घनश्याम महाराज ने 11 वर्ष, 3 महीने और 1 दिन की छोटी सी उम्र में आषाढ़ सुदी 10 सम्बत 1849 विक्रमी को घर छोड़ दिया था। घनश्याम महाराज सुबह सामान्य से पहले उठ गए ताकि उन्हें जाते समय कोई न देख सके। अपनी पूजा पूरी करने के बाद, उन्होंने अपने साथ ले जाने के लिए केवल जरुरी जरूरी आवश्यक सामान एकत्र कर एक पोटरी में बांध लिया था।
गृह त्याग का निर्णय लेने के बाद घर से तैयार होकर घनश्याम महाराज सरयू नदी की ओर चल पड़े थे । नदी के किनारे पहुँचकर घनश्याम महाराज ने सोचा, "अगर मैं नाव का इंतज़ार करूँ, तो कोई मुझे देख सकता है और मेरे जाने की बात जान सकता है।" इसलिए घनश्याम महाराज ने नदी पार करने का विचार किया। इस समय कालीदत्त जिसे उन्होंने मार कर बैकुंठ पहुंचाया था उसीके एक साथी कौशीदत्त ने घनश्याम महाराज को नदी के किनारे खड़े देखा था। कालीदत्त की मौत का बदला लेने के लिए उसने घनश्याम महाराज को नदी में धकेल दिया था। घनश्याम महाराज को मारने के विचार से कौशीदत्त बहुत खुश हुआ था। उसे पता नहीं था कि घनश्याम महाराज ने मुँह नहीं बनाया, बल्कि कौशीदत्त को मूर्ख बनाने के लिए पानी के नीचे जानबूझ कर ही चले गए थे ।
घनश्याम महाराज अब नीलकंठवर्णी के नाम से जाने जाते हैं और यहीं से उनका वन विचरण शुरू होता है। वनविचरण उस समय पूरे भारत में नीलकंठवर्णी की तीर्थयात्रा के प्रकरण से ही जुड़ा है। नंगे पांव चलते हुए वे सभी तरह के लोगों से हर जगह मिलते थे। जब वे नहीं चलते थे, तो वे तपस्या करते थे, धर्म परिवर्तन करते थे या दूसरों को उपदेश देते थे। इस प्रकार वे एक महत्व पूर्ण मिशन से जुड़े हुए थे।
लेखक परिचय
(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं. वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए सम-सामयिक विषयों, साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं। मोबाइल नंबर +91 8630778321, वर्डसैप्प नम्बर+ 91 9412300183)
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