Friday, April 28, 2017

सनातन क्या है - डा. राधेश्याम द्विवेदी


शाश्वत सनातन हिन्दू धर्म ही एकमात्र सबसे पुराना व स्थाई धर्म (भाग 1)

सृष्टि की उत्पत्ति और सनातन विस्तार से सम्बन्धित एक वीडियो क्लिीपिंग यू टयूब से सौजन्य से आप की सेवा में प्रस्तुत की जा रही हे। कृपया अवलेकन कर पुण्य के भागी बनें। 

यीशु से पहले ईसाई मत नहीं था, मुहम्मद से पहले इस्लाम मत नहीं था।केवल सनातन धर्मं ही सदा से है, श्री कृष्ण की भागवत कथा श्री कृष्ण के जन्म से पहले नहीं थी अर्थात कृष्ण भक्ति सनातन नहीं है । श्री राम की रामायण तथा रामचरितमानस भी श्री राम जन्म से पहले नहीं थी अर्थात श्री राम भक्ति भी सनातन नहीं है । श्री लक्ष्मी भी, (यदि प्रचलित सत्य-असत्य कथाओ के अनुसार भी सोचें तो), तो समुद्र मंथन से पहले नहीं थी अर्थात लक्ष्मी पूजन भी सनातन नहीं है । गणेश जन्म से पूर्व गणेश का कोई अस्तित्व नहीं था, तो गणपति पूजन भी सनातन नहीं है । शिव पुराण के अनुसार शिव ने विष्णु व ब्रह्मा को बनाया तो विष्णु भक्ति व ब्रह्मा भक्ति सनातन नहीं हैं। विष्णु पुराण के अनुसार विष्णु ने शिव और ब्रह्मा को बनाया तो शिव भक्ति और ब्रह्मा भक्ति सनातन नहीं। ब्रह्म पुराण के अनुसार ब्रह्मा ने विष्णु और शिव को बनाया तो विष्णु भक्ति और शिव भक्ति सनातन नहीं । देवी पुराण  के अनुसार देवी ने ब्रह्मा, विष्णु और शिव को बनाया तो यहाँ से तीनो की भक्ति सनातन नहीं रही । हम आज बहुत गर्व से राम-कथा में अथवा भागवत-कथा में, कथा के अंत में कहते  हैं ,बोलिए - सत्य सनातन धर्म कि जय।सनातन अर्थात जो सदा से है, जो सदा रहेगा,जिसका अंत नहीं है और जिसका कोई आरंभ नहीं है वही सनातन है। सत्य में केवल हमारा धर्म ही सनातन है, (हिन्दू धर्म, वैदिक धर्म) अपने मूल रूप हिन्दू धर्म के वैकल्पिक नाम से जाना जाता है। वैदिक काल में भारतीय उपमहाद्वीप के धर्म के लिये सनातन धर्म नाम मिलता है। 
सनातन क्या है:- वो सत्य सनातन है परमात्मा की वाणी । आप किसी मुस्लमान से पूछिए, परमात्मा ने ज्ञान कहाँ दिया है ? वो कहेगा कुरान में।आप किसी ईसाई से पूछिए परमात्मा ने ज्ञान कहाँ दिया है ? वो कहेगा बाईबल में ।
लेकिन आप हिंदू से पूछिए परमात्मा ने मनुष्य को ज्ञान कहाँ दिया है ? हिंदू निरुतर हो जाएगा । आधे से अधिक हिंदू तो केवल हनुमान चालीसा में ही दम तोड़ देते हैं | जो कुछ धार्मिक होते हैं वो गीता का नाम ले देंगे, किन्तु भूल जाते हैं कि गीता तो योगीश्वर श्री कृष्ण देकर गए हैं परमात्मा का ज्ञान तो उस से पहले भी होगा या नहीं ? अर्थात वो ज्ञान जो श्री कृष्ण संदीपनी मुनि के आश्रम में पढ़े थे। जो कुछ अधिक ज्ञानी होंगे वो उपनिषद कह देंगे, परंतु उपनिषद तो ऋषियों की वाणी है न कि परमात्मा की ।

परमात्मा की वाणी वेद:- जो स्वयं परमात्मा की वाणी है, उसका अधिकांश हिंदुओं को केवल नाम ही पता है ।वेद, परमात्मा ने मनुष्यों को सृष्टि के प्रारंभ में दिए। जैसे कहा जाता है कि "गुरु बिना ज्ञान नहीं", तो संसार का आदि गुरु कौन था? वो परमात्मा ही था | उस परमपिता परमात्मा ने ही सब मनुष्यों के कल्याण के लिए वेदों का प्रकाश, सृष्टि के आरंभ में किया। वेदों में कोई कथा कहानी नहीं है। न तो कृष्ण की न राम की, वेद में तिनके से लेकर परमेश्वर पर्यंत वह सम्पूर्ण मूल ज्ञान विद्यमान है, जो मनुष्यों को जीवन में आवश्यक है । मैं कौन हूँ?मुझमें ऐसा क्या है जिसमे “मैं” की भावना है? मेरे हाथ, मेरे पैर, मेरा सिर, मेरा शरीर, पर मैं कौन हूँ ? मैं कहाँ से आया हूँ? मेरा तन तो यहीं रहेगा, तो मैं कहाँ जाऊंगा, परमात्मा क्या करता है? मैं यहाँ क्या करूँ? मेरा लक्ष्य क्या है? मुझे यहाँ क्यूँ भेजा गया ? इन सबका उत्तर तो केवल वेदों में ही मिलेगा | रामायण व भागवत व महाभारत आदि तो ऐतिहासिक घटनाएं है, जिनसे हमे सीख लेनी चाहिए और इन जैसे महापुरुषों के दिखाए सन्मार्ग पर चलना चाहिए । लेकिन उनको ही सब कुछ मान लेना, और जो स्वयं परमात्मा का ज्ञान है उसकी अवहेलना कर देना केवल मूर्खता है ।

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