Thursday, October 3, 2024

स्वामीनारायण छपिया का प्रसादी की छतरी / भूतों वाला पीपल का पेड़ आचार्य डॉ. राधेश्याम द्विवेदी


चोरों और भूतों के प्रति दयालु भाव रखने वाले धर्मदेव के घर और नारायण सरोवर के पास ही फलों और फूलों की एक खेती की जाती थी। गांव के कुछ शरारती लोग उस खेती के फलों को चुराकर खाना पसंद करते थे। कटहल के पर निवास करने वाले भूतों ने इन शरारती चोरों को दण्ड दिलवाया और भूतों को मुक्ति हेतु
घन श्याम प्रभु ने बद्रिकाश्रम भिजवा दिया।
   धर्मदेव के आंगन में एक कटहल का पेड़ था। वर्षा ऋतु आरम्भ होने के पूर्व में ही इस पर फल लग जाते हैं। वर्षा काल में ये पकते थे। घनश्याम प्रभु को कटहल बहुत प्रिय है। प्रभु की सेवा हेतु यह पेड़ बहुत फल देता था।
   एक रात्रि की बात है। आकाश बादलों से घिर गया और वर्षा होने लगी थी। धर्म देव राम प्रताप भाई और घन श्याम घर के अन्दर सो रहे थे। उस समय बहुत से कटहल के फल पकते थे। ऐसे ही दो-तीन षडयंत्रकारी लोग सुबह-सुबह कटहल के फल चुराने के लिए इस खेती में घुस गए। जैसे ही उन्होंने कटहल के फलों को छुआ, वैसे ही धर्मदेव एक पानी का घड़ा और बबूल के पेड़ से काटा हुआ एक दातून लेकर वहां पहुंचे। रामप्रतापभाई और युवा घनश्याम अपने पिता धर्म देव घर में सो रहे थे।चोरों को अच्छा अवसर मिला। वे धर्म देव के घर आए। इसके बाद चोर छिप छिपकर कटहल के पेड़ से फल तोड़ कर ढेर लगा लिए। इसके बाद फल लेकर चोर प्रस्थान किए।
      चोर कटहल का गट्ठर बना कर धर्म पिता के घर के बाहर आ गए। ये लोग नारायण सरोवर के किनारे जा रहे थे। वहां पीपल के पेड़ पर भूत रहते थे। नारायन प्रभु की प्रेरणा से भूत अपना भयंकर रूप धारण करके चोरों को डरवाने लगे। भूत बोले,पापियों यह कटहल तो प्रभु को खाने के लिए है। यादि तुम खाओगे तो तुम्हारा विनाश हो जाएगा।
    चोर रंगे हाथों पकड़े जाने पर थर थर कांपने लगे। गठरी नीचे गिर गई।इसलिए वे डर से कांपने लगे। उन्होंने विनती की, "हे भाई साहब कृपया हमें बचाओ। अब हम चोरी नही करेंगे।
    भूत बोले इस तरह हम तुम्हें नही जानें देंगे। पहले जहां से फल लाए हो चुपके से वहां रख आओ। तभी तुमको जानें देंगे। भय के मारे चोर कटहल की गठरी धर्म देव के घर रख आए ।
    घनश्याम ने चोरों से कहा। "तुम कटहल के फल खाना चाहते हो न? मैं तुम सबको एक-एक फल देता हूं। इसे ले लो और घर जाओ। इसे परिवार के अन्य सदस्यों के साथ बांटना।" उसने उनमें से प्रत्येक को एक कटहल का फल दिया। चोरों ने धर्मदेव और दोनों भाइयों को प्रणाम किया और फिर एक कटहल का फल लेकर घर चले गए। ऐसा था युवा घनश्याम चोरों के प्रति भी दयालु! भगवान सदैव सभी पर दयालु होते हैं।
   घनश्याम महराज भूतों को दर्शन देकर कहा, तुमने हमारी सेवा किया है। इसलिए बरदान देता हूं। तुम लोग मुक्ति हेतु
 बद्रिकाश्रम जाओ और तपस्या करके अपने पापो से मुक्ति पाकर हमारे धाम में आओ। यह वही पुण्य स्थल है। उसका श्रद्धालु दर्शन कर अपने को धन्य मानते हैं।
      आचार्य डॉ. राधेश्याम द्विवेदी 

लेखक परिचय:-

(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं। वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए सम सामयिक विषयों,साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं।)

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