Monday, May 13, 2024

भगवान राम के कुल और उनकी वंश परंपरा का विस्तार (राम के पूर्वज 06 )डा. राधे श्याम द्विवेदी


प्रिय सुहृदय पाठक गण,
मैने आज से दो साल पहले "राम के पूर्वज" नामक एक नई श्रृंखला की शुरुआत 22 मार्च 2022 को स्वयंभुव मनु और शतरूपा की कहानी ( राम के पूर्वज -1 ) किया था।
इसके बाद 23 मार्च 2022 को प्रियव्रत - उत्तानपाद की कहानी( राम के पूर्वज - 2 ) से चलते चलते 29 मार्च 2022 को सत्यवादी हरिश्चंद्र की कहानी (राम के पूर्वज 14), 29 मार्च 2022 को ही रोहताश्व की कहानी (राम के पूर्वज 15) और 31 मार्च 2022 को राजा हरिश चंद्र के कमजोर वंशज (राम के पूर्वज 16) नामक लगभग 16 कड़ियां जोड़ा था। फिर कुछ बाह्य विचारों के आवेग ने इस श्रृंखला को विराम लगा कर अन्य विषयों को आगे कर दिया। बाद में पुनः अवलोकन करने पर कुछ छूटी हुई अन्य कड़ियों को समेटने का विचारआया।
       स्वयंभुव मनु और शतरूपा से पूर्व सृष्टि की उत्पत्ति (राम के पूर्वज 01)से लेकर ब्रह्मा ( राम के पूर्वज 02),मरीचि(राम के पूर्वज 03 ), कश्यप ( राम के पूर्वज 04), विवस्वान स्वमभू मनु ( राम के पूर्वज 05) और विष्णु के सातवें अवतार भगवान राम के कुल और उनकी वंश परंपरा (राम के पूर्वज 06 ) की छूटी हुई कुछ महत्व पूर्ण कड़ियां जोड़ने की पहल होनी है। राजा हरिश चंद्र के कमजोर वंशज (राम के पूर्वज 16) के बाद 17वीं से अगली कड़ियां पुनःशुरु होगीं । ]

भगवान राम के कुल और उनकी वंश परंपरा का विस्तार :- 

हिंदू धर्म में भगवान राम को सामाजिक व धार्मिक चेतना का स्वरूप माना जाता है। राम के आदर्श व चरित्र की व्याख्या तुलसीदास रचित राम चरित मानस में मिलता है। सभी के मन में प्रभु राम से जुड़ी जानकारी व उन्हें समझने का कौतूहल हमेशा रहता है। भगवान राम का जन्म 5114 ईसा पूर्व 10 जनवरी को दिन के 12.05 पर हुआ था।

राम के पूर्वजों की वंशावली:- 

भगवान राम के पूर्वजों की वंशावली इस प्रकार मिलती है।
ब्रह्माजी से मरीचि का जन्म हुआ था । मरीचि के पुत्र कश्यप हुए थे। कश्यप के पुत्र विवस्वान हुए और विवस्वान के पुत्र वैवस्वत मनु हुए । वैवस्वत मनु के समय जल प्रलय हुआ था। वैवस्वत मनु के दस पुत्र थे- इल, इक्ष्वाकु, कुशनाम, अरिष्ट, धृष्ट, नरिष्यन्त, करुष, महाबली, शर्याति और पृषध। इन्हीं दस भइयों में से एक का नाम इक्ष्वाकु था। इक्ष्वाकु ने अयोध्या को अपनी राजधानी बनाया और इस प्रकार इक्ष्वाकु कुल की स्थापना की। यही आगे चलकर रघुकुल बना था। इस वंश परंपरा को इस प्रकार भी जाना का सकता है - 
1.ब्रह्माजी 2.मरीचि 3.कश्यप 4.विवस्वान स्वमभू मनु (सूर्य देव) 5.वैवस्वत मनु 2. इक्ष्वाकु 3. शशाद/कुक्षि 4. काकुस्थ/विकुक्षि 5. अनेनस/अनर्णव 6. पृथु 7. विश्वगाश्व आर्द्र 8. युवनाश्च 9. श्रावत्स 10. वृहदश्व 11. कुवलयाश्व 12. दृढ़ाश्व 13. प्रमोद 14. हर्यश्रव 15. निकुम्भ 16. संहताश्व 17. कृशाश्व 18. प्रसेनजित 19. युवनाश्च 20. मान्धातु 21. पुरुकुत्स 22. त्रसदस्यु 23. सम्भूत 24. अनरण्य 25. पृषदश्व 26. हर्यश्रव 27. वसुमनस 28. तृधन्वन 29. त्रैयारुण 30. सत्यब्रत/त्रिशंकु 31. हरिश्चन्द्र 32. रोहित 33. हरित 34.चंचु 35. विजय 36. रुरुक 37. वृक 38. बाहु 39. सगर 40. असमज्जस 41. अंशुमन 42. दिलीप प्रथम 43. भगीरथ 44. श्रुतनाम 45.1 नभग 46. नाभाग 47. अम्बरीष 48. सिंधुदीप 49. अयतायुस 50. ऋतुपर्ण 51. सर्वकाम 52. सुदास 53. सौदास/ कल्माषपाद 54. अश्मक 55. मूलक 56. शतरथ 57. वृद्धशर्मन 58. विश्वसह 59. दिलीप द्वितीय/ कुकस्थ
60. दीर्घबाहु 61. रघु ।
       रघु के पुत्र प्रवृद्ध हुए. प्रवृद्ध के पुत्र शंखण और शंखण के पुत्र सुदर्शन हुए. सुदर्शन के पुत्र का नाम अग्निवर्ण था। अग्निवर्ण के पुत्र शीघ्रग और शीघ्रग के पुत्र मरु हुए। मरु के पुत्र प्रशुश्रुक और प्रशुश्रुक के पुत्र अम्बरीष हुए। अम्बरीष के पुत्र का नाम नहुष था। नहुष के पुत्र ययाति और ययाति के पुत्र नाभाग हुए। नाभाग के पुत्र का नाम अज था। अज के पुत्र सत्यकेतू/दशरथ हुए और दशरथ के चार पुत्र हुये राम, भरत, लक्ष्मण तथा शत्रुघ्न। इधर की वंशावली ज्यादा प्रचलन में है।
        मनु के दूसरे पुत्र इक्ष्वाकु से विकुक्षि, निमि और दण्डक पुत्र पैदा हुये. इस तरह से यह वंश परंपरा आगे बढ़ते हुये हरिश्चन्द्र रोहित, वृष, बाहु और सगर तक पहुंची. इक्ष्वाकु प्राचीन कौशल देश के राजा थे और इनकी राजधानी अयोध्या थी. रामायण के बालकांड में गुरु वशिष्ठ जी द्वारा राम के कुल का वर्णन किया गया है जो इस प्रकार है- 
    विकुक्षि के पुत्र बाण और बाण के पुत्र अनरण्य हुए. अनरण्य से पृथु और पृथु और पृथु से त्रिशंकु का जन्म हुआ. त्रिशंकु के पुत्र धुंधुमार हुए. धुंधुमार के पुत्र का नाम युवनाश्व था. युवनाश्व के पुत्र मान्धाता हुए और मान्धाता से सुसन्धि का जन्म हुआ. सुसन्धि के दो पुत्र हुए- ध्रुवसन्धि एवं प्रसेनजित. ध्रुवसन्धि के पुत्र भरत हुए।

इस तरह नाम पड़ा रघुकुल :- 

भरत के पुत्र असित हुए और असित के पुत्र सगर हुए. सगर अयोध्या के बहुत प्रतापी राजा थे. सगर के पुत्र का नाम असमंज था. असमंज के पुत्र अंशुमान तथा अंशुमान के पुत्र दिलीप हुए. दिलीप के पुत्र भगीरथ हुए. भगीरथ ने ही गंगा को पृथ्वी पर उतारा था. भगीरथ के पुत्र ककुत्स्थ और ककुत्स्थ के पुत्र रघु हुए. रघु के अत्यंत तेजस्वी और पराक्रमी नरेश होने के कारण उनके बाद इस वंश का नाम रघुवंश हो गया. तब राम के कुल को रघुकुल भी कहा जाता है।

 राम के बाद का इतिहास:- 

राम के दो पुत्र लव और कुश थे। भरत के दो पुत्र थे- तार्क्ष और पुष्कर। लक्ष्मण के पुत्र- चित्रांगद और चन्द्रकेतु और शत्रुघ्न के पुत्र सुबाहु और शूरसेन थे। मथुरा का नाम पहले शूरसेन था। लव और कुश राम तथा सीता के जुड़वां बेटे थे। जब राम ने वानप्रस्थ लेने का निश्चय कर भरत का राज्याभिषेक करना चाहा तो भरत नहीं माने। राम के काल में भी कोशल राज्य उत्तर कोशल और दक्षिण कोसल में विभाजित था।श्रीराम ने कुश को दक्षिण कौशल, कुशस्थली (कुशावती) और अयोध्या राज्य सौंपा था, तो लव को पंजाब दिया। लव ने लाहौर को राजधानी बनाया। आज के तक्षशिला में तब भरत पुत्र तक्ष और पुष्करावती (पेशावर) में पुष्कर सिंहासनारुढ़ थे। हिमाचल में लक्ष्मण पुत्र अंगद का अंगदपुर और चंद्रकेतु का चंद्रावती में शासन था। मथुरा में शत्रुघ्न के पुत्र सुबाहु का तथा दूसरे पुत्र शत्रुघाती का भेलसा (विदिशा) में शासन था।
          कालिदास के रघुवंश अनुसार राम ने अपने पुत्र लव को शरावती का और कुश को कुशावती का राज्य दिया था। शरावती को श्रावस्ती मानें तो निश्चय ही लव का राज्य उत्तर भारत में था और कुश का राज्य दक्षिण कोसल में। कुश की राजधानी कुशावती आज के बिलासपुर जिले में थी। कोसल को राम की माता कौशल्या की जन्मभूमि माना जाता है। रघुवंश के अनुसार कुश को अयोध्या जाने के लिए विंध्याचल को पार करना पड़ता था इससे भी सिद्ध होता है कि उनका राज्य दक्षिण कोसल में ही था।

कुश के बाद की वंश :- 

 राम के दोनों पुत्रों में कुश का वंश आगे बढ़ा तो कुश से अतिथि और अतिथि से, निषधन से, नभ से, पुण्डरीक से, क्षेमन्धवा से, देवानीक से, अहीनक से, रुरु से, पारियात्र से, दल से, छल से, उक्थ से, वज्रनाभ से, गण से, व्युषिताश्व से, विश्वसह से, हिरण्यनाभ से, पुष्य से, ध्रुवसंधि से, सुदर्शन से, अग्रिवर्ण से, पद्मवर्ण से, शीघ्र से, मरु से, प्रयुश्रुत से, उदावसु से, नंदिवर्धन से, सकेतु से, देवरात से, बृहदुक्थ से, महावीर्य से, सुधृति से, धृष्टकेतु से, हर्यव से, मरु से, प्रतीन्धक से, कुतिरथ से, देवमीढ़ से, विबुध से, महाधृति से, कीर्तिरात से, महारोमा से, स्वर्णरोमा से और ह्रस्वरोमा से सीरध्वज का जन्म हुआ। कुश वंश के राजा सीरध्वज को सीता नाम की एक पुत्री हुई। सूर्यवंश इसके आगे भी बढ़ा जिसमें कृति नामक राजा का पुत्र जनक हुआ जिसने योग मार्ग का रास्ता अपनाया था। कुश वंश से ही कुशवाह, मौर्य, सैनी, शाक्य संप्रदाय की स्थापना मानी जाती है।
     एक शोधानुसार लव और कुश की 50वीं पीढ़ी में शल्य हुए, जो महाभारत युद्ध में कौरवों की ओर से लड़े थे। यह इसकी गणना की जाए तो लव और कुश महाभारतकाल के 2500 वर्ष पूर्व से 3000 वर्ष पूर्व हुए थे। अर्थात आज से 6,500 से 7,000 वर्ष पूर्व। इसके अलावा शल्य के बाद बहत्क्षय, ऊरुक्षय, बत्सद्रोह, प्रतिव्योम, दिवाकर, सहदेव, ध्रुवाश्च, भानुरथ, प्रतीताश्व, सुप्रतीप, मरुदेव, सुनक्षत्र, किन्नराश्रव, अन्तरिक्ष, सुषेण, सुमित्र, बृहद्रज, धर्म, कृतज्जय, व्रात, रणज्जय, संजय, शाक्य, शुद्धोधन, सिद्धार्थ, राहुल, प्रसेनजित, क्षुद्रक, कुलक, सुरथ, सुमित्र हुए।
      माना जाता है कि जो लोग खुद को शाक्यवंशी कहते हैं वे भी श्रीराम के वंशज हैं। यह सिद्ध हुआ कि वर्तमान में जो सिसौदिया, कुशवाह (कछवाह), मौर्य, शाक्य, बैछला (बैसला) और गेहलोत (गुहिल) आदि जो राजपूत वंश हैं वे सभी भगवान प्रभु श्रीराम के वंशज है।

जयपूर राजघराना :- 

 जयपूर राजघराने की महारानी पद्मिनी और उनके परिवार के लोग की राम के पुत्र कुश के वंशज हैं। महारानी पद्मिनी ने एक अंग्रेजी चैनल को दिए में कहा था कि उनके पति भवानी सिंह कुश के 309वें वंशज थे। इस घराने के इतिहास की बात करें तो 21 अगस्त 1921 को जन्मे महाराज मानसिंह ने तीन शादियां की थी। मानसिंह की पहली पत्नी मरुधर कंवर, दूसरी पत्नी का नाम किशोर कंवर था और माननसिंह ने तीसरी शादी गायत्री देवी से की थी। महाराजा मानसिंह और उनकी पहली पत्नी से जन्में पुत्र का नाम भवानी सिंह था। भवानी सिंह का विवाह राजकुमारी पद्मिनी से हुआ, लेकिन दोनों का कोई बेटा नहीं है एक बेटी है जिसका नाम दीया है और जिसका विवाह नरेंद्र सिंह के साथ हुआ है। दीयाकुमारी और नरेंद्रसिंह का विवाह संबंध टूट चुका है। उनके पुत्र पद्मनाभसिंह को भवानीसिंह ने गोद लिया है। दीयाकुमारी भाजपा की टिकट पर सवाईमाधोपुर से विधायक रह चुकी हैं। वर्तमान में वे भाजपा के टिकट पर ही राजसमंद से लोकसभा सांसद हैं।
लेखक परिचय:-

(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, आगरा मंडल ,आगरा में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं। वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए समसामयिक विषयों,साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं।) 


 










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