Monday, April 4, 2022

भू उपवन का बन प्रसून डा. राधे श्याम द्विवेदी



खिला प्रसून इक आँगन में,मन हृदय कमल सा खिल उठता ।
दिल के प्यारे वन उपवन में,तन मन प्रमुदित हो झूम उठता।।

मन भौरा झूमें इधर उधर, आँगन में भटके इतर उतर।
बिखरे खुशबू जगह जगह, सराबोर करता हर प्रहर।।

हम माली हैं इस बगिया के अपनी कोई चिंता नहीं।
रूखे सूखे लूले लंगड़े हमें अपनी कोई परवाह नहीं।।

तुम प्रसून जिस बगिया के वह मुरझाए कभी नहीं।
बाग से बढ़ फैले खुशबू प्रमुदित करते सब जगही।।

हंसते और खेलते रहें जन लेकर खुशबू का गंध सभी।
दुनिया सारी गम गम गमके मिलेगा इससे हमें खुशी।।

फैलाकर अपनी सुगंध को महकाता है तन मन को।
रंग-बिरंगी दुनिया में अपनी, सजाता मेरे उपवन को।

रंग बिरंगे प्यारे दीखते हैं हमको भी प्यारे लगते हैं।
कितने कोमल कितने नाजूक अपनी ओर खींचते हैं।

खुशबू दूर दूर तक फैलाते सबको अपने पास बुलाते।
भू उपवन का बन प्रसून हम सभी खुशी से सजवाते।।







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