Tuesday, March 1, 2022

निराकार परमब्रम्ह सदाशिव से सृष्टि का उद्भव

निराकार परमब्रम्ह सदाशिव से सृष्टि का उद्भव
डा. राधे श्याम द्विवेदी
शिव पुराण के अनुसार भगवान सदा शिव का जन्म नहीं हुआ था। शिव जी स्वयंभू हैं अर्थात सदा शिव प्रकट नहीं हुए थे, वह तो निराकार परमात्मा हैं जो तब भी थे जिस समय पूरी सृष्टि अंधकार में लीन थी। उस समय सृष्टि में न ही जल था, न अग्नि थी और न ही वायु था। तब केवल तत सत ब्रम्हा ही थे जिन्हें सनातन धर्म मे सत भी कहा गया है। तत सत ब्रम्हा ने कुछ समय बाद एक से दो होने को सोचा ,तब तट सत ब्रम्हा ने अपनी लीला शक्ति से आकार की कल्पना करके मूर्ति रहित परम ब्रम्ह बनाया। परम ब्रम्ह ही सदा शिव कहलाए।
त्रिदेव की उत्पत्ति:-
 ब्रम्ह रूपी सदा शिव ने शक्ति स्वरूपा जगत जननी माँ अम्बिका को प्रकट किया। इसी परम ब्रम्हा रूपी सदा शिव और अम्बिका से ब्रम्हा , विष्णु और महेश की उत्पत्ति हुई। ऐसा माना जाता है कि परम ब्रम्ह सदा शिव और माँ अम्बिका ने सबसे पहले भगवान शिव की उत्पत्ति की, जिन्हें सृष्टि का संघारक कहा जाता है। उसके कुछ समय बाद सृष्टि निर्माण के लिए सदा शिव ने अपने वाम अंग पर अमृत मला जिससे एक पुरुष प्रकट हुआ। सदा शिव ने उस पुरुष को व्यापक के कारण के लिए विष्णु नाम दिया। इसके बाद सदा शिव ने अपने दाहिने हाथ से एक दिव्य ज्योति उत्पन्न करके उसे विष्णु जी के नाभि कमल में डाल दिया, कुछ समय बाद विष्णु जी की नाभि कमल से, ब्रम्हा जी उत्पन्न हुए। इस प्रकार त्रिदेव ब्रम्हा, विष्णु और महेश की उत्पत्ति हुई। इससे यह साबित होता है कि त्रिदेव के माता पिता परम् ब्रम्हा सदा शिव और शक्ति स्वरूपा जगत जननी माँ अम्बिका जी हैं।
त्रिदेव का अस्तित्व और उनको प्रणाम :-
“रजोजुषे जन्मनि सतववरततै:
 स्थितौ प्रजानाम प्रलये तमः स्परशे ,
अजाय सर्ग स्थिति नाशहेतवे 
त्रयी मयाय त्रिगुणात्मने नमः ।।”
अर्थात रजोगुण को धारण करने वाले ब्रह्माजी, प्रजा को स्थिति रखने के लिए! सतोगुण को धारण करने वाले पालनहार विष्णु जी, प्रलय के समय तमो गुण को धारण करने वाले शिवजी इन तीनों ही स्थितियों को शक्तियों को बनाने और मिटाने वाले इन तीनों की एकीकृत शक्ति तीनों की आत्मा को खुद को तीन भागो में विभक्त करता है और फिर इन तीनों के द्वारा अपने आप को असंख्य रूप में प्रकट करता है! पालता है और फिर खुद निगल कर पुनः अपने ने समाहित कर लेता है ! ऐसे महान अजाय अर्थात अजन्मा परमब्रह्म परमात्मा को नमस्कार करता हूं।
त्रिदेव में श्रेष्ठ कौन :-
हिन्दू धर्म मे त्रिदेव ब्रम्हा, विष्णु और महेश को सभी देवताओं में सबसे श्रेष्ठ और पूजनीय माना जाता है। जिसमें ब्रम्हा देव को सृष्टि का रचनाकार, श्री हरि विष्णु को सृष्टि का पालनहार और शिव जी को सृष्टि का विनाशक माना गया है। लेकिन एक प्रश्न हमेशा ही हिन्दू धर्म के अनुयायी के मन मे उठता है कि ब्रम्हा, शिव और विष्णु की उत्पत्ति कैसे हुई, और इन तीनों में सबसे श्रेष्ठ कौन है?
कहते हैं देवताओ में त्रिदेव का सबसे अलग स्थान प्राप्त है और इसमें ब्रह्मा को सृष्टि का रचियता, भगवान् विष्णु को संरक्षक और भगवान् शिव को विनाशक कहा जाता है. ऐसे में कई लोग यह सोचते है की त्रिदेव की उत्त्पत्ति कैसे हुई अर्थात कैसे उन्होंने जन्म लिया इस संसार में. अगर आप भी इस बारे में सोचते हैं तो आज हम आपको एक प्रसंग बताने जा रहे हैं जिसे सुनकर पढ़कर आप समझ जाएंगे कि कैसे त्रिदेव की उत्पति हुई थी। 
भगवान शिव ने एक बार सोचा – “अगर मै विनाशक हूँ तो क्या मै हर चीज का विनाश कर सकता हूँ ? क्या मै ब्रह्मा और विष्णु का विनाश भी कर सकता हूँ ? क्या उन पर मेरी शक्तियां कारगर होंगी?” जब भगवान् शिव के मन में यह विचार आया तो भगवान् ब्रह्मा और विष्णु समझ गए कि उनके मन में क्या चल रहा है. वे दोनों मुस्कुराने लगे. ब्रह्मा जी बोले – “महादेव. आप अपनी शक्तियां मुझ पर क्यों नहीं आजमाते ? मै भी यह जानने के लिए उत्सुक हूँ कि आपकी शक्तियां मुझ पर कारगर हैं या नहीं। 
”जब विष्णु भगवान् ने भी हठ किया तो भगवान् शिव ने सकुचाते हुए ब्रह्मा जी के ऊपर अपनी शक्तियों का प्रयोग कर दिया. देखते ही देखते ब्रह्मा जी जलकर भष्म हो गए. जैसे ही शिव जी ने अपनी शक्तियों का प्रयोग किया ब्रह्मा जी जलकर गायब हो गए और उनकी जगह एक राख का छोटा सा ढेर लग गया. शिव जी चिंतित हो गए – “ये मैंने क्या किया ? अब इस विश्व का क्या होगा ?” भगवान् विष्णु मुस्कुरा रहे थे. उनकी मुस्कान और भी चौड़ी हो गई जब उन्होंने शिव जी को पछताते हुए घुटनों के बल बैठते देखा.शिव जी पछताते हुए उस राख को मुठ्टी में लेने ही वाले थे कि उस राख में से ब्रह्मा जी पुनः प्रकट हो गए.
वे बोले –“महादेव, मै कहीं नहीं गया हूँ. मै यही पर हूँ. देखो , आपके विनाश के कारण इस राख की रचना हुई. और जहाँ भी रचना होती है वहां मैं होता हूँ. इसलिए मै आपकी शक्तियों से भी समाप्त नहीं हुआ.” भगवान् विष्णु मुस्कुराये और बोले –“महादेव , मै संसार का रक्षक हूँ. मै भी देखना चाहता हूँ कि क्या मै आपकी शक्तियों से स्वयं कि रक्षा कर सकता हूँ ? कृपया मुझ पर अपनी शक्तियों का प्रयोग करें.” जब ब्रह्मा जी ने भी हठ किया तो शिव जी ने विष्णु जी को भी अपनी शक्तियों से भष्म कर दिया. विष्णु जी के स्थान पर अब वहां राख का ढेर था लेकिन उनकी आवाज़ राख के ढेर से अब भी आ रही थी. वह आवाज़ थी – “महादेव , मै अब भी यही हूँ. कृपया रुके नहीं। अपनी शक्तियों का प्रयोग इस राख पर भी कीजिये. तब तक मत रुकिए जब तक कि इस राख का आखिरी कण भी ख़त्म न हो जाये। ”
भगवान् शिव ने अपनी शक्तियों को और तेज कर दिया. राख कम होनी शुरू हो गयी. अंत में उस राख का सिर्फ एक कण बचा.भगवान् शिव ने सारी शक्तियां लगा दी लेकिन उस कण को समाप्त नहीं कर पाए. भगवान् विष्णु उस कण से पुनः प्रकट हो गए और यह सिद्ध कर दिया कि उन्हें भगवान् शिव भी समाप्त नहीं कर सकते.भगवान् शिव ने मन ही मन सोचा – “मुझे विश्वास हो गया कि मै ब्रह्मा और शिव को सीधे समाप्त नहीं कर सकता. लेकिन अगर मै स्वयं का विनाश कर लूँ तो वे भी समाप्त हो जायेंगे क्योंकि अगर मै नहीं रहूँगा तो विनाश संभव नहीं होगा और बिना विनाश के रचना कैसी? अतः ब्रह्मा जी समाप्त हो जायेंगे ? और अगर रचना ही नहीं रहेगी तो उसकी रक्षा कैसी? अतः विष्णु जी भी नहीं रहेंगे. “ ब्रह्मा और विष्णु समझ रहे थे कि शिव जी के मन में क्या चल रहा है. वे दोनों मुस्कुराये। 
भगवान् शिव ने स्वयं का विनाश कर लिया और जैसा वे सोच रहे थे वैसा ही हुआ. जैसे ही वे जलकर राख में तब्दील हुए , ब्रह्मा और विष्णु भी राख में बदल गए. कुछ समय के लिए सब कुछ अंधकारमय हो गया. वहां उन तीनो देवो की राख के सिवाय कुछ नहीं था. उसी राख के ढेर से एक आवाज़ आई – “मै ब्रह्मा हूँ. मै देख सकता हूँ कि यहाँ राख की रचना हुई है. जहाँ रचना होती है , वहां मै होता हूँ.” इस तरह उस राख से पहले ब्रह्मा जी उत्पन्न हुए और उसके बाद विष्णु और शिव जी क्योंकि जहाँ रचना होती है वहां पहले सुरक्षा आती है और फिर विनाश. इस तरह शिव जी को बोध हुआ कि त्रिदेव का विनाश असंभव है. इस घटना की स्मृति के रूप में भगवान् शिव ने उस राख को अपने शरीर से लेप लिया जिसे शिव भस्म कहा जाता है। 



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