रामकथा श्रीराम की कहानी है जो आज से हजारों साल पहले त्रेता युग में भगवान विष्णु के अवतार के रूप में प्रकट हुआ है। संस्कृत भाषा में आदि कवि बाल्मीकि ने इसे मूल रूप से लिखा है। यह कथा ना केवल भारतीय भाषा में अपितु विश्व के हर प्रमुख भाषाओं में लिखा गया है। विश्व साहित्य में रामकथा एक महाकाव्य तथा इतिहास के रूप में अपना विशिष्ट स्थान रखता हैं। यद्यपि त्रेता युग मे भगवान विष्णु के अवतार को श्रीराम ने अपने को मर्यादा पुरूषोत्तम के रूपमें आदर्श मानव का साकार स्वरूप प्रस्तुत किया है। जो असंभव से असंभव परिस्थिति में मानव जीवन को उच्च स्तर पर पहुंचाने में सक्षम प्रमाणित हुआ है। इस परिप्रेक्ष्य में वह एक आदर्श पुत्र, शिष्य,पति,नेता, मित्र, राजनयिक, योद्धा और राजा के रूप में स्वयं को प्रस्तुत ही नहीं सिद्ध करके दिखाये हैं । एक शत्रु के रूप में भी उनमें आदर्श एवं दयालु भाव ही दिखाई देता है। युद्ध में उनका विरोध करने वाले सारे राक्षसों की आत्माओं को मुक्त कराने के लिए उन्होने पूर्ण तथा सफल प्रयास किया है। वे इतना विनम्र हैं कि अपनी विजय का श्रेय स्वयं न लेकर अपनी सेना को देते हैं। सम्पूर्ण रामकथा में, कुछ अपवादों को छोड़कर, श्रीराम जी अपनेे असली दिव्य स्वरूप को प्रकट होने नहीं देते हैं। जिससे उनके परम ब्रह्म के सर्वव्यापी व शक्तिशाली रूप का लोगों को आभास भी नहीं हो पाया है। वह यह भी सन्देश देने में सफल रहते हैं कि जन्मभूमि स्वर्ग से भी अधिक महत्वपूर्ण होती है - ’’जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपिगरीयशी’’। इसके लिए वह भारतमाता के एक बेटे के रूपमें बलिदान देने के लिए सदैव तत्पर रहते हैं तथा अपने को बलिदान देने पर गौरवान्वित महशूस होने की बात कहते हैं।
कुछ विद्वानों
ने एक दार्शनिक रूपक
का सुझाव देते हुए कहा है कि राम
और सीता क्रमशः पुरूष और प्रकृति का
प्रतिनिधित्व भी करते हैं।
मारीच को माया से
समता करते हुए स्वर्ण मृग का रूप धारण
करना पड़ा था। रावण के अशोक वाटिका
में कैद सीता भ्रमित मानव की आत्मा के
समान है। राम की खोज तथा
प्रतीक्षा करना दिव्य आत्मा की खोज व
प्रतीक्षा है। सीता र्की अिग्न परीक्षा प्रकति द्वारा माया को मानने की
बृति का मोचन या
विनाश करना है। अंततः पुरूष और प्रकृति को
उनके मूल स्वरूप में प्रतिस्थापित किया गया है।
इस कहानी
को स्वामी विवेकानन्द जी ने भी
एक आध्यात्मिक आयाम देने का प्रयास किया
है। उन्होंने कहा है- राम परमात्मन् और सीता जीवात्मन्
स्वरूप हैं। मानव शरीर लंका के समान है।
जीवात्मन् सीता
के रूप में शरीर धर कर लंका
में कैद कर लिया गया
है। वह हमेशा परमात्मन्
या श्रीराम से मिलने के
लिए लालायित रहती है। लेकिन राक्षस कुछ निश्चित अलग आचरण रखते हुए इस आत्मन् एवं
परमात्मन् के मिलन की
अनुमति नहीं प्रदान करते हैं। इतना ही नहीं लंका
के जन्में तीनो ब्रह्मण भाईगण भी तीन गुणों
का प्रतिनिधित्व करते हैं। विभीषण सत्व गुण, रावण रजोगुण तथा कुम्भकरण तमो गुण के प्रतीक हैं।
तमस - अंधकार,व्यामोह, लोभ, अस्वस्थता आदि का प्रतिनिधित्व करता
है। ये तमस गुण
के अवयव जीवात्मन् या सीता को
अंधकारपूर्ण - शरीररूपी लंका मंे पीछे की तरफ मोड़ने
का प्रयास कर रहे हैं।
जीवात्मन् सीता कैद में रह रही है।
उसे हनुमान रूपी गुरू से परमात्मन् के
ज्ञान की अंगूठी पहुचाई
जाती है तो उनके
अज्ञानता का विनाश होता
हैं और परमात्मन् के
मिलने के विश्वास की
पुष्टि भी होती है।
कैदी जीवात्मन् का सारा मोह
तथा भ्रम नष्ट हो जाता है।
जीवात्मन् सीता को विश्वास हो
जाता है कि हनुमान
गुरू या शिक्षक परमात्मन्
का दूत बनकर उन्हें परमात्मन् के स्वरूप से
परिचित तथा विश्वासित करा देता है। अंततः वह परमात्मन् से
तादात्म्य स्थापित कर ही लेता
है।
विश्वजनित प्रभाव:-रामकथा
का विश्व व्यापी प्रभाव सुदूर पूर्वी देशों की संस्कृति को
भी प्रभावित किया है। उन
दिनों में दक्षिण पूर्व के अधिकांश देशों
में हिन्दू राजाओं का शासन हुआ करता था। यद्यपि अभी भ थाईलैण्ड जैसे अनेक
बौद्ध देश हैं, जहां भारतीय शासको का कभी न
कभी शासन हुआ करता था। ये राज्य राम
के नाम से सम्बन्धित रहे
हंै। इण्डोनेशिया में जहां जनसंख्या बहुतायत में मुस्लिम हैं, उस देश में
रामकथा बहुत ही मार्मिक ढ़ंग
से खेला जाता है। इसी प्रकार बाली ,सुमात्रा,जावा, कम्बोडिया और बर्मा में
भी रामकथा पूरे आम जनमानस में
नाटकों ,मन्दिरों, तथा लोकगीतों के रूपमें जीवित
है।
भारत के
अलावा तीन और अयोध्या विश्व
में स्थित होना माना जाता है। एक थाईलैण्ड में,
एक कोरिया में तथा एक इण्डोनेशिया में
है। इन हर देशों
में रामकथा मूल कथा से हटकर किसी
न किसी परिवर्धित रूपमें मिलती है। किसी किसी रूपान्तर मे सीता को
रावण की बेटी बताया
गया है। बाली का रामायण अपने
साहित्यिक उत्कृष्टता के लिए प्रसिद्ध
माना जाता है।
रामकथा ने चीनी ,जापानी
और कोरिया के निवासियों के
जीवन शैली पर अपना अमिट
प्रभाव छोड़ती है, विशेषकर राम का चरित्र - कथा
का प्रमुख चरित्र या नायक होता
है। जापानियों ने एक उत्कृष्ट
कार्टून रूपान्तरण के माध्यम से
राम के चरित्र को
चित्रित किया है। आस्ट्रेलिया, पश्चिम एशिया, अनेक अरब तथा अफ्रीकी देशों में वहां के निवास करने
वाले हिन्दुओं में रामायण जीवन का एक महत्वपूर्ण
भाग बन गया है।
दक्षिण अफ्रीका और मारिशस में
लगभग एक डेढ शताब्दियों
पूर्व आये हुए हिन्दुओं के जीवन में
राम कथा विशेष रूप से जीवन का
हिस्सा बनी हुई है। हिन्दू के घर को
उसके सामने हनुमानजी मूर्ति तथा उसके पास गाड़े हुआ ध्वजा से पहचान होती
है। वहां के सामाजिक सराकारों
की पहचान विभिन्न प्रकार की शैली में
राम की कथा के
गायन से होता है।
राम कथा से सम्बन्धित एक
विशिष्ट कार्यक्रम वहां के रेडियो व
टी वी कार्यक्रमोंमें निर्धारित
किये जाते हैं।
अंग्रेज विद्वानों ने
रामायण का अध्ययन करके
उसके बारे में टिप्पणी भी किया है
। यद्यपि कुछ पूर्ववर्ती अध्ययन गलत तथ्यों के खोजने के
उद्देश्यों को लेकर इस
प्रकार प्रारम्भ की गयी है
कि अपने
इसाई धर्म की सर्वोच्चता को
ही सिद्ध कर सकें। सर
वारेन हेस्टिग्ज जो भारत का
प्रथम गवर्नर जनरल था, ने बहुत ही
सम्मानित विचार व्यक्त किया है। उसने कहा है कि इसाई
धर्म के नेता जो
भारतीयों के जीवन तथा
व्यवहार के बारे में
प्रश्न उठाते हैं कि भारतीयों व
सुसंस्कृत लोगों का रामायण बहुत
ही का पूज्य व
धार्मिक पुस्तक है। उन्होने लिखा है कि यह
पुस्तक अभी भी भारत मेें
तथा हिन्दुओं में वैसे ही महत्व की
बनी होगी ,जबकि व्रिटिस अधिकारी वहां से कब के
निकल चुके होंगे। कई यूरोपीय विद्वानो
ने बाल्मीकि रामायण को विशुद्ध साहित्यिक
पुस्तकीय गुणों वाला कहकर अभिमत व्यक्त किया है।
रामकथा मारीशस और
दक्षिण अफ्रीकी देशों में गन्ने की खेती करने
के लिए आये गिरमिटिया किसानों व श्रमिकों के
साथ आया है। यह हिन्दुओं के
एक अभिन्न अंग के रूप में
अधिक से अधिक एक
सौ पचास सालों से दक्षिण अमेरिकी
देशों, सूरीनाम, गुयाना व त्रिनिदाद आदि
देशों में आया है। इन वहादुर लोगों
को उनके कठोर भाग्य ने इस विषम
स्थिति में लाकर छोड़ रखा है। यद्यपि उन्हें एक विदेशी माहौल
प्राप्त हो सका है।
फिर भी इनके लिए
अच्छे आसार दिखाई पड़ रहे हैं।
ये सब गोस्वामी तुलसीदास
कृत रामचरित मानस का असर है
जो मूल रामायण से भी अधिक
लोकप्रिय, न
केवल भारत में अपितु विश्व के हर क्षेत्रों
में हुआ है। ये श्रमिक दिन
में खेतों में कठिन श्रम करते हैं और रात में
ढ़ोल-मंजीरे के साथ भगवान
का भजन गाते व सुनाते हैंे।
उन्हें विश्वास था कि इस
अध्ययन तथा श्रवण व गायन से
भगवान श्रीराम उनके सारे पाप हर कर उन्हें
समृद्धि, मुक्ति तथा मोक्ष का लाभ प्रदान
करेंगे। इन्हें जहाज के माध्यम से
विदेशों में लाया गया था। वे भी राम
का नाम लेते तथा उनके चरण कमल को अपने दिल
तथा स्मृृति में सजोते थे। इन प्रार्थनाओं एवं
भजनों से उनमें नव
जागरण तथा स्फूर्ति का संचार होता
था। वे लोहे की
तरह मजबूत होते देखे गये हैं। वे इससे और
कठिन काम करने के लिए तत्पर
हो जाते थे।
उत्तर
और मध्य अमेरिका में तो राम कथा
का प्रभाव अपेक्षाकृत बाद का है। कनाडा,
संयुक्त राज्य अमेरिका ,मैक्सिको और मध्य अमेरिका
में हजारों की संख्या में
हिन्दू पहले से ही रह
रहे हैं। कनाडा और संयुक्त राज्य
अमेरिका में रामकथा को पुराने तथा
युवा लोग बहुत पसन्द करते हैं। रामायण और रामनाम घरों
तथा मन्दिरों में बखूबी बोली जाती है। विजय दशमी के त्योहार की
तरह रामलीला मंन्दिरों तथा बड़े भीड़वाले वाह्य प्रांगणों में अभी भी खेली जाती
है। विश्व व्यापी प्रभाव डालने के लिए बड़े-बड़े आयोजनों में विद्वानों का सम्मेलन तथा
प्रवचन होते रहते हैं। राम कथा के अध्यात्मिक तथा
साहित्यिक मूल्यों के पुर्नस्थापन के
लिए अमेरिका के अनेक विश्वविद्यालयों
में इसे पाठ्यक्रम में स्थान दिया गया है। इन देशों के
अध्यात्मिक विद्वान गैर हिन्दू देश के भी होते
हैं। रामकथा ने इन सभी
के जीवन पद्धति में आमूल परिवर्तन ला दिया है।
प्राचीनकाल से ही
रामकथा जीवन में अमृत की रसधारा बरसा
रहा है। इसे मूल रूप से भगवान शिव
ने पार्वती जी को सुनाया
था। इसके बाद काकभुशुण्डजी ने गरूणजी को
सुनाया था। याज्ञवलक्य जी ने भारद्वाज
मुनि को इस कथा
का रसपान कराया था। इस कलिकाल में
गोस्वामी तुलसी दास ने इसे आम
लोकभाषा में सभी लोगों को अपने लेखनी
के माध्यम से वितरित किया
था। यद्यपि कलियुग में अनेक दोषारोपणों को रामायण में
वर्णित किया गया है और कुछ
लोगों के आलोचना का
वह भाग भी बन जाता
है। परन्तु तुलसीदास जी ने तो
समाज के तत्कालीन स्थिति
को जैसा देखा और अनुभव किया
उसी भाव से वर्णित किया
है । किसी के
मान सम्मान पर आधात पहुचाना
उनका कत्तई लक्ष्य नहीं था।
जीवन का
परम लक्ष्य मोक्ष और मुक्ति को
एक व्यक्ति भक्ति तथा सच्चे समर्पण से प्राप्त कर
सकता है। यद्यपि एसा कर पाना कोई
आसान सा काम नहीं
होता है ,परन्तु रामकथा में रूचि , साधना तथा भक्ति से इस लक्ष्य
को आम आदमी आसानी
से प्राप्त कर सकता है।
इस प्रकार रामकथा हिन्दू संस्कृति का पर्याय बन
गया है। हम बड़े अधिकार
के साथ कह सकते हैं
कि जहां-जहां हिन्दू हैं वहां रामकथा अवश्यम्भावी रूप से मिलता ही
है।
( डा. राधे श्याम द्विवेदी , भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण,आगरा 282001 (उत्तर प्रदेश) INDIA)
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