Tuesday, September 5, 2017

पूर्वांचल के मजबूत स्तम्भ के रुप में शिव प्रताप शुक्ला - डा. राधेश्याम द्विवेदी


जन्म शिक्षा:  शिव प्रताप शुक्ल उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल खासकर गोरखपुर के आसपास के इलाकों में बीजेपी के अहम नेता माने जाते हैं. वह उत्तर प्रदेश से राज्यसभा सांसद ग्रामीण विकास पर संसद की स्टैंडिंग कमिटी के सदस्य रहे हैं । 1989 से 1996 तक लगातार चार बार विधायक रहे। यूपी सरकार में आठ साल तक कैबिनेट मंत्री रहे। ग्रामीण विकास, शिक्षा और जेल सुधार को लेकर किए गए अपने काम के लिए जाने जाते हैं। गोरखपुर विश्वविद्यालय से कानून की पढ़ाई की। परिवार में उनके परिवार में पत्नी और तीन पुत्रियां हैं. 1970 में उन्होंने अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से राजनीतिक करियर की शुरुआत की. छात्र आन्दोलन के दौरान शिव प्रताप शुक्ला कई बार जेल भी गए. फिर 1981 में वह भारतीय जनता युवा मोर्चा के प्रांतीय सचिव चुने गए.इमरजेंसी के दौरान शिव प्रताप शुक्ला भी मीसा के तहत गिरफ्तार किए गए थे. वह 26 जून 1975 से 1977 तक करीब 19 महीने जेल में रहे. विधायकी हारे तो संगठन में सक्रिय हुए। लो प्रोफाइल रहना शिव प्रताप शुक्ला की पहचान माना जता है। शिव प्रताप शुक्ला इस समय ग्रामीण विकास के लिए संसद की स्थाई समिति के सदस्य हैं। वह उत्तर प्रदेश विधानसभा के लिए लगातार चार बार 1989, 1991, 1993 और 1996 में चुने गए।
अनुभव :- बीजेपी सरकारों में उन्होंने मंत्री रहते हुए कई विभागों की जिम्मेदारी संभाली। ग्रामीण विकास, शिक्षा और जेल सुधार की दिशा में किए गए कार्यों के लिए जाना जाता है। एक अप्रैल 1952 को उत्तर प्रदेश के खजनी में शिव प्रताप शुक्ला का जन्म हुआ। उन्होंने गोरखपुर विश्वविद्यालय से एलएलबी किया। परिवार में उनके परिवार में पत्नी और तीन बेटिया हैं। 1970 में उन्होंने अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से राजनीतिक करियर की शुरुआत की। छात्र आन्दोलन के दौरान शिव प्रताप शुक्ला कई बार जेल भी गए। फिर 1981 में वह भारतीय जनता युवा मोर्चा के प्रांतीय सचिव चुने गए। इमरजेंसी के दौरान शिव प्रताप शुक्ला भी मीसा के तहत गिरफ्तार किए गए थे। वह 26 जून 1975 से 1977 तक करीब 19 महीने जेल में रहे। विधानसभा के सफर की बात करें तो शिव प्रताप शुक्ला पहली बार 1989 में गोरखपुर शहर से बीजेपी के टिकट पर विधायक बने। इसके बाद वह 1991, 1993 और 1996 में लगातार विधायक चुने गए। इस दौरान बीजेपी सरकारों में उन्हें मंत्री पद की भी जिम्मेदारी मिली। शिव प्रताप शुक्ला गोरखपुर सदर से लगातार चार बार विधायक रह चुके हैं. ज़िले में शुक्ल के बढ़ते प्रभाव को योगी सहन नहीं कर पाए. 2002 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने शिवप्रताप शुक्ल के ख़िलाफ़ एक निर्दलीय उम्मीदवार राधा मोहन अग्रवाल को लड़ाया. शुक्ल को पार्टी का समर्थन था, लेकिन फिर भी वह योगी के प्रभाव के सामने पराजित हुए. उसके बाद आज तक शुक्ल ने कोई भी चुनाव नहीं लड़ा. पंचायत का भी नहीं. शुक्ल ने योगी के सामने समर्पण भी नहीं किया. वह संगठन में सक्रिय हो गए. पिछले 14 साल से वह भाजपा की राज्य इकाई में विभिन्न पदों पर काम करते रहे. बीजेपी प्रदेश उपाध्यक्ष के रूप में शिव प्रताप ने अपनी जिम्मेदारियां बखूबी निभाईं. संगठन में उनके कार्यों का ही असर रहा कि पिछले साल 2016 में ही पार्टी ने उन्हें राज्यसभा भेजने का फैसला किया.साथ ही इस दौरान भारतीय जनता पार्टी में राज्य इकाई से लेकर केंद्रीय नेतृत्व और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रभावशाली अधिकारियों तक, सभी से उन्होंने गुहार लगाई कि उन्हें कहीं तो समायोजित किया जाए.
योगी जी के समानान्तर मजबूत स्तम्भ हेतु योजना के तहत चयन:-गोरखपुर की राजनीति में शिव प्रताप शुक्ला को योगी आदित्यनाथ का विरोधी माना जाता है. कई मुद्दों पर दोनों की अलग-अलग राय देखने को मिलती है. लो प्रोफाइल रहना शिव प्रताप शुक्ला की पहचान माना जाता है.यदि योगी के प्रभाव में पार्टी उन्हें लोकसभा या विधानसभा का चुनाव नहीं लड़ा सकती तो कम-से-कम विधान परिषद में तो नामित कर ही सकती है. लेकिन योगी आदित्यनाथ का प्रभाव अधिक था शुक्ल को किसी भी जगह पर सफलता नहीं मिली. जो व्यक्ति अपनी पूरी ताक़त विधान परिषद की सदस्यता पाने के लिए लगा रहा था अचानक उसे पिछले साल राज्यसभा में भेज दिया गया. और तब भी शुक्ल भी अंदाज नहीं होगा कि अगले एक साल मे वे केंद्रीय मंत्री भी बन जाएंगे. शुक्ल की केंद्रीय मंत्रिमंडल में नियुक्ति योगी को किसी प्रकार की चुनौती देने के लिए नहीं है. ही योगी के स्थान पर गोरखपुर से अगला लोकसभा चुनाव शुक्ल को लड़ाने का पार्टी का इरादा है. उनका तो अभी राज्यसभा का पांच वर्ष का कार्यकाल बाकी है. गोरखपुर से केवल वही उम्मीदवार भाजपा के टिकट पर लड़कर कामयाब हो सकता है जिसे योगी आदित्यनाथ का आशीर्वाद प्राप्त हो.योगी के खिलाफ जाने का हश्र शिवप्रताप शुक्ला से बेहतर दूसरा कोई भी नहीं जानता.शुक्ल की केंद्रीय मंत्रिमंडल में नियुक्ति योगी आदित्यनाथ की निरंकुश राजनीतिक शैली पर अंकुश ज़रूर लगा सकती है. संघ के दबाव में योगी को मुख्यमंत्री तो बना दिया गया है, लेकिन तेज़ रफ़्तार से सरकार चला रहे योगी पर काबू करने के लिए पार्टी नेतृत्व तरह तरह के उपाय कर रहा है.योगी को हटाने का जोखिम भी कोई मोल लेना नहीं चाहते क्योंकि इससे पूरे राज्य में ठाकुर भाजपा से नाराज हो जाएंगे. भाजपा नेतृत्व को अहसास है कि योगी पार्टी से बाहर रहकर कल्याण सिंह की तरह भाजपा का कल्याण करने में पूरी तरह सक्षम हैं.इसीलिए शेर की सवारी कर रही पार्टी किसी तरह इस शेर की रफ़्तार पर काबू पाना चाहती है.
ब्राहमण चेहरा के रुप में भी अवसर मिला :- ऐसा नहीं है कि शुक्ल को मंत्री बनाने के राजनीतिक निहितार्थ नहीं हैं. योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद उत्तर प्रदेश में राजपूतों का बोलबाला है और ब्राह्मणों में नाराज़गी व्याप्त है.कलराज मिश्र की केंद्रीय मंत्रिमंडल से छुट्टी होने के बाद भाजपा को उत्तर प्रदेश से एक ब्राह्मण नेता की तलाश थी. उप मुख्यमंत्री की कुर्सी पर विराजमान डॉक्टर दिनेश शर्मा का उत्तर प्रदेश के ब्राह्मणों पर बहुत अधिक असर नहीं है. रमापति राम त्रिपाठी और हरीश द्विवेदी जैसे नेता पार्टी के उम्र के पैमाने पर खरे नहीं उतर रहे थे. शिवप्रताप शुक्ल भी कलराज मिश्र की तरह पूर्वी उत्तर प्रदेश से आते हैं. राज्य के संगठन मंत्री सुनील बंसल और उत्तर प्रदेश भाजपा के प्रभारी ओम प्रकाश माथुर से उनके अच्छे संबंध है. प्रदेश के मौजूदा ब्राम्हण नेताओं में वरिष्ठता और परिपक्वता की दृष्टि से शुक्ल नरेंद्र मोदी और अमित शाह के गणित में ठीक बैठते हैं.



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