Friday, April 7, 2017

शिक्षक, प्रधानाचार्य , साहित्यकार व कवि के रूप में राष्ट्रपति शिक्षक सम्मान से सम्मानित डा. मुनि लाल उपाध्याय ‘सरस’

76वें जयन्ती के अवसर पर सादर नमन एवं भावांजलि
केदार आश्रम श्री अयोध्याजी के पावन धाम से



शिक्षक, प्रधानाचार्य , साहित्यकार व कवि के रूप में
राष्ट्रपति शिक्षक सम्मान से सम्मानित डा. मुनि लाल उपाध्याय ‘सरस


डा.मुनिलाल उपाध्याय ‘सरस’ जी का जन्म 10.04.1942 ई. में सीतारामपुर में श्री नाथ उपाध्याय के परिवार में हुआ था। डा. सरस 1 जुलाई 1963 से किसान इन्टर कालेज मरहा,कटया बस्ती में सहायक अध्यापक के रूप में पहली नियुक्ति पाये थे। 1964 में रामाज्ञा प्रसाद द्विवेदी ‘समीरमरहा विद्यालय पर आये थे जो उपाध्याय जी को ‘सरस’ उपनाम से सम्बोधित कर आशीष दिये थे। यहां वह जून 1965 तक अध्यापन किये थे। इसी बीच मार्च 1965 में नगर बाजार में संभ्रान्त जनों की एक बैठक हुई और नगर बाजार में एक जनता माध्यमिक विद्यालय की स्थापना श्री मोहरनाथ पाण्डेय के प्रबंधकत्व में हुआ। डा. सरस जुलाई 1965 से इस विद्यालय के संस्थापक प्रधानाध्यापक हुए। अब तक डा. सरस के कमला नामक पुत्री तथा सत्यप्रकाश तथा ज्ञानप्रकाश नामक दो पुत्ररत्न हो चुके थे। 1968 में विद्यालय को जूनियर हाई स्कूल, 1970-71 में हाईस्कूल तथा 1973 में इन्टर कालेज की मान्यता मिलती गयी। 1965 से 2006 तक जनता उच्चतर माध्यमिक विद्यालय नगर बाजार बस्ती आजीवन प्रधानाचार्य पद के उत्तरदायित्व का निर्वहन भी किये। इस दौरान जनता इन्टर कालेज नगर बाजार के प्रवंधतंत्र के कोपभाजन का शिकार होना पड़ा तथा उन्हें झेलना भी पड़ा था। अध्यापन के साथ ही साथ सरस जी ने हिन्दी, संस्कृत, मध्यकालीन इतिहास,प्राचीन इतिहास संस्कृति एवं पुरातत्व विषय से एम. ए. करने के बाद हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग का साहित्यरत्न, तथा सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी का साहित्याचार्य उपाधि भी प्राप्त किया था। वे अच्छे विद्वान कवि तथा शिक्षा जगत के एक महान हस्ती थे। उन्हें राष्ट्रपति द्वारा दिनांक 5.9.2002 को वर्ष 2001 का शिक्षक सम्मान भी मिल चुका है। वह जून 2006 तक अपने पद पर रहकर लगभग 42 साल तक शिक्षा जगत जे जुड़े रहे। अगौना कलवारी में आचार्य रामचन्द्र शुक्ल स्मारक व्याख्यानमाला, कविसम्मेलन तथा कन्याओं के विद्यालय को खुलवाने में उनकी महती भूमिका रही है। सेवामुक्त होने के बाद वह अयोध्या के नयेघाट में परिक्रमा मार्ग पर केदार आश्रम बनवाकर रहने लगे। उनका जीवन एक बानप्रस्थी जैसा हो गया था और वह निरन्तर भगवत् नाम व चर्चा से जुड़े रहे। 70 वर्षीया डा. सरस की मृत्यु 30 मार्च 2012 को लखनऊ के बलरामपुर जिला चिकित्सालय में हुई थी। उनकी मृत्यु से शिक्षा तथा साहित्य जगत में एक बहुत ही अपूर्णनीय क्षति हुई थी। मैं उनके प्रखर व्यक्तित्व का श्रद्धा के साथ स्मरण करता हॅू और उनके द्वारा दिखाये गये मार्ग पर चलने का संकल्प लेता हू।


डा. राधेश्याम द्विवेदी ‘नवीन

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