घनश्याम पाण्डेय@स्वामी नारायण महाराज के दूर के मामा अपने भांजे के आध्यात्मिक उत्सर्ग से प्रसन्न नहीं थे। वे उन्हें नीचा दिखाने और नुकसान पहुंचाने का किसी अवसर को हाथ से जाने नहीं देते थे। उन्होंने दो बार अपने भांजे को समाप्त करने का असफल प्रयास किया।
छठी के रात को प्रथम प्रयास
बालप्रभु के जन्म के छ्ठी के दिन काली दत्त राक्षस ने बाल प्रभु को मां से छीन कर गायब कर दिया था, तब हनुमान जी ने प्रभु की रक्षा की थी। आषाढ़ संवत 1837 चैत सुदी चौदस दिनांक 8 अप्रैल 1781 को छठी के अवसर पर धर्मभक्ति भवन छपिया में बाल प्रभु घनश्याम को गायब करने की घटना घटी हुई थी।
माता भक्ति बालक के जन्म के छठे दिन अपने कर्तव्यों में इतनी व्यस्त थीं कि वे अपने बच्चे को खुद के गोद में नहीं ले सकीं थीं । यद्यपि वह उनके लिए उनकी आत्मा से भी अधिक प्रिय था। उन्होंने अन्य छोटे बच्चों को अपने बच्चे की देखभाल करने के लिए दे दिया था तथा अतिथि महिलाओं की यथायोग्य सेवा में लग गई थी ।
इस शुभ घड़ी में भीड़-भाड़ को देख कर कालीदत्त राक्षस ने अपने मंत्र से अभिमंत्रित पुतरियों को उत्पन्न किया था, जो बालक को उठा कर आकाश मार्ग से भागने लगी थी। इसे देख मां भक्ति देवी ने जब क्रंदन किया तो परिवार के सब लोग जाग गए थे। बाल प्रभु ने अपना भार इतना बढ़ा दिया कि पुतरियों ने बालक को ज़्यादा देर तक थाम ना सकीं उन्हें जमीन पर रखकर वहां से भागने लगीं थीं।
उसी समय प्रभु की इच्छा से हनुमान जी ने पुतरियों को ताड़ित करना शुरू कर दिया था। वे प्रभु की शक्ति समझ हनुमान जी से अपने प्राण की भिक्षा मांगने लगी थीं । कालीदत्त को उन पुतरियो ने बहुत फटकारा। जो अपनी जान बचाकर जंगल में छिप गया था। तभी हनुमान जी ने बाल प्रभु को जमीन से उठाकर मां की गोद में सुरक्षित लौटा दिया था। नरेचा में हनुमान जी का मन्दिर बना हुआ है।
मुण्डन वाले दिन द्वितीय प्रयास
ज्येष्ठ मास में कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि दिनांक 19 जून 1783 शुक्रवार धनिष्ठा नक्षत्र में बालप्रभु तीन माह 12 दिन के होने पर छपिया के नारायण सरोवर के तट पर चौलकरन (मुण्डन संस्कार) हुआ था। पिताजी ने एक अद्वितीय भोज का आयोजन किया था।
अभी भोजन का कार्यक्रम चल रहा था। धर्मदेव अपने लोगों के साथ बैठे हुए थे। भक्ति माता सब लोगों के भोजन व्यवस्था में लगी हुई थी।
चंचल बच्चे दोपहर के भोजन के बाद जल्दी में भोजन करके घनश्याम महराज को लेकर सरोवर के किनारे खेलने चले गए थे। खेलते हुए वे बच्चे, अपने उस प्रिय बच्चे को साथ लेकर शाम के समय पास के नगर के बगीचे में गए। वहां आमों का बगीचा देखकर, पेड़ से गिरे पके आमों को खाकर वे बहुत प्रसन्न हुए।
वे एक वृक्ष के नीचे घनश्याम को रखा और जामुन की तलाश में और आगे बढ़ गए जो कलिदत्त का इलाका था।प्रभु का दूर का मामा कालीदत्त इस अवसर की ताक में बैठा था। वह प्रभु को ईर्ष्या और द्वेष बस मारना चाहता था। वह प्रभु को वृक्ष के नीचे जब पकड़ने गया तब प्रभु कालीदत्त को एक भयानक आग की तरह दिखाई दिये। वहां जाते ही वह जलने लगा। इसलिए वह अपने प्रयास में पीछे हट गया।
वह अपने जादू और काली तंत्र कला का उपयोग करने का फैसला किया। वह अपने तंत्र के प्रयोग से आंधी और झंझावात फैलाया। वृक्ष और टहनियां टूट कर गिरने लगी।बिजली चमक रही थी। मूसलाधार भारी बारिश हो रही थी। कई पेड़ गिर गए। कई जीव-जंतु और पक्षी मर गए। चारों ओर घना अंधेरा छा गया था। कोई भी किसी का चेहरा नहीं देख सकता था।
कालीदत्त इस अवसर का लाभ उठाया। उसने ऐसी माया रची कि वह विशालकाय शरीर के साथ उस आम के वृक्ष पर गिर पड़ा जिसके नीचे घनश्याम बैठा था। वह आम का वृक्ष घनश्याम पर गिर पड़ा। आम का पेड़ कालीदत्त जैसा दुष्ट नहीं था। वृक्ष घनश्याम पर गिर पड़ा और उसे छतरी की तरह सुरक्षित ढक लिया।अब घनश्याम को तूफान और वर्षा से पूरी सुरक्षा मिल गई थी। कालीदत्त स्तब्ध रह गया। वह उसे पकड़ने के लिए फिर दौड़ा, जब उसने देखा कि घनश्याम जीवित है।
कालीदत्त प्रभु के समीप आ गया। मंद मुस्कान के साथ प्रभु ने तीव्र दृष्टिपात किया। जैसे ही उसकी नजर घनश्याम से मिली, वह भूत-प्रेत से ग्रस्त व्यक्ति की तरह इधर-उधर भागने लगा।असुर अपना मान भान खोकर वृक्ष से टकरा कर गिर गया। धरा कांपने लगी। उसके दोनों नेत्रों से खून की धारा निकलने लगी। वह मुख से भी खून की उल्टी करने लगा था । चक्रवात में गिर रहे एक वृक्ष के नीचे दबकर वह मर गया।
तूफान और वर्षा बंद हो गई। इस बीच माता-पिता अपने बच्चों की तलाश में बाहर आ गए। सभी माता-पिता लालटेन और मशालें लेकर बाहर आ गए। उन्होंने अपने बच्चों के नाम पुकारे।
धर्मदेव और भक्तिमाता भी घनश्याम की तलाश में बाहर आ गए थे। घनश्याम की बुआ सुन्दरीबाई, जो घनश्याम से बहुत प्रेम करती थीं, भी घनश्याम की खोज में निकली थीं। घनश्याम के सबसे बड़े भाई रामप्रतापभाई भी अपने छोटे भाई घनश्याम की खोज में निकले थे।
गाँव के अन्य बच्चे मिल गये, परन्तु घनश्याम नहीं दिखा। बच्चों ने अपने माता-पिता को बताया कि उन्होंने घनश्याम को आम के पेड़ के नीचे देखा था, और उसके बाद क्या हुआ, उन्हें नहीं मालूम।
यह सुनकर सुन्दरीबाई बहुत डर गयीं। वे दौड़कर आम के पेड़ के पास पहुँचीं। उन्होंने देखा कि बालक घनश्याम इस प्रकार खेल रहा था, मानो कुछ हुआ ही न हो। "हरि मिल गया। हरि मिल गया।" बुआ सुन्दरीबाई चिल्लायीं।
भक्तिमाता और अन्य लोग वहाँ दौड़े। बुआ सुन्दरीबाई ने बालक घनश्याम को उठाकर भक्तिमाता की गोद में दे दिया। माता की खुशी का ठिकाना न रहा।उन्होंने एक बहुमूल्य हार उतारकर सुन्दरीबाई को दे दिया। घनश्याम को पा लेने की खुशी से बढ़कर कोई चीज अनमोल नहीं है। कालीदत्त को मृतक तथा घनश्याम को मंद मुसकान बिखेरते सकुशल पा सभी गांव वासियों के खुशी का ठिकाना ना रहा। वे प्रभु को उठाकर अपने घर ले आए।
जिस स्थान पर काली दत्त गिरा वहां उसका स्मारक बना हुआ है।इस स्थान पर पहुंचने के लिए मेड़ों के सहारे लगभग 50 - 60 मीटर पैदल चलना पड़ता है। ना तो
ग्राम सभा और ना मन्दिर प्रशासन इस स्थल पर कोई सुरक्षित संपर्क मार्ग बना सके है। वहां पहुंचने पर गांव l बच्चे अवश्य घेर कर श्रद्धालुओं से दस बीस रूपए की मांग करने लगते हैं और बहुत मुश्किल से ये श्रद्धालुओं को छोड़ते हैं।
आचार्य डॉ राधेश्याम द्विवेदी
लेखक परिचय
(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं. वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए सम-सामयिक विषयों, साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं। मोबाइल नंबर +91 8630778321, वर्डसैप्प नम्बर+ 91 9412300183)
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