Monday, September 11, 2017

अध्यात्म की अधोगति राम रहीम का सच्चा सौदा - डा. राधेश्याम द्विवेदी

प्राचीनकाल में भारत अपनी उन्नति के चरम शिखर पर विराजमान था। यह ऋषि मुनियों का देश जगत्गुरु कहा जाता था। किसी देश का वास्तविक गौरव उसकी भूमि, वनस्पति, प्राकृतिक वैभव अथवा जलवायु के आधार पर निश्चित नहीं होता है। वह होता है, वहां के जनगण के विकास, उनके आचार-विचार और आचरण के आधार पर। प्राचीनकाल में इस देश के निवासी आध्यात्मिक जीवन पद्धति अपनाकर नर-रत्नों, महापुरुषों, पराक्रमियों सद्गुणियों के रूप में सुखी, सम्पन्न और दीर्घ-जीवन का गौरव पाते थे। गरीब से लेकर अमीर तक और श्रमिक से लेकर शासक वर्ग तक ऐसा कदाचित ही कोई व्यक्ति होता था, जो जीवन में अध्यात्मवाद का समावेश करके चलता हो। इसी आध्यात्मिक जीवन पद्धति के कारण ही यहां के लोग बड़े ही आदर्श और उच्च भावी होते थे और अपने साथ-साथ अपने देश को भी गौरवान्वित करते थे।भारतीय समाज आज जिस हीनावस्था में दिखाई दें रहा है, उसका कारण यही है कि उसने अपने जीवन से आध्यात्मिक आदर्शों का एक प्रकार से बहिष्कार कर दिया है। कोरे भौतिक आदर्श को अपनाकर चलने से जीवन के हर क्षेत्र में उसकी गतिविधि दूषित हो गई है। उसका चरित्र और आचरण निम्न कोटि का हो गया है। इस आदर्शहीन जीवन का जो परिणाम होना चाहिए, वह रोग-दोष, शोक सन्ताप के रूप में सबके सामने है। साधन, सामग्री और अवकाश अवसर होने पर भी कहीं भी किसी ओर सुख-शांति के दर्शन नहीं हो रहे हैं। दुर्भाग्य से आज देश में उल्टी विचार-धारा चल पड़ी है।
श्री शिव दयाल सिंह साहब द्वारा संस्थापित राधास्वामी एक पन्थ हैं। 1861 में वसंत पंचमी के दिन पहली बार इसे आम लोग के लिये जारी किया गया था। उत्तर प्रदेश के आगरा शहर में दयालबाग नामक एक प्राचीन ग्राम जो अब एक विकसित शहर की शक्ल ले लिया है, में इस राधास्वामी मत का एक मुख्य मंदिर है। विश्व में इस विचारधारा का पालन करने वाले दो करोड़ से भी अधिक लोग हैं। दयालबाग की स्थापना राधास्वामी सत्संग के पांचवे संत सत्गुरु परम गुरु हुजूर साहब जी महाराज (सर आनन्द स्वरुप साहब) ने की थी। दयालबाग की स्थापना भी बसन्त पंचमी के दिन 20 जनवरी 1915 को शहतूत का पौधा लगा कर की गई थी। दयालबाग राधास्वामी सत्संग का हेडक्वाटर है और राधास्वामी सत्संग के आठवे संत सत्गुरु परम गुरु हुजूर सत्संगी साहब (परम पुज्य डा प्रेम सरन सतसंगी साहब) का निवास भी है।
संस्थापक:- राधास्वामी मत के संस्थापक परम पुरुष पुरन धनी हुजूर स्वामी जी महाराज है। आपक जन्म 24 अगस्त 1818 को पन्नी गाली, आगरा मे हुआ था। आपका जन्म नाम श्री शिव दयाल सिह् साहब है। आप बचपन से ही सुरत शब्द योग के अभ्यास मे लीन रह्ते थे। सन 1861 से पूर्व राधास्वामी मत का उपदेश बहुत चुने हुए लोगो को ही दिया जाता था परन्तु राधास्वामी मत के दूसरे आचार्य परम गुरु हुजूर महाराज की प्रार्थना पर हुजूर स्वामी जी महाराज ने 15 फ़रवरी सन 1861 को बसन्त पन्चमी के रोज राधास्वामी मत आम लोगो के लिये जारी कर दिया। छोटी आयु में ही इनका विवाह फरीदाबाद के इज़्ज़त राय की पुत्री नारायनी देवी से हुआ। उनका स्वभाव बहुत विशाल हृदयी था और वे पति के प्रति बहुत समर्पित थीं। शिव दयाल सिंह स्कूल से ही बांदा में एक सरकारी कार्यालय के लिए फारसी के विशेषज्ञ के तौर पर चुन लिए गए। वह नौकरी उन्हें रास नहीं आई. उन्होंने वह नौकरी छोड़ दी और वल्लभगढ़ एस्टेट के ताल्लुका में फारसी अध्यापक की नौकरी कर ली. सांसारिक उपलब्धियाँ उन्हें आकर्षित नहीं करती थीं और उन्होंने वह बढ़िया नौकरी भी छोड़ दी. वे अपना समस्त समय धार्मिक कार्यों में लगाने के लिए घर लौट आए. उन्होंने 5 वर्ष की आयु से ही सुरत शब्द योग का साधन किया। 1861 में उन्होंने वसंत पंचमी (वसंत ऋतु का त्यौहार) के दिन सत्संग आम लोगो के लिये जारी किया।स्वामी जी ने अपने दर्शन का नाम "सतनाम अनामी" रखा. इस आंदोलन को राधास्वामी के नाम से जाना गया। "राधा" का अर्थ "सुरत" और स्वामी का अर्थ "आदि शब्द या मालिक", इस प्रकार अर्थ हुआ "सुरत का आदि शब्द या मालिक में मिल जाना." स्वामी जी द्वारा सिखायी गई यौगिक पद्धति "सुरत शब्द योग" के तौर पर जानी जाती है।स्वामी जी ने अध्यात्म और सच्चे 'नाम' का भेद वर्णित किया है।उन्होंने 'सार-वचन' पुस्तक को दो भागों में लिखा जिनके नाम हैं: 'सार वचन वार्तिक' (सार वचन गद्य), 'सार वचन छंद बंद' (सार वचन पद्य), 'सार वचन वार्तिक' में स्वामी जी महाराज के सत्संग हैं जो उन्होंने 1878 तक दिए. इनमें इस मत की महत्वपूर्ण शिक्षाएँ हैं। 'सार वचन छंद बंद' में उनके पद्य की भावनात्मक पहुँच बहुत गहरी है जो उत्तर भारत की प्रमुख भाषाओं यथा खड़ी बोलीअवधीब्रजभाषाराजस्थानी और पंजाबी आदि विभिन्न भाषाओं की पद्यात्मक अभिव्यक्तियों का सफल और मिलाजुला रूप है।
राधा स्वामी सत्संग:-  भारत का गुह्य धार्मिक मत है। इस मत के अनुयायी हिन्दू और सिक्ख दोनों हैं। यह एक सूफी मत वालों का संगठन होता है, जिसमें समाज के पिछड़े हुए लागों को सम्मान मिल जाता है, जो सन्तों के अन्ध भक्त होते हैं और विना श्रम व मेहनत के अच्छा जीवन जीने का सपना पाल लेते हैं। इस मत या संप्रदाय की स्थापना 1861 में शिव दयाल साहब ने की थी, जो आगरा के एक हिन्दू महाजन थे। उनका विश्वास था कि मानव अपनी उच्चतम क्षमताओं को सिर्फ ईश्वर के 'शब्द' या 'नाम' के जप द्वारा ही पूर्णता प्रदान कर सकता है।राधा स्वामी वाक्यखंड आत्मा के साथ ईश्वर, ईश्वर के नाम और ईश्वर से उत्पन्न अंतर्ध्वनि के सम्मिलन को दर्शाता है।इस संप्रदाय में सच्चे लोगों की सभा, अर्थात सत्संग को विशेष महत्व दिया जाता है।संप्रदाय के संस्थापक शिवदयाल साहब की मृत्यु के बाद राधा स्वामी संप्रदाय दो गुटों मे विभाजित हो गया। मुख्य समूह आगरा में ही स्थापित रहा, जबकि दूसरी शाखा की स्थापना शिवदयाल साहब के सिक्ख अनुयायी जयमाल सिंह ने की।इस समूह के सदस्यो को 'व्यास के राधा स्वामी' के रूप सें जाना जाता है, क्योंकि उनका मुख्यालय अमृतसर के पास व्यास नदी के तट पर है।
स्वामीबाग़ समाधि : - हुजूर स्वामी जी महाराज (श्री शिव दयाल सिंह सेठ) का स्मारक/ समाधि है। यह  आगरा के बाहरी क्षेत्र में है, जिसे स्वामी बाग कहते हैं। वे राधास्वामी मत के संस्थापक थे। उनकी समाधि उनके अनुयाइयों के लिये पवित्र है। सन् 1908 ईस्वी में इसका निर्माण आरम्भ हुआ था और कहते हैं, कि यह कभी समाप्त नहीं होगा। इसमें भी श्वेत संगमरमर का प्रयोग हुआ है। साथ ही नक्काशी बेलबूटों के लिये रंगीन संगमरमर कुछ अन्य रंगीन पत्थरों का प्रयोग किया गया है। यह नक्काशी बेल बूटे एकदम जीवंत लगते हैं। यह भारत भर में कहीं नहीं दिखते हैं। पूर्ण होने पर इस समाधि पर एक नक्काशीकृत गुम्बद शिखर के साथ एक महाद्वार होगा। इसे कभी-कभार दूसरा ताज भी कहा जाता है। आगरा से 15 किमी दूर दयाल बाग अपने आप में नैसर्गिक सुंदरता समेटे हुए है।राधास्वामी सत्संग के अनुयाइयों की यह कॉलोनी पूरे साल बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं और पर्यटकों को अपनी ओर खींचती है। 1200 एकड़ में फैला आज का दयाल बाग पहले रेत का टीला हुआ करता था। यहां के लोगों ने अथक प्रयास से दयाल बाग को हरे-भरे फुलवारी में बदल दिया।
राधा स्वामी सत्संग ब्यास :- दुनिया में कई जगह पर है। ब्यास दुनिया के 90 देशों में फैला हुआ है। जिनमें यूएसए, स्पेन, न्यूजीलैंड, ऑस्ट्रेलिया, जापान, अफ्रीका और कई नाम शामिल हैं। सभी जगह संगठन की अपनी प्रॉपर्टी है, जिसे 'साइंस ऑफ द सोल स्टडी सेंटर' के नाम से जाना जाता है। यहां ब्यास से जुड़े लोगों की मीटिंग्स होती रहती है। इसका किसी भी पॉलिटिकल और कॉमर्शियल ऑर्गनाइजेशन से कोई लेना-देना नहीं है।डेरा राधा स्वामी सत्संग ब्यास पर अवैध रेत खनन व सरकारी जमीनों पर कब्जा करने का आरोप लगा है।
पंजाब सरकार व केंद्र सरकार दोनों डेरा को वोट बैंक मानकर ऐसे कामों की इजाजत दे देती हैं, जो कानून के परिधि में आता ही नहीं। कपूरथला व अमृतसर के 44 गांव हैं, जहां पर डेरा ने हेर-फेर, जोड़-तोड़ करके जमीनें हथियाई हैं। कुछ तो पंचायतों की हैं तो कुछ गुरुद्वारों की भी। ब्यास दरिया में सबसे अधिक रेत की खनन की जा रही है, मामले दर्ज के बाद भी कोई कार्रवाई नहीं होती। तमाम ऐसी पंचायतें व गुरुद्वारे की जमीनें हैं, जिन्हें हेरफेर करके डेरे के नाम करवाया गया है।
डेरा सच्चा सौदा का इतिहास :-उत्तर भारत में डेरा सच्चा सौदा सिरसा के प्रमुख गुरमीत राम रहीम सिंह बड़ी ताकत हैं। 29 अप्रैल 1948 को तत्कालीन पंजाब के सिरसा में बलोचिस्तीनी साधू शाह मत्तन जी ने डेरा डाला, जो बाद में मस्ताना बाबा के नाम से जाने गए। उन्हीं ने अपने डेरे को सच्चा-सौदा का नाम दिया। उनका सूफी फकीर जैसा स्वाभाव था। नतीजतन लाखों लोग उनसे जुड़ते चले गए। डेरा सच्चा सौदा के आज जाने कितने अनुयायी हैं. पूरे देश में डेरा सच्चा सौदा के 50 से ज्यादा आश्रम हैं. डेरा प्रमुख का मूल काम समाजसेवा रहा है, जैसे रक्तदान और गरीबों को मदद मुहैया करवाना. डेरे का हरियाणा के सिरसा शहर में अस्पताल भी है, जहां लोगों को सस्ता इलाज मिलता है 1960 में सतनाम सिंह डेरा प्रमुख बने। 13 सितंबर 1990 में गुरमीत सिंह (वर्तमान डेरा प्रमुख) ने गद्दी संभाली।
डेरा सच्चा सौदा की स्थापना :-डेरा सच्चा सौदा की स्थापना  29 अप्रैल, 1948 को उस समय के बलूचिस्तान के मस्ताना जी महाराज ने की थी. प्राप्त जानकारी के अनुसार मस्ताना जी महाराज 1960 तक डेरा प्रमुख रहे. 1960 से 1990 तक शाह सतनाम जी महाराज डेरा प्रमुख रहे, और उन्होंने ही वर्ष 1990 में गुरमीत राम रहीम को डेरा प्रमुख बनाया. बताया जाता है उस वक्त राम रहीम की उम्र महज 23 वर्ष की थीसंत गुरमीत मूल रूप से राजस्थान के श्रीगंगानगर जिले के गांव गुरुसर मौठिया के रहने वाले हैं. गुरमीत राम रहीम सिंह का जनम १५ अगस्त १९६७ को माता नसीब कौर और पिता मघर सिंह के यहाँ गुरूसर मोदिया गांव में हुआ था। बीती 15 अगस्त को वह 50 वर्ष के हुए हैं.25 अगस्त 2017 को पंचकूला की विशेष सीबीआई(केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो) अदालत ने डेरा प्रमुख गुरमीत राम रहीम को रेप केस में दोषी करार देते हुए 20 वर्ष की सज़ा सुनाई है|
सिख समुदाय के साथ गुरमीत राम रहीम का विवाद :- शुरुआत से ही डेरा का यह संसार जितना चर्चित है, उतना ही विवादित भी रहा है. गुरमीत राम रहीम साल 2007 में उस वक्त विवादों में घिर गए थे, जब उन्हें एक विज्ञापन में सिखों के दसवें गुरु गोविंद सिंह जी के लिबास में दिखाया गया था. सिख संगठन तभी से उनके खिलाफ हैं. सिख समुदाय का मानना था कि कोई भी संत किसी की नकल नहीं करता है. सिख संगठन डेरा प्रमुख के विचारों के भी खिलाफ है क्योंकि वे अपने हाथों से अपने अनुयायियों को  जामे इंशा पिलाते थे जिन्हे उनके भक्त अमृत समझते थे। हालांकि डेरा प्रमुख ने अपने ऊपर लगे सभी आरोपों को नकारा था और कहा था कि वे गुरु साहिबान के चरणों की धूल मात्र हैं। डेरा प्रमुख को अगर मार्डन बाबा या रॉकस्टार बाबा कहा जाए तो गलत होगा क्योंकि वे जाने कितने ही नए रूपों में सामने आते हैं कभी जींस-पैंट तो कभी अलग ही स्टाइल में अपने भक्तों के सामने आते हैं। 
मॉडर्न बाबा या रॉकस्टार बाबा :- डेरा प्रमुख को अगर मॉडर्न बाबा या रॉकस्टार बाबा कहा जाए, तो गलत होगा, क्योंकि वह जाने कितने ही नए रूपों में सामने आते हैं. कभी जींस-पैंट तो कभी अलग ही स्टाइल में अपने भक्तों के सामने आते हैंऐसा कहा जाता है कि दिन में तीन बार डेरा प्रमुख अपनी ड्रेस बदलते हैं और तीन बार ही अलग-अलग स्टाइल में मंच पर एंट्री भी मारते हैं, लेकिन उनको समर्थकों को उनका हर अवतार पसंद है. हाल ही में डेरा प्रमुख अपनी फिल्म 'मैसेंजर ऑफ गॉड' को लेकर भी चर्चा में थे.डेरा प्रमुख का विवादों से नाता नया नहीं है। 47 साल के बाबा राम रहीम मूल रूप से राजस्थान के श्रीगंगानगर के रहने वाले हैं। उन्होंने 1990 में डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख के रूप में डेरे को संभाला। डेरा प्रमुख तीन बार अपनी ड्रेस भी बदलते हैं और तीन बार ही अलग-अलग स्टाइल में मंच पर एंट्री भी मारते हैं लेकिन उनके अनुयायियों को उनका हर लुक पंसद है। हाल ही में डेरा प्रमुख अपनी फिल्म मैसेंजर ऑफ गॉड को लेकर चर्चा में हैं। 
बाबा के अनेक काले कारनामें:-2002 में बाबा राम रहीम पर अपने आश्रम की साध्वियों के साथ बलात्कार करने के आरोप लगे थे. सिरसा के पत्रकार रामचंद्र छत्रपति और डेरा के पूर्व मैनेजर रणजीत सिंह की हत्या में भी बाबा राम रहीम का हाथ होने का आरोप लगा है। हत्या और बलात्कार के इन मामलों की जांच सी.बी.आई कर रही है और बाबा राम रहीम इन केसों में जमानत पर है लेकिन खुद बाबा इन सारे आरोपों से साफ इंकार करते हैं।  दूसरी ओर डेरा प्रमुख पर 400 साधुओं को नपुंसक बनाने का मामला भी दर्ज है। डेरा में यह कहकर साधुओं को नपुंसक बनाया गया था कि नपुंसक बनाए जाने से वे लोग डेरा प्रमुख जरिए प्रभु को महसूस कर सकेंगे। डेरा प्रमुख ने अपनी फिल्म का खुद ही निर्माण और संगीत तैयार किया है। 




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