Wednesday, March 23, 2022

स्वंभुव मनु और शतरूपा पुत्र प्रियव्रत - उत्तानपाद की कहानी( राम के पूर्वज - 2 ) डा. राधे श्याम द्विवेदी

स्वायम्भु मनु के दो पुत्र थे: 1. प्रियव्रत और 2. उत्तानपाद।
प्रियव्रत की कहानी  
प्रियव्रत मनु के सबसे बड़े पुत्र थे। मनु पुत्र प्रियव्रत को सारा राजपाट सौंप देना चाहते थे, लेकिन प्रियव्रत अपने ईष्ट देव की आराधना में ही लगे रहते थे। बाद के दिनों में उन्होंने पिता की बात को मान लिया और विवाह के लिए सहमत हो गये। मनु अपने बड़े पुत्र को पृथ्वी का राज्य सौंपकर निश्चित होना चाहते थे। लेकिन प्रियव्रत अखण्ड समाधि-योग द्वारा विष्णु आराधना में मग्न थे। मनु और ब्रह्मा ने प्रियव्रत को समझाया। अनिच्छा होते हुए भी उन्हें मनु और ब्रह्मा की बात माननी पड़ी। स्वायंभुव मनु के दूसरे पुत्र प्रियव्रत ने विश्वकर्मा की पुत्री बहिर्ष्मती से विवाह किया था जिनसे आग्नीध्र, यज्ञबाहु, मेधातिथि आदि दस पुत्र और एक कन्या उत्पन्न हुए।
प्रियव्रत का विवाह कर्दम ऋषि की पुत्री से विवाह किया
इनकी दो पुत्रियां- सम्राट और कुक्षि और दस पुत्र हुए।
आग्नीध्र, अग्निबाहु, वपुष्मन, द्युतिमान, मेधा, मेधातिथि, भव्य, सवन, पुत्र और ज्योतिष्मान । इनमें मेधा, अग्निबाहु और पुत्र – योग पारायण और पूर्वजन्म वृत्तान्त जानने वाले थे। बाकी सात को पृथ्वी के सात द्वीप बांट दिये:
पुत्र                    द्वीप
आग्नीध्र              जम्बुद्वीप
मेधातिथि             प्लक्षद्वीप
ज्योतिष्मान           कुशद्वीप
द्युतिमान                क्रौंचद्वीप
भव्य                      शाकद्वीप
सवन                    पुष्करद्वीप
 प्रियव्रत की दूसरी पत्नी से उत्तम तामस और रैवत- ये तीन पुत्र उत्पन्न हुए जो अपने नामवाले मनवंतरों के अधिपति हुए। महाराज प्रियव्रत के दस पुत्रों मे से कवि, महावीर तथा सवन ये तीन नैष्ठिक ब्रह्मचारी थे और उन्होंने संन्यास धर्म ग्रहण किया था। प्रियव्रत ने अपनी पुत्री उर्जस्वती का विवाह दैत्य गुरु शुक्राचार्य के साथ किया था, जिसके फलस्वरूप देवयानी का जन्म हुआ।
उत्तानपाद की कहानी   
ये मनु के द्वितीय पुत्र थे। मनु के दूसरे पुत्र उत्तानपाद तथा तीन कन्याएँ आकूति, देवहुति और प्रसूति थीं।राजा मनु सन्यास को चले गए और प्रियव्रत तपस्या के लिए चले गए अब राजा मनु के छोटे पुत्र उत्तानपाद सारे राज्य की बागडोर सम्भाल कर राज्य करने लगे। राजा उत्तानपाद के एक पत्नि थी सुनिति। सुनिति एकदम नाम के अनुसार थी यानि निति निपुन पर राजा उत्तानपाद को सुनिति से कोई संतान नही हुई । जब बहुत साल बीत गए तो उनके राज्य की जनता को बहुत चिन्ता हुई कि जब राजा के संतान नही होगी तो राजा के बाद राज्य की देखभाल कौन करेगा?
राज्य की जनता ( प्रजा ) और मंत्रीमंडल इस निष्कर्ष पर पहुंचे की राजा को दुसरा विवाह कर लेना चाहिए पर राजा उत्तानपाद इस बात से सहमत नही हुए तो वे सभी रानी सुनिति को समझाने लगे की राज्य के लिए राजा के पुत्र की जरुरत होती है। रानी उनकी बात से सहमत हो गई की राजा को संतान प्राप्त करने के लिए दुसरी शादी कर लेनी चाहिए।
        रानी सुनिति का राजा उत्तानपाद को दुसरी शादी के लिए रजामंद करने का प्रयास शुरु हुआ। रानी सुनिति राजा को समझाती की राजा का सच्चा धर्म अपनी प्रजा के हीत के बारे मे सोचना और राज्य की भलाई के कार्य करना इस समय हमारे कोई संतान नही और हमारे बाद कौन प्रजा की देखभाल करेगा । राज्य राजा के बिहीन सुना हो जाएंगे ऐसे मे कोई दुसरा राजा अपने राज्य पर आक्रमण कर देगा तो हमारा यह राज्य क्षत विछिपत हो जाएंगा।
       बहुत बहस के बाद राजा को रानी की बाते के आगे झुकना पडा और दुसरी शादी के लिए सहमत होना पडा।
बहुत खौज-खबर के बाद एक छोटा सा राज्य था उसकी राजकुमारी जीसका नाम सुरुचि था सुरुचि नाम के अनुरुप उतनी ही सुन्मादर थी सुरुचि यानि सुन्नदरता से भरा यौवन जो दुसरो को अपनी तरफ खिंच लेती है सुन्दरता से मुग्ध हो कोई भी उसकी और आकर्षित हो जाए सुरुचि मान गई पर उसने शर्त रखी कि मै शादी के लिए तैयार तब होऊंगी जब राजा की पहली पत्नि राजा का त्याग करदे नही तो सौतन का सामना करना मुझे मंजुर नही।रानी उसकी इस बात से सहमत हो गई ।रानी सुनिति अपने राज्य और प्रजा की भलाई के लिए राजा से दुर होने के लिेए सहमत हो गई। अब राजा उत्तानपाद की शादी सुरुचि से हो गई।राजा उसकी सुन्दरता पर मुग्ध हो गए अब तो जो वो सुरुचि चाहती राजा वही करते। हमेशा राजा शुरुचि को प्रसन्न रखने के लिए यत्न करते रहते ।रानी सुनिति राजा से दुर अपने रंगमहल मे ही रहती कभी भी राजा के सामने नही जाती थी।
         रानी सुनिति अपनी पत्नि धर्म सुरुचि को सम्भला कर खुद प्रभु भक्ति मे लग गई अपने महल मे ही रह कर भक्ति करती।इस पर भी रानी सुरुचि को रानी सुनिति से जलन होती उसको लगता कही रानी सुनिति से मिलने राजा उसके पास ना चले जाए वो राजा को इस बात की चेतावनी सदैव देती रहती की वो सुनिति से दुर ही रहे अब सुरुचि एक पल के लिए भी राजा को अपने से दुर नही जाने देती हर पल वो राजा के साथ रहती सभा भवन मे भी वो राजा के साथ जाती थी।
इस पर भी उसके मन को संतोष नही मिला उसने हार कर एक दिन राजा से कह ही दिया की सुनिति को महल और राज्य सब को छोड कर दुर चले जाने का प्रबंध करो।राजा उत्तानपाद सुरुचि का दिवाना बन गया था जैसे वो कहती करता इस लिए राजा ने सुनिति को देश निकाला देने की सोची पर रानी सुनिति इस बात से घबरा गई की अब राज्य से दुर कहाॅ जाऊंगी पर राजा तो अब सुरुचि के हाथ की कटपुती बन गए थे उन्होने सुनिति की कोई परबाह नही की और सुनिति को राज्य छोड कर चले जाने का आदेश दिया बेचारी सुनिति राजा की आज्ञा मान कर राज्य से दुर चली गई।
         उसने राज्य की सिमा के पास कुछ दुरी पर एक कुटिया बना कर रहने लगी उसकी साथ उसकी प्रिय दासी जो उसके पिता ने उसको शादी के वक्त भेट की थी वो साथ रहती थी इससे रानी सुनिति को बडा सहारा था। वो दासी राज्य मे जाकर सामान ले आती थी जंगल से फल फूल आदि भी रानी के लिए ले आती थी। राज्य का सारा हाल वो दासी देख सुन कर उसका वर्णन रानी सुनिति को कर देती थी और रानी सुनिति अपनी प्रजा की खुशहाली की जानकारी पा कर खुश होती थी।
        एक दिन राजा उत्तानपाद शिकार खेलने निकले तो मौसम बहुत खराब होने के बजह से उन्हे रात हो गई और इधर-उधर किसी आश्रय की तलाश मे निकल पडे उन्हे एक कुटिया दिखी और भोजन पानी की आश से वो कुटिया के निकट गए और कुटिया के बाहर खडे हो कर कुटिया के मालिक से अंदर रुकने की आज्ञा मांगने लगे ।अतिथि की आवाज सुन कर दासी बाहर आई और राजा को अंदर ले गई। वह कुटिया रानी सुनिति की थी पर राजा को इस बात का पता नही था। जब रानी सुनिति ने दीपक की मदद से राजा को भोजन परोसा तो रानी सुनिति की नजर राजा उत्तानपाद पर पडी और वो राजा को पहचान गई। रानी ने आतिथ्य धर्म निभा कर राजा को भोजन करवाया।और राजा के पाव छुए तब राजा उत्तानपाद को पता चला की यह रानी सुनिति है।
         अब राजा सुनिति से नजरे भी नही मिला पाए बहुत शर्मिना हुए की ये मेने क्या कर दिया त्रिया-चरित्र के वश होकर मेने इतना बडा पाप कर दिया अपनी ही रानी को को जंगल मे कुटिया मे रहने के लिए मजबुर कर दिया महलो की रानी अब जंगल मे रहती है। राजा का पछतावा हुआ वेचारी जंगली जानवरो से कैसे खुद की रक्षा करती होगी जंगली भोजन खा कर रहती है। रानी की दुर्दशा के जीमेदार खुद को मान कर पछतावा करने लगे इस लिए उस रात को वह रानी के संग बिता कर अगले दिन राज्य चले गए।
      अब वो घडी आई जब सुरुचि माँ बनने वाली हुई। यह जानकर राजा उत्तानपाद खुशी से झुम उठे। बधाईयाँ बांटी गई पुरे राज्य की प्रजा को उपहार भेट किए गए।यह जब रानी सुनिति की दासी ने देखा सुना की रानी सुरुचि माँ बनने वाली है इसलकी खबर उसने रानी सुनिति को सुनाई अब रानी सुनिति भी इस खुशी मे बहुत खुश हुई कि राज्य की राजकुमार मिल जाएंगा। कुछ दिनो बाद ही सुनिति भी माँ बनने वाली थी। अब राज्य मे वो घडी आई की सुरुचि ने एक बालक को जन्म दिया उधर- सुनिति ने भी एक बालक को जन्म दिया। देखो भगवान की कैसी लीला कहाॅ तो कितने सालो तक रानी सुनिति को बालक नही हुआ उधर सौत के संतान हुई तभी सुनिति को भी संतान पैदा हो गई।
          एक तरफ राजा उत्तानपाद और रानी सुरुचि की संतान राजकुमार बहुत लाड प्यार ऐशो आराम से पल रहाॅ था उधर राजा उत्तानपाद का दुसरा पुत्र जो जंगल मे कुटिया मे बचपन बीता रहाॅ था। सुरुचि के पुत्र का नाम उत्तम रखा गया और सुनिति के पुत्र का नाम ध्रुव रखा गया। राजा अपनी सुनिति रानी से पैदा संतान ध्रुव के जन्म से अनजान था उसे पता नही चला था कि उसकी दुसरी संतान भी पैदा हुई है । वो तो उत्तम मे ही अपना मन रमाए बैठे थे। अपनी कम आयु में ही कठोर तपस्या द्वारा श्रीहरि को प्रसन्न करने वाले बालक ध्रुव राजा उत्तानपाद के ही पुत्र थे। 
          कहते हैं जो बड़ी रानी है उनको बाद में एक पुत्र हुआ जिसका नाम था ध्रुव और दूसरी रानी सुरुचि को उत्तम नाम का पुत्र हुआ। अब जरा ध्यान से सुनना, दूसरी रानी जो है वह राजा उत्तानपाद को आसक्ति में बांध लिया था। दरअसल हम सभी उत्तानपाद हैं। उत्तान पाद का मतलब?  जिसके दोनों पैर ऊपर हों। जीव जब मां के गर्भ में रहता है तब उसके पैर ऊपर की ओर होते हैं। इसलिए हम सब उत्तानपाद हैं और हम जीवों की मुख्य दो पत्नियां हैं। कौन सी?.. “सुनीति और सुरुचि” सुनीति माने सुंदर नीति बुद्धिमानी और सुरुचि माने सुंदर रुचि अर्थात मनमानी, अब बुद्धि भी दो प्रकार की होती हैं।
एक सद्बुद्धि दूसरी दुर्बुद्धि बुद्धिमानी और मनमानी यह दो पत्नियां हम सब की प्रत्येक जीव की है। सुंदर नीति सुंदर ज्ञान शास्त्रों का जिसके आधार पर अपने जीवन को चलाना है, शास्त्र के सिद्धांत पर अपने जीवन को अग्रसर करना है तभी तो ध्रुव की प्राप्ति होगी। ध्रुव माने अटल स्थिर तत्व की प्राप्ति कब होगी?.. जब सुनीति का आश्रय लोगे, जब बुद्धिमानी का आश्रय लोगे और यदि बुद्धिमानी छोड़ मनमानी के चक्कर में पड़ गए तो मनमानी का दूसरा नाम है सुरुचि, मतलब सुनीति की सौत इच्छाओं और मनोकामना का नाम है सुरुचि। अब कामनाएं अच्छी हों, तो ठीक है पर कामनाएं तो कई प्रकार की होती हैं। अच्छी भी बुरी भी तो व्यक्ति जब कामनाओं के पीछे पड़ जाता है। कि नहीं यह होना ही चाहिए तो कभी पूरी नहीं होती है एक आवश्यकता पूरी हुई दूसरी द्वार पर खड़ी है।
          दूसरी बात; अब सुरुचि का पुत्र कौन है? उत्तम! हमने यदि अपनी बुद्धि वस्तुओं की इच्छाओं में फसाया तो कामनाएं और बड़ी होंगी। फिर वह उत्तम ही करता है कभी चोरी, तो कभी डकैती, अरे वस्तु को पाने की इच्छा हुई धन है, हमने उसे खरीद लिया। परंतु इच्छा है धन नहीं है, तो परिणाम क्या हुआ?.. हम चोर कहलाएंगे मतलब कि उस चीज, उस वस्तु को हमें पाना है उसके लिए हम चाहे जिस हद तक जाएं किसी को मारना पड़ेगा चाहे जेल भी क्यों न जाना पड़े। यही है उत्तम सुरुचि का पुत्र।
          अब उत्तानपाद जब सुरुचि के प्रेम पास में फंस गया तो सुनीति को घर से निकाल बाहर किया उसका मतलब क्या?.. मतलब कि हर प्राणी कामनाओं की पूर्ति में ही प्रसन्न होता है। महाराज! पर यह याद रखो कि सुरुचि से क्या मिलता है और सुनीति से क्या मिलता है यही शिक्षा हमें इस ध्रुव चरित्र से लेनी चाहिए।



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