Thursday, May 16, 2024

सृष्टि के दूसरे परमपिता महर्षि कश्यप (राम के पूर्वज 04) आचार्य डॉ. राधे श्याम द्विवेदी

                              महर्षि कश्यप 

[ प्रिय सुहृदय पाठक गण,
मैने आज से दो साल पहले "राम के पूर्वज " नामक एक नई श्रृंखला की शुरुआत 22 मार्च 2022 को स्वयंभुव मनु और शतरूपा की कहानी ( राम के पूर्वज -1 ) किया था।
इसके बाद 23 मार्च 2022 को प्रियव्रत - उत्तानपाद की कहानी( राम के पूर्वज - 2 ) से चलते चलते 29 मार्च 2022 को सत्यवादी हरिश्चंद्र की कहानी (राम के पूर्वज 14), 29 मार्च 2022 को ही रोहताश्व की कहानी (राम के पूर्वज 15) और 31 मार्च 2022 को राजा हरिश चंद्र के कमजोर वंशज (राम के पूर्वज 16) नामक लगभग 16 कड़ियां जोड़ा था। फिर कुछ बाह्य विचारों के आवेग ने इस श्रृंखला को विराम लगा कर अन्य विषयों को आगे कर दिया। बाद में पुनः अवलोकन करने पर कुछ छूटी हुई अन्य कड़ियों को समेटने का विचारआया।
       स्वयंभुव मनु और शतरूपा से पूर्व सृष्टि की उत्पत्ति (राम के पूर्वज 01)से लेकर ब्रह्मा ( राम के पूर्वज 02),मरीचि(राम के पूर्वज 03), कश्यप ( राम के पूर्वज 04), विवस्वान स्वमभू मनु ( राम के पूर्वज 05) और विष्णु के सातवें अवतार भगवान राम के कुल और उनकी वंश परंपरा (राम के पूर्वज 06 ) की छूटी हुई कुछ महत्व पूर्ण कड़ियां जोड़ने की पहल होनी है। राजा हरिश चंद्र के कमजोर वंशज (राम के पूर्वज 16) के बाद 17वीं से अगली कड़ियां पुनःशुरु होगीं । ]

          सृष्टि के दूसरे परमपिता महर्षि कश्यप 

कश्यप ऋषि एक वैदिक ऋषि थे । ऋग्वेद के सात प्राचीन ऋषियों, सप्तर्षियों में से कश्यप सबसे प्राचीन और सम्मानित ऋषि हैं । कश्यप को ऋषि-मुनियों में श्रेष्ठ माना गया हैं। इनके पिता ब्रह्मा के पुत्र मरीचि ऋषि थे। मरीचि ने कला नाम की स्त्री से विवाह किया और उनसे उन्हें कश्यप नामक एक पुत्र मिला। कश्यप की माता 'कला' कर्दम ऋषि की पुत्री और ऋषि कपिल देव की बहन थी।कश्यप को परमपिता ब्रह्मा का अवतार माना गया है। माना जाता है कि द्वापर युग में कश्यप प्रजापति ही भगवान विष्णु के कृष्णावतार में उनके पिता वसुदेव थे तथा उनकी प्रथम पत्नी अदिति देवकी और उनकी द्वितीय पत्नी दिति रोहिणी थीं।

 मेरू पर्वत था कश्यप का आश्रम :- 

ऋषि कश्यप का आश्रम मेरू पर्वत के शिखर पर था, जहां वे परब्रह्म परमात्मा के ध्यान में लीन रहते थे। माना जाता है कि कश्यप ऋषि के नाम पर ही कश्मीर का प्राचीन नाम था। समूचे कश्मीर पर ऋषि कश्यप और उनके पुत्रों का ही शासन था। कश्यप ऋषि का इतिहास प्राचीन माना जाता है। कैलाश पर्वत के आसपास भगवान शिव के गणों की सत्ता थी। उक्त इलाके में ही दक्ष राजाओं का साम्राज्य भी था।

धार्मिक एंव रहस्यात्मक चरित्र:- 

कश्यप ने बहुत से स्मृति-ग्रंथों की रचना की थी। कश्यप ऋषि का उल्लेख अन्य संहिताओं में बहुप्रयुक्त है। इन्हें सर्वदा धार्मिक एंव रहस्यात्मक चरित्र वाला अति प्राचीन कहा गया है। ऐतरेय ब्राह्मण के उन्होंने 'विश्वकर्मभौवन' नामक राजा का अभिषेक कराया था। ऐतरेय ब्राह्मणों ने कश्यपों का सम्बन्ध जनमेजय से बताया गया है। शतपथ ब्राह्मण में प्रजापति को कश्यप इस प्रकार कहा है -- 

स यत्कुर्मो नाम। प्रजापतिः प्रजा असृजत। यदसृजत् अकरोत् तद् यदकरोत् तस्मात् कूर्मः कश्यपो वै कूर्म्स्तस्मादाहुः सर्वाः प्रजाः कश्यपः।

महाभारत एवं पुराणों में असुरों की उत्पत्ति एवं वंशावली के वर्णन में कहा गया है की ब्रह्मा के सात मानस पुत्रों में से एक 'मरीचि' थे जिसने कश्यप ऋषि उत्पन्न हुए।

कश्यप और दक्ष कन्याओं से सृष्टि का उद्भव:- 

 कश्यप ने दक्ष प्रजापति की १७ पुत्रियों से विवाह किया। 
भागवत पुराण और मार्कण्डेय पुराण के अनुसार कश्यप की तेरह पत्नियां थीं।ब्रह्मा के पोते और मरीचि के पुत्र कश्यप ने ब्रह्मा के दूसरे पुत्र दक्ष की 13 पुत्रियों से विवाह किया। कश्यय की पत्नी का नाम- अदिति, दिति, दनु, काष्ठा, अरिष्ठा, सुरसा, इला, मुनि, क्रोधवशा, ताम्रा, सुरभि, सरमा और तिमि था। महर्षि कश्यप को विवाहित 13 कन्याओं से ही जगत के समस्त प्राणी उत्पन्न हुए। वे लोकमाताएं कही जाती हैं। इन माताओं को ही जगत जननी कहा जाता है। मुख्यत इन्हीं कन्याओं से सृष्टि का विकास हुआ और कश्यप सृष्टिकर्ता कहलाए। 

अदिति परम जगत माता:- 

दक्ष प्रजापति की तेरह कन्याओं में अदिति प्रमुख थी।देव गण इन्ही अदिति और कश्यप की संताने थीं। इन्ही से सारे देवता उत्पन्न हुए।वामन भगवान भी इन्ही की संतान थे। इनका तप अनन्त है। इनकी भगवद भक्ति अटूट है। ये 
दंपति भगवान के परम प्रिय हैं। तीन बात भगवान ने इनके यहां अवतार लिया।माना जाता है कि चाक्षुष मन्वन्तर काल में तुषित नामक बारह श्रेष्ठगणों ने बारह आदित्यों के रूप में जन्म लिया, जो कि इस प्रकार थे- विवस्वान्, अर्यमा, पूषा, त्वष्टा, सविता, भग, धाता, विधाता, वरुण, मित्र, इंद्र और त्रिविक्रम (भगवान वामन)। अदिति और कश्यप के महा तप के प्रभाव से जीवों को निर्गुण निराकार भगवान के सगुण और साकार रूप में दर्शन हो सके-- 
  "कश्यप अदिति महा तप कीन्हा।
    तिन्ह कहूं मैं पूरब वर दीन्हा।"
           (राम चरित मानस)
(श्री भक्तमांल गीता प्रेस पृष्ठ 291)

सृष्टि की अन्य माताएं:- 

 कश्यप ऋषि ने दिति के गर्भ से हिरण्यकश्यप और हिरण्याक्ष नामक दो पुत्र एवं सिंहिका नामक एक पुत्री को जन्म दिया। श्रीमद्भागवत् के अनुसार इन तीन संतानों के अलावा दिति के गर्भ से कश्यप के 49 अन्य पुत्रों का जन्म भी हुआ, जो कि मरुन्दण कहलाए। दनु से दानव पैदा हुए थे। कश्यप को उनकी पत्नी दनु के गर्भ से द्विमुर्धा, शम्बर, अरिष्ट, हयग्रीव, विभावसु, अरुण, अनुतापन, धूम्रकेश, विरूपाक्ष, दुर्जय, अयोमुख, शंकुशिरा, कपिल, शंकर, एकचक्र, महाबाहु, तारक, महाबल, स्वर्भानु, वृषपर्वा, महाबली पुलोम और विप्रचिति आदि 61 महान पुत्रों की प्राप्ति हुई रानी काष्ठा से घोड़े आदि एक खुर वाले पशु उत्पन्न हुए। काला और दनायु से भी दानव हुए। सिंहिका से सिंह और व्याघ्र, क्रोधा से क्रोध करने वाले असुर हुए। विनीता से गरुड़ अरुण आदि छः पुत्र हुए। कद्रु से सर्प और नाग और मनु से समस्त मानव उत्पन्न हुए। पत्नी अरिष्टा से गंधर्व पैदा हुए। सुरसा नामक रानी से यातुधान (राक्षस) उत्पन्न हुए। इला से वृक्ष, लता आदि पृथ्वी पर उत्पन्न होने वाली वनस्पतियों का जन्म हुआ। मुनि के गर्भ से अप्सराएँ जन्म ली थी।कश्यप की क्रोधवशा नामक रानी ने साँप, बिच्छु आदि विषैले जन्तु पैदा किए। ताम्रा ने बाज, गिद्ध आदि शिकारी पक्षियों को अपनी संतान के रूप में जन्म दिया। सुरभि ने भैंस, गाय तथा दो खुर वाले पशुओं की उत्पत्ति की। रानी सरसा ने बाघ आदि हिंसक जीवों को पैदा किया। तिमि ने जलचर जन्तुओं को अपनी संतान के रूप में उत्पन्न किया।

 सभी चर अचर जीव और प्राणी कश्यप की संताने :- 

इस प्रकार समस्त स्थावर जंगम,पशु पक्षी देवता दैत्य और मनुष्य सब के सब सगे भाई भाई हैं। पुराणों अनुसार हम सभी उन्हीं की संतानें हैं। सुर-असुरों के मूल पुरुष समस्त देव, दानव एवं मानव ऋषि कश्यप की आज्ञा का पालन करते थे।

परशुराम के गुरु कश्यप :- 

एक बार समस्त पृथ्वी पर विजय प्राप्त कर परशुराम ने वह कश्यप मुनि को दान कर दी। कश्यप मुनि ने कहा-'अब तुम मेरे देश में मत रहो।' अत: गुरु की आज्ञा का पालन करते हुए परशुराम ने रात को पृथ्वी पर न रहने का संकल्प किया। वे प्रति रात्रि में मन के समान तीव्र गमन शक्ति से महेंद्र पर्वत पर जाने लगे।

कश्यप का सर्वाधिक विशाल गोत्र :- 

गोत्र का महत्व धार्मिक और सामाजिक संदर्भों में होता है, और इसका उपयोग वंश विवादों से बचने के लिए किया जाता है, और यह बिना जानकारी और सही समय पर उपयोग किए जाते हैं। कई बार, जब कोई व्यक्ति अपने गोत्र का पता नहीं जानता होता है, तो उसे अपने वंश के अनूशासन या परंपरागत विवादों के बजाय एक सामान्य गोत्र के तौर पर "कश्यप" गोत्र का उपयोग किया जा सकता है। यह तब होता है जब किसी व्यक्ति के गोत्र का पता नहीं होता और वह अपने वंश के बारे में जानकारी नहीं रखता है, और वंश विवादों से बचने के लिए कश्यप गोत्र का उपयोग करता है। कश्यप गोत्र कई भारतीय संतान और वंश के लिए पारंपरिक रूप से प्रमुख गोत्रों में से एक है, और यह अक्सर सामान्य या अज्ञात गोत्र के रूप में उपयोग किया जाता है। इसका उपयोग वंश विवादों से बचाव के रूप में किया जा सकता है, क्योंकि यह एक सामाजिक और सांस्कृतिक प्रक्रिया का हिस्सा होता है।

              आचार्य डा. राधे श्याम द्विवेदी 

लेखक परिचय:-
(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, आगरा मंडल ,आगरा में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं। वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए समसामयिक विषयों,साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं।) 

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