Friday, September 8, 2023

समय की तन्हाई -- डॉ. राधे श्याम द्विवेदी


समय बहुत तेजी से करवट ले रहा है आज ।
मां बाप के पास पहले बच्चे रहा करते थे। 
दूसरे शहर में जाने का चांस कम ही होता ।
अब दूसरे शहर क्या, दूसरे देश में चले जाते ।।

मां बाप पुरखों की धरोहर घर को संजोते संजोते ।
इस बेरुखी दुनिया से कभी भी रुखसत हो जाते । 
घर बार परिवार जो कभी हरा भरा रहा करता था।
आखिर में बीरान सा होकर मुरदाने से बन जाते।।

बच्चों को मां-बाप रात रात जग पाला पोसा।
बड़ा होने पर वे दूर देश में कैसे चले जाते।
जब उनके ऊपर बेरुखी बुढ़ापा आ जाता ।
मदद की दरकार होती पर उसे नहीं पाते।।

उन्हें लगता है कि सदा बच्चे उनके पास रहेंगे।
जीवन की शाम को वह उनके साथ बिताएंगे। 
सब उलट पुलट हो तंगी जीवन बन जाता है ।
उनके संग खिल खिलाकर वे उन्हें अपनायेगे।

मुनव्वर राना का ये शेर याद आ ही गया -
ऐसा लगता है कि जैसे ख़त्म मेला हो गया।
उड़ गईं आँगन से चिड़ियाँ घर अकेला हो गया।
सब जगह बिरानगी बिरानगी जो अब आ गया।।

रेहाना रूही का ये शे'र बार याद आ जाए -
दुनिया के सब रिश्ते नाते अब बदल ही गए।
अब तो बेटे भी चले जाते हैं होकर रुख़्सत ।
सिर्फ़ बेटी को ही मेहमान न समझा जाए ।।

अब तो याद आती है जफर अब्बास की तन्हाई -
तन्हाई से तन्हा लड़ना कुछ ऐसा आसान नहीं।।
इक इक कर हो गए रुख़्सत अब कोई अरमा नहीं।
दिल में छाया सन्नाटा है अब कोई मेहमान नहीं।

तुम ने भी सुन रक्खा होगा हम भी सुनते आए हैं।
जिस के दिल में दर्द न हो वो पत्थर है इंसान नहीं।
दर्द कड़ा हो तो भी अक्सर पत्थर बन जाते हैं लोग।
मरने की उम्मीद नहीं है जीने का सामान नहीं।।

कुछ मत बोलो चुप हो जाओ बातों में क्या रक्खा है।
क्यूँ करते हो ऐसी बातें जिन बातों में जान नहीं।
औरों जैसी बातें मुझ को भी करनी पड़ती हैं रोज़।
ये तो मेरी मजबूरी है ये मेरी कोई पहचान नहीं।।

मेरी बातें सीधी सच्ची उन में कोई दांव पेच नहीं।
'मीर' की ग़ज़लें जानो 'ग़ालिब' का दीवान नहीं।
दिल को बहलाने की ख़ातिर हम भी क्या क्या करते हैं।
ख़ूब समझता है वो भी सब ऐसा भी कोई नादान नहीं।।

रात गए अक्सर यूँ ही क्यूँ फूट फूट कर रोते हो।
ख़ाक तले सोने वालों से मिलने का इम्कान नहीं।
वो था मेरे दुख का साथी और तुम्हें क्या बतलाएँ।
उस का मेरा जो रिश्ता था उस रिश्ते का नाम नहीं।।

आज की दुनिया ये पूरी की पूरी ही बदल गई।
कुछ मिल जाए पूरे का कोई अब है आस नहीं।
वो होता तो फिर भी शायद दर्द पे कुछ क़ाबू रहता।
तन्हाई से तन्हा लड़ना अब कुछ ऐसा आसान नहीं।।. राधे श्याम द्विवेदी 'नवीन
  
                         डॉ. राधे श्याम द्विवेदी

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