Monday, December 8, 2025

देवरहा बाबा का समाधि स्थल यमुना पार वृंदावन✍️आचार्य डॉ. राधेश्याम द्विवेदी

पूर्वपीठिका :- 

पूज्य श्री देवरहा बाबा एक एसे ईश्वरलीन, अष्टांग योगसिद्ध योगी थे,जिन्हें लगभग एक शताब्दी से भी अधिक अवधि तक भारतवर्ष और विदेशों के, न सिर्फ उनके गृहस्थ-भक्त अपितु अनगिनत संन्यस्त शिष्य भी, साक्षात् परमात्मा की तरह पूजते रहे हैं। देवरहा बाबा अपने पूर्व नाम जनार्दन दत्त के रूप में बस्ती जिले के उमरिया गांव को छोड़कर हमेशा हमेशा के लिए ब्रह्म की खोज में वापस लौट गए थे। हिमालय में अनेक वर्षों तक अज्ञात रूप में रहकर उन्होंने साधना की थी ।

       ब्रह्मर्षि देवराहा दर्शन' में डाॅ. अर्जुन तिवारी जी लिखते हैं कि एक प्रसंग में महाराज जी ने बतलाया कि उन्होंने दक्षिण भारत के विभिन्न स्थानों पर निवास किया। वहाँ के लोग उन्हें 'कल्पान्तक योगी' के रूप में जानते हैं। कई बार उन्होंने संकेत दिया कि दीर्घकाल तक वे हिमालय की कंदराओं में तपस्यारत थे। डाॅ. अर्जुन तिवारी जी पुनः लिखते हैं कि एक प्रसंग में महाराज जी ने बतलाया कि सन् 1919 - 20 में वे चित्रकूट में तपस्यारत थे। वहीं माँ शक्ति ने इन्हें दर्शन दिया तथा उन्होंने प्रेरित किया कि देवरिया में सरयू तट पर साधना स्थल बनाओ तथा सारे देश में राम नाम का प्रचार करो। श्री माँ की आज्ञा को शिरोधार्य कर ही वे देवरिया के मइल- नरियाँव के निकट मचान बनाकर साधनारत थे। उसके पश्‍चात माता के आदेश से जब बाबा अपने भक्‍तों के बीच रहने आये तो उन्‍होंने अपना निवास स्‍थान पहले तो उत्‍तर प्रदेश का देवरिया जिला चुना और अपने जीवन के अंत समय में वे मथुरा में यमुना नदी के किनारे लगभग चार वर्ष तक रहे। बीच बीच में वे प्रयाग, विंध्याचल हरिद्वार अयोध्या आदि स्थलों पर भी विचरण करते रहे हैं। 

     कुछ ही दिनों में जनार्दन दूबे की ज्योति तप साधना योग से पूरे देश में फैलने लगी पूरे देश में बड़ी बड़ी हस्तियां उनकी तरफ चली आ रही थी । देवरहा बाबा रामभक्त थे, उनके मुख में सदा राम नाम का वास था, वो भक्तों को राम मंत्र की दीक्षा देते थे। वह सदा सरयू के किनारे रहते थे। उनका कहना था-

"एक लकड़ी हृदय को मानो 

दूसर राम नाम पहिचानो।

राम नाम नित उर पे मारो 

ब्रह्म लाभ संशय न जानो।"

राम कृष्ण को एक जानो :- 

देवरहा बाबा श्री राम और श्री कृष्ण को एक मानते थे और भक्तो को कष्ट से मुक्ति के लिए ये कृष्ण मंत्र भी देते थे- 

"ऊं कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने

प्रणतक्लेशनाशाय गोविन्दाय नमो नम:"।

जीवन की पवित्रता:- 

बाबा का कहना था कि जीवन को पवित्र बनाये बिना ईमानदारी, सात्विकता, सरसता के बिना भगवान नहीं मिलते। इसलिए सबसे पहले अपने जीवन को शुद्ध व पवित्र बनाओ। बाबा ना ही कभी धरती पर लेटे हैं। हमेशा एक लकड़ी के मचान में रहते थे, जो धरती से 12 फिट की ऊंचाई पर होता था और उसी पर बाबा योग साधना किया करते थे।

             दो प्रमुख शिष्य 
        बड़े सरकार और छोटे सरकार

बाबा की सिद्धियॉ :- 

बाबा को कई सिद्धियॉ भी प्राप्‍त थी, जो इस प्रकार हैं- जिसमें एक सिद्धि पानी में बिना सांस के रहने की है। दूसरी जंगली जानवरों की भाषा समझ लेते थे। बाबा जी खतरनाक जंगली जानवरों को पल भर में काबू कर लेते थे। जो एक सामान्‍य मनुष्‍य के वश की बात नहीं है। तीसरी खेचरी मुद्रा में उनको महारथ हासिल थी, जिसके कारण बाबा आवागमन करते थे, हालांकि बाबा को किसी ने आते-जाते नहीं देखा। खेचरी मुद्रा से ही बाबा अपनी भूख व उम्र पर नियंत्रण करते थे। बाबा के अनुयायियों के अनुसार बाबा को दिव्‍य द्रष्टि की सिद्धि प्राप्‍त थी, बाबा बिना कुछ कहे-सुने ही अपने भक्‍तों की समस्‍याओं और उनके मन में चल रही बातों को जान लिया करते थे। उनकी याददास्‍त इतनी अच्‍छी थी कि दसकों बाद भी किसी व्‍यक्ति से मिलते थे तो उसके पूरे घर की जानकारी और इतिहास बता दिया करते थे। बाबा हठ योग की दसों मुद्राओं में पारंगत थे। साथ ही ध्‍यान योग, नाद योग, लय योग, प्राणायम, त्राटक, ध्‍यान,धारणा, समाधि आदि पद्धतियों का भरपूर ज्ञान था,जिससे बड़े-बड़े विद्वान उनके योग ज्ञान के सामने नतमस्‍तक हो जाया करते थे। बाबा के सबसे निकट भक्‍त थे उनका नाम था मार्कण्‍डेय महाराज। जिन्‍होंने बाबा की लगभग 10 साल कुम्भ कैंपस में सेवा की है। उन्होंने बताया कि बाबा एक लकड़ी के मचान पर रहते थे, और केवल स्नान के लिए ही नीचे उतरते थे।

भजन / समाधि स्थल कीअवस्थिति :- 

देवराहा बाबा की समाधि, भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के वृंदावन से लगभग 4.5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित एक पूजनीय आध्यात्मिक स्थल है। यह स्थल वृन्दावन में यमुना नदी के किनारे, टटिया स्थान के पास स्थित एक शांत और आध्यात्मिक स्थान है, जहाँ यह महान संत और योगी 19 जून 1990 (योगिनी एकादशी) को समाधिस्थ हुए थे, और यह स्थान आज भी भक्तों के लिए ध्यान और प्रेरणा का केंद्र है, जहाँ वे अपनी आध्यात्मिक शिक्षाओं और चमत्कारों के लिए पूजे जाते हैं। 

इतिहास और महत्व:

देवरहा बाबा, जिन्हें महामति प्राणनाथजी के नाम से भी जाना जाता है, एक पूजनीय संत थे जो 19वीं और 20वीं शताब्दी के दौरान रहे। उन्हें उनकी आध्यात्मिक शक्ति, मानवता के प्रति निस्वार्थ सेवा और ईश्वर के प्रति गहरी भक्ति के लिए व्यापक रूप से सम्मानित किया जाता था। देवरहा बाबा की समाधि इस पूजनीय संत का अंतिम विश्राम स्थल है। ऐसा माना जाता है कि देवरहा बाबा ने जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त होकर इसी स्थान पर महासमाधि प्राप्त की थी, जो परम आध्यात्मिक मुक्ति की अवस्था है।

     वृन्दावन के बंशीवट के समीप एक कच्ची सड़क से होते हुए यमुना पूल पार कर श्री देवरहा बाबा समाधी स्थान तक पहुंचा जा सकता है। यमुना नदी पार करने के लिए नाव से भी जाया जा सकता है। इस स्थान से आगे जाने पर मानसरोवर (राधारानी मंदिर) और बेलवन का दर्शन होगा।

तपस्वी जीवन और दिव्य व्यवहार :- 

देवराहा बाबा का जीवन सादगी और कठोर तप का उदाहरण था। उन्होंने कभी किसी वाहन का उपयोग नहीं किया और न ही किसी भवन में निवास किया. वे पेड़ों के बीच या चार खंभों वाले मचान पर निवास करते थे।कहा जाता है कि उन्होंने कभी अन्न का सेवन नहीं किया और दूध, शहद तथा श्रीफल का रस ही उनका प्रिय आहार था। उनका कहना था कि गौ सेवा मनुष्य का प्रमुख धर्म है और गौ माता के प्रति उन्होंने विशेष भक्ति प्रकट की।

सिद्धियों से परिपूर्ण बाबा जी आश्रम:- 

तपोनिष्ठ संत ब्रह्मर्षि देवरहा बाबा सिद्धियों से परिपूर्ण थे। पूज्य  बाबा जी में ऐसी सिद्धियां थी कि वह एक ही समय में कई कई स्थानों पर दर्शन दिया करते थे। जल के ऊपर भी समान रूप से पैदल चलते थे। श्रीधाम वृंदावन में पूज्य बाबा जी ब्रह्मलीन हुए। आज भी वहां पर देवरहा बाबा का मचान और समाधि स्थल है। तमाम विदेशी भक्त यहां साधना करने आते हैं। समाधि स्थल के ठीक उस पार देवरहा बाबा घाट है, जो अलौकिक शक्तियों का प्रमुख केंद्र बनता जा रहा है। प्रतिदिन सुबह बड़ी संख्या में साधक यहां साधना करने आते हैं।

आध्यात्मिक ऊर्जा से परिपूर्ण :- 

आस्था और भक्ति का दिखता है संगम ब्रह्ममुहूर्त का समय, वातावरण पूरी तरह से शांत। यमुना जी के किनारे स्थित पूज्य देवरहा बाबा घाट की ओर साधकों के कदम तेजी से बढ़ते जाते। घाट पर पहुंचते ही अध्यात्मिक ऊर्जा का संचार दिखाई देने लगता है। जहां तहां साधक सुविधानुसार बैठ जाते हैं और ध्यान में लीन हो जाते हैं। योग और साधना से अपनी सिद्धियों को परिष्कृत करने वाले पूज्य देवरहा बाबा को अपने अंतर्मन में बिठा लेते हैं। फिर, घंटों साधना में लीन रहते हैं। बहुत से तो साधक ऐसे होते हैं जो अनंत में पहुंच जाते हैं। शरीर साधना में लीन पर मन गुरुदेव के श्रीचरणों में ध्यानमग्न हो जाता है। मानों लगता है की पूज्य देवरहा बाबा से साक्षात्कार हो रहा है। बाबा बच्चा कहकर कुशलक्षेम पूछ रहे हैं। सेवा के प्रति सतत लगने का संदेश दे रहे हैं। अकिंचन हो जाते हैं। साधना का यह अद्भुत दृश्य देखते ही बनता है।  

प्रकृति की विहंगम छटा दिव्य अनुभूति

देवरहा बाबा घाट पर पहुंचते ही प्रकृति की विहंगम छटा देखते ही बनती है। परिक्रमा मार्ग पर टटिया स्थान के ठीक सामने देवरहा बाबा के नाम से विशाल द्वार बना हुआ है। जिससे यमुना की ओर बढ़ने पर यह समाधि स्थल मिलता है, जहाँ एक शांत, हरा-भरा और फूलों से सुगंधित वातावरण है।यह स्थान देवरहा बाबा को समर्पित है, जो अपने गहन ज्ञान, योगिक शक्तियों और जन कल्याण के कार्यों के लिए जाने जाते थे। यह समाधि स्थल भक्तों के लिए ध्यान और साधना का केंद्र है, जहाँ लोग उनके आशीर्वाद और ऊर्जा को महसूस करते हैं। बाबा हठयोग, प्राणायाम और अन्य योगिक क्रियाओं में पारंगत थे और उन्होंने कई जिज्ञासुओं को योग का प्रशिक्षण दिया।वे हमेशा प्रेम, सात्विकता और जीवन को पवित्र बनाने का उपदेश देते थे, और उन्होंने अपना जीवन जनसेवा और आध्यात्मिक उन्नति के लिए समर्पित किया। आज भी भक्त सूक्ष्म रूप में बाबा की उपस्थिति महसूस करते हैं और उनके समाधि स्थल पर आकर शांति और प्रेरणा प्राप्त करते हैं।यह स्थान भक्तों को बाबा के आदर्शों और शिक्षाओं को याद दिलाता है कि कैसे एक सरल जीवन से ईश्वर की कृपा प्राप्त की जा सकती है। 

      यहीं से प्रवेश करते हुए यमुना जी की ओर बढ़ना होता है। ज्यों ज्यों यमुना जी की ओर आप बढ़ते जाएंगे देवराहा बाबा का घाट नजदीक आता जाएगा। घाट पर पहुंचते ही चारों तरफ सुगम वातावरण दिखाई देता है, जैसे लगता है कि यहां प्रकृति झूम रही है। घाट के पास ही चबूतरे पर पेड़ पौधे लगाए गए हैं। फूलों की सुगंध से पूरा वातावरण सुगंधित हो जाता है। चबूतरे पर चारों तरफ हरी हरी घास साधना के लिए सभी को  अपनी ओर आकर्षित करती है। घाट के ही निकट भगवान भोलेनाथ का शिवलिंग भी स्थापित है। इस स्थान पर भी लोग साधना में लीन रहते हैं। सुबह का वातावरण काफी सुहाना रहता है। इसलिए यहां पर हर कोई आना चाहता है। साथ ही घाट का रखरखाव और साफ-सफाई भी भक्तों और साधकों को मोहित करती है। 

    भक्तगण बाबा की समाधि पर श्रद्धा सुमन अर्पित करने उनका आशीर्वाद लेने और आध्यात्मिक मार्गदर्शन प्राप्त करने के लिए आते हैं। यह स्थल पवित्र माना जाता है और भारत के विभिन्न भागों और विदेशों से तीर्थयात्री और आध्यात्मिक साधक यहाँ अक्सर आते हैं।समाधि का शांत वातावरण, और वहाँ विद्यमान दिव्य उपस्थिति, प्रार्थना, ध्यान और आत्मचिंतन के लिए अनुकूल वातावरण बनाती है। बाबा की समाधि के निकट अनेक भक्त शांति, सुकून और आध्यात्मिक उत्थान का अनुभव करते हैं।

       देवरहा बाबा की विरासत का सम्मान करने और उनकी शिक्षाओं को स्मरण करने के लिए समाधि स्थल पर पूरे वर्ष विशेष समारोह और अनुष्ठान आयोजित किए जाते हैं। ये आयोजन भक्तों को आकर्षित करते हैं जो भक्ति और श्रद्धा के साथ संत के जीवन और शिक्षाओं का स्मरण करने के लिए एकत्रित होते हैं। देवरहा बाबा की समाधि पर जाने से भक्तों को ईश्वर से जुड़ने और इस पूजनीय संत के जीवन और शिक्षाओं से प्रेरणा लेने का अवसर मिलता है, जिनकी विरासत आध्यात्मिक साधकों को आत्म साक्षात्कार और ज्ञान प्राप्ति की दिशा में उनकी यात्रा के लिए प्रेरित करती रहती है।

प्रमुख शिष्य देवदासजी, "बड़े सरकार"

उनके प्रमुख शिष्यों में देवदास जी और रामसेवक दास जी को उन्होंने दिव्य ज्ञान से अभिसिंचित किया। देवराहा बाबा भारतीय संस्कृति का सजीव स्वरूप थे- करुणा, ममता और कल्याण के प्रतीक. उनकी वाणी मंत्रवत प्रभाव छोड़ती थी और हर व्यक्ति के हृदय को छू जाती थी।

देवदासजी, जिन्हें "बड़े सरकार" भी कहा जाता है, देवरहा बाबा के सबसे प्रिय शिष्यों में से एक थे। वे ब्रह्मऋषि के रूप में जाने जाते हैं । वे एक सिद्ध योगी थे जिन्होंने अपना जीवन सत्य, धर्म और भक्ति के संदेशों के प्रसार में समर्पित कर दिया। उनका जन्म अज्ञात है, लेकिन उन्हें देवरहा बाबा के संदेशों को आगे बढ़ाने के लिए भेजा गया माना जाता है।  उनके कई ज्ञान और शिक्षाओं को आज भी संरक्षित किया जाता है। देवरहा बाबा भजन / समाधि स्थान वृंदावन में यमुना के दूसरी ओर स्थित है। 19 जून 1990 को अपने शिष्यों देवदास जी (बड़े महाराज) और राम सेवक दास जी (छोटे महाराज) को शक्तियाँ और ज्ञान देते हुए, देवरहा बाबा ने अपना शरीर त्याग दिया और महासमाधि की अवस्था में प्रवेश किया।इससे पहले उन्होंने अपनी शक्ति और ज्ञान अपने शिष्यों देव दास जी (बड़े, महाराज) और राम सेवक दास जी (छोटे, महाराज) को दिया था।


लेखक परिचय:-


(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं। वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए सम - सामयिक विषयों,साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं।वॉट्सप नं.+919412300183)

No comments:

Post a Comment