शहरों
की जनता की जरुरतों को पूरा करने के लिए देश में अनेक राष्ट्रीयकृत बैंक अपनी विभिन्न
शाखाओं के माध्यम से कार्यरत हैं। गांवों में इनकी शाखाये ना के बराबर हैं। इधर बैंकों
के विस्तार होने से अब कस्वों व बड़े गांवों में राष्ट्रीयकृत बैंक अपनी शाखायें बढ़ाने
लगी हैं। परन्तु गांवों में तो सहकारी समितिया, सहकारी बैंक तथा ग्रामीण बैंक कुछ हद
तक इस जिम्मेदारी को निभाने के प्रयास में लगे हुए है। ये बैंक सामान्य अन्य बैंकों
की अपेक्षा कुछ ज्यादा पैसा व्याज का देकर जनता को अपनी तरफ आकर्षित करती हैं। इनका
संचालक जनता के चुने हुए कुछ प्रतिनिधि हुआ करते हैं। देखा यह गया है इन संचालकों का
सम्बन्ध किसी ना किसी राजनीतिक दल से होता है। यह राजनीति के प्रारम्भिक अखाड़े स्वरुप
बन गये हैं। इसमें जनता का हित नगण्य हो जाता है अैर व्यक्तिगत या राजनीतिक पार्टी
के हित को वरीयता ज्यादा दी जाती है। यह भी देखा गया है कि ये अपने पदों का दुरुपयोग
करते हुए सहकारी समितियों या बैंको की सम्पत्ति का निजी उपयोग करने लगते हैं। इसका
प्रभाव एक दिन आम जनता पर देखा जाने लगता है।
उत्तर
प्रदेश के बस्ती जिला सहकारी बैंक की अनेक शाखायें मण्डल व जिले में विखरी पड़ी हैं।
इसके खातेदारों के लगभग 1.13 लाख खाते हैं। इनके करोड़ोे रुपये बैंक की देनदारी में
अटके हुए हैं।यहां करीब सौकड़ों कर्मचारी सेवा में लगे थे। इनकी नियुक्तियां भी पारदर्शाी
रुप में ना होकर संचालक मण्डल या प्रदेश सरकारों के रहनुमा के दबाव में होने लगी है।
जब बैंक अपनी जिम्मेदारी निभाने में असफल हो जाता है तो आम उपभोक्ताओं के साथ उनके
कर्मचारियों के हित भी प्रभावित होने लगते है। बस्ती जिला सहकारी बैंक भी इन अवस्थाओं
का शिकार हो गया और एक बड़ी संख्या में खातेदारों के पैसे डूब चुके हैं। कर्मचारियों
की सेवायें समाप्त हो गयी तथा अन्य बैंकों में स्थानान्तरित कर दी गयी है। इनके भी
देयक अभी भी पण्डिंग पड़े हंै। इस बैंक के हालात इस देयक को पूरा करने में सक्षम नहीं
हैं। कभी कभी सरकार से कुछ पैसा आ जाता तो संचालकों व अधिकारियों के खास व्यक्ति को
बांट दिया जाता और आम जनता तो इन्तजार करती रह जाती है। समय समय पर केंद्र सरकार, नाबार्ड
तथा राज्य सरकार ने 129 करोड़ रुपये का पैकेज जिला सहकारी बैंक बस्ती को दिया। मगर आरबीआइ
ने इस पैकेज के बीच में कुछ शर्ते लगा दिया, उसे नियमानुसार बैंकिग लाइसेंस वाले जिला
सहकारी बैंक को ही दिया गया है। जिला सहकारी बैंक को भारतीय रिजर्व बैंक से लाइसेंस
मिलते ही लंबे समय से अटका 129 करोड़ का पैकेज शासन ने अवमुक्त कर दिया है। हालांकि
यह धन तब तक नहीं खर्च किया जा सकेगा जब तक आरबीआई व शासन द्वारा तय नीति को लागू नहीं
कर दी जाती। वर्ष 2012 में जिला सहकारी बैंक का लाइसेंस आरबीआई ने रद्द करते हुए इसके
लेन-देन पर रोक लगा दी थी। इन स्थितियों के चलते बैंक की बस्ती व संतकबीर नगर की
26 शाखाओं से जुड़े उपभोक्ताओं का धन फंस गया। इसके चलते बैंक की माली हालत भी खस्ता
हो गई। वर्ष 2015 में एक बार फिर प्रदेश सरकार ने प्रदेश के खस्ताहाल 16 सहकारी बैंकों
को पटरी पर लाने की कवायद शुरू करते हुए भारतीय रिजर्व बैंक, केंद्र सरकार व नाबार्ड
से समझौता किया। रिजर्व बैंक ने नई नीति के तहत सबसे पहले बैंक के उन संचालकों का पर
कतरा जो वर्ष 2003 से 2013 के बीच बोर्ड में शामिल थे। आरबीआई ने जिला सहकारी बैंक
बस्ती को लाइसेंस जारी कर दिया। इधर बैंक ने लाइसेंस जारी किया उधर शासन ने बुधवार
को जिला सहकारी बैंक को मिलने वाले 129 करोड़ के पैकेज को भी मंजूरी दे दी। अब इस धन
का उपयोग तब होगा जब बैंक आरबीआई व शासन द्वारा तय नीतियों के अनुसार भुगतान व अन्य
देयकों को अदा करने की नीति बनाकर शासन को उपलब्ध कराएगा। सरकार के इस फैसले से बैंक
को नया जीवन मिल जाएगा।
बस्ती
जिला सहकारी बैंक की यह हालत पिछली सपा व बसपा की सरकारों के मनमानी व ढिलमुल रवैये
के कारण हुआ है। 2017 का भाजपा का शासन इन अनियमितताओं के खात्मे के लिए हुआ है। माननीय
योगी जी व माननीय मोदी जी को इस पर ध्यान देना चाहिए तथा जनता के डूबे हुए पैसे को
वापस दिलाने का प्रयास करना चाहिए। यदि उचित देखरेख व नियंत्रण में यदि यह बैंक चलाया
जाय और राजनीतिक हस्तक्षेप से मुक्त किया जाय तो यह बैंक अपनी सेवाये अच्छी तरह दे
पाने में सक्षम हो सकेगा।
No comments:
Post a Comment