Wednesday, March 13, 2024

पौराणिक पंडुल घाट और झुंगीनाथ शिव मन्दिर आचार्य डॉ राधे श्याम द्विवेदी

भारत में कई पांडव नगर है। एक पांडव नगर वर्तमान पूर्वी दिल्ली और प्राचीन इंद्रप्रस्थ नगर में बसा हुआ है। यह यमुना नदी के पूर्वी किनारे पर स्थित एक नगर है।एक और पांडव नगर गाजियाबाद उत्तर प्रदेश में नेशनल हाईवे 24 से लगा वर्तमान मेहरौली रेलवे स्टेशन के आस पास बसा है। एक और पाडव नगर, मेरठ उत्तर प्रदेश में भी देखा जा सकता है। इसी प्रकार उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले के कप्तानगंज से दुबौलिया मार्ग पर सात किलोमीटर दूरी पर मनोरमा नदी के किनारे पाण्डव नगर (पंडूल घाट )और झुंगीनाथ दो पौराणिक तीर्थ स्थल है जो द्वापर युग की स्मृतियों को संजोए हुए हैं। इन्हें बस्ती का पाण्डव नगर  कहा जाता है।पंडूल घाट (पाण्डव नगर)

बस्ती जिले के दुबौलिया ब्लॉक क्षेत्र के ग्राम पंचायत भरुकहवा मे पंडूलघाट एक ऐतिहासिक महत्व का गांव है।मनोरमा नदी के इस तट पर यहां पांडव स्नान और विश्राम किया करते थे. इस कारण इसका नाम पाण्डव घाट से बिगड़ क पंडूल घाट पड़ गया है। चैत पूर्णिमा में हनुमान जयंती के दिन यहां हर साल बहुत बड़े स्तर पर मेला भी लगता है और लोग यहां आकर पांडवों की पूजा भी करते हैं. पांडवों के स्मृति चिन्ह इस क्षेत्र में अनेक जगह पर देखने को मिल जाएगा । यहां अपने बनवास के समय पाण्डवों ने विश्राम किया था। पहले यहां विशाल टीला हुआ करता था जो नदी के कटान तथा सिंचाई विभाग द्वारा बंधा बनवाने के कारण नष्ट हो गया । पंडूल घाट पर एक छोटी सा मंदिर व एक कुआं भी मौजूद है। किवदंती के अनुसार अज्ञातवास के दौरान यहां पांडव अपना भेष बदलकर रहते थे और उसी कुएं से पानी पीते थे। यहां कई असुरों का संहार भी किया था। इसी महात्मय को लेकर बाद से यहां मेले का आयोजन होने लगा।                                                               पांडवों ने झुंगीनाथ में  शिवलिंग की स्थापना किया था।द्वापर युग में जब पांडव जुए के खेल में कौरवों से हार गए थे तो शर्तानुसार उन्हें 12 वर्ष का वनवास व एक वर्ष का अज्ञातवास झेलना पड़ा था. मान्यता है की वो एक वर्ष का अज्ञातवास बस्ती जिले कप्तानगंज-दुबौलिया मार्ग पर मनोरमा नदी के तट के पंडूल घाट पर व्यतीत किये थे. यहां पर पांडवों की कई निशानी आज भी विद्यमान है. जैसे पंडूल घाट,रसोइया गांव, हडही गांव, सिद्धव नाला,और झुंगीनाथ गांव आदि अभी भी देखे जा सकते हैं।

झुंगी नाथ का शिव मंदिर

इस शिव मंदिर की बड़ा ही ऐतिहासिक महत्व है। स्थानीय लोग बताते हैं की पांडव यही झुंगीनाथ गांव में अवतरित हुए शिवलिंग की पूजा किए करते थे. यह मंदिर काफी प्राचीन और सिद्ध मंदिर है. यहां जो भी कामना किया जाता है वो पूरा भी होता है. यह शिव लिंग पहले घास फूस के झाड़ियों में छिपा हुआ था , इसलिए इसका नाम झुंगी नाथ पड़ा। काफी दूर-दूर से लोग भगवान शिव की पूजा करने यहां आते भी हैं. महाशिवरात्रि व सावन माह तेरस के समय यहां श्रद्धालु हजारों की संख्या में आकर पूजा पाठ करते हैं और चैत पूर्णिमा में यहां बहुत बड़ा मेला भी लगता है. इस मंदिर का भारतीय पौराणिक स्थलों में महत्वपूर्ण स्थान हैं। पांडवों की विरासत नगरी झुंगी नाथ (पंडुल घाट) पूरे बस्ती जिले में आस्था का केंद्र है। अज्ञातवास के समय पांडवों ने यहां पर काफी समय बिताया था। पांडवों ने पूजा करने के लिए झुंगी नाथ में शिवलिंग की स्थापना की थी। तभी से यहां आस्था का केंद्र बना हुआ है। यहां लक्ष्मी नारायण तथा दुर्गा मंदिर भी स्थित है। अज्ञातवास के समय पांडवों ने यहां पर काफी समय बिताया था, जिसकी झलक आस-पास के गांवों में आज भी देखने को मिल जाती है। इसी  रास्ते से पांडव गए थे, जो पदमापुर से होते हुए छपिया घाट तक जाता है। साल भर यहां पूजा पाठ के साथ साथ बड़े-बड़े अनुष्ठान होते रहते हैं।

                    पास के अन्य गांव :-
रसोइया गांव
मंदिर के पुजारी जयप्रकाश दास बताते हैं कि झुंगी नाथ मंदिर के पूरब पांडवों का भोजन बनता था, जो रसोइया गांव के रूप में आज भी विद्यमान हैं। यहाँ पांडवों का भोजन बनने के कारण इस गाँव का नाम रसोइया पड़ा है।
जो आज भी विद्यमान है.                                          

सिद्धव नाला                                                  अज्ञातवास के समय एक बार पांचों पांडवों को प्यास लगी। तो भीम ने अपने गदा के बल पर पानी निकाला था। यहां पर सिद्धव नामक असुर का पांडवों ने संहार किया था। आज भी इस जगह को सिद्धव नाला के रूप में जाना जाता हैं। सिद्धव नामक दानव ने पूरे क्षेत्र में आतंक फैला रखा था और जो भी मिलता उसको मार के खा जाता था. जिससे यहां लोग काफी भयभीत रहते थे. फिर सबकी पारी बाधी गई थी, जिसमें क्षेत्र के प्रति घर से एक व्यक्ति को भोजन के साथ सिद्धव दानव के पास जाना पड़ता था और वह भोजन के साथ ही जो व्यक्ति भोजन लेकर आता था. उसको वह मार के खा जाता था. क्षेत्र वासियों के रक्षा के लिए एक दिन भीम गए और उन्होंने सिद्धव दानव का वध कर दिया. उसको मारने के बाद हड़ही से घसीटते हुए रसोइया तक लेकर आए. जिससे एक नाला सा बन गया. जो आज भी मौके पर विद्यमान है. 

छपिया घाट
छपिया भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के बस्ती जिले के कप्तानगंज ब्लॉक में एक छोटा सा गाँव/टोला है। यह । यह पदमपुर से दक्षिण और अछत पुर के पश्चिम स्थित है।यह बस्ती मंडल के अंतर्गत आता है। यह जिला मुख्यालय बस्ती से 18 किलोमीटर पश्चिम की ओर स्थित है। राज्य की राजधानी लखनऊ से 192 किलोमीटर दूर स्थित है।

पदमापुर
कप्तानगंज विकास क्षेत्र का पदमापुर ग्राम पंचायत का
पदमापुर एक छोटा गांव है। यह गांव महुलानी और गोविंदपारा के पूरब स्थित है। प्रदेश की राजधानी लखनऊ से 189 किमी,जिला मुख्यालय से करीब 22 किमी दूर तथा कप्तानगंज विकास खंड मुख्यालय से 4 किमी दूर स्थित है।

हड़ही गांव                                                            

अस्थियाँ या हड्डियाँ रीढ़धारी जीवों का वह कठोर अंग है जो अन्तः कंकाल का निर्माण करती हैं। यह शरीर को चलाने, सहारा देने और शरीर के विभिन्न अंगों की रक्षा करने में सहायता करती हैं । हडही नामक गांव में जगह जगह हड्डियों का ढेर मिल जाता है। प्रतीत होता है किसी समय यहां बड़े पैमाने पर मानव या अन्य शरीर धारियों को मार कर ढेर लगाया गया था। महाभारत कालीन सिधव दैत्य का कार्यक्षेत्र होने की पुष्टि भी होती है। गांव के उत्तर दिशा में एक प्राचीन शिव मंदिर है, जहां दूर दूर से श्रद्धालुओं का आना जाना लगा रहता है।हड़ही भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के बस्ती जिले के कप्तानगंज ब्लॉक में एक छोटा सा गांव/टोला है। यह हराही पंचायत के अंतर्गत आता है। यह बस्ती मंडल के अंतर्गत आता है। यह जिला मुख्यालय बस्ती से 20 किलोमीटर पश्चिम की ओर स्थित है। कप्तानगंज से 4 कि.मी. राज्य की राजधानी लखनऊ से 191 किलोमीटर दूर स्थित है। भीम ने सिद्धव दानव का वध करने के बाद हड़ही से घसीटते हुए रसोइया तक लेकर आए. जिससे एक नाला सा बन गया. जो आज भी मौके  पर विद्यमान है. जिसको सिद्धव नाला के रूप में जाना जाता है.

भीमकुंड

मनोरमा नदी में भीमकुंड के नाम से एक जगह है।भारतीय महाकाव्य ‘महाभारत’ के योद्धा भीम ने अपने गदा के प्रहार से पानी का स्रोत निकाला. इस पानी का एक कुंड बना, जिसे भीमकुंड कहा गया. यहां पर भीम ने भगवान शिव की पूजा और स्थापना की और उनका जलाभिषेक किया. इस घटना के बाद से यह स्थल ‘भीमकुंड’ और उसके शिवलिंग के साथ ‘भीमाशंकर महादेव’ के रूप में प्रसिद्ध है.

                           मीता सोती

मीता सोती भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के बस्ती जिले के कप्तानगंज ब्लॉक में एक छोटा सा गांव/टोला है।जिसका पुराना नाम अमृत श्रोत रहा। जिला बस्ती के हर्रैया तहसील के कप्तानगंज विकास क्षेत्र के बरहटा (जिसका पुराना नाम बड़ा हाट था )ग्राम पंचायत का एक छोटा सा गांव है। दुबौलिया व कप्तानगंज विकास खंड की सीमा पर स्थित मनोरमा नदी के तट पर पिपरौल घाट पुराने समय में यहां बहुत बड़ा एक या एक से अधिक पीपल के पेड़ हुआ करते थे । जो इससे सटा हुआ है । यह जिला मुख्यालय बस्ती से 18 किलोमीटर पश्चिम की ओर स्थित है। राज्य की राजधानी लखनऊ से 192 किमी दूर स्थित है। वर्ष 1963 में मीता सोती में एक प्राथमिक विद्यालय की स्थापना हुई,जो सरकारी भवन में संचालित है। श्री सभापति पांडे यहां प्रधान अध्यापक रह चुके हैं। श्री जगदीश पांडे यहां अध्यापक रह चुके हैं। यहां विजली का कनेक्शन, हैडपम्प ,शौचालय व पुस्तकालय की व्यवस्था है। मध्यान्ह भोजन का वितरण भी होता है। गांव के दक्षिण नदी के तट पर एक कच्चा समशान घाट भी है ,जहां पर क्षेत्र के लोगों का अंतिम (दाहय) संस्कार किया जाता है। इस घाट को पक्का तथा आधुनिक सुविधाओं से युक्त किया जाना चाहिए।

बाबा राम गुलाम दास की कुटी वा शिव मंदिर मीता सोती बरहता 

मनोरमा के पास एक लम्बे आकार में सुरम्य वातावरण में एक प्राचीन शिव मंदिर बना है। इसमें शिव परिवार के सभी सदस्यों की मूर्तियां स्थापित है। इसे बाबा राम गुलाम दास की कुटी भी कहा जाता है ,जहां बाबाजी की समाधि बनी हुई है। मंदिर में 3 कक्ष है एक गर्भगृह तथा दो अन्य हैं। यहां प्रतिवर्ष मकर संक्रांति के दिन बहुत बड़ा मेला लगता है। जिसमें क्षेत्र के लोग भारी संख्या में भाग लेते हैं। इस अवसर पर साप्ताहिक भागवत या राम कथा का आयोजन व भंडारा का भी आयोजन होता है। सामान्यतः इसका प्रवन्धन ग्राम सभा या ग्राम पंचायत की तरफ से लोगों के सहयोग से किया जाता है। 7 जनवरी से 14 जनवरी तक यहां साप्ताहिक राम कथा या भागवत कथा का आयोजन किया जाता है। इस अवसर पर एक मेला तथा भंडारे का आयोजन भी इसी ग्राम के निवासी राम नवल मिश्र जी के प्रयास तथा प्रधान जी आदि के सहयोग से किया जाता है। क्षेत्रीय लोगों का भरपूर सहयोग भी देखा जाता है।

              बरहटा :-

बरहटा को बढ़ता के अर्थ में,कड़वे भंटे का पौधा और फल के रूप में प्रयुक्त किया जाता है। मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिले का बरहटा ग्राम महाभारत काल के विराट नगर का अवशेष माना जाता है । मध्य प्रदेश के कटनी जिले के तहसील ढीमरखेडा के बरहटा गांव है। मऊगंज में भी एक बरहटा गांव है। तप्‍पा पचवारा परगना हवेली तहसील कैम्पियरगंज जनपद गोरखपुर में भी एक बरहटा है। अयोध्या में ग्राम मांझा बरहटा है। यहां भगवान राम की भव्य मूर्ति प्रस्तावित है। महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले के कुटुंबा प्रखंड के दधपा पंचायत अंतर्गत बरहेता गांव है। इस प्रकार देश के अन्य भाग में न जाने कितने बरहटा गांव बसे हुए हैं। मैं यहां मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश राज्य के बस्ती जिले के कप्तानगंज ब्लॉक में एक गाँव बरहटा का जिक्र कर रहा हूं। यहां एक परिवार राजपूत के अलावा गुप्ता बनिया, नाई,बढ़ई,लोहार, कहार और हरिजन आदि सभी जाति के लोग बसे हुए हैं। गांव बड़ा है। इसमें ब्रह्मण नही है। गांव की विशालता को देखते हुए बड़ा हाट बाजार से उत्पन्न नाम इस गांव के लिए सटीक बैठ रहा है। यह बस्ती मंडल के अंतर्गत जिला मुख्यालय बस्ती से पश्चिम की ओर 19 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। कप्तानगंज से 4 कि.मी. और राज्य की राजधानी लखनऊ से 191 किमी दूर स्थित है।

           मरवटिया पांडे :-

मरवटिया पांडे भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के बस्ती जिले के कप्तानगंज ब्लॉक में एक छोटा सा गांव/टोला है। यह मरवटिया पांडे पंचायत के अंतर्गत आता है। यह बस्ती मंडल के अंतर्गत आता है। यह जिला मुख्यालय बस्ती से 18 किलोमीटर पश्चिम की ओर स्थित है। राज्य की राजधानी लखनऊ से 192 किमी दूर स्थित है।मरवतिया पांडे बस्ती जिले के कप्तानगंज ब्लॉक में एक ब्राह्मण गांव है। अधिकांश लोग शिक्षित हैं, कुछ सामान्य और कुछ उच्च शिक्षित भी हैं। कुछ सैन्यकर्मी, कुछ डॉक्टर, शिक्षक और वकील भी यहां रह रहे हैं। डॉ. सौरभ द्विवेदी आर्थोपेडिक सर्जन हैं। डॉ. मेजर अभिषेक द्विवेदी और डॉ. तनु मिश्रा प्रतिष्ठित रेडियोलॉजिस्ट हैं। डॉ. दीपिका चौबे एक एनिसथीसिस्टिक डॉक्टर हैं। स्वर्गीय सत्य नारायन पाण्डेय कांग्रेस के एक प्रमुख नेता इसी गांव के मूल निवासी थे। वे वा उनके पुत्र जनता इंटर कालेज पोखरा के प्रबंधक प्रधानाचार्य और गांव के प्रधान कई बार चुने गए थे।

                       आचार्य डॉ राधे श्याम द्विवेदी

लेखक परिचय:-

(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, आगरा मंडल ,आगरा में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं। वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए समसामयिक विषयों,साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं।) 

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