Tuesday, January 9, 2018

बस्ती की हस्ती : हरिद्वार मांझी डा. राधेश्याम द्विवेदी

माझी जाति पर एक दृष्टि - माझी जाति का तात्पर्य नाव चलाने वाले से है। ये विश्वास करते हैं कि इनके पूर्वज पहले गंगा के तटों पर या वाराणसी अथवा इलाहाबाद में रहते थे। बाद में यह जाति मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, विहार, झारखण्ड, उड़ीसा तथा छत्तीसगढ़ आदि राज्यों के हर जिलों के नदी के तटीय क्षेत्रों में आकर बस गयी। यह समाज, कश्यप, बिन्द ,मल्लाह, केवट ,मछुआ ,मांझी, निषाद ,नाविक, रैकवार ,गोड़ और मेहरा इत्यादि सैकड़ो उपजातियो में बटा है। ये सर्वाहारी होते हैं तथा मछली, बकरा एवं सुअर का गोश्त खाते हैं। कुछ लोग भगत होकर बहुत सात्विक जीवन भी विताते हैं। इनका मुख्य भोजन चावल, गेंहू , दाल, सरसों, तिल्ली महुआ के तेल आदि है। इस जाति के लोग नारियल ताड़ से ताड़ी   अंगूर, महुआ, गन्ना तथा अन्य प्राकृतिक संसााधनों से शराब भी निकालकर अपनी जीविका चलाते हैं। जंगली लकड़ियों से टोकरियां बनाने तथा लकड़ी काटकर बेंचकर अपनी जीविका चलाने का काम भी यह समाज करता है। इनके गोत्र कश्यप, सनवानी, चैधरी, तेलियागाथ, कोलगाथ हैं।
प्रमुख चर्चित माझी शक्सियत - पहाड़ को अकेले काटकर रास्ता बनाने वाले दशरथ मांझी को कौन नहीं जानता है। दाना मांझी अपनी पत्नी का मृतक शरीर कंधे पर उठाकर लाया था तो पूरे देश में एक नई बहस छिड़ गयी थी। कोसनदी के तट पर स्थित सुनहरी जिले के एस. पी. विद्यानन्द मांझी को सम्मानित किया जा चुका है। विहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम माझी एक बहुत ही चर्चित शक्सियत माने जाते हैं। झारखण्ड की तीरन्दाज लक्ष्मी रानी मांझी पर भारत अपने को गौरवान्वित करता है। इतनी महान शक्सियतों को देने वाले इस समाज के उन्नयन के लिए वह प्रयास नहीं हो सका है जो प्रतिभायें इस समाज के कर्णधारों में छिपी हुई है। सरकार को इस समाज के उन्नयन के लिए सार्थक प्रयास करना चाहिए।
बस्ती के हरिद्वार मांझी की गौरवगाथा - 10 दिन पहले बस्ती जिले के दुबौलिया थाना के पारा गांव के 26 ग्रामीण घाघरा नदी को पार करके खेती करने गये थे और लौटते वक्त नाव हादसे का शिकार हो गये थे। नाव में कुल सवार 25 लोग डूबने लगे थे। तभी घाघरा नदी में मछली पकड़ रहे नाविक हरिद्वार मांझी के कानों में लोगों की चीख पुकार सुनाई दी। आनन-फानन मे नाव लेकर हरिद्वार मांझी डूब रहे लोगों को बचाने दौड़ पड़े। मांझी अपने नाव के सहारे एक-एक कर 21 किसानों को घाघरा के विकराल धारा से किनारे पर लेकर आए। उनमें शेष 4 किसान डूब गये जिन्हे हरिद्वार मांझी नहीं बचा सका। जिसको उन्हें बहुत ही अफसोस रहा है। प्रशासन अभी भी लापता किसानों की तालाश कर रहा है, बादमें हरिद्वार मांझी अपने प्रयासों से एक किसान का शव ढूंड कर परिजनों को सौंप दिया। अभी भी तीन किसान लापता हैं और उनके शव को भी हरिद्वार मांझी जोर-शोर से खोजने में लगे हुए हैं। हरिद्वार मांझी की जिंदगी का आधा समय घाघरा की धारा में ही बीतता है। मांझी बताते हैं कि जिस दिन लोगों से भरी नाव पलटी थी, वह घाघरा नदी में ही अपनी नाव से टहल रहे थे, उन्होंने अपनी सूझबूझ से 21 लोगों की जान बचाई थी।
हरिद्वार मांझी बेहद गरीबी में जीवन-यापन करते हैं।  मांझी कहते हैं कि वो हर रोज नदी में जाल लगाते हैं और घाघरा मईया की कृपा से उन्हें हर रोज उनके जाल में कुछ मछलियां फंस जाती है, जिनको बेच कर वो परिवार के लिए दो जून की रोटी का इंतजाम करते हैं।  हरिद्वार मांझी की यह बहादुरी घटना के साथ ही दफन हो गई, लेकिन जिन 21 लोगों की उन्होंने जान बचाई उन सभी के लिए फरिश्ते से कम नहीं है। बस्ती जिला के जिला अधिकारी श्री अरविन्द सिंह को जब इस घटना की जानकारी दिया गया तो उन्होंने उसे सम्मानित करने तथा बीरता पुरस्कार दिलाने की कार्यवाही शुरु कर दिया है। हम बस्ती वासी बस्ती की इस हस्ती हरिद्वार मांझी बहादूरी को सम्मान करते हैं।

2 comments: