Tuesday, January 9, 2018

राष्ट्रभाषा हिन्दी की वेदना डा. राधेश्याम द्विवेदी ’नवीन ’

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भारत की आत्मा स्वतंत्र आज भी नहीं ,अंग्रेजी के गुलाम नेता जज अफसरी
कहने को ऊपर से बनते हम भारतीय , रहन -सहन भेष आदत सब बाहरी
हाय लोकतंत्र विज्ञान आधुनिकता हाय, परम्परा संस्कृति देश से जा रही।
संस्कृत हटाकर थोप दी गयी उर्दू, संविधान मान्य भी कराह रही नागरी।। 1।।

हिनहिन करती हिन्दी रहगई ज्योंकीत्यों, राष्ट्रभाषा बनके अपनाई नहीं जाती है।
हिन्दी के बैनर तले बैठ डींग हांके हम, अमल में लाने की बातें की जाती है।
ऊंची से ऊंची डिग्री दे देकर इस राष्ट्र में,बेरोजगारों की लाइनें बनाई लाती है।
एसी राष्ट्रभाषा संविधान की बन्दना ,हिन्दी हिन्दुस्तान का स्वरूप दिखलाती है।। 2।।
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र्दुदशा हिन्दी की है अपने ही देश में,   अपितु विदेशों में सम्मान ये पाती है।
सत्ता में रहने पर बदल जाती भावनादेशसेवा बाहर जाके जतलाई जाती है।
क्षेत्रीय भावना संक्रीर्णता में जकड़कर, दक्षिण के अंचल में विरोध की जाती है।
वोटों का लालच करा सकती क्या नहीं,घर में फूट डाल शासन की जाती है।। 3।।

संख्या के लिहाज से दूसरे स्थान पर , हिन्दी भाषा विश्व में आज बोली जाती है।
कैसे कहें अंतर्राष्ट्रीय भाषा बनेगी ये , अपने देश की जो भाषा ना बन पाती है।
आजादी के सत्तर साल बीते यूं ही, देखो अभी कितने साल और बिताती है।
कैसे कहें आज हम अपने को स्वत्रंत, सारी नकल अंगे्रजों कीही की जाती है।। 4।।
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अनेकता में एकता भारत की विशेषता, विश्व के भाषाओं को सहर्ष स्वीकारे है।
अंग्रेजी फ्रैंच फारसी अरबी भाषा कोअनुकूल अपने सांचें में हम ढ़ाले हैं।
हमारी उदार नीति भावना देख विदेशीअपने प्रचारकों को यहां भिजवाते है।
पैसा प्रलोभन अनेकानेक देकर , फिरभी हिन्दी का कुछ विगाड़ नही पाते हैं।। 5।।

प्रशासन में बैठ पर शासन बनाइये, अपने ज्ञान चक्षु को और क्यों ना खोलता।
सेवा फार्म हिन्दी में कबकेकब बन चुके,’समूह कर्मचारी अंगे्रजी को ना जानता।
कार्यालयी कार्यों को भाषा ही में करो ,देश का सम्मान स्वाभिमान इससे बनता।
ज्ञान का विकास आनलाइन चैट से करोकभी लकीर का फकीर नहीं होता।। 6।।

राजभाषा कैडर का पद उचित सृजित कर, पूरे भारतवर्ष में सैर सपाटा होता
खानापूरी दिखावटी आंकड़े बनाये जाते , सत्य से परे कोसों दूर पे ये होता
पद केवल नाम के खाली के खाली रहे, पदारूढ़ को भी काम बाहरी ही मिलता।
कैसे उधारी लेदे विकास राजभाषा करे, उधारकर्ता के काम को भी रोक देता।। 7।।


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