Thursday, March 24, 2022

पृथु के वंशज व देवासुर संग्राम की कहानी( राम के पूर्वज - 5) डा. राधे श्याम द्विवेदी

राजा पृथ के बैकुंठ जाने के बाद अनके पुत्र विजितश्व ने लंबे समय तक राज किया. उनके वंश में ही राजा बर्हिषत हुए जिनका विवाह सागर की पुत्री शतद्रुति से हुआ. शतद्रुति इतनी रूपवती थीं कि उनके रूप पर सभी देवता मोहित थे. विवाह के फेरों के समय तो स्वयं अग्निदेव भी उन पर मोहित हो गए थे. बर्हिषत और शतद्रुति के दस पुत्र हुए जो प्रचेता कहलाये. पिता की आज्ञा से प्रचेता सागर के भीतर ही तप करने चले गए. प्रचेताओं को भगवान शिव के दर्शन हुए. उनसे दीक्षा लेकर प्रचेताओं ने तप आरंभ किया. बर्हिषत एक के बाद एक यज्ञ करते जा रहे थे. एक दिन नारद ने राजा को समझाया कि यज्ञ आदि करने के बाद भी आप कर्म बंधन से मुक्त होने की बजाय उसमें और बंधते जा रहे हैं. इससे मोक्ष प्राप्त नहीं होगा. जिन पशुओं की तुम यज्ञों में बलि कर रहे हो वे सब प्रतिशोध के लिए इंतज़ार कर रहे हैं. नारदजी ने बर्हिषत को पुरंजन की कथा सुनाई जिससे उनकी आंखें खुलीं.
 मनु के पुत्र बीर ने प्रजापति कर्दम की कन्या काम्या से विवाह किया था तथा दो पुत्र (1) प्रियव्रत तथा (2) उत्तानपाद और तीन पुत्री (1) प्रसूति और (2) आकूति ( 3) देवहूति नाम की संतानों को जन्म दिया था। देवहूति नामक कन्या का पाणिग्रहण महान ऋषि कर्दम के साथ हुआ । 
कर्दम ऋषि की उत्पत्ति सृष्टि की रचना के समय ब्रह्मा जी की छाया से हुई थी। ब्रह्मा जी ने उन्हें प्रजा में वृद्धि करने की आज्ञा दी। उनके आदेश का पालन करने के लिये कर्दम ऋषि ने स्वयंभुव मनु के द्वितीय कन्या देवहूति से विवाह कर नौ कन्याओं तथा एक पुत्र की उत्पत्ति की। कन्याओं के नाम कला, अनुसुइया, श्रद्धा, हविर्भू, गति, क्रिया, ख्याति, अरुन्धती और शान्ति थे तथा पुत्र का नाम कपिल था। कपिल के रूप में देवहूति के गर्भ से स्वयं भगवान विष्णु अवतरित हुये थे।
भगवान कपिल
आदिदेव के घर सांख्य शास्त्र के रचयिता जो तत्व ज्ञान में भगवान के समान है और जिनका नाम कपिल भगवान कहा जाता है , अवतरित हुए।संख्या शास्त्र या गणित की रचना महान ऋषि जो ज्ञान में ईश्वर के समान थे भगवान कपिल ने की थी। गणित या सांख्य शास्त्र की रचना प्रथम मन्वन्तर के द्वितीय चरण महर्षि कपिल ने की थी। महान ऋषि आदिदेव के घर सांख्य शास्त्र के रचयिता महान ऋषि भगवान कपिल हुए और कला नामक पुत्री हुई। हरियाणा के कैथल जिले का कस्बा कलायत महाभारतकालीन ऐतिहासिक व धार्मिक नगर है। भागवत पुराण में वर्णन है कि कपिलमुनि भगवान विष्णु के छठे अवतार हैं। कपिलमुनि की माता का नाम देवहूति व पिता का नाम कर्दम ऋषि था। देवहूति ब्रह्मा जी की पुत्री थीं। कलायत के इसी स्थान पर कपिलमुनि ने तपस्या की थी और अपनी मां देवहूति को बाल्यावस्था में सांख्य-शास्त्र का ज्ञान दिया था। अलबत्ता यहां से 12 कि.मी. की दूरी पर वह स्थान है जहां पर कपिलमुनि ने जन्म लिया था। उनकी मां मनु व शतरूपा की पुत्री थी। शास्त्र ग्रंथ बताते हैं कि जब प्रजापति ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना की तो उन्होंने अपने शरीर के आधे हिस्से से नारी का निर्माण किया। इन्हें मनु तथा शतरूपा कहा गया। इनका आश्रम कलायत से 15 किमी. की दूरी पर था जिसे आज देववन कहते हैं। देवहूति के पति थे ऋषि कर्दम। वे यहीं आसपास कैलरम नामक स्थान पर तप करते थे। कपिल मुनि अपने माता-पिता की दसवीं संतान थे। उनसे पहले उनकी नौ बहनें थीं। इसी कलायत में कपिल मुनि महाराज ने जब सांख्य शास्त्र की रचना की थी तब बाल्यावस्था में ही कपिल मुनि महाराज ने अपनी माता को सृष्टि व प्रकृति के चौबीस तत्वों का ज्ञान प्रदान किया था। कहते हैं कि सांख्य दर्शन के माध्यम से जो तत्व ज्ञान मुनि महाराज ने अपनी माता देवहूति के सामने रखा था वही श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता के उपदेश के रूप में सुनाया था। कपिलमुनि का श्रीमद्भगवत गीता में वर्णन इस प्रकार से है - 
अक्षत्थ: अश्रृत्थ: सर्ववृक्षाणां देवर्षीणां च नारद:। 
गन्धर्वाणां चित्ररथ: सिद्धानां कपिलो मुनि:॥ 
अर्थात् भगवान श्री कृष्ण अर्जुन को बता रहे हैं कि हे अर्जुन जितने भी वृक्ष हैं उनमें सबसे उत्तम वृक्ष पीपल का है और वो मैं हूं, देवों में नारद मैं हूं, सिद्धों में कपिल मैं हूं, ये मेरे ही अवतार हैं। मुनि महाराज ने माता को बताया था कि मनुष्य का शरीर देवताओं की भांति ही होता है, किंतु उसका ज्ञानी होना अत्यावश्यक है। ज्ञानवान पुरुष देवताओं से भी अच्छे होते हैं। भक्ति, योग, यज्ञ, तीर्थ, दान और व्रत आदि को सभी धर्मों से श्रेष्ठ समझना चाहिए। जब तक सांसारिक तृष्णा नहीं छूटती, तब तक भक्ति योग की प्राप्ति कठिन है। भक्ति व ज्ञान ईश्वर की कृपा से ही संभव हैं। कपिलमुनि अत्यंत उत्कृष्ट कोटि के विचारक व अथाह ज्ञानवान थे। उन्हें ब्रह्मïड के सृष्टि विकास संबंधी सिद्धांत का आदि प्रवर्तक माना जाता है। उन्होंने ब्रह्मïड की उत्पत्ति तथा निष्क्रिय ऊर्जा की अवधारणा को स्पष्टता दी। वे षष्ठितंत्र ग्रंथ के रचयिता थे। इनका जन्म पांच हजार साल पहले हुआ था। इस कथा को तो प्राय: सभी लोग जानते हैं कि वे महान तपस्वी-साधक थे। उनकी समाधि स्थिति को भंग करने पर मुनि महाराज ने सगर राजा के साठ हजार पुत्रों को भस्म कर दिया था। उनके उपाय बताने पर ही उनके उद्धार के लिए, अंशुमान, दिलीप और भागीरथ ने हजारों वर्ष तप किया जिससे गंगा धरती पर अवतरित हुई और सगर पुत्रों का उद्धार समुद्र तट पर हुआ। उनके ध्यान स्थल सागर के तट पर कपिल महाराज का मंदिर शोभित है तथा पास ही एक अति सुंदर तीर्थ स्थल है। भारत के कोने-कोने से आकर श्रद्धालु कपिल तीर्थ में स्नान करके संसार की प्रत्येक मनोकामना पूर्ण करते हैं। प्रत्येक पूर्णिमा को यहां विशेष मेला लगता है। 
महर्षि कश्यप
कला का विवाह महर्षि मरीचि के साथ हुआ जिससे उनके 12 पुत्र हुए जिसमे तीसरे नंबर के पुत्र महर्षि कश्यप हुए जिनकी 13 कन्याओं से विवाह हुए। उनकी दो पत्नी सगी बहन थी! जिसमे एक का नाम दिती और दूसरी का अदिति था।महर्षि कश्यप और दिती से राक्षस, असुर, दैत्य पैदा हुए।महर्षि कश्यप और अदिति से देवता, आर्य ऋषि हुए। 
विवश्वान
ऋषि कश्यप और अदिति के सबसे छोटे पुत्र का नाम सूर्यदेव के नाम पर विवश्वान सूर्य रखा गया। सूर्य ने आर्यावर्त में अयोध्या नामक सुंदर नगरी बसाई जो सरयू नदी के किनारे और आर्यावर्त के बिल्कुल बीचोबीच में थी, वहां से वह पूरे आर्यावर्त के प्राणियों को कंट्रोल कर सकते थे। और इसी नगरी को अपनी राजधानी बनाया। विवश्वान्न सूर्य का विवाह भक्त ध्रुव के पुत्र राजा प्रियव्रत के पौत्र की पुत्री संज्ञा और अश्विनी से हुआ।
वैवस्वत मनु
सूर्य और संज्ञा के पुत्र वैवस्वत मनु हुआ! इन्हीं राजा सूर्य के नाम पर इस वंश वेल का नाम सूर्य वंश पड़ा, न कि सूर्यदेव का वंश। परन्तु हां राजा विवश्वान्न असली नाम सूर्य के समान तेज, बल बुद्धि, और गति की वजह से उनका नाम सूर्य पड़ा था और यह नाम उनके दादाजी महर्षि मरीचि ने दिया था।
इंद्र देवराज
सूर्य के सबसे बड़े भाई इन्द्र हुए जिनको स्वर्ग के देवताओं का राजा बनाया गया। इसका अर्थ यह है कि जो भी इन्द्र के पद पर बैठेगा वह देवताओ का ही रिश्तेदार होगा! भाई, चाचा या भतीजा, यही वजह थी कि जब भी देव और असुर लड़ते थे ! देवता हमेशा इन्द्र की सहायता करते थे !क्योकि इन्द्र सगे भाई थे असुर सौतेले ! कश्यप और अदिति के 12 पुत्र में से 10 पुत्र स्वर्ग से लेकर प्रथ्वी के विभिन्न स्थानों के राजा हुए! उनके दो पुत्रों ने ब्राह्मण धर्म अपनाया जिसमे से एक त्रिपाठी हुए! उनके वंशज आज भी त्रिपाठी या तिवारी हैं।
ऋषि सांडिल्य
कश्यप अदिति के चौथे नंबर के पुत्र ऋषि सांडिल्य हुए! उन्होंने वेदों का ज्ञान अर्जित किया और ब्राह्मणों में श्रेष्ठ ब्रह्म को जानने वाले ब्रह्म को पाने वाले हुए जिनके वंशज सांडिल्य गोत्र वाले है।
                              समुद्र मंथन
देव और असुर संग्राम 
कश्यप और दिती से पैदा हुए पहले पुत्र हिरण्याक्ष और दूसरे का नाम हिरणाकश्यप हुआ। इनको आर्यावर्त के दक्षिण का राजा बनाया गया! परन्तु उसने तपस्या से वरदान में इतनी शक्ति प्राप्त कर लिया था जिससे उसने आगे चलकर सौतेले भाई लोगो की जमीन राज्य छीन लिए और यहां से शुरू हुई दानव और देवो के युद्ध। अयोध्या के राजा लोग हमेशा स्वर्ग के राजा इन्द्र की सहायता और असुरो से युद्ध इसीलिए करते थे क्योंकि इन्द्र उनका सगा भाई ,चाचा, दादा था और असुर सौतेले। यही से देवासुर संग्राम शुरू हुआ। 

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