Tuesday, March 19, 2024

रुम्मिनदेई अशोक का स्तम्भलेख डॉ. राधे श्याम द्विवेदी


अवस्थिति:-
शाक्य गणराज्य की राजधानी कपिलवस्तु के निकट उत्तर प्रदेश के ककरहवा नामक ग्राम से 14 मील और नेपाल-भारत सीमा से कुछ दूर पर नेपाल के अन्दर रुमिनोदेई नामक ग्राम ही लुम्बनीग्राम है, जो गौतम बुद्ध के जन्म स्थान के रूप में जगत प्रसिद्ध है। लुम्बिनी-दूधी मार्ग भारत के उत्तर प्रदेश राज्य का एक राज्य राजमार्ग है। 351 किलोमीटर लम्बा यह राजमार्ग ग्राम पीपरी के समीप नेपाल-भारत सीमा से शुरू होकर दूधी तक जाता है। यह सिद्धार्थनगर, बस्ती, अंबेडकर नगर, जौनपुर, संत रविदास नगर, मिर्ज़ापुर और सोनभद्र जिलों से होकर गुजरता है। यह दो लेन का ही मार्ग है और अधिकांशतः विना दिवाइडर वाला ही है। अतएव इस पर बड़ी सावधानी पूर्वक चलना होता है। भारत भू भाग स्थित सड़क की हालत नेपाल राज्य की सड़क से बेहतर है। नेपाल में प्रवेश करते ही एक शताब्दी पूर्व जैसा विना बिकसित वाले क्षेत्र जैसा आभास होने लगता है। ये हाल ककरहवा की तरफ से जाने पर होता है।
एकतरफा कस्टम ड्यूटी:-
ककरहवा बार्डर से लुंबिनी की दूरी महज 10 किमी है। नेपाल में प्रवेश के लिए चार पहिया वाहन को नेपाल मुद्रा में 500 रुपये एवं दो पहिया वाहनों के लिए 150 रुपये भारतीय मुद्रा में क्रमशः 300 रुपए और 90 रुपए कस्टम या भंसार के रूप में शुल्क जमा करना पड़ता है, जबकि पहले के नियम के अंतर्गत नि:शुल्क सुविधा पर्ची बनवाकर लोग लुंबिनी में शांति भवन का दर्शन करते थे। इस नियम के कारण स्थानीय लोगों ने लुंबिनी जाना कम कर दिया है।
अशोक का स्तम्भलेख :-
लुम्बिनी में स्थित इस अशोक स्तम्भ पर ब्राह्मी लिपि में अंकित सन्देश है, जिसकी खोज दिसम्बर १८९६ में अलोइस एन्टन फुहरर ने की थी जो यूनाइटेड प्रविंस आगरा एंड अवध जो वर्तमान उत्तर प्रदेश है, का अयकियोलॉजिकल सर्वेयर हुआ करता था। इसका प्रारम्भिक मुख्यालय लखनऊ और बाद में आगरा हुआ करता था। अभी हाल ही में हुई खुदाई के नतीजों से पता चला है कि मंदिर का यह ढांचा मायादेवी मंदिर के भीतर बना था। यह सम्राट अशोक के इस क्षेत्र में पहुंचने से पहले की घटना है। माना जाता था कि लुम्बिनी और यह मंदिर सम्राट अशोक के कार्यकाल में तीसरी शताब्दी में बनाया गया था। इस खुदाई मिशन में शामिल अनुसंधानकर्ताओं ने सम्राट अशोक के समय से पहले के एक मंदिर का पता लगाया है जो कि ईंट से बना हुआ था। इसे 250 ईसा पूर्व में बनाया गया था, जब भारतीय सम्राट अशोक ने लुंबिनी का दौरा किया था। यह स्तम्भ अभिलेख प्राकृत भाषा और ब्राह्मी लिपि में है । यह लेख अशोक के अभिलेख के बीस वर्ष बाद उत्कीर्ण कराया गया। इस अभिलेख का मुख्य विषय अशोक द्वारा बुद्ध के जन्म स्थान 'लुम्बिनी' की यात्रा करना और बौद्ध धर्म के प्रचार प्रसार के लिए उस क्षेत्र को कुछ विशेष सुविधाएं प्रदान करना था । अशोक ने यहां चार स्तूप और एक पत्थर का स्तंभ बनवाया जिसके शीर्ष पर घोड़े की आकृति थी। 
ब्राह्मी लिपि वाला अभिलेख :-
रुम्मिनदेई के अशोक-स्तंभ पर ख़ुदा हुआ लेख ब्राह्मी लिपि में है और बाएँ ओर से दाईं ओर को पढ़ा जाता है। इस अभिलेख से ज्ञात होता है कि सम्राट अशोक अपने राज्याभिषेक के बीस वर्ष बाद लुम्बिनी आया था। उसने यहाँ अर्चना की क्योंकि यह शाक्यमुनि की पावन जन्म स्थली है। उसने रुम्मिनदेई में एक बड़ी दीवार बनवायी और एक प्रस्तर स्तम्भ स्थापित कराया। इस अभिलेख में यह भी उल्लेख है कि उसने लुम्बिनी गाँव के धार्मिक कर माफ कर दिये और मालगुजारी के रूप में आठवाँ हिस्सा तय कर दिया।
                 शिलालेख का अर्थ
"राजा पियादशी, जो देवताओं के बहुत प्रिय थे, अपने अभिषेक के 20वें वर्ष में, स्वयं आए और यह कहते हुए पूजा की कि 'यहाँ बुद्ध शाक्यमुनि का जन्म हुआ था।"
यह पत्थर एक घोड़े का प्रतिनिधित्व करता है; और उस ने (यह) पत्थर का खम्भा बनवाया। चूँकि यहाँ प्रबुद्ध व्यक्ति का जन्म हुआ था, लुम्बिनी गाँव को एक आध्यात्मिक केंद्र बनाया गया है और यह करों का केवल 1/10 वां हिस्सा देने के लिए उत्तरदायी होगा। स्तंभ के शीर्ष के पास तिब्बती अक्षरों में "ओम मणि पद्मे हुम्" मंत्र उकेरा गया है। 7वीं सदी से पहले बिजली गिरने से यह स्तंभ बुरी तरह क्षति ग्रस्त हो गया था। स्तंभ की ऊंचाई 4.11 मीटर है और ऐसा माना जाता है कि 3.05 मीटर लंबा एक और हिस्सा जमीन के नीचे है। स्तंभ के शेष भाग की परिधि 2.21 मीटर है। घोड़े की आकृति वाला स्तंभ का नक्काशीदार शीर्ष कभी नहीं मिला है। चीनी तीर्थयात्री ह्वेनसांग ने इस संरचना को देखा और अपने संस्मरणों में दर्ज किया।
                 आचार्य डॉ राधे श्याम द्विवेदी 

लेखक परिचय:-
(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, आगरा मंडल ,आगरा में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं। वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए समसामयिक विषयों,साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं। लेखक को अभी हाल ही में इस स्मारक को देखने का अवसर मिला था।) 


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