कल्याण सागर तालाब छपिया मंदिर से एक किमी दूर नरेचा गांव के पश्चिम दिशा में स्थित है। यह स्वामी नारायण जी की प्रसादी की एक छतरी है। इस कल्याण सागर के जल में घनश्याम महराज के वचनामृत से मृत शरीर को तैरते छोड़ देने पर जीवन दान मिला था।
प्राचीन समय में राजा नरेचा के राजा सनमान सिंह के पुत्र की शादी थी। राज महल में आनन्द के गीत गाए जा रहे थे। सरोवर के किनारे राजा के आदमी आतिश बाजी और बंदूक की हर्ष फायरिंग कर रहे थे। इस माहौल को देख कर अगल बगल लोग भीड़ लगा कर आनन्द ले रहे थे। यहां पर उसी समय घनश्याम महराज अपने मित्रों के साथ आए हुए थे। एक सिपाही की बंदूक से गलती से गोली छूटते ही दो व्यक्ति की मृत्यु हो गई थी। यह समाचार जब राज महल में गया तो आनन्द की जगह पूरे राज महल में शोक छा गया।
राजा को याद आया कि घनश्याम महराज को सभी लोग भगवान कहते हैं। मैं उनके पास जाकर बिनती करता हूं। वे महाराज जी के पास जाकर दोनों हाथ जोड़ कर बोले, “हे प्रभु! आप सर्व नियंता हैं। इन दोनों की मृत्यु के कारण शोक व्याप्त हो गया है। इन दोनों को जीवन दान दे दें तो अच्छा रहेगा।”
घनश्याम महराज बोले, “एकदम आदमी मृत्यु को नहीं प्राप्त होता है। आप के महल के आगे जो सरोवर है। उसमें दोनों मृतक शरीर को लिटा दें। पानी के स्पर्श से दोनों लोग जीवित हो जाएंगे।”
विश्वास रखकर राजा ने ऐसा ही किया। घनश्याम महाराज पत्थर पर खड़े होकर दोनों का नाम पुकारे, “हे गदाधर! हे
पृथ्वीपाल!आप लोग पानी में क्यों सो रहे हो? पानी से बाहर आओ।” इतना सुनते ही दोनों लोग आलस छोड़ कर उठ खड़े हो गए।
दोनों लोग घनश्याम महराज के पास आकर प्रार्थना करने लगे, “हे भगवान! हम लोग इस सरोवर के जल से आप के धाम को प्राप्त हो गए थे। इतने में आप आदेश दे दिए कि हम इस देह में ही वापस आ गए।”
यह सुनकर सनमान सिंह को यह विश्वास हो गया। बाद में राजा ने घनश्याम और उनके मित्रों को राज महल में स्वागत किया। उन्हें एक अच्छे आसन पर बैठाया गया था। राजा रानी ने मोती के थाल से, चन्दन पुष्प से पूजन किए थे। उन्हें दूध शक्कर और चीउरा इत्यादि खिलाए। घनश्याम महराज की विदाई करते समय रानी ने सुन्दर वचनों से प्रार्थना की, “हे प्रभु! आप काल के भी काल हैं। दीन दयाल हैं। आज आपने हमारी इज्ज़त रख ली। आप हमें परलोक में भी काल, कर्म और माया से रक्षा करना।”
प्रभु ने इस प्रकार अपना आशीर्वाद भी दिया। “इस सरोवर ने दो मानव का कल्याण किया है। इस कारण से यह सरोवर कल्याण सरोवर के नाम से प्रसिद्ध होगा।”
इस स्थान का स्वामित्व इस समय स्वामी नारायण छपिया के ट्रस्ट के अधीन है। यह बहुत ही उपेक्षित रूप में है। कच्चे घाट जलकुंभी और अन्य जलीय वनस्पतियों से ढका हुआ है। इसे सरसरी निगाह से देखने पर कोई दिव्यता का रूप नहीं दिखाई देता। विशाल आकर का साइनेज तो देखा जा सकता है। पर इसकी महत्ता जैसा इसे नहीं रखा गया है। मन्दिर प्रशासन को इसके पुनरुद्धार के लिए प्रयास किया जाना चाहिए।
आचार्य डा राधे श्याम द्विवेदी
लेखक परिचय
(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं. वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए सम-सामयिक विषयों, साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं। मोबाइल नंबर +91 8630778321, वर्डसैप्प नम्बर+ 91 9412300183)
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