Sunday, April 17, 2022

नरहरिदास( नरहर्यानन्द)रामानंद सम्प्रदाय परम्परा (9) डा. राधे श्याम द्विवेदी

चौबीसवें क्रम में श्री  गयानंदाचार्य जी का नाम आता है। इनके बारे में ज्यादा सूचनाएं नहीं मिलती है। किसी दूसरी सूची में 23 वें क्रम में अनंतानन्द का नाम मिलता है पर सूचनाएं सीमित हैं। इसी सूची में 24वें क्रम श्रीरंगाचार्य का नाम आता है।अनंतानन्द जी के ६ शिष्य: श्री गयेश, श्री करमचंद, श्री अल्ह्दास , श्री कृष्णदास पयहारी, श्री सारीरामदास, और श्री श्रीरंगाचार्य हैं।25वें  क्रम पर नरहर्यानन्द (नरहरिदास)का नाम आता है। पूर्व वर्णित रामानन्द के 12 शिष्य थे, जिनमें मुख्य कबीरदास, रैदास (रविदास), नरहर्यानन्द (नरहरिदास), धन्ना (जाट), सेना (नाई), पीपा (राजपूत), सदना (कसाई) थे। रामानन्द से दीक्षा लेने के बाद नरहर्यानन्द से नरहरिदास बन गए। संत शिरोमणि गोस्वामी तुलसीदास के निर्माण में सद्गुरु संत नरहरिदासजी का वही स्थान है जो श्रीरामचन्द्रजी के निर्माण में महर्षि श्रीविश्वामित्रजी, अर्जुन के निर्माण में श्रीकृष्णचन्द्रजी, छत्रपति शिवाजी के निर्माण में श्रीस्वामी समर्थगुरु रामदासजी, वीर छत्रसाल के निर्माण में श्रीस्वामी प्राणनाथजी, वीरबन्दा बैरागी के निर्माण में श्रीगुरुगोविन्द सिंहजी, स्वामी विवेकानन्दजी के निर्माण में श्रीरामकृष्ण परमहंसजी का स्थान है। संत नरहरि अमूल्य पारसमणि थे जो रामबोला रुपी लोहा को स्पर्श करके स्वर्ण बना दिया। अगर तुलसी भारतीय संस्कृति रुपी मंदिर प्रतिष्ठित देव हैं तो नरहरि उस मंदिर की नींव हैं।

रहरि या नरहरिदास (जन्म : 1505, मत्यु : 1610) हिंदी साहित्य की भक्ति परंपरा में ब्रजभाषा के कवि थे। इन्हें संस्कृत और फारसी का भी अच्छा ज्ञान था। उनका जन्म1505 ई० (सम्वत्- 1562 वि०) है।वह पखरौली, रायबरेली , उत्तर प्रदेश, भारत में पैदा हुए थे। उनकी मृत्यु 1610 ई० (संवत 1667 वि०) में हुई थी। उनका दर्शन  वैष्णव बैरागी था।साहित्यिक कार्यमें रुक्मिणी मंगल, छप्पय नीति, कवित्त संग्रह इत्यादि है। नरहरि का जन्म उत्तर प्रदेश में रायबरेली, जिले के पखरौली नामक गाँव में हुआ था। इनका संपर्क हुमायूँ, शेरशाह सूरी, सलीमशाह तथा रीवाँ नरेश रामचंद्र आदि शासकों से माना जाता है। हालांकि इनको सर्वाधिक महत्व अकबर ने प्रदान किया।

गुरु-शिष्य परंपरा:-नरहरिदास तुलसीदास (1532-1623) के गुरू माने जाते हैं, हालांकि इस बात के स्पष्ट प्रमाण नहीं हैं। स्वामी अनंतानंद के प्रिय शिष्य श्री नरहर्यानंद जि ने तुलसी दास का यज्ञोपवीत संस्कार सम्वत 1561 मे कराया ओर इनका नाम रखा रामबोला. इसके बाद श्री नरहर्यानंद जि ने इनके पांच संस्कार करके राममंत्र की दीक्षा दी. अयोध्या मे हि रहकर इनको विद्याध्ययन कराया. इन्होने बाद मे काशी मे गुरु शेष सनातन जि से 15 वर्ष तक वेद अध्ययन किया तथा वेदांग ओर रामायण भी पढ़ी.

रचनाएँ:-इनके नाम से तीन ग्रंथ - रुक्मिणी मंगल, छप्पय नीति और कवित्त संग्रह प्रसिद्ध हैं जिनमें से केवल 'रुक्मिणी मंगल' ही प्राप्त हो सका है। इनकी कुछ फुटकल रचनाएँ भी मिलती हैं।

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