Sunday, December 7, 2025

भारतीय पुरातत्व के जनक अलेक्जेंडर कनिंघम✍️आचार्य डॉ.राधेश्याम द्विवेदी

सर अलेक्जेंडर कनिंघम ब्रिटिश सेना का एक अंग्रेज़ अफ़सर था जिसका मन भारत के खंडहरों में रमा, फ़ौजी होकर भी वह विश्व विख्यात खोजी हुआ। एक अनपका खोजी जिज्ञासाओं के तल में इतना गहरा उतरा कि भारतीय पुरातत्व का जनक बनकर निकला।उसका जन्म इंग्लैंड में 23 जनवरी सन् 1814 ई में हुआ था। अपने सेवाकाल के प्रारंभ से ही भारतीय इतिहास में इनकी काफी रुचि थी और इन्होंने भारतीय विद्या के विख्यात शोधक जेम्स प्रिंसेप की, प्राचीन सिक्कों के लेखों और खरोष्ठी लिपि के पढ़ने में पर्याप्त सहायता की थी। मेजर किट्टो को भी, जो प्राचीन भारतीय स्थानों की खोज का काम सरकार की ओर से कर रहे थे, इन्होंने अपना मूल्यवान् सहयोग दिया। 1872 ई. में कनिंघम को भारतीय पुरातत्व का सर्वेक्षक बनाया गया और कुछ ही वर्ष पश्चात् उनकी नियुक्ति (उत्तर भारत के) पुरातत्व- सर्वेक्षण- विभाग के महानिदेशक के रूप में हो गई। इस पद पर वे 1885 तक रहे।

भारतीय इतिहास पर शोध और खोज:- पुरातत्व विभाग के उच्च पदों पर रहते हुए कनिंघम ने भारत के प्राचीन विस्मृत इतिहास के विषय में काफी जानकारी संसार के सामने रखी। प्राचीन स्थानों की खोज और अभिलेखों एवं सिक्कों के संग्रहण द्वारा उन्होंने भारतीय अतीत के इतिहास की शोध के लिए मूल्यवान् सामग्री जुटाई और विद्वानों के लए इस दिशा में कार्य करने का मार्ग प्रशस्त कर दिया। कनिंघम के इस महत्वपूर्ण और परिश्रमसाध्य कार्य का विवरण पुरातत्व विषयक रिपोर्टो के रूप में, 23 जिल्दों में, छपा जिसकी उपादेयता आज प्राय: एक शताब्दी पश्चात् भी पूर्ववत् ही है

अन्य प्रमुख कार्य:- 1877 में प्रकाशित कोर्पस इंसक्रिप्शनम इंडिकेरम (Corpus Inscriptionum Indicarum) का प्रथम खंड उल्लेखनीय है, जिसमें उन्होंने अशोक के शिलालेखों का संकलन किया। इसके अतिरिक्त, उन्होंने 1879 में भरहुत स्तूप पर आधारित एक महत्वपूर्ण ग्रंथ तथा 1883 में भारतीय युगों पर एक पुस्तक प्रकाशित की। इन सभी कृतियों ने भारतीय पुरावशेषों के काल निर्धारण में अत्यंत महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है।

यूनानी और चीनी पर्यटकों के वृतांत का

अनुवाद तथा संपादन :- 

कनिंघम ने प्राचीन भारत में आनेवाले यूनानी और चीनी पर्यटकों के भारत विषयक वर्णनों का अनुवाद तथा संपादन भी बड़ी विद्वता तथा कुशलता से किया है। चीनी यात्री युवानच्वांग (7वीं सदी ई.) के पर्यटनवृत्त का उनका सपांदन, विशेषकर प्राचीन स्थानों का अभिज्ञान, अभी तक बहुत प्रामाणिक माना जाता है। 1871 ई.में उन्होंने 'भारत का प्राचीन भूगोल' (एंशेंट ज्योग्रैफ़ी ऑव इंडिया) नामक प्रसिद्ध पुस्तक लिखी जिसका महत्त्व आज तक कम नहीं हुआ है। इस शोधग्रंथ में उन्होंने प्राचीन स्थानों का जो अभिज्ञान किया था वह अधिकांश में ठीक साबित हुआ, यद्यपि उनके समकालीन तथा अनुवर्ती कई विद्वानों ने उसके विषय में अनेक शंकाएँ उठाई थीं। उदाहरणार्थ, कौशांबी के अभिज्ञान के बारे में कनिंघम का मत था कि यह नगरी उसी स्थान पर बसी थी जहाँ वर्तमान कौसम (जिला इलाहाबाद) है, यही मत आज पुरातत्व की खोजों के प्रकाश में सर्वमान्य हो चुका है। किंतु इस विषय में वर्षो तक विद्वानों का कनिंघम के साथ मतभेद चलता रहा था और अंत में वर्तमान काल में जब कनिंघम का मत ही ठीक निकला तब उनकी अनोखी सूझ-बूझ की सभी विद्वानों को प्रशंसा करनी पड़ी है।

भारतीय पुरातत्व का जनक :- 

भारतीय पुरातत्व का जनक या पिता अलेक्जेंडर कनिंघम को कहा जाता था। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण एएसआई ब्रिटिश पुरातत्व शास्त्री विलियम जोंस द्वारा 15 जनवरी 1784 को स्थापित एशियाटिक सोसाइटी ऑफ़ बंगाल (कोलकाता) का उत्तराधिकारी थे। 1788 में इनका पत्र एशियाटिक रिसचर्स प्रकाशित होना आरंभ हुआ था और 1814 में यह प्रथम संग्रहालय बंगाल में बना था। एएसआई (ASI) अपने वर्तमान रूप में 1861 में ब्रिटिश शासन के अधीन सर अलेक्जेंडर कनिंघम द्वारा तत्कालीन वायसराय चार्ल्स जॉन केनिंग की सहायता से स्थापित हुआ था

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के बदलते कार्यालय :- 

वर्तमान समय में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, संस्कृति मंत्रालय का एक अधीनस्थ कार्यालय है। 1958 के एएमएएसआर अधिनियम के प्रावधानों के तहत , एएसआई राष्ट्रीय महत्व के 3650 से अधिक प्राचीन स्मारकों, पुरातात्विक स्थलों और अवशेषों का प्रबंधन करता है। इनमें मंदिर, मस्जिद, चर्च, मकबरे और कब्रिस्तान से लेकर महल, किले, बावड़ियाँ और शैलकृत गुफाएँ शामिल हैं। सर्वेक्षण प्राचीन टीलों और अन्य ऐसे स्थलों का भी रखरखाव करता है जो प्राचीन बस्तियों के अवशेष दर्शाते है।

       सर अलेक्जेंडर कनिंघम भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के प्रथम महानिदेशक थे। 1893 के नवम्बर में एक बर्फ़ानी तूफ़ान में वह बीमार पड़ गया। लगभग अस्सी बरस की उमर में, दस दिनों की बीमारी के बाद अट्ठाईस नवम्बर को शाम पौने आठ बजे कनिंघम ने देह छोड़ दी।

         1944 में जब मॉर्टिमर व्हीलर महानिदेशक बने, तब इस विभाग का मुख्यालय रेलवे बोर्ड भवन शिमला में स्थित था। इसके बाद यह राष्ट्रपति भवन के परिसर में स्थानांतरित हुआ और उसके बाद जनपथ पर आया। राष्ट्रीय संग्रहालय, जनपथ, नई दिल्ली, 15 अगस्त, 1949 को राष्ट्रपति भवन में स्थापित हुआ था और बाद में 12 मई, 1955 को जनपथ भवन की नींव रखी गई और 1960 में बनकर तैयार हुआ । इसी भवन में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण का अस्थाई कार्यालय भी काम करना शुरू कर दिया था। लगभग 60 वर्षों तक जनपथ स्थित राष्ट्रीय संग्रहालय परिसर में एक अस्थायी इमारत में रहने के बाद, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण का निदेशालय 24 तिलक मार्ग स्थित इसके नए भवन में स्थानांतरित हुआ जिसका उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने केंद्रीय संस्कृति मंत्री महेश शर्मा की उपस्थिति में किया। पुनः 5 नवंबर 2017 से भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण का मुख्यालय जनपथ से हटकर 24 तिलक मार्ग नई दिल्ली पर काम करना शुरू कर दिया है। सात मंजिला इस इमारत की आधारशिला तत्कालीन प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह ने 20 दिसंबर 2011 को रखी थी। जरूरी प्रक्रियाएं पूरी करने के बाद एएसआइ ने 2012 से इमारत का निर्माण कार्य शुरू कर दिया था। 40 करोड़ रुपये से अधिक की लागत से तैयार इस इमारत का निर्माण केंद्रीय लोक निर्माण विभाग ने कराया है।

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के प्रमुख महानिदेशक:- 

एएसआई का नेतृत्व एक महानिदेशक करते हैं, जिनकी सहायता के लिए एक अतिरिक्त महानिदेशक, दो संयुक्त महानिदेशक और 17 निदेशक होते हैं। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के प्रमुख महानिदेशक के नाम इस प्रकार है –

1. 1871−1885: अलेक्जेंडर कनिंघम

2. 1886−1889: जेम्स बर्गेस

3. 1902−1928: जॉन मार्शल

4. 1928−1931: हेरोल्ड हरग्रीव्स

5. 1931−1935: दया राम साहनी

6. 1935−1937: जेएफ ब्लैकिस्टन

7. 1937−1944: के.एन. दीक्षित

8. 1944−1948: मोर्टिमर व्हीलर

9. 1948−1950: एनपी चक्रवर्ती

10. 1950−1953: माधो सरूप वत्स

11. 1953−1968: अमलानंद घोष

12. 1968−1972: बी.बी. लाल

13. 1972−1978: एमएन देशपांडे

14. 1978−1981: बी.के. थापर

15. 1981−1983: देबाला मित्रा

16. 1984−1987: एमएस नागराज राव

17. 1987−1989: जेपी जोशी

18. 1989−1993: एमसी जोशी

19. 1993−1994: अचला मौलिक

20. 1994−1995: एस.के. महापात्रा

21. 1995−1997: बी.पी. सिंह

22. 1997−1998: अजय शंकर

23. 1998−2001: एसबी माथुर

24. 2001−2004: केजी मेनन

25. 2004−2007: सी. बाबू राजीव

26. 2009−2010: केएन श्रीवास्तव

27. 2010−2013: गौतम सेनगुप्ता

28. 2013−2014: प्रवीण श्रीवास्तव

29. 2014−2017: राकेश तिवारी

30. 2017−2020: उषा शर्मा 

31.  2020−2023: वी.विद्यावती

32. 2023−वर्तमान: यदुबीर सिंह रावत 

एएसआई के कुल 38 मण्डल:- 

राष्ट्रीय महत्व के प्राचीन स्मारकों, पुरातात्विक स्थलों और अवशेषों के रखरखाव हेतु पूरे देश को 38 मंडलों में विभाजित किया गया है। इस संगठन के पास अपने मंडलों, संग्रहालयों, उत्खनन शाखाओं, प्रागैतिहासिक शाखा, पुरालेख शाखाओं, विज्ञान शाखा, बागवानी शाखा, भवन सर्वेक्षण परियोजना, मंदिर सर्वेक्षण परियोजनाओं और जलगत पुरातत्व शाखा के माध्यम से पुरातात्विक अनुसंधान परियोजनाओं के संचालन हेतु प्रशिक्षित पुरातत्वविदों, संरक्षकों, पुरालेखविदों, वास्तुकारों और वैज्ञानिकों का एक विशाल कार्यबल है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण अपने संरक्षित स्मारकों का रखरखाव अपने 37 सर्किल कार्यालयों और 1 मिनी सर्किल कार्यालय के माध्यम से करता है, जो मुख्य रूप से राज्यों की राजधानियों में स्थित हैं।  

   बीवी कुल मिलाकर एएसआई को कुल 38 मंडल कार्यालयों में विभाजित किया गया है और प्रत्येक मंडल कार्यालय का नेतृत्व एक अधीक्षण पुरातत्वविद् करता है।  प्रत्येक मंडल को आगे अनेक उप-मंडलों में विभाजित किया गया है। एएसआई के मंडल कार्यालय इस प्रकार हैं- 

आगरा , उत्तर प्रदेश

आइजोल , मिजोरम

अमरावती , आंध्र प्रदेश

औरंगाबाद, महाराष्ट्र

बेंगलुरु , कर्नाटक

भोपाल , मध्य प्रदेश

भुवनेश्वर , ओडिशा

चंडीगढ़, संघीय क्षेत्र

चेन्नई , तमिलनाडु

देहरादून , उत्तराखंड

दिल्ली, राष्ट्रीय राजधानी

धारवाड़ , कर्नाटक

गोवा, पणजी गोवा 

गुवाहाटी , असम

हम्पी, कर्नाटक 

हैदराबाद , तेलंगाना

जयपुर , राजस्थान

जबलपुर , मध्य प्रदेश

झांसी , उत्तर प्रदेश

जोधपुर , राजस्थान

कोलकाता , पश्चिम बंगाल

लखनऊ , उत्तर प्रदेश

लेह, जंबू काश्मीर

मेरठ , उत्तर प्रदेश

मुंबई , महाराष्ट्र

नागपुर , महाराष्ट्र

पटना , बिहार

पुरी, उड़ीसा 

रायपुर , छत्तीसगढ़

रायगंज , पश्चिम बंगाल

राजकोट , गुजरात

रांची , झारखंड

सारनाथ , उत्तर प्रदेश

शिमला , हिमाचल प्रदेश

श्रीनगर , जम्मू और कश्मीर

त्रिशूर , केरल

त्रिचि , तमिलनाडु 

वडोदरा , गुजरात


लेखक परिचय :-

(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं। वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए सम सामयिक विषयों,साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं। वॉट्सप नं.+919412300183)





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