‘ज्वेल्स आफ बिट्रेन’ का मानना है कि
सन् 1655 के आसपास कोहिनूर का जन्म हिन्दुस्तान के गोलकुण्डा जिले की कोहिनूर
खान से हुआ। तब हीरे का वजन था 787 कैरेट। इसे बतौर तोहफा खान मालिकों ने शाहजहां
को दिया। सन्1739 तक हीरा शाहजहां के पास रहा। फिर इसे नादिर शाह के पास रहा।
इसकी चकाचौधं चमक देखकर ही नादिर शाह ने इसे कोहिनूर नाम दिया। कोहिनूर को रखने
वाले आखिरी हिन्दुस्तानी पंजाब का रणजीत सिंह था। सन् 1849 मे पंजाब की सत्ता
हथियाने के बाद कोहिनूर अंग्रेजों के हाथ लग गया। फिर सन् 1850 में ईस्ट इण्डिया
कम्पनी ने हीरा महारानी विक्टोरिया को भेंट किया। इंग्लैण्ड पंहुचते-पंहुचते
कोहिनूर का वजन केवल 186 रह गया। महारानी विक्टोरिया के जौहरी प्रिंस एलवेट ने
कोहिनूर की पुन: कटाई की और पॉलिश करवाई। सन् 1852 से आज तक कोहिनूर को वजन 105.6
ही रह गया है। सन् 1911 में कोहिनूर महारानी मैरी के सरताज में जड़ा गया। और आज भी
उसी ताज में है। इसे लंदन स्थित ‘टावर आफ लंदन’ संग्राहलय में नुमाइश के लिये रखा
गया है।
यह कई मुगल व फारसी शासकों से होता हुआ,
अन्ततः ब्रिटिश शासन के अधिकार में लिया गया, व उनके खजाने में शामिल हो गया, जब
ब्रिटिश प्रधान मंत्री, बेंजामिन डिजराएली ने महारानी विक्टोरिया को 1877 में भारत की सम्राज्ञी घोषित
किया। अन्य कई प्रसिद्ध जवाहरातों की भांति ही, कोहिनूर की भी अपनी कथाएं रही हैं।
इससे जुड़ी मान्यता के अनुसार, यह पुरुष स्वामियों का दुर्भाग्य व मृत्यु का कारण
बना, व स्त्री स्वामिनियों के लिये सौभाग्य लेकर आया। अन्य मान्यता के अनुसार,
कोहिनूर का स्वामी संसार पर राज्य करने वाला बना।
ऐतिहासिक प्रमाणों के अनुसार, यह गोलकुंडा की खान से निकला था, जो आंध्र प्रदेश में, विश्व की सवसे प्राचीन खानों में से एक हैं। सन 1730 तक यह विश्व का एकमात्र हीरा उत्पादक क्षेत्र ज्ञात था।
इसके बाद ब्राजील में हीरों की खोज हुई। शब्द गोलकुण्डा हीरा, अत्यधिक श्वेत वर्ण, स्पष्टता व
उच्च कोटि की पारदर्शिता हे लिये प्रयोग की जाती रही है। यह अत्यधिक दुर्लभ, अतः
कीमती होते हैं। इस हीरे के बारे में, दक्षिण भारतीय कथा, कुछ पुख्ता लगती है। यह सम्भव है, कि हीरा, आंध्र प्रदेश की कोल्लर खान, जो वर्तमान में गुंटूर जिला में है, वहां निकला था। भारत की गोलकुंडा की खानों से कोहिनूर के अलावा भी
दुनिया के कई बेशकीमती हीरे निकले। ग्रेट मुगल, ओरलोव, आगरा डायमंड, अहमदाबाद
डायमंड, ब्रोलिटी ऑफ इंडिया जैसे न जाने कितने ऐसे हीरे हैं, जो कोहिनूर जितने ही
बेशकीमती हैं।
2.सम्राटों का रत्न:- शाहजहां ने कोहिनूर को अपने प्रसिद्ध मयूर-सिंहासन
(तख्ते-ताउस) में जड़वाया। उसके पुत्र औरंगज़ेब ने अपने पिता को कैद करके आगरा के किले में रखा। यह भी कथा है, कि उसने कोहिनूर को खिड़की के पास
इस तरह रखा, कि उसके अंदर, शाहजहां को उसमें ताजमहल का प्रतिबिम्ब दिखायी दे।
कोहिनूर, मुगलो के पास 1739 में हुए ईरानी शासक नादिर शाह के आक्रमण तक ही रहा। उसने आगरा व दिल्ली में भयंकर लूटपाट की। वह मयूर
सिंहासन सहित कोहिनूर व अगाध सम्पत्ति फारस लूट कर ले गया। इस हीरे को
प्राप्त करने पर ही, नादिर शाह के मुख से अचानक निकल पड़ा: कोह-इ-नूर,
जिससे इसको अपना वर्तमान नाम मिला। 1739 से पूर्व, इस नाम का कोई भी
सन्दर्भ ज्ञात नहीं है।कोहिनूर का मूल्यांकन, नादिर शाह की एक कथा से मिलता है।
उसकी रानी ने कहा था, कि यदि कोई शक्तिशाली मानव, पाँच पत्थरों को चारों दिशाओं, व
ऊपर की ओर, पूरी शक्ति सहित फेंके, तो उनके बीच का खाली स्थान, यदि सुवर्ण व
रत्नों मात्र से ही भरा जाये, उनके बराबर इसकी कीमत होगी। सन 1747में, नादिर शाह की हत्या के बाद, यह अफगानिस्तान के अहमद शाह अब्दाली के हाथों में पहुंचा। 1830 में, शूजा शाह, अफगानिस्तान का तत्कालीन पदच्युत शासक किसी तरह
कोहिनूर के साथ, बच निकला; व पंजाब पहुंचा, व वहां के महाराजा
रंजीत सिंह को यह हीरा भेंट किया। इसके
बदलें स्वरूप, रंजीत सिंह ने ईस्ट इंडिया कम्पनी को, अपनी टुकड़ियां अफगानिस्तान
भेज कर, अफगान गद्दी जीत कर, शाह शूजा को वापस दिलाने के लिये तैयार कर लिया था।
3.हीरा भारत के बाहर गया:- रंजीत सिंह, ने स्वयं को पंजाब का महाराजा घोषित किया था।1839 में, अपनी मृत्यु शय्या पर उसने अपनी वसीयत में, कोहिनूर को पुरी, उड़ीसा प्रसिद्ध श्री जगन्नाथ, मंदिर को दान देने को लिखा था। किन्तु उसके अंतिम शब्दों के बारे में विवाद उठा और अन्ततः वह पूरे ना हो सके। 29 मार्च,1849 को लाहौर के किले पर ब्रिटिश ध्वज फहराया। इस तरह पंजाब, ब्रिटिश भारत का भाग घोषित हुआ। लाहौर संधि का एक महत्वपूर्ण अंग निम्न अनुसार था: "कोह-इ-नूर नामक रत्न, जो शाह-शूजा-उल-मुल्क से महाराजा रण्जीत सिंह द्वारा लिया गया था, लाहौर के महाराजा द्वारा इंग्लैण्ड की महारानी को सौंपा जायेगा।" इस संधि का प्रभारी गवर्नर जनरल थे, लॉर्ड डल्हौज़ी, जिनकी कोहिनूर अर्जन की चाह, इस संधि के मुख्य कारणों में से एक थी। इनके भारत में कार्य, सदा ही विवाद ग्रस्त रहे, व कोहीनूर अर्जन का कृत्य, बहुत से ब्रिटिश टीकाकारों द्वारा, आलोचित किया गया है। हालांकि, कुछ ने यह भी प्रस्ताव दिया, कि हीरे को महारानी को सीधे ही भेंट किया जाना चाहिये था, बजाय छीने जाने के; किन्तु डल्हैज़ी ने इसे युद्ध का मुनाफा समझा, व उसी प्रकार सहेजा। बाद में, डल्हौज़ी ने,1851 में, महाराजा रण्जीत सिंह के उत्तराधिकारी दलीप सिंह द्वारा महारानी विक्टोरिया को भेंट किये जाने के प्रबंध किये। तेरह वर्षीय, दलीप ने इंग्लैंड की यात्रा की, व उन्हें भेंट किया। यह भेंट, किसी रत्न को युद्ध के माल के रूप में स्थानांतरण किये जाने का अंतिम दृष्टांत था। 1851 में, लंदन के हाइड पार्क में एक विशाल प्रदर्शनी में, ब्रिटिश जनता को इसे दिखाया गया।
3.हीरा भारत के बाहर गया:- रंजीत सिंह, ने स्वयं को पंजाब का महाराजा घोषित किया था।1839 में, अपनी मृत्यु शय्या पर उसने अपनी वसीयत में, कोहिनूर को पुरी, उड़ीसा प्रसिद्ध श्री जगन्नाथ, मंदिर को दान देने को लिखा था। किन्तु उसके अंतिम शब्दों के बारे में विवाद उठा और अन्ततः वह पूरे ना हो सके। 29 मार्च,1849 को लाहौर के किले पर ब्रिटिश ध्वज फहराया। इस तरह पंजाब, ब्रिटिश भारत का भाग घोषित हुआ। लाहौर संधि का एक महत्वपूर्ण अंग निम्न अनुसार था: "कोह-इ-नूर नामक रत्न, जो शाह-शूजा-उल-मुल्क से महाराजा रण्जीत सिंह द्वारा लिया गया था, लाहौर के महाराजा द्वारा इंग्लैण्ड की महारानी को सौंपा जायेगा।" इस संधि का प्रभारी गवर्नर जनरल थे, लॉर्ड डल्हौज़ी, जिनकी कोहिनूर अर्जन की चाह, इस संधि के मुख्य कारणों में से एक थी। इनके भारत में कार्य, सदा ही विवाद ग्रस्त रहे, व कोहीनूर अर्जन का कृत्य, बहुत से ब्रिटिश टीकाकारों द्वारा, आलोचित किया गया है। हालांकि, कुछ ने यह भी प्रस्ताव दिया, कि हीरे को महारानी को सीधे ही भेंट किया जाना चाहिये था, बजाय छीने जाने के; किन्तु डल्हैज़ी ने इसे युद्ध का मुनाफा समझा, व उसी प्रकार सहेजा। बाद में, डल्हौज़ी ने,1851 में, महाराजा रण्जीत सिंह के उत्तराधिकारी दलीप सिंह द्वारा महारानी विक्टोरिया को भेंट किये जाने के प्रबंध किये। तेरह वर्षीय, दलीप ने इंग्लैंड की यात्रा की, व उन्हें भेंट किया। यह भेंट, किसी रत्न को युद्ध के माल के रूप में स्थानांतरण किये जाने का अंतिम दृष्टांत था। 1851 में, लंदन के हाइड पार्क में एक विशाल प्रदर्शनी में, ब्रिटिश जनता को इसे दिखाया गया।
4. मुकुट की शोभा:- कोहिनूर के नरे तराशों की प्रति रत्न के कटाव में कुछ बदलाव
हुए, जिनसे वह और सुंदर प्रतीत होने लगा।1852 में, विक्टोरिया के पति प्रिंस अल्बर्ट की उपस्थिति
में, हीरे को पुनः तराशा गया, जिससे वह 186 1/6 कैरेट से घट कर 105.602 कैरेट का
हो गया, किन्तु इसकी आभा में कई गुणा बढ़ोत्तरी हुई। अल्बर्ट ने बुद्धिमता का
परिचय देते हुए, अच्छी सलाहों के साथ, इस कार्य में अपना अतीव प्रयास लगाया, साथ
ही तत्कालीन 8००० पाउण्ड भी, जिससे इस रत्न का भार 42% घट गया, परन्तु अल्बर्ट फिर
भी असन्तुष्ट थे। हीरे को मुकुट में अन्य दो हजार हीरों सहित जड़ा गया। बाद में,
इसे महाराजा की पत्नी के किरीट का मुख्य रत्न जड़ा गया। महारानी
अलेक्जेंड्रिया इसे प्रयोग करने वाली प्रथम
महारानी थीं। इनके बाद महारानी मैरी थीं। 1936 में, इसे महारानी
एलिज़ाबेथ के किरीट की शोभा बनाया गया। 2002 में, इसे उनके ताबूत के ऊपर सजाया गया।
5.प्रचलित
इतिहास:- कोहिनूर
हीरा दुनिया का सबसे बड़ा ज्ञात हीरा है. यह 105 कैरेट का है और इसका वजन 21.6 ग्राम
है. कहा जाता है कि भारत की गोलकुंडा की खान से यह हीरा निकाला गया था. यह मुगल, फारसी
शासकों व महाराजा रणजीत सिंह से होता हुआ, ब्रिटिश शासन के अधिकार क्षेत्र में चला
गया है. इसके बारे में कहा जाता है कि यह पुरुष स्वामियों के लिए दुर्भाग्य तो
महिला स्वामियों के लिए सौभाग्य का कारण बना. जिन पुरुष शासकों ने धारण किया, उन पर
दुर्भाग्य हावी रहा या मृत्यु हो गयी. शायद इसीलिए ब्रिटिश महारानी इसे धारण करती रही
हैं. दुनिया के सबसे दुर्लभ और बेशकीमती हीरे 'कोहिनूर' की ब्रिटेन की महारानी के मुकुट तक पहुँचने की दास्तान महाभारत के कुरुक्षेत्र से लेकर गोलकुण्डा के ग़रीब मजदूर की कुटिया तक फैली हुई है। ब्रिटेन की
महारानी के ताज में जड़ा और दुनिया के अनेक बादशाहों के दिलों को ललचाने की क्षमता
रखने वाला अनोखा कोहिनूर दुनिया में आखिर कहाँ से आया, इस बारे में ऐतिहासिक
घटनाओं के अलावा बहुत सी कथाएँ और किंवदन्तियाँ भी प्रचलित हैं। यह हीरा अनेक
युद्धों, साज़िशों, लालच, रक्तपात और जय-पराजयों का साक्षी रहा है।
6. दावों की राजनीति :- इस हीरे की लबी कथा के बाद, कई देश इसपर अपना दावा जताते
रहे हैं। 1976 में, पाकिस्तान के प्रधान मंत्री ज़ुल्फीकार
अली भुट्टो ने ब्रिटिश प्रधान मंत्री जिम कैलेघन को पाकिस्तान को वापस करने का अनुरोध किया, जिसे उन्होंने एक नम्र
"नहीं" में उत्तर दिया।.अन्य दावा भारत ने किया था। एवं अफ्गानिस्तान की तालीबान शासन नेव ईरान ने। फिलहाल इसे भारत वापस लाने
को कोशिशें जारी की गयी हैं। आजादी के फौरन बाद, भारत ने कई बार कोहिनूर पर अपना
मालिकाना हक जताया है। महाराजा दिलीप सिंह की बेटी कैथरीन की सन् 1942 मे मृत्यु
हो गयी थी, जो कोहिनूर के भारतीय दावे के संबध में ठोस दलीलें दे सकती थी। 2007 तक
कोहिनूर टॉवर ऑफ लंदन में ही रखा है। ब्रिटिश नहीं चाहता है। गौरतलब है कि मुगल सम्राट शाहजहां ने
कोहिनूर को अपने प्रसिद्ध मयूर-सिंहासन (तख्ते-ताउस) में जड़वाया था। लेकिन 1739 में
ईरानी शासक नादिर शाह ने भारत पर आक्रमण करके आगरा और दिल्ली में भयंकर लूटपाट की ।
जिसमें वह मयूर सिंहासन में जड़ा कोहिनूर हीरा भी था।
भारत के केंद्र सरकार ने 18.04.2016 को सुप्रीम कोर्ट में कहा कि कोहिनूर हीरे को भारत लाना संभव नहीं है. इसके पीछे सॉलिसिटर जनरल ने शीर्ष अदालत में तर्क दिया कि न वह चोरी हुआ था और न ही लूटा गया था, बल्कि उसे महाराजा रणजीत सिंह के उत्तराधिकारी व उनके छोटे पुत्र दलीप सिंह ने इस्ट इंडिया कंपनी को उपहार में दिया था. सॉलिसिटर जनरल ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि कोहिनूर हीरे पर यह संस्कृति मंत्रालय का स्टैंड है. इस पर अदालत ने केंद्र सरकार के वकील से पूछा कि क्या वह याचिका को खारिज कर दे? अदालत ने कहा कि अगर भारत की सबसे बड़ी अदालत याचिका को खारिज कर देगी, तो कह जायेगा कि भारत की शीर्ष अदालत ने उस पर याचिका को खारिज कर दिया है, जिससे उसे वापस लाने के प्रयास को धक्का लगेगा. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार के वकील से कहा कि वह छह सप्ताह के अंदर कोहिनूर हीरे पर अपना विस्तृत पक्ष अदालत में रखे. ध्यान रहे कि दुर्लभ कोहिनूर हीरे को भारत वापस लाना आम भारतीय का सपना है. याचिकाकर्ता के वकील नफीस सिद्दीकी ने इस संबंध में मीडिया से कहा कि सरकार का स्टैंड बहुत गलत है. उनकी बातें बिल्कुल गलत है. अगर सरकार उसे लाने की दिशा में कुछ नहीं करती तो हम करेंगे. यह हमारी संपत्ति है और हम सभी भारतीयों का यह दायित्व है. नफीस सिद्दीकी ने कहा कि सरकार तो देश का एक हिस्सा है. उन्होंने कहा कि कोहिनूर को धोखा देकर ले जाया गया है. कोहिनूर हीरा देश में वापस लाए जाने की मांग करने वाली जनहित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा कि कोहिनूर को वापस लाने के लिए क्या कदम उठाए जा रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से 6 हफ्ते में जवाब मांगा है। सुप्रीम कोर्ट ने साथ ही यह भी कहा कि इस याचिका को लंबित रखा जाएगा क्योंकि अगर यह खारिज होती है तो केस कमजोर हो जाएगा। और कहा जाएगा कि सुप्रीम कोर्ट ने केस खारिज कर दिया है।
7.केंद्र सरकार की सफाई:- सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार ने कहा कि सीधे तौर पर कोहिनूर पर दावा नहीं किया जा सकता क्योंकि कोहिनूर को लूट कर नहीं ले जाया गया। 1849 सिख युद्ध में हर्जाने के तौर पर दिलीप सिंह ने कोहिनूर को अंग्रेजों के हवाले किया था। अगर उसे वापस मांगेंगे तो दूसरे मुल्कों की जो चीज़ें भारत के संग्रहालयों में हैं उन पर भी विदेशों से दावा किया जा सकता है। इस पर कोर्ट ने कहा कि हिन्दुस्तान ने तो कभी भी कोई उपनिवेश नहीं बनाया न दूसरे की चीज़ें अपने यहां छीन कर रखीं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस याचिका को मेरिट पर नहीं बल्कि इस वजह से ख़ारिज नहीं किया जा सकता कि कुछ दूसरे मुल्कों को यह कहने का मौक़ा न मिले कि आपकी सुप्रीम कोर्ट ने ही दावा ख़ारिज कर दिया। सरकार को सुप्रीम कोर्ट ने 6 हफ़्तों का समय दिया कि वह हलफनामा दायर करे और बताए कि कोहिनूर को वापिस लाने की क्या कोशिशें की जा चुकी हैं और क्या और की जा सकती हैं। कोहिनूर की सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल रंजीत कुमार ने संस्कृति मंत्रालय का नोट पढ़ते हुए कहा कि ये हीरा आंध्र प्रदेश के मसूलीपट्टनम में गोदावरी नदी के तट पर बनी खान से निकाला गया। वर्ष 1304 तक ये हीरा मालवा के राजाओं के पास रहा। इसके बाद दिल्ली के बादशाह अलाउद्दीन खिलजी के पास आ गया। 1339 में कोहिनूर को समरकंद ले जाया गया जो वहां करीब 300 साल तक रहा। 1813 में अहमद शाह का वंशज शाह शूजा दुर्रानी इसे वापस भारत ले आया और इसे सिख साम्राज्य के संस्थापक रंजीत सिंह को दे दिया। बदले में रंजीत सिंह ने उसे अफगानिस्तान का सिंहासन वापस दिलाने में मदद की। 1849 में रंजीत सिंह के वारिस दलीप सिंह ने कोहिनूर को ईस्ट इंडिया कंपनी को सिख युद्ध के लिए बतौर हर्जाने के तौर पर गिफ्ट दे दिया और 1850 में ईस्ट इंडिया कंपनी ने इसे इंग्लैंड की महारानी विक्टोरिया को गिफ्ट दे दिया।
भारत के केंद्र सरकार ने 18.04.2016 को सुप्रीम कोर्ट में कहा कि कोहिनूर हीरे को भारत लाना संभव नहीं है. इसके पीछे सॉलिसिटर जनरल ने शीर्ष अदालत में तर्क दिया कि न वह चोरी हुआ था और न ही लूटा गया था, बल्कि उसे महाराजा रणजीत सिंह के उत्तराधिकारी व उनके छोटे पुत्र दलीप सिंह ने इस्ट इंडिया कंपनी को उपहार में दिया था. सॉलिसिटर जनरल ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि कोहिनूर हीरे पर यह संस्कृति मंत्रालय का स्टैंड है. इस पर अदालत ने केंद्र सरकार के वकील से पूछा कि क्या वह याचिका को खारिज कर दे? अदालत ने कहा कि अगर भारत की सबसे बड़ी अदालत याचिका को खारिज कर देगी, तो कह जायेगा कि भारत की शीर्ष अदालत ने उस पर याचिका को खारिज कर दिया है, जिससे उसे वापस लाने के प्रयास को धक्का लगेगा. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार के वकील से कहा कि वह छह सप्ताह के अंदर कोहिनूर हीरे पर अपना विस्तृत पक्ष अदालत में रखे. ध्यान रहे कि दुर्लभ कोहिनूर हीरे को भारत वापस लाना आम भारतीय का सपना है. याचिकाकर्ता के वकील नफीस सिद्दीकी ने इस संबंध में मीडिया से कहा कि सरकार का स्टैंड बहुत गलत है. उनकी बातें बिल्कुल गलत है. अगर सरकार उसे लाने की दिशा में कुछ नहीं करती तो हम करेंगे. यह हमारी संपत्ति है और हम सभी भारतीयों का यह दायित्व है. नफीस सिद्दीकी ने कहा कि सरकार तो देश का एक हिस्सा है. उन्होंने कहा कि कोहिनूर को धोखा देकर ले जाया गया है. कोहिनूर हीरा देश में वापस लाए जाने की मांग करने वाली जनहित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा कि कोहिनूर को वापस लाने के लिए क्या कदम उठाए जा रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से 6 हफ्ते में जवाब मांगा है। सुप्रीम कोर्ट ने साथ ही यह भी कहा कि इस याचिका को लंबित रखा जाएगा क्योंकि अगर यह खारिज होती है तो केस कमजोर हो जाएगा। और कहा जाएगा कि सुप्रीम कोर्ट ने केस खारिज कर दिया है।
7.केंद्र सरकार की सफाई:- सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार ने कहा कि सीधे तौर पर कोहिनूर पर दावा नहीं किया जा सकता क्योंकि कोहिनूर को लूट कर नहीं ले जाया गया। 1849 सिख युद्ध में हर्जाने के तौर पर दिलीप सिंह ने कोहिनूर को अंग्रेजों के हवाले किया था। अगर उसे वापस मांगेंगे तो दूसरे मुल्कों की जो चीज़ें भारत के संग्रहालयों में हैं उन पर भी विदेशों से दावा किया जा सकता है। इस पर कोर्ट ने कहा कि हिन्दुस्तान ने तो कभी भी कोई उपनिवेश नहीं बनाया न दूसरे की चीज़ें अपने यहां छीन कर रखीं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस याचिका को मेरिट पर नहीं बल्कि इस वजह से ख़ारिज नहीं किया जा सकता कि कुछ दूसरे मुल्कों को यह कहने का मौक़ा न मिले कि आपकी सुप्रीम कोर्ट ने ही दावा ख़ारिज कर दिया। सरकार को सुप्रीम कोर्ट ने 6 हफ़्तों का समय दिया कि वह हलफनामा दायर करे और बताए कि कोहिनूर को वापिस लाने की क्या कोशिशें की जा चुकी हैं और क्या और की जा सकती हैं। कोहिनूर की सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल रंजीत कुमार ने संस्कृति मंत्रालय का नोट पढ़ते हुए कहा कि ये हीरा आंध्र प्रदेश के मसूलीपट्टनम में गोदावरी नदी के तट पर बनी खान से निकाला गया। वर्ष 1304 तक ये हीरा मालवा के राजाओं के पास रहा। इसके बाद दिल्ली के बादशाह अलाउद्दीन खिलजी के पास आ गया। 1339 में कोहिनूर को समरकंद ले जाया गया जो वहां करीब 300 साल तक रहा। 1813 में अहमद शाह का वंशज शाह शूजा दुर्रानी इसे वापस भारत ले आया और इसे सिख साम्राज्य के संस्थापक रंजीत सिंह को दे दिया। बदले में रंजीत सिंह ने उसे अफगानिस्तान का सिंहासन वापस दिलाने में मदद की। 1849 में रंजीत सिंह के वारिस दलीप सिंह ने कोहिनूर को ईस्ट इंडिया कंपनी को सिख युद्ध के लिए बतौर हर्जाने के तौर पर गिफ्ट दे दिया और 1850 में ईस्ट इंडिया कंपनी ने इसे इंग्लैंड की महारानी विक्टोरिया को गिफ्ट दे दिया।
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