76वें
जयन्ती के अवसर पर सादर नमन एवं भावांजलि
केदार
आश्रम श्री अयोध्याजी के पावन धाम से
डा. मुनि लाल उपाध्याय 'सरस'
डा. राधेश्याम द्विवेदी
उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले के बस्ती सदर तहसील के बहादुर व्लाक में नगर क्षेत्र
में खड़ौवा खुर्द नामक गांव के आस पास इलाके में नगर राज्य में गौतम क्षत्रियों के पुरोहित
के रूप में भारद्वाज गोत्रीय में इस वंश के पूर्वजों का आगमन के हुआ था । नगर के राजा
उदय प्रतापसिंह के समकालीन उपाध्याय कुल के पूर्वज लक्ष्मन दत्त एक फौजी अफसर थे। इसी
संस्कारयुक्त कुल परम्परा में सरस जी के पिता पं. केदार नाथ उपाध्याय का जन्म हुआ था।
बाद में डा.मुनिलाल उपाध्याय ‘सरस’ जी का जन्म 10.04.1942 ई. में सीतारामपुर में श्री
नाथ उपाध्याय के परिवार में हुआ था। उनकी पढ़ाई 1947 से नगर के प्राइमरी विद्यालय में
शुरू हुआ था पास कर वह नगर के मिडिल स्कूल में दाखिला लिया था। 1955 में कक्षा 5 पास
करके सरस जी ने खैर इन्टर कालेज बस्ती में प्रवेश लिया था। 1956 तक यह एक संयुक्त परिवार
की शक्ल में रहा। इसी बीच 12.10.1957 को सरस जी के पिता की असामयिक मृत्यु हो गयी।
उस समय सरस जी 16 साल के तथा कक्षा 11 के छात्र थे। वह श्री गोविन्द राम सक्सेरिया
इन्टर कालेज में पढते थे। उनके पिता का असमय निधन हो जाने के कारण उन पर घर परिवार
की सारी जिम्मेदारी आ गयी थी। उनकी मां ने बहुत मेहनत और त्याग करके उनकी अधूरी शिक्षा
पूरी कराई थी। वह 1958 में सक्सेरिया इन्टर कालेज से इन्टर, 1962 में किसान डिग्री
कालेज बस्ती से बी. ए. तथा 1963 में साकेत डिग्री कालेज फैजाबाद से बी.एड्. की परीक्षायें
बहुत ही कठिनाइयों को झेलते हुए पास किये थे।
शिक्षा
जगत के अग्रणी साधक:– डा. सरस 1 जुलाई 1963 से किसान इन्टर
कालेज मरहा,कटया बस्ती में सहायक अध्यापक के रूप में पहली नियुक्ति पाये थे। जहां वह
जून 1965 तक अध्यापन किये थे। इसी बीच मार्च 1965 में नगर बाजार में संभ्रान्त जनों
की एक बैठक हुई और नगर बाजार में एक जनता माध्यमिक विद्यालय की स्थापना श्री मोहरनाथ
पाण्डेय के प्रबंधकत्व में हुआ था । डा. सरस जुलाई 1965 से इस विद्यालय के संस्थापक
प्रधानाध्यापक हुए। 1968 में विद्यालय को जूनियर हाई स्कूल, 1970-71 में हाईस्कूल तथा
1973 में इन्टर कालेज की मान्यता मिलती गयी। 1965 से 2006 तक जनता उच्चतर माध्यमिक
विद्यालय नगर बाजार बस्ती आजीवन प्रधानाचार्य पद के उत्तरदायित्व का निर्वहन भी किये।
अध्यापन के साथ ही साथ सरस जी ने हिन्दी, संस्कृत, मध्यकालीन इतिहास, प्राचीन इतिहास
संस्कृति एवं पुरातत्व विषय से एम. ए. करने के बाद हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग का
साहित्यरत्न, तथा सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी का साहित्याचार्य उपाधि
भी प्राप्त किये थे। वे अच्छे विद्वान कवि तथा शिक्षा जगत के एक महान हस्ती थे। उन्हें
राष्ट्रपति द्वारा दिनांक 5.9.2002 को वर्ष 2001 का शिक्षक सम्मान भी मिल चुका है।
उनकी लगभग 4 दर्जन पुस्तकें
प्रकाशित. 'बाल त्रिशूल' विधा का प्रवर्तन किया. बाल पत्रिका 'बालसेतु' (मासिक हिंदी
बालपत्र);का संपादन-प्रकाशन किया. वे बाल साहित्यकारों के लिए भी एक सेतु जैसे
थे .अपने खर्चे पर बस्ती में बाल साहित्यकार सम्मलेन किया करते थे.बहुत मिलनसार और
सह्रदय इंसान थे. बालसाहित्य- विवेकानंद, साहित्य परिक्रमा; बाल बताशा
विवेकानंद बालखंडकाव्य, नेहा-सनेहा, जलेबी, झँइयक झम, चरण पादुका; आकाशवाणी तथा
दूरदर्शन से दर्जनों प्रसारण। पुरस्कार-सम्मान-बाल कल्याण संस्था कानपुर,नागरी
बालसाहित्य संस्थान बलिया। वह जून 2006 तक अपने पद
पर रहकर लगभग 42 साल तक शिक्षा जगत जे जुड़े रहे। अगौना कलवारी में आचार्य रामचन्द्र
शुक्ल स्मारक व्याख्यानमाला, कविसम्मेलन तथा कन्याओं के विद्यालय को खुलवाने में उनकी
महती भूमिका रही है। सेवामुक्त होने के बाद वह अयोध्या के नयेघाट स्थित परिक्रमा मार्ग
पर केदार आश्रम बनवाकर रहने लगे। उनका जीवन एक बानप्रस्थी जैसा हो गया था और वह निरन्तर
भगवत् नाम व चर्चा से जुड़े रहे। 70 वर्षीया डा. सरस की मृत्यु 30 मार्च 2012 को लखनऊ
के बलरामपुर जिला चिकित्सालय में हुई थी। उनकी मृत्यु से शिक्षा तथा साहित्य जगत में
एक बहुत ही अपूर्णनीय क्षति हुई थी। मैं उनके प्रखर व्यक्तित्व का श्रद्धा के साथ स्मरण
करता हॅू और उनके द्वारा दिखाये गये मार्ग पर चलने का संकल्प लेता हू ।
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