Thursday, March 1, 2018

होली के पावन अवसर पर सप्रेम प्रस्तुति : जोगीरा डा. राधेश्याम द्विवेदी


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सम्भ्रान्त और प्रभुत्व वर्ग को जोगीरा के बहाने गरियाने और उनपर अपना गुस्सा निकालने का यह अपना निराला ही तरीका होता है।यह एक तरह का विरेचन भी है।हास्य व्यंग की इस विधा का समुचित विकास नहीं हुवा है।इसके उन्नयन की असीम सम्भावनाएं हैं।आम जन को इसे आगे बढ़ाना चाहिए लोक परंपराएं एक ऐसा पुरातत्व है जिसकी गहन खुदाई होनी अभी शेष है वास्तव में आधुनिकता के चक्कर में इनके विनाश का उपक्रम रचा गया किंतु भारतीय ज्ञान इतना गहरा है कि चंद तथाकथित बुद्धिजीवी इसे नष्ट नहीं कर पाये नये संचार माध्यमों से यह खोज निश्चय ही रंग लायेंगी ।भारतीय संदर्भ में सच मानिये हर शब्द अपना इतिहास लेकर चलता है , हर परंपरा एक विज्ञान का रहस्य है और हर पर्व एक सार्थक मकसद लेकर चलता है। लोक मानस बड़े चुटेले ढंग से अभिव्यक्त करता है।
किसकी बेटी तारा मंदोदरी किसकी बेटी सीता ?
किसके बेटा राम-लछुमन चित्रकूट पर जीता ? फिर देख चली जा।

कौन जिला का रहने वाला, क्या बस्ती का नाम ?
कौन जात का छोकड़ा, बता तो अपना नाम ? फिर देख चली जा।
धरती माँ का जनम बता दो, कौन देव का टीका
कौन गुरु का सेवा किया, कहाँ जोगीरा सीखा ? फिर देख चली जा। 
क्या चीज का रेल बना है, क्या चीज का पहिया ?
क्या चीज का टिकट बना है, क्या चीज का रुपैया ? फिर देख चली जा।
कौन देस से राजा आया कौन देस से रानी ?
कौन देस से जोगी आया मारा उलटा बानी ? फिर देख चली जा।
काहे खातिर राजा रूसा काहे खातिर रानी ?
काहे खातिर जोगी रूसा काहे मारा बानी ? फिर देख चली जा।
केकरे खपड़ा मोथा जामे, केकरे जमे मकोय
दूध दही सूसू घी टट्टी, के खाये सुख होय
रसीले पंचगव्य की जय,बुद्धि के विंध्याचल की जयजोगीरा सा रा रा रा

रामदेव के मोथा जामेसाध्वी घरे मकोय
दूध दही सूसू घी टट्टी संघिन के सुख होय
रसीले पंचगव्य की जय, बुद्धि के विंध्याचल की जय जोगीरा सा रा रा रा

फागुन के महीना आइल ऊड़े रंग गुलाल।
एक ही रंग में सभै रंगाइल लोगवा भइल बेहाल॥
जोगीरा सर रररररर

गोरिया घर से बाहर इली, भऽरे इली पानी।
बीच कुँआ पर लात फिसलिगे, गिरि इली चितानी॥
जोगीरा सर रररररर

चली जा दौड़ी-दौड़ी, खालऽ गुलाबी रेवड़ी।
नदी के ठण्डा पानी, तनी तू पी लऽ जानी॥
जोगीरा सर रररररर

चिउरा करे चरर चरर, दही लबा लब।
दूनो बीचै गूर मिलाके मारऽ गबा गब॥
जोगीरा सर रररररर

सावन मास लुगइया चमके, कातिक मास में कूकुर।
फागुन मास मनइया चमके, करे हुकुर हुकुर॥
जोगीरा सर रररररर

एक चीकन पुरइन पतई, दूसर चीकन घीव।
तीसर चीकन गोरी के जोबना, देखि के ललचे जीव॥
जोगीरा सर रररररर

भउजी के सामान बनल बा अँखिया इली काजर।
ओठवा लाले-लाल रंगवली बूना इली चाकर॥
जोगीरा सर रररररर

ढोलक के बम बजाओ, नहीं तो बाहर जाओ।
नहीं तो मारब तेरा, तेरा में हक है मेरा॥
जोगीरा सर रररररर

बनवा बीच कोइलिया बोले, पपिहा नदी के तीर।
अंगना में उजइया डोले, इसे झलके नीर॥
जोगीरा सर रररररर

गील-गील गिल-गिल कटार, तू खोलऽ चोटी के बार।
लौण्डा हऽ छिनार, जानी के हम भतार॥
जोगीरा सर रररररर

आज मंगल कल मंगल मंगले मंगल।
जानी को ले आये हैं जंगले जंगल॥
जोगीरा सर रररररर

कै हाथ के धोती पहना कै हाथ लपेटा।
कै घाट का पानी पीता, कै बाप का बेटा?
जोगीरा सर रररररर



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