Friday, July 14, 2023

भारद्वाज गोत्र की कुलदेवी – बिंदुक्षिणी ( द्विवेदी ब्राह्मण इतिहास श्रृंखला संख्या 10 ) आचार्य डॉ. राधे श्याम द्विवेदी


 हर कुल और गोत्र के भी संरक्षक देवता या कुलदेवी होती हें । इनका ज्ञान कुल के वयोवृद्ध अग्रजों (माता-पिता आदि ) के द्वारा अगली पीड़ी को दिया जाता है । एक कुलीन ब्राह्मण को अपने तीनों प्रकार के देवताओं का बोध तो अवश्य ही होना चाहिए -
(1) इष्ट देवता अथवा इष्ट देवी ।
(2) कुल देवता अथवा कुल देवी ।
(2) ग्राम देवता अथवा ग्राम देवी ।
ब्रह्मा जी के बनाए हुए सप्त ऋषियों में पहले 7 फिर
24 प्रमुख और बाद में 56 गोत्रों में यज्ञ पूजा की जाती रही।ये ऋषि अपने अपने वंशजों की मंगल कामना करते थे। दैत्य आकर इस कार्य में विघ्न उपस्थित करने लगे थे। ब्राह्मणों के प्रार्थना पर इस विघ्नों को दूर करने के लिए त्रिदेवों ने हर गोत्र वा वंश में एक एक योगनियाँ यज्ञ की रक्षा के लिए उत्पन्न किया।आगे चल कर यही योगनियां कुल देवी के रूप में पूजी जाने लगीं।
 कुलदेवी या देवता कुल या वंश के रक्षक देवी-देवता होते हैं। ये घर-परिवार या वंश-परंपरा के प्रथम पूज्य तथा मूल अधिकारी देव होते हैं। इनकी गणना हमारे घर के बुजुर्ग सदस्यों जैसी होती है। अत: प्रत्येक कार्य में इन्हें याद करना जरूरी होता है। इनका प्रभाव इतना महत्वपूर्ण होता है कि यदि ये रुष्ट हो जाएं तो हनुमानजी के अलावा अन्य कोई देवी या देवता इनके दुष्प्रभाव या हानि को कम नहीं कर सकता या रोक नहीं लगा सकता। इसे यूं समझें कि यदि घर का मुखिया पिताजी या माताजी आपसे नाराज हों, तो पड़ोस के या बाहर का कोई भी आपके भले के लिए आपके घर में प्रवेश नहीं कर सकता, क्योंकि वे 'बाहरी' होते हैं। 
           ऐसा भी देखने में आया है कि कुल देवी-देवता की पूजा छोड़ने के बाद कुछ वर्षों तक तो कोई खास परिवर्तन नहीं होता, लेकिन जब देवताओं का सुरक्षा चक्र हटता है तो परिवार में घटनाओं और दुर्घटनाओं का दौर शुरू हो जाता है, उन्नति रुकने लगती है, गृहकलह, उपद्रव व अशांति आदि शुरू हो जाती हैं। आगे वंश नहीं चल पाता है। पिताद्रोही होकर व्यक्ति अपने वंश को नष्ट कर लेता है!

                      मां बिन्दुक्षणी
भारद्वाज गोत्र की कुलदेवी :
स्कन्द पुराण के अनुसार बिन्दुक्षणी/श्रीमाता के नाम से जानी जाती है।वह गुजरात के पाटण शहर में है। यह मां दुर्गा /मां शारदा का स्वरूप होती हैं। कुछ अन्य संबद्ध वंशों में महादेवी ,कालिका देवी ,योगेश्वरी और दुर्गेश्वरी देवी को भी कुल देवी के रूप में मान्यता मिली है। कुछ लोग महामाया /वाराही देवी को कुल देवी के रूप में पूजते हैं। श्री माताजी राज राजेश्वरी त्रिपुर सुन्दरी के रूप में भी जानी जाती हैं।
   

माँ बिन्दुक्षणी सभी की कुलदेवी हैं इससे संबंधित लोग भारद्वाज गोत्र (पंक्ति)श्रीमाली ब्राह्मणों की आयु) मुख्य रूप से राजस्थान और गुजरात में पाए जाते हैं। प्रमुख माँ बिंदुक्षिणी का मंदिर सावीधार गांव में स्थित है, जो 12 किलोमीटर दूर है जालोर जिले (राजस्थान) में भीनमाल से आरएस दूर और अन्य मंदिर मुख्य रूप से हैं जोधपुर (राजस्थान), पाटन (गुजरात), सिरोही (राजस्थान) और भारत के अन्य स्थानमैं एक। माँ बिन्दुक्षिनी को माँ बन्धुक्षनी, माँ बन्धुक्षिनी, माँ बा भी कहा जाता है विभिन्न क्षेत्रों में भाषा और बोली के अंतर के कारण एनधुरक्षिणी जहां उनके बेटे-बेटियां रहते हैं.माँ बिन्दुक्षिणी हैं देवी दुर्गा का एक अवतार । माँ बिन्दुक्षइनि का वाहन सिंह है जो शुभता, विजय, असीम ऊर्जा आदि का प्रतीक है ताकत। उनका पसंदीदा रंग लाल है और उन्हें लाल चुनरी पहनना पसंद है साड़ी के साथ लाल चूड़ियां और लाल बिंदी. उसके हाथ हमेशा रंगे रहते हैं। कुमकुम.माँ बिन्दुक्षिणी के स्मरण का बीज मंत्र है--
" ॐ ह्रीं श्रीं बिंदउष्णाय नमो नमः "
 जिसका जाप नियमित रूप से प्रातः काल (ब्राह्म) में करना चाहिए।मा मुहूर्त) और शाम (सूर्य अस्त के बाद) प्रत्येक में कम से कम 51 बार। 
महादेवी :-
महादेवी को कई महलों से जाना जाता है। उसे आम तौर पर मूलप्रकृति ('वह जो तत्व है') और महामाया ('वह जो महान माया है') के रूप में जाना जाता है।  देवी भागवत पुराण और ललिता सहस्रनाम में महादेवी के अनेक वर्णनों का वर्णन है। इनमें उनके दिव्य और विध्वंसक लक्षण शामिल हैं। देवी भागवत पुराण में उन्हें 'सभी की माता', 'सभी प्राणियों में जीवन शक्ति' और 'वह जो परम ज्ञान हैं' के रूप में वर्णित किया गया है। ललिता सहस्रनाम में भी उनका वर्णन  विश्वधिका ('वह जो ब्रह्मांड से परे है'), सर्वगा ('वह जो सर्व सहभागी है'),('वह जो राक्षसों को मारती है'),  भैरवी  ('भयानक'), और सहरिणी ('वह जो नष्ट कर देती है')।महादेवी के विध्वंसकारी स्मारक का वर्णन आर्यस्तव नामक एक भजन में किया गया है, जिसमें उन्हें कालरात्रि  ('मृत्यु की रात') और निष्ठा ('वह जो मृत्यु है') कहा गया है। 
    मां वाराही:-
माँ वाराही हिन्दू धर्म की सप्तमातृका में से एक है।यह देवी लक्ष्मी का स्वरूप है। जो भगवान विष्णु के वराहावतार की शक्ति रूपा है। इनका शीश जंगली शूकर का है। श्री दुर्गा शप्तशति चण्डी के अनुसार शुम्भ निशुम्भ दो महादैत्यो के साथ जव महाशक्ति भगवती माँ दुर्गा का प्रचण्ड युद्ध हो राहा था तब माँ भगवती परमेश्वरी कि सहायता करने के लिए सभी प्रमुख देवता (भगवान शिव, भगवान विष्णु , भगवान ब्रह्मा , देवराज इंद्र , कुमार कार्तिकेय) अपने कर्मो के आधार शक्ति स्वरूपा देवीऔ को अपने शरीर से प्रकट किया था । उसी समय भगवान विष्णु अपने अंशावतार वाराह के शक्ति माँ वाराही को प्रकट किया था। भगवान विष्णु की शक्ति देवी लक्ष्मी है उनके वराह अवतार की शक्ति देवी लक्ष्मी की अवतार वाराही है।

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