बस्ती।
लगभग 40 साल पहले एक कांग्रेसी राजनेता ने अपने पद का दुरुपयोग करके तथा स्थानीय अधिकारियों
से सांठ गांठ करके ग्राम सभा पोखरा थाना नगर बाजार तहसील हर्रैया की जमीन पर स्वयं
प्रवंधक बनते हुए अपने पुत्र को 1978 में प्रधानाचार्य बनाकर एक अवैध विद्यालय खड़ा
करा लिया था। इस विद्यालय में एक ही परिवार के सदस्य तथा उनके रिश्तेदारों की नियुक्ति
भी पारदर्शिता के आधार पर न करके मनमानी तरीके से की गयी थी। इसी गांव के एक निवासी
के अपील पर माननीय इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश से विद्यालय को तोड़ने तथा सम्पत्ति
को गांव सभा के अधीन करने का आदेश पारित हुआ
है। जिला प्रशासन तहसीलदार (न्यायिक), हरैया उ. प्र. जमींदारी विनाश एवं भूमि व्यवस्था
नियमावली 1952 के अधीन धारा 115 सी. की कार्यवाही कर 27 मार्च 2014 को रु.
57,30,005/- (सत्तावन लाख तीस हजार पाँच रुपये मात्र) का रिकवरी सर्टिफिकेट भी निर्गत
किया है। इसके लिए विद्यालय पर दण्ड भी लगाया
है जिसे विद्यालय ने अभी तक जमा नहीं कराया है। उ. प्र. लोकायुक्त ने ’’निजी विद्यालय
के प्रधानाचार्य के विरूद्ध होने का आधार” बताते हुए सुनवाई करने से इनकार कर दिया
है । चूंकि शिक्षा विभाग के नाम पर शिक्षा के आदर्श कहाने वाले जनों की यह दास्तान
समाज तथा कानून के विरुद्ध थी। इसलिए इसकी निष्पक्ष जांच के लिए कुछ लोगों द्वारा राष्ट्रपति,
प्रधानमंत्री, राज्यपाल महोदयों को एक एक प्रतिवेदन भेजा गया था। इसकी एक एक प्रति
मुख्य सचिव उ. प्र. शासन, लखनऊ, शिक्षा निदेशक उ. प्र. शासन, लखनऊ , जनपद न्यायाधीश
बस्ती, आयुक्त बस्ती तथा जिलाधिकारी बस्ती को भेजा गया था। इस पर कोई कार्यवाही नही
हुई। राष्ट्रपति जी , प्रधानमंत्री जी, राज्यपाल जी ने यह प्रार्थनापत्र तत्कालीन मुख्यमंत्रीजी
उ. प्र. कार्यालय को अग्रिम कार्यवाही के लिए भेज दिया था। वहां से यह प्रकरण मुख्य
सचिव माध्यमिक शिक्षा के यहां विगत दो साल से लम्बित हैं ।
उक्त अपीलकर्ता के अगले आवेदन
पर हाई कोर्ट के कन्टेम्प्ट आदेश पर जिला प्रशासन ने उस विद्यालय पर ताला बन्द कर दिया
गया हैं। इस विद्यालय के छात्रों को अन्य पास के विद्यालयों मे समायोजित कर दिया गया
है। विद्यालय के कर्मचारियों को जांच की अवधि तक काम से विरत कर दिया गया है। विद्यालय
से उपर्जित की गयी अनियमित रकम के बारे में कोई कार्यवाही अभी तक नहीं हुई है। प्रतीत
होता है यदि 2017 का विधान सभा चुनाव की घोषणा ना हुई होती तो यह निष्पक्ष कार्यवाही
भी नहीं हो पाती और पूर्ववर्ती सरकार के दबाव में न्यायालय के आदेशों की निरन्तर अवहेलना
होती रहती । विद्यालय की तालाबन्दी से कार्यरत शिक्षक व स्टाफ की नौकरी अधर में लटक
गई है। विश्वस्त सूत्रों से पता चला है कि प्रथमदृष्ट्या 15 से अधिक शिक्षक व कर्मचारी
इस जांच प्रक्रिया में प्रभावित हो सकते हैं। इनमें प्रधानाचार्य तथा उनके रिश्तेदार
व परिवारी जन प्रमुख हैं। जांच होने तक ये सभी बेतन नहीं पा सकेंगे। जांच उपरान्त सही
प्रक्रिया के अनुसार चयनित स्टाफ को सरकार अन्यत्र समायोजित कर सकती है। अनियमिततापूर्ण
चयनित स्टाफ की नौकरी भी खत्म की जानी चाहिए।
उनके द्वारा अर्जित लाभ की रिकवरी भी की जानी चाहिए। फिलहाल शिक्षक वर्ग शिक्षक
संघ की शरण में पहुंच चुके हैं और उनकी नौकरी बचाने के प्रयास तेज किये जा रहे हैं।
यदि अधिकारी गण निष्पक्षता से काम किये तो इस प्रकरण का निष्पक्षता र्पूण निस्तारण
हो सकता था । चूंकि यह परिवार वहुत दबंग है तथा सत्ता पर काविज रहे राजनेताओं को अपने
प्रभाव में लेकर यह विद्यालय चलाता रहा तथा विद्यालय से मिलने वाले लाभों को अपने परिवारी
जन तथा रिश्तेदारों में बांटता रहा। वह कांग्रेस बसपा तथा सपा के नेताओं से हमेशा अच्छा
सम्बन्ध बनाता रहा। फलस्वरुप हाईकोर्ट , सूचना आयोग तथा केन्द्र व राज्य सरकारें इसके
विरुद्ध दाखिल किये गये किसी आवेदन पत्र पर कोई कार्यवाही नहीं कर पा रही है। शिक्षक
संघ को अपने झासे में लेकर यह प्रवंधक व प्रधानाचार्य पुनः विद्यालय को खोलवाने का
प्रयास कर रहे हैं तथा उन पर राज्य सरकार द्वारा पारित राजस्व को जमा भी नहीं कर रहे
हैं। पिछली सरकारों के कुकृत्यों तथा भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए 2017 के विधान
सभा चुनाव में प्रदेश की जनता ने भाजपा को अति विशाल वहुमत देकर जिताया है। एक महीने
लगभग इस सरकार को सत्ता में आये हो गया है। प्रदेश के अब तक के सबसे लोकप्रिय तथा युवा
मुख्यमंत्री जी ने अनेक अच्छे काम करना भी शुरु कर दिया है, परन्तु इस प्रकरण में भ्रष्टाचार
की कोई परत खुलती नहीं दिख रही है। इससे सरकार की छवि भी पारदर्शी नहीं बन पा रही है
और चार दशक से चला आ रहा मनमानी दौर अभी समाप्त नहीं हो पाया है। इस प्रकरण की जांचकर
अविलम्ब विधि सम्मत कार्यवाही किया जाना चाहिए।
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