Saturday, May 4, 2024

मारीच: (राम के पूर्वज 03) आचार्य डॉ. राधे श्याम द्विवेदी

[ प्रिय सुहृदय पाठक गण,
मैने आज से दो साल पहले "राम के पूर्वज" नामक एक नई श्रृंखला की शुरुआत 22 मार्च 2022 को स्वयंभुव मनु और शतरूपा की कहानी ( राम के पूर्वज -1 ) किया था।
इसके बाद 23 मार्च 2022 को प्रियव्रत - उत्तानपाद की कहानी( राम के पूर्वज - 2 ) से चलते - चलते 29 मार्च 2022 को सत्यवादी हरिश्चंद्र की कहानी (राम के पूर्वज 14), 29 मार्च 2022 को ही रोहताश्व की कहानी (राम के पूर्वज 15) और 31 मार्च 2022 को राजा हरिश चंद्र के कमजोर वंशज (राम के पूर्वज 16) नामक लगभग 16 कड़ियां जोड़ा था। फिर कुछ बाह्य विचारों के आवेग ने इस श्रृंखला को विराम लगा कर अन्य विषयों को आगे कर दिया। बाद में पुनः अवलोकन करने पर कुछ छूटी हुई अन्य कड़ियों को समेटने का विचारआया।
       स्वयंभुव मनु और शतरूपा से पूर्व सृष्टि की उत्पत्ति (राम के पूर्वज 01)से लेकर ब्रह्मा ( राम के पूर्वज 02), मरीचि(राम के पूर्वज 03 ), कश्यप ( राम के पूर्वज 04), विवस्वान स्वमभू मनु ( राम के पूर्वज 05) और विष्णु के सातवें अवतार भगवान राम के कुल और उनकी वंश परंपरा (राम के पूर्वज 06 ) की छूटी हुई कुछ महत्व पूर्ण कड़ियां जोड़ने की पहल होनी है। राजा हरिश चंद्र के कमजोर वंशज (राम के पूर्वज 16) के बाद 17वीं से अगली कड़ियां पुनःशुरु होगीं । ]

          मारीच के बारे में उपलब्ध जानकारी:- 

मरीचि एक ऋषि हैं। वे ब्रह्मा के मानस पुत्र तथा सप्तर्षियों में से एक हैं। ये ब्रह्मा जी के मन से उत्पन्न हुए थे। मरीचि का शाब्दिक अर्थ चंद्रमा या सूर्य से आने वाली प्रकाश की किरण है , और मरीचि को मरुतों ('चमकदार') का प्रमुख होना था। गीता के अनुसार मरीचि वायु है और कश्यप ऋषि के पिता हैं। इनका विवाह दक्ष प्रजापति की पुत्री सम्भूति के साथ हुआ था। इन्हें मरीचि या मारिषि के नाम से भी जाना जाता है। इनको ब्रह्मा के पुत्रों में से एक कहा जाता है। प्रकाश की किरण के संदर्भ में, ऋषि मरीचि को सप्तर्षियों में से एक माना जाता है, जिन्हें प्रथम मन्वंतर में सात महान ऋषियों के रूप में भी जाना जाता है। 

द्वितीय ब्रह्मा :

महर्षि मरीचि ब्रह्मा के अन्यतम एक प्रधान प्रजापति हैं। इन्हें द्वितीय ब्रह्मा ही कहा गया है। ऋषि मरीचि पहले मन्वंतर के पहले सप्तऋषियों की सूची के पहले ऋषि है। यह दक्ष के दामाद और शंकर के साढू भी थे। इनकी पत्नि दक्ष- कन्या संभूति थी। इनकी दो और पत्निनयां थी- कला और उर्णा। संभवत: उर्णा को ही धर्मव्रता भी कहा जाता है जो एक ब्राह्मण कन्या थी। दक्ष के यज्ञ में मरीचि ने भी शंकर जी का अपमान किया था। इस पर शंकर जी ने इन्हें भस्म कर डाला था।

चित्रशिखण्डी:- 

इन्होंने ही भृगु को दण्डनीति की शिक्षा दी है। ये सुमेरु के एक शिखर पर निवास करते हैं और महाभारत में इन्हें चित्रशिखण्डी कहा गया है। ब्रह्मा ने पुष्करक्षेत्र में जो यज्ञ किया था उसमें ये अच्छावाक् पद पर नियुक्त हुए थे। दस हजार श्लोकों से युक्त ब्रह्मपुराण का दान पहले-पहल ब्रह्मा ने इन्हीं को किया था। वेद और पुराणों में इनके चरित्र का चर्चा मिलती है।

 अन्य प्रमुख कार्य :- 

मारीचि का जीवन उनके वंशजों के विवरण से अधिक जाना जाता है, विशेष रूप से ऋषि कश्यप से। मारीचि का विवाह कला से हुआ और उन्होंने कश्यप को जन्म दिया था 
 कश्यप की माता 'कला' कर्दम ऋषि की पुत्री और ऋषि कपिल देव की बहन थी। कश्यप को कभी-कभी प्रजापति के रूप में भी स्वीकार किया जाता है, जिसे अपने पिता से सृजन का अधिकार विरासत में मिला था। माना जाता है कि वह हिंदू भगवान विष्णु की निरंतर ऊर्जा से बने हैं। माना जाता है कि उन्होंने ब्रह्मा की तपस्या पुष्कर में की थी। माना जाता है कि वे नारद मुनि के साथ, महाभारत के दौरान भीष्म को मिलने गए थे, जब वह तीर बिस्तर पर लेटे थे। मारीचि को तपस्या करने के लिए युवा महाराजा ध्रुव के सलाहकार के रूप में भी उद्धृत किया गया है। उनका नाम कई हिंदू धर्मग्रंथों जैसे ब्रह्मांड पुराण और वेदों में भी पाया जाता है।
                    आचार्य डा. राधे श्याम द्विवेदी 

लेखक परिचय:-
(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, आगरा मंडल ,आगरा में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं। वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए समसामयिक विषयों,साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं।) 


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