(डा.सरस कृत ‘बस्ती के छन्दकार’
एक विहंगम दृष्टि भाग 6 )
रंग नारायण पाल जूदेश वीरेश पाल
कवियित्री मां से मिली
प्रेरणा :-
रंगपाल नाम से विख्यात महाकवि रंग नारायण पाल जूदेश वीरेश पाल का जन्म नगर पंचायत हरिहरपुर
में फागुन कृष्ण 10 संवत 1921 विक्रमी को हुआ था। उनके पिता का नाम विश्वेश्वर वत्स
पाल तथा माता का नाम श्रीमती सुशीला देवी था । उनके पिता जी राजा महसों के राज्य के
वंशज थे। वे एक समृद्धशाली तालुक्केदार थे। उनके पिता जी साहित्यिक वातावरण में पले
थे तथा विदुषी मा के सानिध्य का उन पर पुरा प्रभाव पड़ा था। उनकी मां संस्कृत व हिन्दी
की उत्कृष्ट कवियित्री थीं। रंग पाल जी उनकी मृत्यु 62 वर्ष की अवस्था में भाद्रपद
कृष्ण 13 संवत 1993 विक्रमी में हुआ था। माताजी से साहित्य का अटूट लगाव का पूरा प्रभाव
रंगपाल पर पड़ा, जिसका परिणाम था कि स्कूली शिक्षा से एकदम दूर रहने वाले रंगपाल में
संगीत की गहरी समझ थी। ‘बस्ती जनपद के छन्दकारों का सहित्यिक योगदान’ के भाग 1 में
शोधकर्ता डा. मुनिलाल उपाध्याय ‘सरस’ ने पृ. 59 से 90 तक 32 पृष्ठों में विस्तृत वर्णन
प्रस्तुत किया गया है। इसे उन्होने द्वितीय चरण के प्रथम कवि के रुप में चयनित किया
है। वह एक आश्रयदाता, वर्चस्वी संगीतकार तथा महान कवि के रुप में प्रतिस्थिापित हुए
थे। उनके आश्रय में कवि महीनों उनके सानिध्य में रहते थे और उन्हे बहुत सामान तथा पैसा
के साथ वे विदा करते थे। उनकी शादी 18 वर्ष की उम्र में हुई थी। युवा मन, साहित्यिक
परिवेश, बचपन से ही तमाम कवियों व कलाकारों के बीच रहते-रहते उनके फाग में भाषा सौंदर्य
श्रृंगार पूरी तरह रच-बस गया था। महाकवि रंगपाल लोकगीतों, फागों व विविध साहित्यिक
रचनाओं में आज भी अविस्मरणीय हैं। दुनिया भर में अपने फाग गीतों से धूम मचाने वाले
महाकवि रंगपाल अमर हैं। फाल्गुन मास लगते ही सखि आज अनोखे फाग ..बीती जाला फाल्गुन
आए नहीं नंदलाला से रंगपाल के फाग का रंग बरसने लगता है। हालांकि आज रंगपाल की धरती
पर ही, फाग विलुप्त हो रहा है। इक्का-दुक्का जगह ही लोग फाग गाते हैं। महाकवि के जन्म
स्थली पर संगोष्ठी के साथ फाग व चैता का रंग छाया रहा। एक झूमर फाग में महाकवि रंगपाल
ने श्रीकृष्ण व राधा के उन्मुक्त रंग खेलने का मनोहारी चित्रण कुछ इस तरह किया है-
सखि
आज अनोखे फाग खेलत लाल लली।
बाजत
बाजन विविध राग,गावत सुर जोरी।।
खेलत
रंग गुलाल-अबीर को झेलत गोरी।
सखी
फागुन बीति जाला, नहीं आये नंदलाला।
प्रकाशित रचनायें :- उन्होने अंगादर्श, रसिका
नन्द, सज्जनानंद, प्रेम लतिका, शान्त रसार्णव, रंग उमंग और गीत सुधानिधि आदि थे। अप्रकाशित
ग्रंथों में रंग महोदधि, ऋतु रहस्य , नीति चन्द्रिका, मित्तू विरह वारीश, खगनामा, फूलनामा,
छत्रपति शिवाजी, वीर विरुद,गो दुदर्शा, दोहावली तथा दर्पण आदि हैं। उनकी डायरी में
अनेक कवियों , संभा्रन्त जनों तथा पत्र पत्रिकाओं के पते तथा लिंक मिले है। ‘सरस’ जी
को बस्ती के कवि श्री भद्रसेन सिंह भ्रान्त से अनेक पाण्डुलिपि व डायरी देखने को मिली
है। जिससे उनका शोध प्रवन्ध बहुत ही प्रमाणिक बन पड़ा है। रंगपाल की कृतियों में सामाजिक
समरसता, भाईचारा और सांप्रदायिक सौहार्द की झलक नजर आती है। ब्रजभाषा में रचनाएं लोक
साहित्य की अमूल धरोहर है। फागुनी गीत की मिठास बरबस ही लोगों का ध्यान आकर्षित कर
लेती है। रंगपाल जी के फाग की देश में ही नहीं विदेशों में भी धूम रहती है। पुरानी
परंपरा, मर्यादा, संस्कृति, सब भूलकर हम नई संस्कृति में जा रहे हैं, जो अपने मातृभूमि
के साथ धोखा है। मधुरता, भाव, देशी अवधी ब्रजभाषा, भोजपूरी भाषा मिठास का जो भाव मिलेगा
वह किसी और में नहीं मिलेगा।
डा. मुनिलाल उपाध्याय
सरस :- “रंगपालजी
ब्रज भाषा के प्राण थे। श्रृंगार रस के सहृदयी कवि और बीर रस के भूषण थे। उन्होने अपने
सेवाओं से बस्ती जनपद छन्द परम्परा को गौरव प्रदान किया। उनके छन्दो में शिल्प की चारुता
एवं कथ्य की गहराई थी। साहित्यिक छन्दों की पृष्ठभूमि पर लिखे गये फाग उनके गीत संगीत
के प्राण हैं। रीतिकालीन परम्परा के समर्थक और पोषक रंगपालजी की रचनाओं में रीतिबद्ध
श्रृंगार और श्रृंगारबद्ध मधुरा भक्ति का प्रयोग उत्तमोत्तम था।......आपकी रचना भारतेन्दु
जी के समकक्ष है।..... आपका युगान्तकारी व्यक्तित्व साहित्य के अंग उपांगों को सदैव
नयी चेतना देगा एसा विश्वास है।”
उत्तर
प्रदेश संस्कृतिक विभाग के माध्यम से उनकी रचनाओं को संग्रहित व संकलित कर परीक्षण
कराने का प्रयास हो रहा है। अपने कार्यकाल के दौरान रंगपाल की कृतिया और उनसे जुडे
साज सामान को सांस्कृतिक धरोहर बनाने का प्रयास किया जा रहा है। पाल सेवा संस्थान तथा
उत्तर प्रदेश संस्कृति विभाग प्रति वर्ष पाल जी के जन्म का उत्सव बड़े धूम धाम से मनाया
जाता है। पाल सेवा संस्थान के अध्यक्ष बृजेश पाल ने कहा कि रंगपाल जी की समाधि स्थल
जो कष्ट हर्णी नदी के स्थल पर है काफी जीर्णशीर्ण अवस्था में है। मरम्मत कराने के साथ
ही संग्रहालय बनाने की जरूरत है। हरिहरपुर में मशहूर कवि जो रंगपाल जी के साथ कविता
लिखते हैं बद्री प्रसाद, आद्या प्रसाद, शिवेन्द्र, शिवबदन चतुर्वेदी, मातादीन त्रिपाठी
के स्मृति में मुख्य चैराहे पर पांच मूर्तियां लगाने के लिए जिलाधिकारी से आग्रह किया।
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