Sunday, October 13, 2024

स्वामीनारायण के अंगूठे से निकला था विश्वामित्री के गौघाट पानी का स्रोत आचार्य डॉ राधेश्याम द्विवेदी

स्थानीय छोटो सी विश्वामित्री(बिसुही)नदी के गौघाट गोंडा जिले के छपिया ब्लॉक में घनश्याम ग्रिंट नामक एक गांव के रास्ते पर पड़ता है। यह विश्वामित्री नदी के तट पर एक सुनसान जंगली इलाके में स्थित है। नदी के तट पर पक्की पत्थर की सीढ़िया बनी हुई है। यह दूर दूर तक जंगल का क्षेत्र है। नदी में जल सूख जाने से स्वामी नारायण घनश्याम महराज ने अपने पैर के अंगूठे से दबा कर अखण्ड जल की धारा निकला था। यह जिला मुख्यालय गोंडा से 54 किमी. पूर्व, छपिया से 5 किमी. और राज्य की राजधानी लखनऊ से 170 किमी. दूरी पर स्थित है । 

      कहा जाता है कि एक बार यहां सुखा पड़ा था। गाएं पानी के अभाव में मर रही थी। घनश्याम प्रभु ने अपने पैर के अंगूठे को यहां दबाया तो जल की स्रोत निकल पड़ी। गायों ने अपनी प्यास बुझाई थी। इसलिए इसे गौ घाट नाम मिला है। तबसे यह घाट कभी नहीं सूखता है। यहां एक छतरी , हनुमान जी की एक बैठी हुई प्रतिमा भी बनी हुई है। बाउंड्री वॉल से घिरा इस विशाल परिसर में घन श्याम प्रभु के अन्य अनेक दृश्य भी दर्शाए गए हैं।

गौरी गाय की दास्तान

एक बार गौरी गाय शाम को घर नहीं आई। उसकी खोज बीन शुरू हुई। राम प्रताप भाई और मंगल अहीर इसे खोजने के लिए निकल पड़े। इन्हें गाय नहीं मिली।

इस बार धर्मपिता , रामप्रतापभाई और घनश्याम महाराज के साथ गाय खोजने निकले। फिरोजपुर होकर नरेचा गांव वहां से लोह मंजरी गए। वहां भी गाय नहीं मिली। इसके बाद वे लोग गौ घाट पर आए। 

   वहां पर एक अहीर के द्वारा ज्ञात हुआ कि नदी के उस किनारे पर गाय ने बछड़े को जन्म दिया है। यह जान कर धर्मपिता और दोनों भाई उसे लेने के लिए पहुंचे। घनघोर रात का समय था नदी में थोड़ा ही जल था। प्रभु ने कहा , “पिता जी और भाई आप गाय और बछड़े को लेकर हमारे पीछे पीछे आइए।'' इतने में सिंह की आवाज सुनाई दी। धर्म पिता सोचने लगे यह सिंह हम तीनो के साथ गाय और बछड़े को मार देगा।

     पिता जी को उदास देखकर घनश्याम महराज सिंह के सामने अमी दृष्टि से देखे। सिंह को पूर्व जन्म का ज्ञान आ गया ।

घनश्याम महराज साक्षात भगवान हैं। सिंह पांच प्रदक्षिणा करके हाथ जोड़ कर चला गया। एसा चमत्कार घनश्याम महाराज ने गौघाट तीर्थ में दिखाया था। 

   जहां घनश्याम महराज ने पैर के अंगूठे से जमीन को दबाया था। वहां आज भी पानी बहता रहता है। यह स्थान सीढ़ी से उतरते ही दिखाई देता है। इस प्रकार का यह एक महत्त्वपूर्ण प्रसादी स्थल है। इस घाट से थोड़ा ऊपर एक पीपल का विशाल पेड़ है।कहा जाता है कि इस पेड़ पर चढ़ कर घन श्याम प्रभु ने वंशी बजाई थी। 

         आचार्य डॉ राधेश्याम द्विवेदी 

लेखक परिचय

(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं. वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास   करते हुए सम-सामयिक विषयों, साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं। मोबाइल नंबर +91 8630778321, वर्डसैप्प नम्बर     + 91 9412300183)

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