदिर का परिसर था जहां लोहे की वेरीकेटिंग थी और घूमते घूमते कई घंटे लग गए थे । शिवजी को चढ़ाने के लिए कुछ भारतीय मुद्रा हाथ में रखे हुए थे, जिसे देखकर ग्रहण करते हुए गर्भ गृह का एक पुजारी तुरंत भीड़ को एक तरफ करते हुए हम लोगों को दर्शन और जलाभिषेक करने में सहयोग किया और किसी तरह हम लोगों को गर्भगृह से बाहर निकलने में भी सहयोग किया। इसके बाद हमारी टीम के कुछ सहयोगी और सदस्यों के इंतजार में बाहर प्रतीक्षा कर रहे थे। एक फोटोग्राफर से फोटो निकलवाया और टीम के सहयोगी से बाहर निकलने का रास्ता कंफर्म किया । रास्ता बहुत सीधा था जो सीधे शिवगंगा पर पहुंचा दिया।शिव गंगा के चारों तरफ सड़क थी । थोड़ा कंफ्यूजन हुआ फिर असली जगह पर जहां सामान रखा हुआ था वहां हम लोग आसानी से पहुंच गए।कुछ चाय पानी हुआ शॉपिंग किया और एक ऑटो लेकर अपने बस पार्किंग पर पहुंच गए।
जब बाकी भी यात्री आ गए थे तो आगे की यात्रा बढ़ी और बासुकीनाथ को दर्शन करने के लिए प्रस्थान किया। बासुकीनाथ झारखंड के दुमका जिले में अवस्थित है। यह शिव मंदिर के लिये जाना जाता है। बैद्यनाथ मंदिर की यात्रा तब तक अधूरी मानी जाती है जब तक बासुकीनाथ में दर्शन नहीं किये जाते। यह मंदिर देवघर से 42 किलोमीटर दूर जरमुण्डी गाँव के पास स्थित है। यहाँ पर स्थानीय कला के विभिन्न रूपों को देखा जा सकता है। इसके इतिहास का सम्बन्ध नोनीहाट (हड़वा स्टेट) के खैतोरी राजा से जोड़ा जाता है। बासुकीनाथ मंदिर परिसर में कई अन्य छोटे-छोटे मन्दिर भी हैं।
बासुकीनाथ का शिव मंदिर काफी अंदर था और पार्किंग बाहर हाईवे पर था।एक ऑटो लेकर हम लोग दर्शन के लिए गए जहां भीड़ तो कम थी पर मंदिर भव्य था। वहीं से पूजा सामग्री लेकर शिवजी को जल अर्पित किया और मंदिर परिसर के अंदर स्थित अन्य देवी देवताओं के भी दर्शन किए। बाहर निकलने पर रिक्शा कहीं और खड़ा था। उसे खोजने में समय लगा और जब वह मिला। तब बस पार्किंग पर हम लोग आए यहां चाय पानी पी के आगे के लिए प्रस्थान किया। इस समय हम लोग झारखंड में थे और चलती बस में आराम करते-करते आगे के लिए प्रस्थान किए।
मंदिर परिसर में भोजन
पश्चिम बंगाल में चलते-चलते दोपहर के लगभग 2:00 बज गए थे। एक मंदिर का प्रांगण था खूब बड़ी सी बाग थी नाल लगे हुए थे और छायादार वृक्ष वहां शौचालय भी बना हुआ था लोग अपना-अपना बिस्तर लगा लिए गीले कपड़े नल पर साफ करने लगे और खुले में सूखने के लिए डाल दिए बस का खानसामा परिवार भजन भजन खाना बनाने में लग गया आज एकादशी का व्रत भी था हमें फलाहार की जरूरत थी जिस जगह पर हम रुके थे वहां बांग्ला भाषा ही लोग थे घी का की व्यवस्था करनी पड़ी । सेंधा नमक मिल ना सका। फलाहार बना और सभी ने अपना-अपना भोजन ग्रहण किया इसके बाद देर रात गाड़ी आगे काक द्वीप के लिए प्रस्थान किया। रात में कब काकद्वीप पर पहुंचे यह आभास भी नहीं हो पाया ।
काकद्वीप
काकद्वीप पश्चिम बंगाल के दक्षिण चौबीस परगना ज़िले में हुगली नदी के पूर्वी तट पर स्थित एक नगर और सामुदायिक विकास खंड है, जो गंगा डेल्टा का हिस्सा है और हेनरी द्वीप जैसे आसपास के द्वीपों के लिए प्रसिद्ध है। काकद्वीप उपखंड पूरी तरह से ग्रामीण आबादी वाला है। पूरा ज़िला गंगा डेल्टा में स्थित है। डेल्टा के दक्षिणी भाग में हेनरी द्वीप, सागर द्वीप, फ्रेडरिक द्वीप और फ्रेजरगंज द्वीप जैसे कई चैनल और द्वीप हैं।
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