Friday, September 1, 2023

पूर्ण फल प्राप्ति हेतु संकल्प का विधान(सनातन संस्कार2) आचार्य डॉ. राधेश्याम द्विवेदी


शास्त्रों के अनुसार किसी भी प्रकार के पूजन से पहले संकल्प अवश्य लेना चाहिए। पूजा से पहले अगर संकल्प ना लिया जाए तो उस पूजन का पूर्ण फल प्राप्त नहीं हो पाता है। मान्यता यह भी है कि संकल्प के बिना की गई पूजा का सारा फल इन्द्र देव को प्राप्त हो जाता है। इसीलिए प्रतिदिन की पूजा में भी पहले संकल्प लेना चाहिए, फिर पूजन करना चाहिए।शास्त्रों के अनुसार संकल्प लेने का अर्थ है कि इष्टदेव और स्वयं को साक्षी मानकर संकल्प लें कि हम यह पूजन कार्य विभिन्न इच्छाओं की कामना पूर्ति के लिए कर रहे हैं और इस पूजन को पूर्ण अवश्य करेंगे। मनु महाराज कहते हैं — 
       संकल्पमूल: कामो वै यज्ञा: संकल्प सम्भवा:।
 संकल्प ही समस्त कामनाओं का मूल है। देवता भी यज्ञ करके अपनी कामनाओं को प्राप्त करते हैं। इन्द्र सौ यज्ञ करने का संकल्प लेते हैं। यज्ञ से वे स्वर्ग का राज्य प्राप्त करते हैं।
ऋषि विनियोग के अनुरूप संकल्प का निर्माण करता है। विनियोग में ही मन्त्र की क्षमता और फल का वर्णन रहता है। अतः आप्तों (ऋषियों) द्वारा मन्त्र के प्रति फल के अनुरूप संकल्प बनाया जाता है।
आगम ग्रंथों में संकल्प को सिद्धि का पूर्व स्वरूप कहा गया है। जैसा संकल्प होगा वैसी सिद्धि होगी। अतः संकल्प बहुत शुद्ध और लघु होना चाहिए। आज जो संकल्प बनाये जाते हैं वे मन्त्र की क्षमता से अधिक की कामना को लेकर चलने वाले होते हैं।अतः सिद्धि संकल्प का साथ छोड़ देती है।
संकल्प में दिग, देश, काल और अभीष्ट का उल्लेख होता है। “ॐ तत् सत् ” संकल्प को ब्रह्ममय बनाता है।अतः संकल्प में भूत, भविष्य और वर्तमान को साधने की क्षमता होती है क्योंकि भगवान कालात्मा होते हैं। सारे संकल्प उनके भीतर ही विद्यमान होते हैं — 
           कालात्मा भगवान् हरि: । भागवतम ।
यदि सही विधि-विधान से पूजन किया जाए तो उसका फल बहुत जल्द प्राप्त होता है। इसीलिए जब भी घर में किसी विशेष पूजन का आयोजन किया जाता है तब वे धर्म-कर्म किसी पंडित से कराए जाते हैं। इसी प्रकार अगर हम स्वयं ही प्रतिदिन की सामान्य पूजा में भी कुछ बातों का ध्यान रखेंगे तो देवी-देवताओं की कृपा बहुत जल्द प्राप्त हो सकती है। 
संकल्प लेते समय हाथ में जल, चावल और फूल लिए जाते हैं, क्योंकि इस पूरी सृष्टि के पंचमहाभूतों (अग्रि, पृथ्वी, आकाश, वायु और जल) में भगवान गणपति जल तत्व के अधिपति हैं। अत: श्रीगणेश को सामने रखकर संकल्प लिया जाता है। ताकि श्रीगणेश की कृपा से पूजन कर्म बिना किसी बाधा के पूर्ण हो जाते हैं।एक बार पूजन का संकल्प लेने के बाद उस पूजा को पूरा करना आवश्यक होता है। इस परंपरा से हमारी संकल्प शक्ति मजबूत होती है। व्यक्ति को विपरित परिस्थितियों का सामना करने का साहस प्राप्त होता है। पुष्य अक्षत को श्रद्धापूर्वक पृथ्वी पर रख पुनः पुष्प अक्षत लें निम्न मन्त्र से देवी की प्रार्थना करें -
   नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै शतत् नमः ।
नमः प्रकृत्यै भद्रार्य निहताः प्रणतास्म् ताम् ॥
  दाएं हाथ में पुष्प और अक्षत लेकर इस प्रकार संकल्प लिया जाता है -
  "ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः ॐ स्वस्ति श्रीमन्मुकन्द सच्चिदानन्दस्याज्ञया प्रवर्तमानस्याद्य ब्रह्मणो द्वितीये परार्धे एकपञ्चाशत्तमे वर्षे प्रथममासे प्रथमपक्षे प्रथमदिवसे द्वात्रिंशत्कल्पानां मध्ये अष्टमे श्रीश्वेतबाराहकल्पे स्वायम्भुवादिमन्वतराणां मध्ये सप्तमे वैवस्वतमन्वन्तरे कृत-त्रोता-द्वापर- कलिसंज्ञानां चतुर्युगानां मध्ये वर्तमाने अष्टाविंशतितमे कलियुगे तत्प्रथमचरणे तथा पञ्चाशत्कोटियोजनविस्तीर्ण-भूमण्डलान्तर्गत सप्तद्वीप मध्यवर्तिनि जम्बूद्वीपे तत्रापि श्रीगङ्गादिसरिद्भिः पाविते परम-पवित्रे भारतवर्षे आर्यावर्तान्तर्गत काशी-कुरुक्षेत्र-पुष्कर-प्रयागादि-नाना-तीर्थयुक्त कर्मभूमौ मध्यरेखाया मध्ये अमुक दिग्भागे अमुकक्षेत्रे ब्रह्मावर्तादमुकदिग्भागा- वस्थिते ऽमुक जनपदे तज्जनपदान्तर्गते अमुक ग्रामे श्रीगङ्गायमुनयोरमुकदिग्भागे श्रीनर्मदाया अमुकप्रदेशे देवब्राह्माणानां सन्निधौ श्रीमन्नृपतिवीरविक्रमादित्य-समयतोऽमुक संख्यापरिमिते प्रवर्तमानवत्सरे प्रभवादिषष्ठिसम्वत्सराणां मध्ये अमुक(नील)नाम सम्वत्सरे, अमुक आयने, अमुक गोले, अमुक ऋतौ, अमुक मासे, अमुक पक्षे, अमुक तिथौ, अमुक वासरे, यथांशकलग्न मुहूर्त नक्षत्रा योगकरणान्वित. अमुक राशि स्थिते श्रीसूर्ये, अमुक राशि स्थिते चन्द्रे, अमुक राशिस्थे देवगुरौ, शेषेषु ग्रहेषु यथा यथा राशिस्थानस्थितेषु, सत्सु एवं ग्रहगुण विशिष्टेऽस्मिन्शुभक्षणे अमुक गोत्रोऽमुक शर्म्मा वर्मा-गुप्त-दास सपत्नीकोऽहं श्रीअमुक देवता प्रीत्यर्थम् अमुक कामनया ब्राह्मण द्वारा कृतस्यामुकमन्त्र पुरश्चरणस्य सङ्गतासिद्धîर्थ- ममुकसंख्यया परिमित जपदशांश- होम-तद्दशांशतर्पण-तद्दशांश-ब्राह्मण-भोजन रूपं कर्म करिष्ये।"
अक्षत सहित जल भूमि पर छोड़ें।
       कुछ परिवर्तन के साथ संकल्प इस प्रकार भी किया जाता है -
  "ममात्मनः श्रुतिस्मृतिपुराणोक्तफलप्राप्त्यर्थं सकुटुम्बस्य सपरिवारस्य द्विपदचतुष्पदसहितस्य सर्वारिष्टनिरसनार्थं सर्वदा शुभफलप्राप्तिमनोभि- लषितसिद्धिपूर्वकम् अमुकदेवताप्रीत्यर्थं होमकर्माहं करिष्ये। "
अक्षत सहित जल भूमि पर छोड़ें।

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