Tuesday, January 9, 2018

संयुक्त राष्ट्र संघ में हिन्दी की उपेक्षा कारण एवं निदान - डा. राधेश्याम द्विवेदी

Image result for राष्ट्रभाषा हिन्दीभारत में राजभाषा हिन्दी की संवैधानिक स्थिति :- संयुक्त राष्ट्र संघ ने 6 भाषाओं को स्वीकृत किया है -अरबी, चीनी, अंग्रेजी, फ्रांसीसी, रूसी और स्पेनीश, परंतु इन में से केवल दो भाषाओं को संचालन भाषा माना जाता है - अंग्रेजी और फ्रांसीसी ।पिछले कुछ समय से भारत में हिन्दी को संयुक्त राष्ट्र संघ की अधिकृत भाषा बनाने की मांग हो रही है। हमने हिन्दी के महत्त्व को स्वीकारा ही नहीं है। आज भी भारत में सिर्फ कहने के लिए ही हिन्दी राजभाषा है। सन् 1963 में राजभाषा अधिनियम पारित करके हिन्दी को हमने अनिश्चित काल के लिए वनवास दे दिया है। अतः हिन्दी केवल और केवल कहने के लिए ही राजभाषा है, और सभी व्यवहार सहराजभाषा अंग्रेजी से ही होता है। हमने हिन्दी को वह सम्मान कभी नहीं दिया जो उसे मिलना चाहिए। आज हमारी अपेक्षा है हिन्दी को संयुक्त राष्ट्र संघ की अधिकृत भाषा बनाने की, पर उससे पहले हमें हिन्दी को अपने देश में उचित स्थान देना चाहिए।
हिन्दी में संयुक्त राष्ट्र संघ की भाषा बनने के गुण :- हिन्दी में संयुक्त राष्ट्र संघ की भाषा बनने के सभी गुण हैं। संस्कृत के अतिरिक्त, पूरे विश्व में एक भी ऐसी भाषा नहीं जो वैज्ञानिकता की दृष्टि से हिन्दी के सामने टिक सके।पूरा विश्व आज भूमण्डलीकरण की वजह से हिन्दी के महत्व को स्वीकार रहा है। ऐसे समय में भारत में राजभाषा हिन्दी की स्थिति को लेकर कई सवाल उठ सकते हैं 2015 के हिन्दी दिवस समारोह पर आयोजित कार्यक्रम में राजभाषा पुरस्कार प्रदान करने के बाद महामहिम राष्ट्रपति जी श्री प्रणव दादा ने कहा था अब हिन्दी की गूंज संयुक्त राष्ट्र जैसी विश्व संस्थाओं में भी सुनाई दे रही है। इससेे हिन्दी को लेकर कई आशाएँ बनने लगीं।जापान, चीन, और रशिया ने अपनी भाषाओं में ही विकास की नई ऊंचाइयों को प्राप्त किया है इण्डोनेशिया ने स्वतंत्र होने के चार वर्ष बाद ही अपनी भाषा को राजभाषा का पद दे दिया। टर्की के स्वतंत्र होने पर मुस्तफा कमाल पाशा ने एक दिन में टर्की को राष्ट्रभाषा बना दिया था। इण्डोनेशिया और टर्की से हमे प्रेरणा लेकर हिन्दी को गौरवान्वित करना चाहिए भारत को आजादी के इतने सालों बाद भी भारत को भारत नाम से नहीं अपितु फिरंगियों के द्वारा दिए गए नाम इंडिया से ही पहचाना जाता है। उनकी ही भाषा अंग्रेजी का सहराजभाषा के रूप में हमारे देश पर राज है। उनके ही नजरिये के कारण विश्व के सबसे समृद्ध ज्ञान के भण्डार भारत को गवारों और सपेरों का देश माना जाता है। अगर ऐसा ही चलता रहा तो वह दिन दूर नहीं कि असल और खानदानी अंग्रेज इंग्लैंड में नहीं पर भारत में पैदा होंगे और हमें अपनी भाषा संस्कृति के लिए भी अमेरिका सहित पश्चिमी देशों पर निर्भर होना पड़ेगा।हिन्दी को जब हमने अपने देश में ही उचित स्थान नहीं दिया और हम अपेक्षा रखते हैं कि हिन्दी संयुक्त राष्ट्रसंघ की भाषा बने।
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विश्व में हिन्दी की स्थिति :- हिंदी विश्व में सर्वाधिक बोली जाने वाली तीसरी भाषा है। यह बहुत दुख की बात है कि अनेक प्रयासों के बावजूद हिंदी को संयुक्त राष्ट्र की भाषाओं में अभी तक स्थान नहीं प्राप्त हुआ है। विश्व के चार बहुचर्चित एवं सबसे बड़े लोकतांत्रिक देशों में है जो उचित नहीं है।
प्रथम विश्व हिंदी सम्मेलन :- 1975 में भारत में प्रथम विश्व हिंदी सम्मेलन 10-14 जनवरी 1975 को नागपुर में आयोजित किया गया था। इस सम्मेलन का उद्घाटन भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने किया था। जिसका बोधवाक्य वसुधैव कुटुंबकम था। सम्मेलन का आयोजन राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा के तत्वावधान में हुआ। सम्मेलन से सम्बन्धित राष्ट्रीय आयोजन समिति के अध्यक्ष महामहिम उपराष्ट्रपति श्री बी डी जत्ती थे। राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा के अध्यक्ष श्री मधुकर राव चैधरी उस समय महाराष्ट्र के वित्त, नियोजन अल्पबचत मन्त्री थे। सम्मेलन के मुख्य अतिथि मॉरीशस के प्रधानमन्त्री श्री शिवसागर रामगुलाम थे जिनकी अध्यक्षता में मॉरीशस से आये एक प्रतिनिधिमण्डल ने भी सम्मेलन में भाग लिया था। इस सम्मेलन में 30 देशों के कुल 122 प्रतिनिधियों ने भाग लिया।सम्मेलन में पारित किये गये मन्तव्य थे-
1- संयुक्त राष्ट्र संघ में हिन्दी को आधिकारिक भाषा के रूप में स्थान दिया जाये।
2- वर्धा में विश्व हिन्दी विद्यापीठ की स्थापना हो।
3- विश्व हिन्दी सम्मेलनों को स्थायित्व प्रदान करने के लिये अत्यन्त विचारपूर्वक एक योजना बनायी जाये।
दूसरा विश्व हिंदी सम्मेलन :- दूसरा विश्व हिंदी सम्मेलन मॉरीशस की राजधानी पोर्ट लुई में 28-30 अगस्त 1976 के बीच सम्पन्न हुआ था। इस सम्मेलन के आयोजक राष्ट्रीय आयोजन समिति के अध्यक्ष मॉरीशस के प्रधानमन्त्री डॉ॰ सर शिवसागर रामगुलाम थे। इस सम्मेलन के उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता भारत के तत्कालीन स्वास्थ्य एवं परिवार नियोजन मंत्री डॉ. कर्ण सिंह ने की थी। आभार प्रदर्शन मॉरीशस के प्रधानमंत्री सर शिव सागर रामगुलाम ने किया था। सम्मेलन में भारत से 23 सदस्यीय प्रतिनिधि मण्डल ने भाग लिया। भारत के अतिरिक्त सम्मेलन में 17 देशों के 181 प्रतिनिधियों ने भी हिस्सा लिया था।
तीसरा विश्व हिंदी सम्मेलन :- तीसरा विश्व हिंदी सम्मेलन वर्ष 28-30 अक्टूबर 1983 में भारत की राजधानी दिल्ली में आयोजित हुआ। इसमें भी वसुधैव कुटुंबकम बोधवाक्य रखा गया. भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इस सम्मेलन का उद्घाटन किया था। सम्मेलन के लिये बनी राष्ट्रीय आयोजन समिति के अध्यक्ष तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष डॉ. बलराम जाखड़ थे। इसमें मॉरीशस से आये प्रतिनिधिमण्डल ने भी हिस्सा लिया जिसके नेता थे श्री हरीश बुधू। सम्मेलन के आयोजन में राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा ने प्रमुख भूमिका निभायी। सम्मेलन में कुल 6566 प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया जिनमें विदेशों से आये 260 प्रतिनिधि भी शामिल थे। हिन्दी की सुप्रसिद्ध कवियत्री सुश्री महादेवी वर्मा समापन समारोह की मुख्य अतिथि थीं। इस अवसर पर उन्होंने दो टूक शब्दों में कहा था - भारत के सरकारी कार्यालयों में हिन्दी के कामकाज की स्थिति उस रथ जैसी है जिसमें घोड़े आगे की बजाय पीछे जोत दिये गये हों।
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चैथा विश्व हिंदी सम्मेलन :- 2-4 सितंबर 1993 में मॉरीशस के पोर्ट लुई में हिंदी सम्मेलन आयोजित किया गया. इसका उद्घाटन मॉरीशस के प्रधानमंत्री सर अनिरुद्ध जगन्नाथ ने किया था। समापन समारोह की अध्यक्षता मॉरीशस के उपराष्ट्रपति रवींद्र घरबरन ने की थी। 17 साल बाद मॉरीशस में एक बार फिर विश्व हिन्दी सम्मेलन का आयोजन किया जा रहा था। इस बार के आयोजन का उत्तरदायित्व मॉरीशस के कला, संस्कृति, अवकाश एवं सुधार संस्थान मन्त्री श्री मुक्तेश्वर चुनी ने सम्हाला था। उन्हें राष्ट्रीय आयोजन समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया गया था। इसमें भारत से गये प्रतिनिधिमण्डल के नेता श्री मधुकर राव चैधरी थे । भारत के तत्कालीन गृह राज्यमन्त्री श्री रामलाल राही प्रतिनिधिमण्डल के उपनेता थे। सम्मेलन में मॉरीशस के अतिरिक्त लगभग 200 विदेशी प्रतिनिधियों ने भी भाग लिया। चैथे विश्व हिंदी सम्मेलन में सभी के आदर सत्कार का बहुत ध्यान दिया जा रहा था। वहाँ के मंत्री सभी प्रतिनिधियों से बहुत घुल-मिल गए थे।
पांचवा विश्व हिंदी सम्मेलन :- पांचवा विश्व हिंदी सम्मेलन 1996 के साल 4-8 अप्रैल तक त्रिनिडाड एवं टुबैगो के पोर्ट ऑफ स्पेन में हुआ था। इसके उद्घाटन समारोह की त्रिनिदाद एवं टुबैगो के प्रधानमंत्री वासुदेप पांडेय ने की थी. इस सम्मेलन का विषय अप्रवासी भारतय और हिंदी था। सम्मेलन के प्रमुख संयोजक हिन्दी निधि के अध्यक्ष श्री चंका सीताराम थे । भारत की ओर से इस सम्मेलन में भाग लेने वाले प्रतिनिधिमण्डल के नेता अरुणाचल प्रदेश के राज्यपाल श्री माता प्रसाद थे। सम्मेलन का केन्द्रीय विषय था- प्रवासी भारतीय और हिन्दी। जिन अन्य विषयों पर इसमें ध्यान केन्द्रित किया गया, वे थे - हिन्दी भाषा और साहित्य का विकास, कैरेबियाई द्वीपों में हिन्दी की स्थिति एवं कप्यूटर युग में हिन्दी की उपादेयता। सम्मेलन में भारत से 17 सदस्यीय प्रतिनिधिमण्डल ने हिस्सा लिया। अन्य देशों के 257 प्रतिनिधि इसमें शामिल हुए।
छटवां विश्व हिंदी सम्मेलन :-साल 1999 के सितंबर माह में 14-18 तक ब्रिटेन के लंदन में छठवां हिंदी सम्मेलन संपन्न हुआ। इस सम्मेलन का उद्घाटन भारत तत्कालीन एनडीए सरकार में विदेश राज्य मंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया ने किया था।. हिंदी और भावी पीढ़ी इस सम्मेलन का मुख्य विषय था। यू०के० हिन्दी समिति, गीतांजलि बहुभाषी समुदाय और बर्मिंघम भारतीय भाषा संगम, यॉर्क ने मिलजुल कर इसके लिये राष्ट्रीय आयोजन समिति का गठन किया गया जिसके अध्यक्ष डॉ. कृष्ण कुमार और संयोजक डॉ. पद्मेश गुप्त थे। सम्मेलन का केंद्रीय विषय था - हिन्दी और भावी पीढ़ी। प्रतिनिधिमण्डल के उपनेता प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ. विद्यानिवास मिश्र थे। इस सम्मेलन का ऐतिहासिक महत्त्व इसलिए है क्योंकि यह हिन्दी को राजभाषा बनाये जाने के 50वें वर्ष में आयोजित किया गया। यही वर्ष सन्त कबीर की छठी जन्मशती का भी था। सम्मेलन में 21 देशों के 700 प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। इनमें भारत से 350 और ब्रिटेन से 250 प्रतिनिधि शामिल थे। इस सम्मेलन में अमरीका में विश्व हिंदी न्यास के रामदास चैधरी, दक्षिण अफ्रीका के. वी. रामविलास, पोलैंड की डॉ. दानिता स्वासीक, मारीशस के मित्र रामदेव धुरंधर, तजाकिस्तान के एच. रजारोव, फ्रांस के प्रो. एनीमोतो, ब्रिटेन की अचला शर्मा, चेक गणराज्य के डॉ. स्वतीस्लाव कोस्तिक, म्यांमार के ऊपार्गो और चीन के प्रो येंग हांगयूनद को भी सम्मानित किया गया है।
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सातवां विश्व हिंदी सम्मेलन :- सातवें विश्व हिन्दी सम्मेलन का आयोजन सुदूर सूरीनाम की राजधानी पारामारिबो में 5 जून से 9 जून 2003 के मध्य हुआ था। सूरीनाम के राष्ट्रपति रोनाल्डो रोनाल्ड वेनेत्शियान ने सातवें सम्मेलन का शुभारंभ किया था। इक्कीसवीं सदी में आयोजित यह पहला विश्व हिन्दी सम्मेलन था। सम्मेलन के आयोजक श्री जानकीप्रसाद सिंह थे । इसका केन्द्रीय विषय था - विश्व हिन्दी नई शताब्दी की चुनौतियाँ। सम्मेलन में हिस्सा लेने वाले भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व विदेश राज्य मन्त्री श्री दिग्विजय सिंह ने किया। सम्मेलन में भारत से 200 प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। इसमें 12 से अधिक देशों के हिन्दी विद्वान व अन्य हिन्दी सेवी सम्मिलित हुए। हिंदी को विश्व भाषा बनाने के लिए सातवें विश्व हिंदी सम्मेलन में दो बातों पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए। पहला हमारी सरकार संयुक्त राष्ट्रसंघ में इसे मान्यता दिलाए, दूसरे सभी लोग सरकारी और रोजमर्रा के जीवन में हिंदी को अपनाएँ और अपने बच्चों और विदेशियों को हिंदी प्रयोग में प्रोत्साहन दें।
आठवां विश्व हिंदी सम्मेलन :- 13-15 जुलाई 2007 में अमरीका के न्यायार्क में आठवें विश्व हिंदी सम्मेलन का उद्घाटन किया गया था। सम्मेलन का मुख्य विषय विश्व मंच पर हिंदी था। आठवें सम्मेलन का उद्घाटन संयुक्त राष्ट्र के सभागार में हुआ था। जिसमें स्वागत भाषण भारत के राजदूत रोनेन सेन ने दिया था। इसका आयोजन भारत सरकार के विदेश मन्त्रालय द्वारा किया गया। न्यूयॉर्क में सम्मेलन के आयोजन से सम्बन्धित व्यवस्था अमेरिका की हिन्दी सेवी संस्थाओं के सहयोग से भारतीय विद्या भवन ने की थी। इसके लिए एक विशेष जालस्थल (वेवसाइट) का निर्माण भी किया गया। इसे प्रभासाक्षी.कॉम के समूह सम्पादक बालेन्दु शर्मा दाधीच के नेतृत्व वाले प्रकोष्ठ ने विकसित किया था।
नौवां विश्व हिंदी सम्मेलन :- नौंवा हिंदी सम्मेलन 22-24 सितंबर 2012 को दक्षिण अफ्रीका के जोहांसबर्ग में हुआ था। भारत की अस्मिता और हिंदी का वैश्विक संदर्भ इस सम्मेलन का मुख्य विषय था। इस सम्मेलन में दक्षिण अफ्रीका के वित्त मंत्री प्रवीण गोर्धन और विशेष अतिथि मॉरीशस के कला एवं संस्कृति मुकेश्वर चुन्नी ने शिरकत की थी। इस सम्मेलन में 22 देशों के 600 से अधिक प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। इनमें लगभग 300 भारतीय शामिल हुए। सम्मेलन में तीन दिन चले मंथन के बाद कुल 12 प्रस्ताव पारित किए गए और विरोध के बाद एक संशोधन भी किया गया।
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दसवां विश्व हिंदी सम्मेलन :- दसवां विश्व हिंदी सम्मेलन 10 से 12 सितंबर 2015 तक भारत की ह्रदयस्थली मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल (मध्य प्रदेश) में हुआ था। जोहांसबर्ग में हुए नौवे सम्मेलन में ही निर्णय लिया गया था कि अगला विश्व हिन्दी सम्मेलन भारत में होगा।पहली बार हिंदी भाषा पर केंद्रित इस सम्मेलन में 12 विषयों पर विचार हुआ। तीन दिन हुई अलग-अलग चर्चाओं के बाद इनसे जुड़े परिणाम भी सम्मेलन में पेश किए गए। जिन पर अमल के लिए केंद्र सरकार एक समीक्षा समिति बनाएगी। सम्मेलन में सरकार की ओर से यह आश्वासन दिया गया कि जो सिफारिशें आई हैं उन पर हर संभव अमल होगा। तीन दिन चले इस सम्मेलन का समापन केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने किया। इस सम्मेलन में देश और विदेश के हिंदीसेवियों को विश्व हिंदी सम्मान से सम्मानित भी किया गया। विश्व हिंदी सम्मेलन के समापन समारोह में देश-विदेश के 34 हिंदी साहित्यकारों को विश्व हिंदी सम्मान प्रदान किया गया।
11वां विश्व हिंदी सम्मेलन :- दसवें विश्व सम्मेलन में यह निर्णय लिया गया कि अगला 11वां विश्व हिन्दी सम्मेलन मॉरीशस में 2018 में सम्पन्न होगा। अभी इस आगामी सम्मेलन की कोई रुपरेखा प्रकाश में नहीं आयी है। उम्मीद है कि इस दौर में हिन्दी अपने लक्ष्य की तरफ उत्तरोत्तर आगे बढ़ती रहेगी।


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