Saturday, October 19, 2024

खम्पा तलावड़ी, तेंदुवा रानीपुर,छपिया की लीला (पेड़ के ठूठ से जख्म):आचार्य डॉ. राधेश्याम द्विवेदी


खम्पा तलवाडी एक तालाब /पोखर है जहाँ घनश्याम (स्वामीनारायण)  स्नान करते थे और पास की कुटिया में एक संत से रामायण की कहानियाँ सुनते थे। पोखर के पास एक इमली का पेड़ हुआ करता था। इसी पर चढ़ कर एक बार खेलते समय वे घायल हो गए थे, जिससे उनके शरीर पर निशान पड़ गया था।

   यह छपैया के उतर की ओर तरगांव के नैरित्य कोण पर स्थित है। इस तालाब के तट पर हरिदास जी की परम कुटी में राम कथा होती थी। धनश्याम और उनके मित्र वहां जाकर कथा सुनते तालाब में स्नान करते और तरह - तरह की लीला करते रहते थे। वे गोपालों को बाल कृष्ण जैसे दर्शन और लीला दिखाते थे।

   यहां एक छोटी  झील है जिसे अब खम्पा तलावड़ी (झील) के नाम से जाना जाता है। यह पूरे साल पानी से भरी रहती है। झील के आस-पास के क्षेत्र में कई पेड़- पौधे और खूबसूरत फूल हैं और यहाँ हमेशा ताजे फूलों की खुशबू आती रहती है। इस वजह से यह सभी स्थानीय बच्चों के खेलने-कूदने की पसंदीदा जगह बन गई है। 

     झील के किनारे एक छोटी सी झोपड़ी थी, जिसमें हरिदासजी नाम के एक बाबा रहते थे। उनके रामायण के पाठ इलाके में बहुत मशहूर थे और अक्सर बहुत सारे लोग उनके पाठ सुनने के लिए इकट्ठा होते थे।

     एक दिन घनश्याम स्वामी नारायण और उनके दोस्त वेणीराम, प्राग जी, सुखनंदन और दूसरे लोग यहां खेलने और मौज-मस्ती करने आए। घनश्याम ने बाबा जी को कथा करते देखा और अपने दोस्तों को पहले कथा सुनने के लिए राजी किया। सभी बच्चों की तरह उन्होंने कुछ देर तक कथा सुनी और फिर झील में तैरने के लिए उठ गए। तैरते समय उन्हें फूलों की मीठी सुगंध आई और उन्होंने पूछा कि यह सुगंध कहां से आ रही है। 

      सुखनंदन ने कहा कि यह चमेली के फूल की सुगंध है, इसलिए कुछ फूल तोड़कर बच्चों ने एक माला बनाई और उसे घन श्याम के सिर पर रख दिया।

    साधु बाबा इस दर्शन को पाकर अपने को धन्य माना। संयोग से उसी  समय, गायों का एक झुंड, जो वहां से गुजर रहा था। घन श्याम प्रभु ने उसे बुलाया तो गाय का झुंड वहां रुक गया और घनश्याम के दर्शन के लिए उनके चारों ओर इकट्ठा हो गया। ग्वाले ने गायों को आगे बढ़ाने की कोशिश की लेकिन वे घनश्याम के पास से हिली नहीं। 

      घनश्याम ने कुछ देर तक झुंड को धीरे से सहलाया और इमली के पेड़ पर चढ़ कर लम्बा हाथ करके दूसरी ध्वनि निकाल कर गायों से  कहा, "अब तुम जा सकते हो"। गायों ने उसकी आज्ञा का पालन किया और ग्वाले के साथ चली गईं।

बच्चों ने फिर से अपना खेल जारी रखा और घनश्याम आषाढी सम्वत 1845 के दिन जामुन के वृक्ष पर चढ़ गए थे। (कहीं कहीं इमली के पेड़ पर चढ़ने का उल्लेख आता है।) वह कुछ देर तक वहाँ खेलता रहा। जब घनश्याम पेड़ से उतर रहा था, तो उसका पैर फिसल गया । 

   गिरते समय पेड़ से एक ठूठ उसकी दाहिनी जाँघ में लगा और वह धड़ाम से ज़मीन पर गिरा। जांघ से खून की धारा निकल पड़ी ,जो रुकने का नाम नहीं ले रही थी। 

    दूसरे बच्चों ने देखा कि घाव से खून बह रहा है और वे बहुत डर गए, इसलिए उनमें से एक भागकर घर गया और घनश्याम के पिता धर्मदेव को बुलाया। 

जब वह गया हुआ था, तो अचानक एक तेज़ रोशनी चमकी और भगवान के वैद्य अश्विनीकुमार घाव का इलाज करने के लिए देवलोक से नीचे आए। उन्होंने घाव पर दिव्य औषधि लगाई और उस पर एक सूती पट्टी बाँधी। सूती कपड़ा वेणीराम ने दिया था, क्योंकि देवलोक में केवल रेशम ही होता है।

    धर्मदेव और राम प्रताप जल्दी से देखने आए कि क्या हुआ था और धर्मदेव ने पूछा कि दवा किसने लगाई और पट्टी किसने बाँधी। 

    घनश्याम ने जवाब दिया कि कुछ लोगों ने घाव का इलाज किया था और धर्मदेव से कहा कि वह शोर न मचाए, क्योंकि वह ठीक है। 

   धर्मदेव और रामप्रताप फिर घनश्याम को घर ले गए, घनश्याम ने जोर देकर कहा कि वह पैदल घर जा सकता है।

घर पर भक्तिमाता और सुवाशिनी भाभी चिंतित थीं और घनश्याम के आने का इंतज़ार कर रही थीं। जब वे पहुँचे तो भक्तिमाता ने घनश्याम को गले लगाया और पूछा कि क्या हुआ है। 

   घनश्याम ने कहा, "दुखी मत हो क्योंकि मुझे कोई चोट नहीं लगी है"। उसने पट्टी हटाई और भक्तिमाता ने देखा कि उसकी जांघ पर सिर्फ़ एक छोटा सा निशान था - घाव ठीक हो गया था। यह अश्विनीकुमार द्वारा लगाई गई दिव्य औषधि के कारण था। भक्तिमाता और सुवाशिनी भाभी अब खुश थीं।

   खपड़े यानी खापो वाली इस घटना के बाद से ही इस झील को खापा तलावड़ी के नाम से जाना जाता है। 

     आज यहां कोई झोपड़ी नहीं है, कोई बाबा नहीं है और न ही जामुन/इमली का पेड़ है, लेकिन इस घटना की याद दिलाने के लिए एक छोटी सी छतरी' जरूर है।

इस दिव्य चरित की विशेष महिमा है। इस चरित्र का वर्णन खुद प्रभु ने अपने 37वें वचनामृत में किया है।



         आचार्य डॉ राधेश्याम द्विवेदी 

लेखक परिचय

(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं. वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास   करते हुए सम-सामयिक विषयों, साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं। मोबाइल नंबर +91 8630778321, वर्डसैप्प नम्बर+ 91 9412300183)

No comments:

Post a Comment