Sunday, March 27, 2022

पुरुकुस्त से त्रिबंधन तक की कहानी ( राम के पूर्वज 12) डा. राधे श्याम द्विवेदी

इच्छाकु वंशीय मुचुकुंद के पुत्र पुरुकुस्त हुये। पुरुकुस्त के पुत्र त्रयद्वासयु हुए। त्रयद्वासयु के पुत्र अनरण्य हुए। इन तीनों राजाओं का केवल नामोल्लेख ही मिलता है। विशेष विवरण नहीं मिलता है। 
राजा अनरण्य एक प्रभावशाली राजा
पौराणिक कथाओं के अनुसार, रावण एक बार इक्ष्वाकु वंश के राजा अनरण्य के पास पहुंचा और युद्ध करने या फिर पराजय स्वीकार करने के लिए ललकारा। राजा अनरण्य पराजय स्वीकार न करके रावण से युद्ध किए। वे रावण को हरा नहीं सके। इस दौरान अनरण्य लहूलुहान हो गए। अनरण्य को लहुलुहान देखकर रावण इक्ष्वाकु वंश का उपहास करने लगा। उपहास देखकर अनरण्य कुपित होकर रावण को श्राप दे दिया कि यही वंश एक दिन तुम्हारा वध करेगा। ये कहकर वह राजा स्वर्ग सिधार गए। बता दें कि मनु वंश के राजा अनरण्य 28वें राजा थे। जबकि इक्ष्वाकु वंश के 22वें राजा थे। राम के पुत्र
महाराज कुश की देखरेख में कसौटी के 84 खम्बों पर भव्य श्रीराम मंदिर निर्मित किया गया था। चैत्र शुक्ल नवमी पर मंदिर में भगवान राम की प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा की गई थी. इस मंदिर में कसौटी के जिन 84 खम्भों को लगाया गया था, इनकी चर्चा आज तक किसी न किसी रूप में चल रही है. लोमस रामायण में वर्णित बालकांड के अनुसार यह खम्भे श्रीराम के पूर्वज महाराजा अनरण्य के आदेश पर विश्व प्रसिद्ध शिल्पी विश्वकर्मा के द्वारा गढ़े गए थे।
राजा अनरण्य का रावण को शाप की पूरी कहानी
रावण ने अपने आक्रमण जारी रखे। सब पर आक्रमण करते हुए रावण अयोध्या पहुंचा। जहाँ उसका सामना अयोध्या के तत्कालीन राजा अनरण्य के साथ हुआ। राजा अनरण्य ने रावण को वापस चले जाने के लिए कहा लेकिन रावण ने तो युद्ध करने की ठानी थी। इक्ष्वाकु वंश में जन्मे महान राजा थे। अनेक राजा महाराजाओं को पराजित करता हुआ दशग्रीव रावण इक्ष्वाकु वंश के राजा अनरण्य के पास पहुँचा जो अयोध्या पर राज्य करते थे। उसने उन्हें भी द्वन्द युद्ध करने अथवा पराजय स्वीकार करने के लिये ललकारा। दोनों में भीषण युद्ध हुआ किन्तु ब्रह्माजी के वरदान के कारण रावण उनसे पराजित न हो सका। जब अनरण्य का शरीर बुरी तरह से क्षत-विक्षत हो गया तो रावण इक्ष्वाकु वंश का अपमान और उपहास करने लगा।जब युद्ध अंतिम समय में पहुँच गया और राजा अनरण्य अपनी मृत्यु के पास थे। तब रावण ने उनसे कहा कि आमोद-प्रमोद में लीन होने के कारण तूने मेरी महिमा नहीं सुनी।इससे कुपित होकर अनरण्य ने उसे शाप दिया कि तूने अपने व्यंगपूर्ण शब्दों से इक्ष्वाकु वंश का अपमान किया है,अतः यदि मैंने दान दिया हो, होम किया हो तो मैं तुझे शाप देता हूँ कि महाराज इक्ष्वाकु के इसी वंश में जब विष्णु स्वयं अवतार लेंगे तो वही तुम्हारा वध करेंगे। यह कह कर राजा स्वर्ग सिधार गये। कालांतर में त्रेता युग में इसी महान इक्ष्वाकु वंश में स्वयं श्रीमन् नारायण अयोध्या नरेश दशरथ के घर प्रभु श्री राम के रूप में जन्मे और उन्होंने ही दशानन रावण, उसके सम्पूर्ण कुल और पूरी राक्षस जाती का वध किया।
             अनरण्य के पुत्र हर्यश्व थे। हर्यश्व के पुत्र अरुण हुए। अरुण के पुत्र राजा त्रिबंधन हुए। इन तीन राजाओं का भी केवल नामोल्लेख ही मिलता है विशेष विवरण नही मिलता है।इस पीआर शोध और खोज की जरूरत है।

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