फ्लोराइड क्या है:-कई
देशों जैसे सं. रा. अमेरिका आदि में पीने के पानी के फ्लोरिडेशन की नीति इतने लंबे
समय से प्रभावी है कि अधिकांश लोग इसपर ध्यान ही नहीं देते. लेकिन अब बहुत से वैज्ञानिक
और जनस्वास्थ्य अधिकारी यह प्रश्न उठा रहे हैं कि राष्ट्रव्यापी फ्लोरिडेशन का क्या
औचित्य है और पानी में फ्लोराइड की उपस्थिति के मानव शरीर पर कौन से प्रतिकूल दूरगामी
प्रभाव हो सकते हैं. नीचे दिए गए बिंदुओं में हम आपको बताने जा रहा हैं कि पानी में फ्लोराइड की मौजूदगी के विषय
में आपको कौन सी बातों की जानकारी होनी चाहिए -
फ्लोराइड प्रदूषण का प्रतिउत्पाद है :– फ्लोराइड के प्रोमोटर्स जनता को यह बात नहीं जानने देना
चाहते हैं कि पब्लिक वाटर सिस्टम में मिलाए जानेवालाफ्लोराइड प्राकृतिक रूप से प्राप्त
नहीं किया गया है. पानी में अलग से मिलाया गया फ्लोराइड अक्सर ही हाइड्रोफ्लुओरोसीलिसिक
एसिड का रूप ले लेता है.यह एसिड प्रायः फॉस्फेट की खदानों और निर्माण प्रक्रिया के
प्रतिउत्पाद के रूप में मिलता है जहां धरती से निकाली गई चट्टानों को सल्फ्यूरिक एसिड
से भरी नांदों में शुद्धिकरण के लिए रखा जाता है ताकि उसके अवांछित तत्व अलग हो जाएं.
फ्लोराइड कई देशों में प्रतिबंधित है :– यद्यपि
सेन्टर फार डिजीज कन्टरोल (सी डी सी) फ्लोराइड के उपयोग को बीसवीं शताब्दी की सबसे
प्रमुख दस जन स्वास्थ्यकारी उपलब्धियों के रूप में प्रचारित करती है लेकिन दुनिया के
अनेक देश इस नीति से सहमत नहीं हैं. अनेक महत्वपूर्ण देशों जैसे फ्रांस, जर्मनी, ऑस्ट्रिया,
बेल्जियम, डेनमार्क, और ग्रीस में पानी का फ्लोरिडेशन प्रतिबंधित कर दिया गया है. कुछ
अन्य देशों जैसे स्विट्ज़रलैंड, यू.के., नॉर्वे और स्पेन में घरों में सप्लाई होनेवाले
लगभग 90% पानी में अब फ्लोराइड की उपस्तिथि शून्य होती है.
फ्लोराइड एक संभावित न्यूरोटॉक्सिन
है :– द लांसेट की
गिनती विश्व के सबसे पुराने व प्रतिष्ठित मेडिकल जर्नल्स में होती है. इसने बहुत मुखर
होकर कहा है किफ्लोराइड एक न्यूरोटॉक्सिन है अर्थात यह हमारे शारीरिक व मानसिक विकास
के लिए खतरनाक है.इसने अपने लेख में यह बताया है कि पूरे विश्व में बच्चों को प्रभावित
करनेवाले न्यूरोडेवलेपमेंटल मामले जैसे कि ऑटिज़्म ,अटेंशन डेफ़िसिट डिसॉर्डर और अन्य
विकृतियां फ्लोराइड तथा इसी प्रकार के अन्य औद्योगिक प्रतिउत्पादों के उपयोग के कारण
हो रही हैं और इनके बीच का संबंध अब स्पष्ट हो गया है.
फ्लोराइड अन्य उपयोगी यौगिकों से
प्रतिक्रिया करता है :– नेशनल कैंसर
इंस्टीट्यूट के भूतपूर्व प्रधान कैमिस्ट डॉ. डीन बर्क ने यह पाया कि शरीर में कोशिकाओं
की बढ़त, फैटी एसिड्स का निर्माण, और एमीनो एसिड्स के मेटाबोलिज़्म के लिए आवश्यक यौगिक
बायोटिन फ्लोराइड की उपस्थिति में सही तरीके से अपना काम नहीं कर पाता. डॉ. बर्क फ्लोरिडेशन
की नीति के प्रबल विरोधी थे और उन्होंने अपने एक पेपर में साफ़-साफ़ लिखा कि “किसी
भी अन्य रसायन की तुलना में फ्लोराइड के प्रयोग से सबसे अधिक मौतें कैंसर से हो रही
हैं”.
उपयोग किए जानेवाले अनेक पदार्थों
मेंफ्लोराइड है
:– फ्लोराइड के
उपयोग को प्रोमोट करनेवाले लोग इस प्रश्न का उत्तर नहीं देते कि जब हमारे टूथपेस्ट,
माउथवॉश और अन्य हेल्थ प्रोटक्ट्स में फ्लोराइड होने के साथ ही पानी में प्राकृतिक
रूप में भी सूक्ष्म मात्रा में फ्लोराइड होता है तो उसे पीने के पानी में अलग
से मिलाए जाने की क्या ज़रूरत है? आज दुनिया भर में करोड़ों लोग अपने बाथरूम में ऐसे
अनेक प्रोडक्ट्स इस्तेमाल करते हैं जिनमें फ्लोराइड मिला होता है.भारत में हमें पानी के फ्लोरिडेशन को लेकर चिंतित
होने की ज़रूरत नहीं है क्योंकि यहां पानी में फ्लोराइड नहीं मिलाया जाता. परन्तु पानी
में प्राकृतिक फ्लोराइड की बहुत अधिक मात्रा होने के कारण भारत के 20 राज्यों
में हजारों लोग हड्डी और दांतों के विकारों से ग्रस्त हैं. भारत में फ्लोराइड
की अधिकतम मान्य मात्रा 1.2 mg/L है और सरकार ने ऐसे क्षेत्रों में पानी
से फ्लोराइड निकालने के लिए रिवर्स ऑस्मॉसिस प्लांट लगाए हैं. वर्ष 2014 तक 19 राज्यों
की 14,132 बस्तियों में पानी में फ्लोराइड का स्तर सामान्य से अधिक देखा
गया.सरकार ने वर्ष 2008-09 में नेशनल प्रोग्राम आफ प्रिवेन्सन एण्ड कन्टरोल आफ
फलोरेसिस चलाया जिसे 2013-14 में नेशनल रुरल हेल्थ मिशन के आधीन कर दिया गया. इसने
अभी तक 111 जिलों में फ्लोराइड के कारण होनेवाले फ्लोरोसिस के निदान, उपचार
और रोकथाम के लिए कदम उठाए हैं.
20 हजार की आबादी में 2500 लोग बीमार, 200 दिव्यांग:-
ताजनगरी आगरा
में आधा दर्जन गांव(रौता की घड़ी, पट्टी, खेड़ा, पंचघई, रोहता, देवरी, जारनी गढ़ी,सेमरी)
ऐसे हैं, जहां की 20 हजार की आबादी में ढाई हजार लोग बीमार हैं, जबकि दो सौ लोग दिव्यांग
हो चुके हैं। बीमारों का घुटने में सूजन है और दिव्यांगों के पैर घुटने से मुड़ गए
हैं। यह सब भूजल में प्रदूषण की वजह से हो रहा है। कोई जवानी में हुईं बूढ़ी, किसी का पैर हुआ टेढ़ा है। 35 साल की मीना
देवी करीब 90 डिग्री झुककर घर से बाहर निकलती है। 15 साल की बेटी प्रीति का पैर टेढ़ा
हो गया है। 32 साल के सुनील पांच साल से बेड पर लेटे हैं। उनका घुटना और कमर इस लायक
नहीं बचा कि वह चल सकें। टायलेट भी दूसरों के सहारे जाते हैं। पास के पट्टी गांव में
रहने वाले 19 साल के सुरेंद्र का घुटना खराब हो गया है, वह लड़खड़ा कर चलते हैं। ये
जूता फैक्ट्री में काम करते हैं। इसी गांव में 3 साल का चिंटू पैरों से दिव्यांग है।
वह खड़ा नहीं हो पाता। मां भावना ने बताया- डेढ़ साल पहले तक वह चल रहा था, लेकिन अब
चलने से लाचार है। 17 साल के प्रेम का हाथ टेढ़ा हो गया है। उनके पिता गोरे लाल ने
बताया- पूरा गांव दिव्यांगों का होता जा रहा है। डॉक्टर कहते हैं कि घर में आरओ लगवाओ।
लेकिन मजदूरी करके इतना रुपया नहीं जुट पा रहा। एक अन्य खेड़ा गांव में 35 साल की ऊषा
कहती हैं- न चल पाने की वजह से खुद को बूढी महसूस करती हैं। बरौली अहीर मंडल में ऐसे
एक दर्जन गांव हैं, जहां दिव्यांगता हर घर को अपने आगोश में ले रही है। डॉक्टरों के
पास इलाज के लिए जाओ तो वो घर में आरओ लगवाने की बात कहते हैं। वह कहते हैं दवाई तभी
असर करेगी, जब आरओ पानी पीएंगे। लेकिन मजदूरी में इतनी कमाई नहीं हो पाती है कि आरओ
प्लांट लगवा सकें।
बूढ़ा और दिव्यांग होने की वजह:- जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (जीएसआई) की रिपोर्ट के
अनुसार- बरौली अहीर के गांवों के भू-जल में एक लीटर पानी में 6 से 7 मिलीग्राम (एमजीएल)
फ्लोराइड है। जबकि मानव स्वास्थ्य के लिए पानी में फ्लोराइड की 1.5 एमजीएल से ज्यादा
नहीं होनी चाहिए। पानी में फ्लोराइड ज्यादा होने से गठिया सहित हड्डी की कई बीमारियां
हो जाती हैं। इसी वजह से लोग बूढ़े और दिव्यांग हो रहे हैं।
इस स्थिति का बड़ा कारण यहां से गुजरने वाली आगरा केनाल भी है, जिसमें पिछले काफी समय से निरंतर बिना शोधित किया हुआ गंदा पानी छोड़ा जा रहा है। इससे यहां का भूमिगत जल खराब हो चुका है। इस नहर में अनट्रीटेड इंडस्ट्रियल का गंदा पानी दिल्ली और हरियाणा से छोड़ा जा रहा है। यह अंडरग्राउंड वाटर रिसोर्स को जहरीला बना रहा है। गांवों में अमीरों ने अपने घर में आरओ लगावा लिए हैं। गांव के प्रधान राधे लाल के घर में आरओ लगा हुआ है। लेकिन मजदूर भूजल ही पीने को मजबूर हैं। राधेलाल का कहना है- गांवों की हालत लगातार बदतर होती जा रही है। गांव में कुछ लोगों ने अपने घर में आरओ लगवाया है। इन लोगों को हर 15-20 दिनों पर आरओ को खोलकर साफ करना पड़ता है। यह भूजल में काफी ज्यादा फ्लोराइड होने की वजह से है। जबकि ऐसे ही आरओ को शहरी क्षेत्र में साल में एक बार साफ कराना पड़ता है। ग्रामीणों को भूजल में फ्लोराइड के बारे में 10 साल पहले पता चला था। जब गांवों में दिव्यांगों की संख्या बढ़ने लगी तो भूगर्भजल विभाग ने भूमिगत जल की जांच की। ग्रामीण दयाल शरण कहते हैं- काफी प्रदर्शन और हंगामा करने के बाद जल निगम ने साल 2012 में इतनी बड़ी आबादी के लिए सिर्फ 2 गांव पट्टी और खेड़ा पंचगई में आरओ प्लांट लगाया। लेकिन यह भी डेढ़ साल में खराब हो गया। इसके बाद 100 से ज्यादा अधिकारियों और नेताओं को गांव की हालत बता चुके हैं। लेकिन पानी का कोई ठोस उपाय नहीं किए जा रहे हैं।
इस स्थिति का बड़ा कारण यहां से गुजरने वाली आगरा केनाल भी है, जिसमें पिछले काफी समय से निरंतर बिना शोधित किया हुआ गंदा पानी छोड़ा जा रहा है। इससे यहां का भूमिगत जल खराब हो चुका है। इस नहर में अनट्रीटेड इंडस्ट्रियल का गंदा पानी दिल्ली और हरियाणा से छोड़ा जा रहा है। यह अंडरग्राउंड वाटर रिसोर्स को जहरीला बना रहा है। गांवों में अमीरों ने अपने घर में आरओ लगावा लिए हैं। गांव के प्रधान राधे लाल के घर में आरओ लगा हुआ है। लेकिन मजदूर भूजल ही पीने को मजबूर हैं। राधेलाल का कहना है- गांवों की हालत लगातार बदतर होती जा रही है। गांव में कुछ लोगों ने अपने घर में आरओ लगवाया है। इन लोगों को हर 15-20 दिनों पर आरओ को खोलकर साफ करना पड़ता है। यह भूजल में काफी ज्यादा फ्लोराइड होने की वजह से है। जबकि ऐसे ही आरओ को शहरी क्षेत्र में साल में एक बार साफ कराना पड़ता है। ग्रामीणों को भूजल में फ्लोराइड के बारे में 10 साल पहले पता चला था। जब गांवों में दिव्यांगों की संख्या बढ़ने लगी तो भूगर्भजल विभाग ने भूमिगत जल की जांच की। ग्रामीण दयाल शरण कहते हैं- काफी प्रदर्शन और हंगामा करने के बाद जल निगम ने साल 2012 में इतनी बड़ी आबादी के लिए सिर्फ 2 गांव पट्टी और खेड़ा पंचगई में आरओ प्लांट लगाया। लेकिन यह भी डेढ़ साल में खराब हो गया। इसके बाद 100 से ज्यादा अधिकारियों और नेताओं को गांव की हालत बता चुके हैं। लेकिन पानी का कोई ठोस उपाय नहीं किए जा रहे हैं।
शादी में आ रही प्रॉब्लम:-
ज्यादातर घरों में युवाओं के विकलांग होने की वजह से उनकी शादी में प्रॉब्लम
आ रही है। ऐसे में युवाओं को दिव्यांग जीवनसाथी ही मिल रहे हैं।पंचगढ़ी गांव के दयालु
ने बताया- दर्जनों ऐसे युवक-युवतियां हैं, जो रिश्ते का इंतजार कर रहे हैं, लेकिन
उनके सामान्य युवक-युवती शादी को तैयार नहीं हैं।भूगर्भ जल मंत्री एसपी सिंह बघेल
ने बताया- जल निगम के अधिकारियों से इस मामले में बात करेंगे और पेयजल का समाधान निकालेंगे।
रिवर कनेक्ट अभियान ने हाल ही में इन गांवों का सर्वे किया और सीडीओ नागेंद्र प्रताप
सिंह को अपनी रिपोर्ट सौंपी थी। उन्होंने पेयजल सुधार की मांग की थी।अभियान से जुड़े
बृज खंडेलवाल ने बताया- उनकी रिपोर्ट और ज्ञापन को सीडीओ ने रख लिया, लेकिन दिलचस्पी
नहीं दिखाई। कई बार इस तरह ज्ञापन दिए जा चुके हैं। 20 हजार आबादी में गढ़ी पंचगई- 2500/ दिव्यांगों की संख्या- 34, खेड़ा पंचगई- 2500/ दिव्यांगों
की संख्या- 30 ,पट्टी- 2000/ दिव्यांगों की संख्या- 42 है।
डॉ.नगेन्द्र शर्मा वरिष्ठ न्यूरोसर्जन, जोधपुर के कुछ उपयोगी सुझाव :- भूमिगत पानी में पाए जाने वाले तत्त्वों
की मात्रा जरूरत से ज्यादा हो जाए तो कई रोगों का खतरा हो सकता है। ऐसी समस्या के शिकार
राजस्थान के कुछ हिस्से हैं। यहां पानी में फ्लोराइड की मात्रा इतनी अधिक है कि शरीर
में विभिन्न प्रकार की विकृतियां पैदा हो रही हैं। पश्चिमी
राजस्थान अधिक प्रभावित सामान्य तौर पर पीने योग्य पानी में फ्लोराइड की मात्रा
एक से डेढ़ मिग्रा. प्रति लीटर तक हानिकारक नहीं होती है। पश्चिमी राजस्थान का रेगिस्तान
वाला हिस्सा ही अधिक है, जो प्रकृति के प्रकोप को लगातार झेलता रहा है। यहां के अधिकांश
गांवों में पीने के पानी में फ्लोराइड की मात्रा बहुत ज्यादा है। इससे दांत, आंत, रीढ़
की हड्डी व शरीर के सभी जोड़ों पर इसका दुष्प्रभाव दिखाई देने लगता है। दांतों में
फ्लोराइड का जमाव 2-3 वर्ष के 50 प्रतिशत बच्चों में शुरू हो जाता है। इसी प्रकार
4-8 साल के बच्चों के खोखले दांत पूर्ण रूप से गिर जाते हैं। राजस्थान के जालोर, सांचोर,
नागौर, चूरू, पाली के कई भागों में ऐसे मरीज बड़ी संख्या में देखे जा सकते हैं।
जोड़ों
का दर्द
:- फ्लोराइडयुक्त
पानी पीने से लोग जोड़ों के असहनीय दर्द के शिकार हो जाते हैं। इससे रीढ़ की हड्डी
में फ्लोराइड जमना शुरू हो जाता है, जिसके फलस्वरूप व्यक्ति में आंशिक व पूर्णतया कूबड़
की आशंका रहती है।
नसों
में शिथिलता
:- फ्लोराइड युक्त
पानी पीते रहने के कारण रीढ़ की हड्डी में जमाव के कारण स्पाइनल कॉर्ड व इसकी नसों
पर दबाव बढऩे से हाथ-पैरों की नसों में शिथिलता आ जाती है व मरीज लकवे का शिकार हो
जाता है व बाकी उम्र उसे बिस्तर पर गुजारने को मजबूर होना पड़ता है। आंतों में अल्सर,
पुरुषों में नपुंसकता व महिलाओं में बार-बार गर्भपात होकर बांझपन का शिकार होने का
कारण भी यही फ्लोराइड बनता है।
बचाव
ही उपाय
:-इन
बीमारियों से निजात पाने के लिए बचाव ही एकमात्र उपाय है। राजीव गांधी ड्रिंकिंग वाटर
मिशन क्षेत्र के गांवों में फ्लोराइड रहित पानी पहुंचाने का कार्य कर रहा है। इनका
मिशन गांव में बरसात के पानी को संग्रह कर उसे शुद्ध करके पीने योग्य बनाना है।
फ्लोराइड
से निजात:- फ्लोराइड युक्त
पानी को शुद्ध करने के लिए आईआईटी कानपुर व यूनीसेफ द्वारा विकसित यंत्र जिसका
खर्च मात्र 1500 रुपए है। इन्होंने गांव-गांव में उपलब्ध करवाकर इसकी उपयोगिता की जानकारी
दी ताकि फ्लोराइड रहित पानी सर्वत्र उपलब्ध हो सके। जिन हैंडपंपों, कुओं या अन्य भूमिगत
स्त्रोतों में फ्लोराइड की मात्रा अधिक है, उन्हें बंद कराकर पीने योग्य पानी की योजना
बनाई जाए।
पानी
का संग्रह:-गांव
के हर घर में बरसात के पानी का संग्रह करने के लिए हौद या टांका बनाया जाए और वर्षभर
इसी पानी का प्रयोग किया जाए। सावधानी इस बात की रखने की आवश्यकता है कि इस जल को भी
पूर्णत: शुद्ध रखा जाए। इसे कीड़े -मकोड़े और अन्य विषाणुओं व विषैले पदार्थों से बचाने
के लिए उचित व्यवस्था की जानी चाहिए।
शल्यक्रिया
की जरूरत:-जो मरीज रीढ़
की हड्डी के टेढ़ेपन के कारण लकवे के शिकार हो जाते हैं, उनका एकमात्र उपचार सर्जरी
है। सावधानी व सजगता से लोगों को कूबड़ और आंशिक विकलांगता से बचाया जा सकता है।
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