अयोध्या के चौदह कोसी परिक्रमा मार्ग के किनारे धारा रोड स्थित दिलकुशा महल को साकेत सदन नाम देते हुए पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जा रहा है। इस स्मारक ने विभिन्न समयों में अपनी अलग अलग पहचान बनाई है । जो अवध की राजधानी,अफीम कोठी ,सेंट्रल ब्यूरो ऑफ़ नारकोटिक्स,और स्वतंत्रता आन्दोदन से जुड़े आख्यान को अपने अंचल में समेटे हुए है। लगभग 275 साल इस पुराने स्मारक को भिन्न भिन्न समय में अनेक नामों से जाना पहचाना जाने लगा है।
मिट्टी के बंगले से बसा था ये शहर :-
उन्होंने यहाँ घाघरा के किनारे मिट्टी का एक कच्चा घर बनाया, लोगों ने उसे बंगला कहना शुरू कर दिया। इस तरह वह 'कच्चा बंगला' के नाम से मशहूर हो गया। यही इलाक़ा बाद में समय के साथ बढ़ते- बढ़ते फ़ैज़ाबाद बस गया।
दिलकुशा कोठी का निर्माण :-
सरयू नदी के तट पर स्थित अयोध्या, जिसे पहले फैजाबाद के नाम से जाना जाता था, ये अवध के नवाबों से भी जुड़ा हुआ है। अवध के तीसरे नवाब शुजा-उद-दौला, जो 1754 से 1775 तक नवाब थे, ने बक्सर की लड़ाई में अंग्रेजों द्वारा पराजित होने के बाद 1752 के आसपास यहां दिलकुशा कोठी का निर्माण किया था। 1752 में अवध के दूसरे नवाब सफ़दरजंग की मृत्यु हो गई।उनके बाद उनके बेटे शुजाउद्दौला अवध के तीसरे नवाब वज़ीर बने थे। शुजाउद्दौला का परिवार दिलकुशा की पहली मंज़िल पर रहता था। पिछले दो नवाबों के उलट, शुजाउद्दौला ने फ़ैज़ाबाद में काफ़ी समय बिताया। उन्हीं के दौर में कच्चे बंगले में और निर्माण हुआ और यह दिलकुशा बंगला बन गया।
4.5 एकड़ में फैला यह स्मारक :-
दिलकुशा महल, जो दर्शाता है वह अपनी हार के बाद भी वे इस क्षेत्र को नियंत्रित कर रहे थे, उनकी मृत्यु तक यह उसका निवास था। 4.5 एकड़ में मुगल शैली की वास्तुकला में निर्मित, इसकी दीवारों को लाखोरी ईंटों और मिट्टी का इस्तेमाल करके बनाया गया था। संरचना के अधिकांश हिस्से खंडहर हैं। दिलकुशा कोठी, पैलेस कॉम्पलेक्स के स्ट्रक्चर का हिस्सा थी। दरअसल, शुजाउद्दौला के दरबार में फ़्रेंच सलाहकार थे। इनमें से एक थे कर्नल एंटॉन पुलियर। उन्होंने ही शुजाउद्दौला को कई इमारतों को बनाने की सलाह दी थी। उनकी सलाह पर ही दिलकुशा कोठी को भी सजाया-संवारा गया था।
शुजाउद्दौला,परिवार और सुरक्षा सैनिक से भरा था ये महल:-
इस दो-मंज़िला इमारत की हर मंज़िल पर क़रीब 10 कमरे थे। कोठी की पहली मंज़िल पर नवाब शुजाउद्दौला और उनका परिवार रहता था, जबकि निचली मंज़िल पर उनका दरबार था, जहाँसे वह रियासत से जुड़े फ़ैसले करते थे। शुजाउद्दौला के सैनिक भी दिलकुशा के परिसर में रहते थे।कोठी के चारों तरफ़ सैकड़ों बैरक बने थे। जिनमें सैनिक रहते थे। वहीं, प्रशासनिक कामों में लगे कर्मियों के रहने के लिए कोठी के बाहरी इलाक़े को रिहायशी इलाक़े में विकसित कर दिया गया था। वहाँ पुरानी सब्ज़ी मंडी,टकसाल, दिल्ली दरवाज़ा, रकाबगंज, हंसु कटरा जैसी जगहें बन गई थीं।
दिलकुशा कोठी बना अफ़ीम का गोदाम:-
बीच में एक समय ऐसा भी आया जब दिलकुशा को 'अफ़ीम कोठी' का तमगा दिया गया। पी सी सरकार बताते हैं कि ब्रिटानियों से लड़ाई के बाद दिलकुशा कोठी पर अंग्रेज़ों का क़ब्ज़ा हो गया।
1870 के आसपास अंग्रेज़ों ने इस कोठी को अफ़ीम का गोदाम बना दिया।अफ़ीम अधिकारी तैनात कर दिए गए।तब से इसे 'अफ़ीम कोठी' कहा जाने लगा।
नारकोटिक्स विभाग के अधीन:-
आज़ादी के बाद भारत सरकार के सेंट्रल ब्यूरो ऑफ़ नारकोटिक्स ने दिलकुशा कोठी को अपने अधिकार में ले लिया। अफ़ीम की तस्करी रोकने के लिए इसके परिसर में सुपरिंटेंडेंट ऑफ़िस खोल दिया गया। नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो द्वारा दवाओं के निर्माण के लिए ड्रग लाइसेंस जारी करने के लिए इसके एक हिस्से का इस्तेमाल शुरू करने के बाद महल को अब अफीम कोठी के नाम से जाना जाता है। नारकोटिक्स डिपार्टमेंट ने क़रीब 17 साल पहले अपना यह दफ़्तर बंद कर दिया। उसके बाद भी 'दिलकुशा' नारकोटिक्स डिपार्टमेंट के पास ही रही।
1857 की आज़ादी में इसकी भूमिका:-
1857 में भारत की आज़ादी की पहली लड़ाई में दिलकुशा कोठी की भी भूमिका रही है। लड़ाई के दौरान स्वतंत्रता सेनानियों को इसी कोठी ने छिपने के लिए जगह दी।आज़ादी के बाद भी दिलकुशा काफ़ी ठीक हालत में थी। यह इमारत भारतीय इतिहास के कई हिस्सों को समेटे हुए थी।
खराब रखरखाव :-
देखभाल के अभाव में दिलकुशा की हालत ख़राब होती गई। छज्जा पूरी तरह ढह चुका था। दीवारें भी जर्जर स्थिति में पहुँच चुकी थीं और कभी भी जमींदोज़ हो सकती थीं।
दिलकुशा कोठी से साकेत सदन का सफ़र:-
सबसे पहले हम साकेत नाम पर एक दृष्टि डाल रहे हैं ।अयोध्या के 12 नाम मिलते हैं। पहला मुख्य नाम अयोध्या का अयोध्या ही है। जिसका मतलब है जिससे युद्ध न लड़ा जाए। अथर्ववेद में अयोध्या को अपराजित होने का वर्णन किया गया है। अयोध्या का दूसरा प्रमुख नाम साकेत है। यह नाम अयोध्या जैसा बहुत लोकप्रिय हुआ है। इसका तीसरा नाम कौशलपुर है,जो कि कौशल जनपद से लिया गया है। इस शब्द का प्रयोग वाल्मीकि ने किया है। कौशल का अर्थ है जहां साथ-साथ घर बने होते हैं। अयोध्या का चौथा नाम धर्मपुर है, जिसका वर्णन रामायण में मिलता है। क्योंकि, यह धर्म की नगरी है, ऐसे में यह धर्मपुर भी कही जाती है। अयोध्या के पांचवें नाम की कौसल है, जो कि कौशल शब्द से बना है। इसका छठे नामकौशलपुरी है, जो कि कौशलपुर से बना है। सातवें नाम कौशलानंदनी के नाम से भी जानी जाती है। अयोध्या के आठवें नाम की रामनगरी के नाम से भी जानी जाती है। अयोध्या के नौंवे नाम की उत्तर कौशल के नाम से भी जानी जाती है। क्योंकि, उत्तर कौशल के राजा दशरथ थे, जबकि दक्षिण कौशल की रानी कौशल्या थीं।अयोध्या के 10वें नाम इसे 'पूर्व देश' के नाम से भी जाना जाता है। अयोध्या का 11वां नाम रघुवरपुर है, जिसका उल्लेख हनुमान चालीसा में किया गया है।अयोध्या का 12वां नाम अवधपुरी है। इसका अर्थ है, जिसका वध नहीं, वह अवध है। इस नाम का वर्णन तुलसीदास ने भी किया है।
साकेत नाम पर एक दृष्टि :-
अयोध्या का दूसरा नाम साकेत है। साकेत' शब्द का अर्थ 'स्वर्गीय निवास' या 'दिव्य क्षेत्र' से जुड़ा है, यह संस्कृत के 'साकेत' शब्द से लिया गया है। संस्कृत में 'अखंड, संपूर्ण या परिपूर्ण', को साकेत कहा गया है। यह पारंपरिक रूप से भगवान राम के निवास से जुड़ा हुआ है। जहाँ मुक्त आत्माएँ निवास करती हैं। इस प्राचीन नगर है का उल्लेख विभिन्न संस्कृत ग्रंथों और बौद्ध साहित्य में मिलता है। साकेत को अयोध्या नाम इसलिए दिया गया क्योंकि बिना किसी युद्ध के लाखों बौद्ध भिक्षुओं का अस्तित्व मिटाकर बड़ी ही आसानी से परिवर्तित कर दिया गया था।
साकेत बुद्ध को अत्यंत प्रिय था इसलिए बुद्ध को सुकिति भी कहा जाता है । पारंपरिक बौद्ध साहित्य में इसे साकेत कहा गया है। बुद्ध के समय में साकेत भारत के छह महान नगरों में से एक था। अयोध्या को ऐतिहासिक रूप से साकेत नाम तब तक जाना जाता था, जब तक कि स्कंदगुप्त ने इसका नाम बदलकर अयोध्या नहीं कर दिया।
कालिदास ने अपनी रचना रघुवंश में अयोध्या नगरी का वर्णन साकेत नाम से किया गया है। इसका अर्थ है, जिसमें संपूर्ण ज्ञान हो, उस नगरी का नाम साकेत है। साकेत शब्द का प्रयोग हिंदू महाकाव्यों में वैकुंठ के निवास के लिए भी किया जा सकता है , जहाँ मुक्त आत्माएँ निवास करती हैं। इसका अर्थ शक्तिशाली और अजेय होता है। साकेत का उल्लेख पंतजलि, कालिदास आदि ने भी किया है। हिंदी के महान कवि मैथिली शरण गुप्त द्वारा रचित साकेत (1932), एक प्रसिद्ध हिंदी महाकाव्य , रामचरितमानस का आधुनिक संस्करण है , जिसमें एक आदर्श हिंदू समाज और राम को एक आदर्श पुरुष के रूप में वर्णित किया गया है। अयोध्या का प्रमुख शिक्षण संस्थान “कामता प्रसाद सुन्दर लाल साकेत महा विद्यालय” न केवल अयोध्या अपितु पूरे मण्डल और अन्य पड़ोसी जिलों में शिक्षा की ज्योति जला रखा है। अयोध्या में दर्जनों मन्दिर और संस्थाएं भी साकेत नाम को किसी न रूप में अंगीकार कर लिया है।
प्रदेश सरकार बनवा रही है साकेत सदन :-
साकेत सदन परिसर में 1756 से 1775 ई. के मध्य निर्मित ऐतिहासिक भवनों का जीर्णोद्धार उनके निर्माण के समय प्रयोग की गई सामग्री से ही किया जा रहा है ,जिसमें संपूर्ण कार्य चूना सुर्खी शीशा मेथी उड़द की दाल गोंद/गुग्गुल बेलगिरी पाउडर आदि पदार्थों व निर्माण सामग्री को मिला कर बनाए गये मसाले से किया जा रहा है। पूर्ण होने पर प्राचीनता को समेटे इनभवनों की भव्यता दिखाई देगी। साकेत सदन प्रोजेक्ट की लागत लगभग 17 करोड़ रुपये है। यह प्रोजेक्ट 6 जून 2023 को शुरू हुआ था। इसका 60 फ़ीसदी काम पूरा हो चुका है। इस प्रोजेक्ट कीज़िम्मेदारी उत्तर प्रदेश प्रोजेक्ट कॉर्पोरेशन लिमिटेड को मिली है। साकेत सदन में अवध या शुजाउद्दौला से जुड़े किसी भी किस्से या निशानी का ज़िक्र नहीं होगा।साकेत सदन बनवाने का मक़सद पूरी तरह अलग है। इसे अलग-अलग हिंदू तीर्थों के संग्रहालय के तौर पर विकसित किया जा रहा है, जहाँ हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियाँ प्रदर्शित होंगी।उत्तर प्रदेश सरकार इसकी जगह अब 'साकेत सदन' बनवा रही है। इसका 60 फ़ीसदी काम पूरा भी हो चुका है।उत्तर प्रदेश सरकार ने दिलकुशा को हिंदू तीर्थयात्रियों के लिए एक संग्रहालय में तब्दील करने का फ़ैसला किया है। यहाँ हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियाँ भी होंगी।
इतिहास में कई त्रासदियाँ झेल चुकी दिलकुशा कोठी का अब नाम भी शायद मिट जाएगा.साकेत सदन अपने हिस्से का इतिहास बनाने के लिए जल्द ही बनकर तैयार हो जाएगा।
ओपन एयरथियेटर, म्यूजियम- कांप्लेक्स और रेस्टोरेंट की सुविधा :-
साकेत सदन में स्थित मुख्य भवन में रेस्टोरेंट विकसित किया जा रहा है। यहां आगंतुकों के लिए मनोरंजन के लिए ओपन एयर थियेटर व म्यूजियम कांप्लेक्स भी बनाया जाएगा, जिसमें ऐतिहासिक वस्तुओं एवं साहित्यों को संजोया जाएगा। साकेत सदन में इंटरप्रिटेशन वाल, इंट्रेंस प्लाजा के साथ ही परिसर में लैंड स्केपिंग कर आकर्षक फूल-पौधे व कोवल स्टोन के पाथ-वे सहित कई कार्य किया जाना है। भवनों का आकर्षक मुखौटा पर रोशनी भी जगमग किया जाएगा।
लेखक परिचय:-
(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं। वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए सम सामयिक विषयों,साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं।(वॉट्सप नं.+919412300183)
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