Saturday, April 9, 2022

श्रीसनातन रामानंद सम्प्रदाय की परम्परा में राघवानंदाचार्य जी (3) डा. राधे श्याम द्विवेदी


इकतालीस आचार्यों की श्रृंखला में नवें क्रम में श्री पुरुषोत्तम आचार्य जी का नाम आता है। जिनके बारे में प्रमाणिक सूचनाओं का अभाव है। दसवें क्रम में श्री गंगाधराचार्य जी का नाम आता है। गंगाधराचार्य जी श्री सम्प्रदाय के महान् गुरुभक्त संत हुए है श्री गंगाधराचार्य जी , जिनकी गुरु भक्ति के कारण इनका नाम गुरुदेव ने श्री पादपद्माचार्य रख दिया था । श्री गंगा जी के तट पर इनके सम्प्रदाय का आश्रम बना हुआ था और अनेक पर्ण कुटियां बनी हुई थी । वही पर एक मंदिर था और संतो के आसन लगाने की व्यवस्था भी थी । स्थान पर नित्य संत सेवा , ठाकुर सेवा और गौ सेवा चलती थी । इस गुरुनिष्ठ शिष्य की मर्यादा और गुरु भक्ति की रक्षा करने हेतु श्री गंगा जी ने वहां अनेक विशाल कमलपुष्प उत्पन्न कर दिए ।गुरुदेव ने उन कमलपुष्पो पर पैर रखते हुए चलकर शीघ्र अचला ,लंगोटी और कमंडल लेकर आने को कहा । उन्ही पर पैर रखते हुए ये गुरुदेव के समीप दौडकर गये । श्री गंगाधराचार्य जी का जो प्रभाव गुप्त था, वह उस दिन प्रकट हो गया, इस दिव्य चमत्कार को देखकर सभो के मन मे गंगा जी और पादपद्म जी मे अपार श्रद्धा हो गयी । गुरुजी ने कहा – बेटा धन्य है तुम्हारी गुरुभक्ति जिसके प्रताप से गंगा जी ने यह कमल पुष्प उत्पन्न कर दिए । संसार मे आज के पश्चात तुम्हारा नाम पादपद्माचार्य के नाम से प्रसिद्ध होगा । उसी दिन से गंगाधराचार्य जी का का नाम पादपद्माचार्य पड गया ।
ग्यारहवें क्रम में श्री सदाचार्य जी का नाम आता है।
बारहवें क्रम में श्री रामेश्वराचार्य जी का नाम आता है।
तेरहवें क्रम में श्री द्वारानंदाचार्य जी का नाम आता है।
चौदहवें क्रम में श्री देवानंदाचार्य जी का नाम आता है।
पंद्रहवें क्रम में श्री श्यामानंदाचार्य जी का नाम आता है।
सोलहवें क्रम में श्री श्रुतानंदाचार्य जी का नाम आता है।
 सतरहवें क्रम में श्री चिदानंदाचार्य जी का नाम आता है।
 अठारहवें क्रम में श्री पूर्णानंदाचार्य जी का नाम आता है।
 उन्नीसवें क्रम में श्री श्रियानंदाचार्य जी का नाम आता है।
बीसवें क्रम में श्री हर्यानंदाचार्य जी का नाम आता है।
ग्यारहवें क्रम लेकर बीसवें क्रम तक दस आचार्यों का विवरण उपलब्ध नहीं मिलता है।
राघवानंदाचार्य जी 
इक्कीसवें क्रम में श्री राघवानंदाचार्य जी का नाम आता है।
राघवानन्द को रामानन्द का गुरु माना गया है। स्वामी राघवानन्द हिन्दी भाषा में भक्तिपरक काव्य रचना किया करते थे। रामानन्द को रामभक्ति गुरु परंपरा से ही मिली थी। ' भक्तमाल' में नाभादासजी ने गुरु राघवानन्द को ही रामानन्द का गुरु माना है।
राघवानन्द की एक हिन्दी रचना सिद्धान्त पंचमात्रा' से ही स्पष्ट हो जाता है कि राघवानन्द जी योग-मार्ग की साधना से परिचित थे और अंत:साधना और अनुभव सिद्ध ज्ञान की महिमा के विश्वासी थे।
राघवानन्द सम्प्रदाय :-
किंवदन्ती है कि रामानन्द के गुरु पहले कोई दण्डी संन्यासी थे, बाद में राघवानन्द स्वामी हुए। 'भविष्यपुराण', 'अगस्त्यसंहिता' तथा 'भक्तमाल' के अनुसार राघवानन्द ही रामानन्द के गुरु थे। एक अन्य किंवदन्ती के अनुसार यह भी माना जाता है कि छुआ-छूत मतभेद के कारण गुरु राघवानन्द ने ही रामानन्द को नया सम्प्रदाय चलाने की अनुमति दी थी। 

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