बस्ती (उत्तर प्रदेश)। खून के रिश्ते भी कितने अजीब होते हैं, वे वर्षो, दशकों क्या सैकड़ों वर्ष बाद भी अपनों के मिलने के लिए सात समुंदर पार की सीमा भी नाघ जाते हैं।अपनों से मिलने के लिये बेचैन रहते हैं। मन में एक अलग तरह की टीस बनी रहती है और अपने जड़ों से जुड़ने के लिए बेताब रहते हैं।
विश्व में बड़ी संख्या में भारतीय द्वीप
मेलानेशिया द्वीप
दुनिया के लगभग हर देश में, हर कोने में भारतीय रहते हैं। कुछ-कुछ देश तो ऐसे हैं जहां भारतीयों की आबादी बहुत ज्यादा है। ऐसे देशों को अगर हम 'मिनी इण्डिया' कहें तो गलत नहीं होगा। दक्षिण प्रशांत महासागर के मेलानेशिया में भी ऐसा ही एक द्वीपीय देश है, जहां की करीब 37 फीसदी आबादी भारतीय है और वो सैकड़ों साल से इस देश में रहते चले आ रहे हैं। यही वजह है कि यहां की राजभाषा में हिंदी भी शामिल है, जो अवधी के रूप में विकसित हुई है।
फ़िजी द्वीप
फ़िजी दक्षिण प्रशांत महासागर में स्थित एक सुंदर द्वीप देश है,जो 300 से अधिक द्वीपों से बना है और अपनी खूबसूरत समुद्र तटों, हरियाली और समृद्ध भारतीय संस्कृति के लिए जाना जाता है, इसे भी "मिनी इंडिया" कहते हैं, यहाँ बड़ी संख्या में भारतीय मूल के लोग रहते हैं। फिजी में हिंदी (अवधी-भोजपुरी मिश्रित) बोली जाती है, और पर्यटन व चीनी निर्यात यहाँ अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार हैं, इसकी राजधानी सुवा है।
यहां भारतीय प्रवासियो की आबादी का एक बड़ा हिस्सा हैं।ब्रिटेन ने वर्ष1874 में इस द्वीप को अपने नियंत्रण में लेकर इसे अपना उपनिवेश बना लिया था। इसके बाद वे हजारों भारतीय मजदूरों को यहां पांच साल केअनुबंध पर गन्ने के खेतों में काम करने के लिए ले आए थे, जो वापस नहीं जा सके। इनकी जड़ें 1879 में ब्रिटिश गिरमिटिया श्रम प्रणाली के तहत लाए गए मजदूरों से जुड़ी हैं, जिन्होंने गन्ने के खेतों में काम किया और फिजी की संस्कृति व अर्थ व्यवस्था को समृद्ध किया।1920 और 1930 के दशक में हजारों भारतीय स्वेच्छा से आकर भी यहां बस गए थे।
आज वे फिजी के सामाजिक- आर्थिक ताने-बाने का अभिन्न अंग हैं, वे 'फिजी हिंदी' बोलते हैं, और 'छोटा भारत' के रूप में जाने जाते हैं, वे दिवाली और होली जैसे त्योहार मनाते हैं और देश के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं।
फिजी द्वीपसमूह में कुल 322 द्वीप हैं, जिनमें से 106 द्वीप ही स्थायी रूप से बसे हुए हैं। यहां के दो प्रमुख द्वीप विती लेवु और वनुआ लेवु हैं, जिन पर इस देश की लगभग 87 फीसदी आबादी निवास करती है। फिजी के अधिकांश द्वीपों का निर्माण 15 करोड़ साल पहले ज्वालामुखी के विस्फोटों के कारण हुआ है। यहां अभी भी कई ऐसे द्वीप हैं,जहां प्रायःज्वालामुखी विस्फोट होते रहते हैं। फिजी को मिनी इंडिया भी कहा जाता है, यहां करीब 37 प्रतिशत आबादी भारतीयों की है।
बस्ती के कबरा गांव के राम गरीब की कहानी
उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले के बस्ती सदर तहसील में बनकटी ब्लॉक में कबरा खास नामक एक गांव है,जो कुवानो नदी के किनारे बसा हुआ है। इस गांव में छोटी- बड़ी जाति सब तरह के लोग रहते थे और प्राय: सभी खेती-बाड़ी करते थे । उन दिनों अंग्रेज हुकूमत के विरुद्ध लोग कभी-कभी आवाज भी उठा देते थे।
भारतीय मूल के और वर्तमान में फिजी द्वीप के निवासी रविन्द्र दत्त बताते है कि उनके परदादा का नाम गरीब राम था, जो अंग्रेजों से लोहा लेकर सरकार के विरुद्ध कोई अपराध कर लिया था। 18 वर्ष के उनके परदादा जी को अंग्रेजी हुकूमत ने बन्दी बना लिया था। अन्य लोग कहते हैं कि उनके हाथ किसी की हत्या जैसी कोई वारदात हो गई थी , जिसमें उन्हें सजा हो गई थी और सजा के तौर पर गरीब राम को वर्ष 1910 जून में ब्रिटिश हुकूमत ने कोलकाता जेल में बंद कर दिया था। जहां उन जैसे हजारों कैदियों को रखा गया था। इनसे बेगार कराया जाता थाऔर कभी- कभी इन्हें दंड के रूप में दूर-दराज के इलाके में काले पानी जैसे इतना दूर भेज दिया जाता था कि वे अपने मातृभूमि और अपने लोगों से हमेशा-हमेशा के लिए जुदा हो जाते थे। उन्हें कभी संपर्क में आने की संभावना भी नहीं रहती थी। इस तरह के सभी भारतीय बंदियों को पानी के जहाज से हिन्द- प्रशांत महासागर से होकर फिजी नामक एक टापू पर ले जाकर छोड़ दिया था। जहां इन्हें गिरगिटिया मजदूर के रूप में रखकर बर्बर अत्याचार किया जाता था। उनसे वीरान द्वीप में गन्ने की खेती करवाई जाती थी। उन्हें भारत लौटने नहीं दिया जाता था। इन परिस्थिति में उस गरीब राम का परिवार वहीं बस गया था। गिरमिटिया किसान बहुत मेहनती होते थे और अपने मालिक के प्रति बहुत वफादार भी होते थे। खुद का कष्ट झेल लेते लेकिन अपने मालिक को तनिक भी आंच नहीं आने देते थे।
भारतप्रेमी रविन्दर का जुनून परवान चढ़ा
बस्ती जनपद के बनकटी विकास खण्ड क्षेत्र के कबरा गांव में 115 साल बाद फिजी से अपने परिवार को ढूढने के लिए एक परिवार बहुत ही बेताब रहा। पीढ़ी दर पीढ़ी का फ़ासला भी उसके जुनून को कम ना कर सका।
इन्हीं भारतीय फिजी के चौथी पीढ़ी के निवासी रवींद्र दत्त, और इनकी पत्नी केशनी जो फिजी देश के निवासी है,पिछले कई साल से भारत आ- जा रहे है। इन्हें अपना मूल गांव और परिवार की खोज में लगे थे, जो अब तक नहीं मिल पाया था।
रविन्द्र दत्त ने बताया कि अंग्रेजी शासन काल के दौरान 1910 में भारत से कई लोगों को गिरमिटिया मजदूर बनाकर फिजी भेजा गया था। उनमें उनके परदादा गरीब राम भी शामिल थे। उनसे मजदूरी कराई गई और उन्हें भारत नहीं आने दिया गया। गरीब राम जैसे लोग काफी संघर्ष करने के बाद फिजी के आदिवासियों के साथ मिलकर अंग्रजों से लड़ाई लड़ी तो 1970 में फिजी को स्वतंत्र कराया और वहां ही बस गए थे।
राम लला के दरबार में अर्जी
कई साल तक अपने परिवार के सदस्यों को खोजते हुए यह परिवार वर्ष 2019 में अयोध्या आए हुए थे, जहां उन्होंने भगवान राम के दर्शन किए और मन्नत मांगी कि भगवान श्री राम उन्हें उनके बिछड़े परिवार से मिलने की मनोकामना पूरी करें।
2025 में रविन्द्र दत्त का दुबारा आये
2025 में रविन्द्र दुबारा भारत आए और अपने परिवार के बारे में जानकारी जुटानी शुरू की। इस बार फिर वे अयोध्या गए और भगवान राम से मन्नत मांगी कि उन्हें उनके बिछुड़े परिवार से मिला दें। तब तक कई सालों तक इंटरनेट से जानकारी इकठ्ठा कर भी लिए थे। वे लोगों से बात करने के बाद रविन्द्र 5 दिसंबर 2025 को बस्ती के कबरा गांव पहुंचे । 6 साल बाद राम की कृपा उन्हें प्राप्त हुई दिखी ।
कबरा के प्रधान का पूरा सहयोग
बस्ती के बनकटी ब्लॉक के कबरा गांव में उन्हें अपने परिवार का विश्वस्त सूत्र मिलता गया। खोजबीन करने के बाद रविन्द्र दत्त को अपने परदादा गरीब राम का एक इमिग्रेशन पास मिल गया था, जिसमें उनके बारे में काफी जानकारी लिखी थी। इस पास के मिलने के बाद से वे अपने परिवार के बारे में जानकारी जुटाना शुरू किया। कई साल तक इंटरनेट से जानकारी इकठ्ठा करने और लोगों से बात करने के बाद 5 दिसंबर 2025 को वे बस्ती जनपद के कबरा गांव आ गए।
काबरा के प्रधानअभिषेक चौधरी ने कबरा गांव को आदर्श गांव के रूप में विकसित किया है । लाइट, नालियां, खड़ंजा और बहुत कुछ नगर और शहर जैसा विकसित किया है । इनके प्रतिनिधि रवि प्रकाश चौधरी भी बहुत कर्मठ व्यक्ति हैं। वे रविंद्र दत्त के आगमन पर उन्हें भरपूर सुविधा मुहैया कराया। उन्हें पता चला कि गरीब राम इसी गांव के निवासी थे, उनके पिता का नाम रामदत्त था, और उनका शेष परिवार आज भी इस गांव में निवास करता है।
कबरा भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के बस्ती जिले के बनकटी ब्लॉक में एक गाँव और ग्राम पंचायत भी है। इस गांव के प्रधान श्री अभिषेक चौधरी हैं। इस गांव का पोस्ट मुंडेरवा है। यह यह जिला मुख्यालय बस्ती से पूर्व में 17 किमी दूर स्थित है। बनकटी से गूगल मैप के अनुसार लगभग 12.6 किलोमीटर दूर है। राज्य की राजधानी लखनऊ से यह लगभग 224 किमी दूर स्थित है । कबरा गाँव की इस समय की जनसंख्या 1903 है और घरों की संख्या 272 है। वर्तमान समय में इस गांव के पास ही में महाराज पैलेस एक विवाह मंडप और विधान परिषद सदस्य माननीय श्री सुभाष रघुवंशी का आवास भी है। कुवानो नदी गांव के पास से ही बहती है। गांव में एक मन्दिर शेष बहादुर यादव के घर के पास स्थित भी है। यह स्थान बस्ती जिले और संत कबीर नगर जिले की सीमा पर है। पड़ोस के गांव सिसई बाबू में मॉडल प्राइमरी स्कूल भी है। काबरा में भी प्राइमरी विद्यालय है। बनकटी से मथौली देवीसांड मार्केट होकर यहां पहुंचने का रास्ता है।
राम गरीब के चार पुत्र थे जगन्नाथ, राम अवतार, बैजनाथ और गीता नारायण। बैजनाथ के पुत्र रविंद्र दत्त और उनके पुत्र कौशल दत्त और उनके पुत्र रोशनी दत्त हैं ये सब अब फिजी के निवासी हैं। वहां उनके लगभग 150 परिवारी जन भी निवास कर रहे हैं।
रवि की मुहिम रंग लाई
रविंद्र दत्त कुछ लोगों को साथ लेकर तहसील और ग्राम प्रधान और सम्भ्रांत लोगों से मिलकर गांव के लोगों का सजरा खोजवाया। वे गांव के बुजुर्गों से परदादा गरीब राम के बारे में जानकारी ली और उनके परदादा के नाम कुछ जमीन भी मिली। रविन्द्र दत्त को उनके परिवार से मिलाने में काफी अहम भूमिका निभाने वाले कबरा गांव के प्रधान प्रतिनिधि रवि प्रकाश चौधरी ने बताया कि जैसे ही उन्हें पता चला कि फिजी देश से दो प्रवासी बस्ती आए है और अपने परिवार को खोज रहे है।
लालगंज के पास भी एक कबरा गांव है तथा दूसरा गांव बनकटी विकास खंड में है। फोन से कोई सूत्र उस गांव का नहीं मिला। उन्होंने रविंद्र दत्त तथा उनकी पत्नी केशनी हरे को गांव को ढूंढ़ने में मदद करने के साथ-साथ उनके परिजनों को तलाशने के लिए तहसील से लगायत अन्य दस्तावेजों को खंगाला।
रवि प्रकाश ने रविन्द्र दत्त से उनके खानदान का पूरा सेजरा समझने के बाद अपने गांव के रामदत्त के पूर्व परिवार के पास गए, जहां पर चला कि इस परिवार के पास एक बहुत पुराना दस्तावेज फारसी में है, उन्होंने उसका हिन्दी अनुवाद भी करा रखा था, जिसमें सभी नाम मिलने लगे। गरीब राम के पिता रामदत्त की पुष्टि होते ही रविन्द्र दत्त और केशनी को उनका परिवार के बारे में जानकारी मिली और उनका बिछड़ा परिवार मिल गया।
रविप्रकाश ने अथक प्रयास कर वर्षो से बिछड़ों को अपनों से मिलाया। रामदत्त के परिवार के पास ले गए और उनका बिछुड़ा परिवार मिल गया। इस दौरान पता चला कि गरीब राम के परिवार से जुड़े हुए भोला चौधरी, गोरखनाथ, विश्वनाथ, दिनेश, उमेश राम उग्रह सहित परिवार के अन्य सदस्य गरीब राम के ही खानदान के हैं।
जड़ों से जुड़ने हुए खुशी
गरीब राम के काबरा निवासी रिश्ते में नाती भोला चौधरी, गोरखनाथ, विश्वनाथ, दिनेश, उमेश, रामउग्रह सहित परिवार के तमाम सदस्यों से दोनों ने मुलाकात किया।
रविन्द्र दत्त जब गरीब राम के काबरा निवासी नातियों से मिले तो उनकी खुशी का ठिकाना नहीं था, आंखों में खुशी के आंसू थे। रविन्द्र और उनकी पत्नी केशनी इस कदर खुश थे कि जैसे उन्हें अपनी खोई हुई सबसे प्रिय चीज मिल गई हो। खुशी के मारे इनकी आंखें छलक गई और ये भाव बिभोर होकर अपनों के बीच नाचने लगे। वैसे तो यह कई सालों से अपनों से मिलने के लिए बेताब रहे लेकिन अभी हाल ही में यह भारत आकर अपनी जड़ों को खोजने में कामयाब हो पाये ।
यादों को कैमरे में कैद
इस दौरान उन्होंने गांव का एक-एक कोना देखा तथा अपने परिवार के बारे में अन्य जानकारियां लेने के साथ-साथ बहुत सारे फोटो को यादों के रूप में कमरे में कैद किया।
विद्यालय के बच्चों के साथ कुछ पल
रवीन्द्र दत्त और उनकी पत्नी केशनी ने प्राथमिक विद्यालय के बच्चों के साथ कुछ पल बिताया और बाबा साहब की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया। जिसके बाद वे उनसे मिले और फोटो को यादों के रूप में कैमरे में कैद किया।
वृद्धा आश्रम खोलने का वादा
फिजी में रह रहे रविंद्र दत्त बनकटी ब्लॉक के कबरा गांव में अपनों से मिलने के बाद
अपनों से विदाई लेते के वक्त उनके तथा उनकी पत्नी केशनी की आंखों से आंसू छलक आए थे तो खानदानी भी फफक पड़े। जाते वक्त पुरखों की माटी में परदादा गरीब राम के नाम वृद्धा आश्रम खोलने
की इच्छा व्यक्त की।
परिवार को फिजी देश आने का न्योता
रविंद्र दत्त का कहना है कि अपने पुरखों के परिवार से मिलने से उन्हें काफी हर्ष है और अब मिलने जुलने का यह सिलसिला चलता रहेगा। हम चाहेंगे कि हमारे परिवार के लोग फिजी भी टहलने आएं। रविन्द्र दत्त ने अपने परिवार को फिजी देश आने का न्योता भी दे दिया और कहा अब भारत से उनका गहरा नाता बन गया है इसलिए हर सुख दुख में वे अपने परिवार के पास आते रहेंगे।
कबरा गांव से विदाई लेने के बाद वह दिल्ली में भी रुकने की योजना थी। वहां भी खानदान के लोग रहते हैं। इनसे मेल- मिलाप के बाद 9 दिसंबर 2025 को फिजी रवाना हो गए होगे।
लेखक :आचार्य डॉ. राधेश्याम द्विवेदी
मकान नम्बर 8/2785, निकट लिटिल फ्लावर स्कूल, आनन्द नगर कटरा बस्ती 272001, उत्तर प्रदेश, INDIA
मोबाइल नंबर 9412300183
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