सामाजिक-सांस्कृतिक क्षेत्र में अग्रगण्य रहा टिकारी राज:-
टिकारी दक्षिण बिहार के गया जिले की एक ऐतिहासिक जमींदारी थी, जिसे भूमिहार समुदाय के राजा वीर सिंह ने स्थापित किया जो 2,046 गांवों में फैला हुआ था। यह 18वीं और 19वीं सदी में काफी प्रभावशाली जागीर थी।
इसके वास्तविक संस्थापक लाव गाव में जन्मे सुंदर सिंह (शाह) थे। इस राजा ने टिकारी राज का विस्तार नौ परगनों में किया था। बुनियाद सिंह, अमर जीत सिंह, हित नारायण सिंह, मोद नारायन सिंह, महाराजा कैप्टन गोपाल शरण सिंह आदि टिकारी राज के प्रमुख राजा-महाराजा थे। जबकि इंद्रजीत कुअंर, राजरूप कुअंर, रामेश्वरी कुअंर टिकारी राज की प्रतापी महारानी हुईं।(महाराजा गोपाल शरण सिंह उनके साथ महारानी विद्यावती कुंवर और उनकी बेटी उमेश्वरी कुंवर साथ में राजकुमारी भुनेश्वरी कुंवर और उनकी पति राजा हरिहर प्रसाद सिंह, अमावां एवं उनके लड़के रघुवंश मणि प्रसाद सिंह का दुर्लभ चित्र)
टिकारी के तीसरे राजा हित नारायण सिंह का जन्म 1801 में हुआ था। अंग्रेजों ने उनको महाराजा की उपाधि और उसके प्रतीकों का उपयोग करने की अनुमति दी थी । उनका झुकाव अध्यात्म की ओर था और वे एक तपस्वी बन गए थे । उन्होंने अपनी विशाल संपत्ति का प्रबंधन अपनी पत्नी को सौंप दिया था। उनकी पत्नी ने 29 अक्टूबर 1877 की वसीयत के तहत इसे अपनी बेटी महारानी राजरूप कुँअर को हस्तांतरित कर दिया।
स्वतंत्रता आंदोलन की कमान टिकारी राज की महारानी इंद्रजीत कुंवर ने संभाली थी। महाराजा हितनारायण सिंह की पत्नी महारानी इंद्रजीत कुंवर धर्मपरायण के साथ एक देशभक्त महिला थीं। उनमें राष्ट्र भावना का विचार कूट-कूटकर भरा हुआ था। महारानी ने वृंदावन में उससे सटे मंदिर और एक विशाल भवन का निर्माण कराया था। उन्होंने अकाल ग्रस्त लोगों के भोजन और सहायता पर भी बड़ी राशि खर्च की। टिकारी रानी मंदिर को इसके संस्थापक के कारण 'राधा इंद्र किशोर' के मंदिर के रूप में भी जाना जाता है। वृन्दावन के डांगोली में यमुना नदी के पार, परिक्रमा मार्ग पर गोदा विहार के यमुना नदी तट पर यह मन्दिर स्थित है। यह वास्तव में वृंदावन में सबसे बेहतरीन स्मारकों में से एक है जिसे राजस्थानी वास्तुकला में बनाया गया था।
डाकुओं से सुरक्षा मिली थी इस जगह:-
लगभग 200 साल पहले जब टिकारी की रानी वृंदावन की यात्रा के लिए जा रही थीं, तो उन पर कुछ पिंडारी डकैतों ने उन पर हमला कर दिया था और वे उनका सामान लूटना चाहते थे। रानी इंद्रजीत कुंवर यमुना नदी के किनारे अपने प्राण प्यारे भगवान गोपाल की रक्षा करने के लिए भागी और सुरक्षित रूप से यमुना के दूसरे तट पर पहुँच गयीं।
छःसाल में साढ़े तीन लाख लागत लगी:-
यह वह स्थान है जहाँ पर टिकारी रानी मंदिर का निर्माण हुआ था। मंदिर के निर्माण में लगभग 6 साल का समय लगा और 1871 में यह बन कर पूरा हुआ। मंदिर के शिखर को भारी मात्रा में तांबे के पंखों और सोने के पत्तल से सजाया गया है। मंदिर एक ऊंचे और समृद्ध चबूतरे पर बना हुआ है और मंदिर की पूरी बनावट अपनी असाधारण राजस्थानी वास्तुकला के साथ सरल और सुंदर है। मंदिर में श्री राधा कृष्ण राधा राजेंद्र सरकार के रूप में, राधा गोपाल, और श्री लड्डू गोपाल के एक छोटे श्रीविग्रह विराजमान हैं। मूर्ति को कलकत्ता के प्रसिद्ध मूर्तिकार राजेंद्र सरकार ने बनाया था। वर्तमान में ये मंदिर देवरहा हंस बाबा के भक्तों द्वारा संभाले जा रहे हैं। वृंदावन में टिकारी राज के कई अन्य स्थान भी हैं जो धार्मिक महत्व रखते हैं।
इस मंदिर को टिकारी राजा हित नारायण सिंह की विधवा रानी इन्द्रजीत कुंवर ने सन 1865 में बनवाना शुरू किया था और लगातार छ वर्ष तक निर्माण कार्य जारी रहने के बाद, यह मंदिर पूर्ण रूप से सन 1871 में बन कर तैयार हो गया था।इस मंदिर को दूर से देखने में भव्य दिखाई पड़ता है। इसकी स्थापत्य कला के बारें में आज भी लोगों के लिए आकर्षण बना हुआ है। इस मंदिर के इतिहास और महत्व के बारे में भी कम लोगों को ही जानकारी है। पत्थरों पर किये गए नक्काशी और विशालकाय प्रवेश द्वार लोगों को स्वत: ही आकर्षित करते हैं। यह मन्दिर अपने ज़माने में अतिथि-सेवा के लिए भी प्रसिद्ध था।
उस समय इस मंदिर के निर्माण में 3,50,000 रूपया खर्च हुआ था। इसमें विराजमान देवी देवता के पूजा में वार्षिक तौर पर खर्च इत्यादि के लिए महारानी इन्द्रजीत कुंवर ने 15,000 रूपया के साथ अपने राज के कुछ ज़मीन भी मंदिर के नाम से दान में दे दी थी।
टिकारी घाट भी है:-
यमुना नदी के किनारे केशीघाट से अगर परिक्रमा शुरू करें तो चंद कदम दूर आगे बढ़ते ही वंशीवट, सुदामा कुटी के आगे भव्य टिकारी घाट भी बना हुआ है।टिकारी घाट के निर्माण में उस समय 30,000 रूपया लागत आया था। महारानी इन्द्रजीत कुंवर ने उस समय पिंडारा लूटेरा गिरोह से बच कर यमुना नदी को पार करते हुए वृन्दावन में इसी स्थान पर आई थी, बाद में इसी स्थान पर उन्होंने टिकारी घाट का निर्माण करवाया था।
रानी का महल अतिथि गृह बना :-
इस मंदिर से सटे एक भव्य भवन का भी निर्माण किया गया था। जो उस समय महारानी इन्द्रजीत कुंवर का निवास स्थान था और इसी भवन में महारानी की मृत्यु 26 जनवरी 1878 को हुई थी। उनके मृत्यु के बाद यह भवन “अतिथि गृह” के रूप में जाना जाता है।
अब देवरहा हंसबाबा का भक्ति धाम :-
कालान्तर में मंदिर को रानी इंद्रजीत कुंवर द्वारा देवरहा बाबा को दान कर दिया गया। अब मंदिर को देवरहा बाबा भक्ति धाम के नाम से भी जाना जाता है। यह आश्रम 1990 में देवरहा बाबा के वृंदावन में यमुना तट पर समाधि लेने के बाद उनकी स्मृति में स्थापित किया गया है। यह टिकारी मंदिर परिसर में ही चल रहा है, जिसमें मंदिर, भक्त निवास, गौशाला और टिकारी घाट शामिल है।
विशाल गौशाला :-
यहां गौवंशों की सेवा भी की जाती है। यह शांतिपूर्ण वातावरण और आध्यात्मिक कार्यक्रमों के लिए जाना जाता है। यह 1850 के दशक से संचालित है, 2002 से ब्रह्मवेता श्री देवरहा हंस बाबा द्वारा ट्रस्ट और श्रद्धालुओं द्वारा इसका प्रबन्ध किया जा रहा है।
लेखक परिचय:-
(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं। वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए सम सामयिक विषयों,साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं। वॉट्सप नं.+919412300183)
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