Monday, March 26, 2018

डा. ‘सरस’ पखवाड़ा (30 मार्च - 10 अप्रैल ) छठीं पुण्य तिथि (30 मार्च ) के अवसर पर शिक्षा जगत के अग्रणी साधक, शिक्षक, प्रधानाचार्य व कवि डा. मुनि लाल उपाध्याय ‘सरस’ डा. राधेश्याम द्विवेदी ‘नवीन’



डा.मुनिलाल उपाध्यायसरसजी का जन्म 10.04.1942 . में बस्ती जिले के बस्ती सदर तहसील के बहादुर व्लाक में नगर क्षेत्र में खड़ौवा खुर्द नामक गांव के पास स्थित सीतारामपुर में श्री केदार नाथ उपाध्याय के परिवार में हुआ था। डा. सरस 1 जुलाई 1963 से किसान इन्टर कालेज मरहा,कटया, बस्ती में सहायक अध्यापक के रूप में नियुक्ति पाये थे, जहां जून 1965 तक अध्यापन किये थे। इसी बीच मार्च 1965 में नगर बाजार में जनता माध्यमिक विद्यालय की स्थापना श्री मोहरनाथ पाण्डेय के प्रबंधकत्व में हुआ था डा. सरस जुलाई 1965 से इस विद्यालय के संस्थापक प्रधानाध्यापक हुए। 1968 में विद्यालय को जूनियर हाई स्कूल, 1970-71 में हाईस्कूल तथा 1973 में इन्टर कालेज की मान्यता मिलती गयी। 1965 से 2006 तक जनता उच्चतर माध्यमिक विद्यालय नगर बाजार बस्ती आजीवन प्रधानाचार्य पद के उत्तरदायित्व का निर्वहन भी किये। अध्यापन के साथ ही साथ सरस जी ने हिन्दी, संस्कृत, मध्यकालीन इतिहास, प्राचीन इतिहास संस्कृति एवं पुरातत्व विषय से एम. . करने के बाद हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग का साहित्यरत्न, तथा सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी का साहित्याचार्य उपाधि भी प्राप्त किये थे। वे अच्छे विद्वान कवि तथा शिक्षा जगत के एक महान हस्ती थे। उन्हें राष्ट्रपति द्वारा दिनांक 5.9.2002 को वर्ष 2001 का शिक्षक सम्मान भी मिल चुका है। वह जून 2006 तक अपने पद पर रहकर लगभग 42 साल तक शिक्षा जगत जे जुड़े रहे। अगौना कलवारी में आचार्य रामचन्द्र शुक्ल स्मारक व्याख्यानमाला, कविसम्मेलन तथा कन्याओं के विद्यालय को खुलवाने में उनकी महती भूमिका रही है। सेवामुक्त होने के बाद वह अयोध्या के नयेघाट स्थित परिक्रमा मार्ग पर केदार आश्रम बनवाकर रहने लगे। उनका जीवन एक बानप्रस्थी जैसा हो गया था और वह निरन्तर भगवत् नाम चर्चा से जुड़े रहे। 70 वर्षीया डा. सरस की मृत्यु 30 मार्च 2012 को लखनऊ के बलरामपुर जिला चिकित्सालय में हुई थी। उनकी मृत्यु से शिक्षा तथा साहित्य जगत में एक बहुत ही अपूर्णनीय क्षति हुई थी।

स्मृतियों के रूप में खड़ा: जनता इन्टर कालेज :- नगर बाजार बस्ती का जनता इन्टर कालेज का विशाल परिसर उनकी अतीत की स्मृतियों के रूप में आज भी खड़ा है। यहां उनका बनवाया हुआ विद्यालय, उनके लगवाये हुये छायादार वृक्ष, उसकी हरियाली पुष्प - पत्तियां सब कुछ डा. सरसजी की मधुर स्मृतियों को अनायास तरो ताजा करती हुए हुई अंतःउर में एक वेदना की अनुभूति जगाती हैं। बस्ती जिले नगर के क्षेत्र में उनके पढ़ाये सौकड़ो छात्र अपनी प्रतिभा का जलवा विखेरते उनकी प्रेरणा ज्ञान की प्रतिभा से उपकृत्य हैं। बस्ती जनपद ही नहीं पूर्वांचल तथा अखिल भारतीय स्तर पर वह अपनी एक अलग पहचान बना लिये थे।
अन्य भवन उनका एहसास कराते हैं :- उन्होने अपने पैतृक गांव सीतारामपुर , नगर बाजार, गोसाईजोत, अगौना, फुटहिया चैराहा , झिरझिरवा, महरीखांवा तथा अयोध्या धाम में जो विशाल भवन खड़ा करवाये हैं, वह उनके आज भी इस भूतल पर प्रत्यक्ष होने का एहसास कराते हैं। लगता हैं कि एक विलक्षण व्यक्तित्व उनसे सम्बंधित सभी जगहों पर आज भी यदा कदा वहां घूमता और विचरण करता दिखलाई पड़ रहा है। उनका स्थापित किया हुआ ‘‘सरस साहित्य कुटीर” आज भले और परिवर्तित रूप में एक विशाल भवन का स्वरूप प्राप्त कर लिया हो, परन्तु उनकी स्मृतियों से मुक्त कभी नहीं हो सकता है। इस स्तम्भ का लेखक आज उनके छठी पुण्य तिथि के अवसर पर उनकी स्मृतियों में खोकर नितान्त अकेला असहाय अनुभव कर रहा है। वह परम पिता से यह निवेदन करना अपना धर्म समझता है कि डा. सरस जी पंचभौतिक स्वरूप में भले आज इस वसुधा पर नहीं हैं, परन्तु उनके द्वारा शुरू किये गये कार्य संस्कार सदैव उनकी पावन अस्तित्व का आभास कराते रहेंगे। आज उनकी छठीं पुण्य तिथि के अवसर मैं उनके प्रखर व्यक्तित्व का श्रद्धा के साथ स्मरण करता हॅू और उनके द्वारा दिखाये गये मार्ग पर चलने का संकल्प लेता हॅू
हिन्दी साहित्य के प्रकाण्ड विद्वान होने के कारण कविता , नाटक कथा उपन्यास तथा यात्रा वृतान्त डा. सरस जी के प्रिय विषय अभिरूचि हो गये थे। वह एक शिक्षाविद् प्रतिष्ठित कवि एवं उत्कृष्ट साहित्यकार के रूप में जाने जाते थे। काव्य गोष्ठियों में आने जाने के कारण उनमें यायावरी प्रवृति गई थी। फलतः वे भारत के कोने से कोने सभी क्षेत्रों का अनेक बार भ्रमण किये डा. सरस जी ने वाराणसी के काशी विद्यापीठ से ’’बस्ती के छन्दकार” विषय पर डा. केशव प्रसाद सिंह के निर्देशन में पी.एच .डी. की उपाधि अर्जित की है। जिसमें बस्ती जिले वर्तमान में बस्ती मण्डल के 250 वर्षों के विखरे पड़े साहित्यिक बृतान्तों को एक में संजोया है। इसे दो भागों में प्रकाशित कराया गया है। इसमें लगभग 100 कवियों को स्थान दिया गया हैं आधे से ज्यादा कवियों को सांगोपांग वर्णन तथा उपलब्ध रचनाओं का एक एक नमूना प्रदर्शित करते हुए चित्रित किया गया हैं सामग्री के अभाव में लगभग आधा शतक कवियों का संक्षिप्त उपलब्धियां तथा परिचय प्रस्तुत किया गया है। इस परिचय के आधार पर भविष्य में काम करने वाले अध्येता को काफी सहुलियत होने का अनुमान किया गया है। डा. सरस पचीसों बार आकाशवाणी के गोरखपुर तथा लखनऊ के केन्द्रो तथा दूरदर्शन पर अपना कार्यक्रम प्रस्तुत किया है। उन्होंने बाल साहित्य कला विकास संस्थान की स्थापना करके अखिल भारतीय बाल साहित्यकार सम्मेलन करके 50 से अधिक राष्ट्रीय स्तर के बाल साहित्यकारों को सम्मानित किया है। साथ ही ‘‘बाल सेत” नामक त्रयमासिक पत्रिका प्रकाशन भी किया है।
प्रकाशित पुस्तकें:- गूंज, नौसर्गिकी , विजयश्री, बलिदान, मधुरिमा, बासन्ती, वृतान्त, संकुल, सौरभ,       जय भरत, विवेकानन्द, बस्ती जनपद के छन्दकारों का योगदान भाग 1 2, साहित्य परिक्रमा यात्रा वृतान्त भाग 1 2
अप्रकाशित बालसाहित्य:- नेहा, स्नेहा, जलेबी, बाल प्रयाण, बाल त्रिशूल भाग 1, 2 3 , विवेकानन्द, बाल बताशा, पुलुू-लुलू झॅइयक झम, गाबड़गिल, चरणपादुका, बाल कथाएं
अप्रकाशित पुस्तकें:-चन्द्रगुप्त (महाकाव्य) , क्षमा, प्रतिशोध, नगर से नागपुर, बस्ती जनपद के छन्दकार भाग 3 विषपान, छन्द बावनी आदि।



No comments:

Post a Comment