Saturday, June 3, 2017

दिव्य संत देवरहा बाबा के अजब गजब कारनामें डा. राधेश्याम द्विवेदी


जन्म और परिचय- सिद्ध योगी देवरहा बाबा का जन्म उत्तर प्रदेश के तत्कालीन गोरखपुर तथा वर्तमान बस्ती जिले के सरयू तट स्थित उमरिया नामक गांव में हुआ था। उनका बचपन का नाम जनार्दन दत्त था। उनके पिता का नाम पं. राम यश दूबे था। पिता जी अपने तीनों बेटों से खेती का काम ही कराना चाहते थे। जनार्दन सबसे छोटे भाई थे। अपनी प्रारम्भिक शिक्षा समाप्त कर वे संस्कृत अध्ययन के लिए काशी में गये थे। भदौनी निवासी पं. गया प्रसाद ज्योतिषी के यहां रहकर वे संस्कृत व्याकरण का अध्ययन करने लगे थे। कई वर्ष काशी में अध्ययनरत रहने के बाद जनार्दन दत्त स्वामी निरंजन देव सरस्वती के साथ हरिद्वार गये। हरिद्वार कुम्भ मेले के दौरान जनार्दन दत्त का अपने पिता पं. राम यश दूबे से अचानक मिलना हो गया।
पिता जी को देखते ही जनार्दन दत्त भयभीत हो गये। उनके घर चलने के लिए कहने पर वह उनके साथ चलने के लिए तैयार भी हो गये थे। रास्तें में पिताजी की इच्छा अयोध्या में राम जी के दर्शन की हुई। जहां अचानक पिता जी का निधन हो गया। इस घटना से जनार्दन दत्त घबरा गये। वह अपने पिता का दाह संस्कार वहीं कर दिया और घर आकर सारी घटना कह सुनाई। पिताजी के निधन के बाद उनके परिवार के विरोधियों ने उन्हें आतंकित करना प्रारम्भ कर दिया। विरोधियों से बचने के लिए जनार्दन दत्त को अपनी जन्म भूमि छोड़नी पड़ी। उन्हें गोरखपुर/ बस्ती जिले के देवरा (एक प्रकार का छोटा पौधा) के घने जंगलों में लम्बे समय तक रुकना छिपना पड़ा था। इससे उनके केश बाल और दाढ़ी बहुत बढ़ गये थे। कोई उस जंगल में अचानक जनार्दन दत्त को देखकर उन्हे देवरा बाबा कह भय से वहां से भाग गया था। अब जनार्दन दत्त की पहचान छिपी नहीं रही। बाद में लोग उन्हें देवरा की जगह देवरहा बाबा कहने लगे थे। इस नये परिचय से नयी पहचान लेकर वे अपने गुरु स्वामी निरंजन देव सरस्वती के सानिध्य में रहकर योग साधना में बर्षों तक संलग्न रहे। देवरहा बाबा कठोर साधना करते हुए एषणा शक्ति अर्जित करने के बाद तत्कालीन गोरखपुर तथा वर्तमान  देवरिया जिले के मइल ग्राम में सरयू तट पर मचान बनाकर रहने लगे थे। बाबा मथुरा में यमुना के किनारे रहा करते थे। यमुना किनारे लकडिय़ों की बनी एक मचान उनका स्थाई बैठक स्थान था। बाबा इसी मचान पर बैठकर ध्यान, योग किया करते थे। भक्तों को दर्शन और उनसे संवाद भी यहीं से होता था। कहा जाता है कि जिस भक्त के सिर पर बाबा ने मचान से अपने पैर रख दिए, उसके वारे-न्यारे हो जाते थे। उन्होंने कभी अन्न नहीं खाया, बाबा केवल यमुना नदी का पानी पीते थे।जब उनकी इच्छा होती तो वह काशी, मथुरा ,अयोध्या, वृन्दाबन झूसी आदि स्थानों पर मंच बनवाकर वहीं लागों को दर्शन तथा आशीर्वाद देने लगे थे। उनहे सामान्य शिक्षा होने के बावजूद वेद पुरान गीता रामायण तथा मनुस्मृति आदि अच्छे ग्रंथों का अच्छा ज्ञान था। उन्हें कई विदेशी भाषायें भी आती थी। विदेशी ज्ञानार्थियों को वह उनहीं की भाषा में बात करते थे।
सही आयु का आकलन नहीं :- भारत के इतिहास में कई साधू संत ऐसे हुए है जो किसी परिचय के मोहताज नही जिनकी कृति से विश्व आज तक गुंजायमान है। ऐसे ही एक संत हुए देवरहा बाबा जिनके बारे में कहा जाता है की वो लगभग 900 वर्ष तक जीवित रहें। उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले के दियारा इलाके में मइल गांव के रहने वाले थे। वो एक योगी, सिद्ध महापुरुष एवं सन्तपुरुष और बाबा थे । डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, महामना मदन मोहन मालवीय, पुरुषोत्तमदास टंडन, जैसी विभूतियों ने पूज्य देवरहा बाबा के समय-समय पर दर्शन कर अपने को कृतार्थ अनुभव किया था। देवरहा बाबा की सही आयु का आकलन भी नहीं है। 19 जून सन् 1990 को योगिनी एकादशी के दिन अपना प्राण त्यागने वाले इस बाबा के जन्म के बारे में संशय है। कहा जाता है कि वह करीब 900 साल तक जिन्दा थे। (बाबा के संपूर्ण जीवन के बारे में अलग-अलग मत है, कुछ लोग उनका जीवन 250 साल तो कुछ लोग 500 साल मानते है।) श्रद्धालुओं के कथनानुसार बाबा अपने पास आने वाले प्रत्येक व्यक्ति से बड़े प्रेम से मिलते थे और सबको कुछ न कुछ प्रसाद अवश्य देते थे। प्रसाद देने के लिए बाबा अपना हाथ ऐसे ही मचान के खाली भाग में रखते थे और उनके हाथ में फल, मेवे या कुछ अन्य खाद्य पदार्थ आ जाते थे जबकि मचान पर ऐसी कोई भी वस्तु नहीं रहती थी। श्रद्धालुओं को कौतुहल होता था कि आखिर यह प्रसाद बाबा के हाथ में कहाँ से और कैसे आता है ?
अष्टांग योग में पारंगत:-पूज्य महर्षि पातंजलि द्वारा प्रतिपादित अष्टांग योग में पारंगत देवरहा बाबा थे। लोगों में विश्वास है कि, बाबा जल पर चलते भी थे और अपने किसी भी गंतव्य स्थान पर जाने के लिए उन्होंने कभी भी सवारी नहीं की और ना ही उन्हें कभी किसी सवारी से कहीं जाते हुए देखा गया। बाबा हर साल कुंभ के समय प्रयाग आते थे। मार्कण्डेय सिंह के अनुसार, वह किसी महिला के गर्भ से नहीं बल्कि पानी से अवतरित हुए थे। यमुना के किनारे वृन्दावन में वह 30 मिनट तक पानी में बिना सांस लिए रह सकते थे। उनको जानवरों की भाषा समझ में आती थी। खतरनाक जंगली जानवारों को वह पल भर में काबू कर लेते थे।लोगों का मानना है, कि बाबा को सब पता रहता था कि कब, कौन, कहाँ उनके बारे में चर्चा हुई। वह अवतारी व्यक्ति थे। उनका जीवन बहुत सरल और सौम्य था। वह फोटो कैमरे और टीवी जैसी चीजों को देख अचंभित रह जाते थे। वह उनसे अपनी फोटो लेने के लिए कहते थे। लेकिन आश्चर्य की बात यह थी कि उनका फोटो कभी नहीं बनता था। वह नहीं चाहते तो रिवाल्वर से गोली नहीं चलती थी। उनका निर्जीव वस्तुओं पर नियंत्रण था।
चमत्कारिक दावा नहीं :- अपनी उम्र, कठिन तप और सिद्धियों के बारे में देवरहा बाबा ने कभी भी कोई चमत्कारिक दावा नहीं किया, लेकिन उनके इर्द-गिर्द हर तरह के लोगों की भीड़ ऐसी भी रही जो हमेशा उनमें चमत्कार खोजते देखी गई। अत्यंत सहज, सरल और सुलभ बाबा के सानिध्य में जैसे वृक्ष, वनस्पति भी अपने को आश्वस्त अनुभव करते रहे। भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने उन्हें अपने बचपन में देखा था। देश-दुनिया के महान लोग उनसे मिलने आते थे और विख्यात साधू-संतों का भी उनके आश्रम में समागम होता रहता था। उनसे जुड़ीं कई घटनाएं इस सिद्ध संत को मानवता, ज्ञान, तप और योग के लिए विख्यात बनाती हैं।मिथिलेश द्विवेदी के अनुसार, मुझे अच्छी तरह याद है और मैं वहाँ मौजूद भी था।कोई 1987 की बात होगी,  जून का ही महीना था। वृंदावन में यमुना पार देवरहा बाबा का डेरा जमा हुआ था। अधिकारियों मेंअफरातफरी मची थी। प्रधानमंत्री राजीव गांधी को बाबा के दर्शन करने आना था। प्रधानमंत्री के आगमन और यात्रा के लिए इलाके की मार्किंग कर ली गई। आला अफसरों ने हैलीपैड बनाने के लिए वहां लगे एक बबूल के पेड़ की डाल काटने के निर्देश दिए। भनक लगते ही बाबा ने एक बड़े पुलिस अफसर को बुलाया और पूछा कि पेड़ को क्यों काटना चाहते हो ? अफसर ने कहा, प्रधानमंत्री की सुरक्षा के लिए जरूरी है. बाबा बोले, तुम यहां अपने पीएम को लाओगे, उनकी प्रशंसा पाओगे, पीएम का नाम भी होगा कि वह साधु-संतों के पास जाता है, लेकिन इसका दंड तो बेचारे पेड़ को भुगतना पड़ेगा! वह मुझसे इस बारे में पूछेगा तो मैं उसे क्या जवाब दूंगा? नही ! यह पेड़ नहीं काटा जाएगा। अफसरों ने अपनी मजबूरी बताई कि, यह दिल्ली से आए अफसरों का आदेश है, इसलिए इसे काटा ही जाएगा और फिर पूरा पेड़ तो नहीं कटना है, इसकी एक टहनी ही काटी जानी है, मगर बाबा जरा भी राजी नहीं हुए।उन्होंने कहा कि, यह पेड़ होगा तुम्हारी निगाह में, मेरा तो यह सबसे पुराना साथी है, दिन रात मुझसे बतियाता है, यह पेड़ नहीं कट सकता। इस घटनाक्रम से बाकी अफसरों की दुविधा बढ़ती जा रही थी, आखिर बाबा ने ही उन्हें तसल्ली दी और कहा कि घबड़ा मत, अब पीएम का कार्यक्रम टल जाएगा, तुम्हारे पीएम का कार्यक्रम मैं कैंसिल करा देता हूं। आश्चर्य कि, दो घंटे बाद ही पीएम आफिस से रेडियोग्राम आ गया की प्रोग्राम स्थगित हो गया है, कुछ हफ्तों बाद राजीव गांधी वहां आए, लेकिन पेड़ नहीं कटा। इसे क्या कहेंगे चमत्कार या संयोग. बाबा की शरण में आने वाले कई विशिष्ट लोग थे।
हठयोग सीखने लोग आते:- उनके भक्तों में जवाहर लाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री , इंदिरा गांधी जैसे चर्चित नेताओं के नाम हैं। उनके पास लोग हठयोग सीखने भी जाते थे। सुपात्र देखकर वह हठयोग की दसों मुद्राएं सिखाते थे। योग विद्या पर उनका गहन ज्ञान था। ध्यान, योग, प्राणायाम, त्राटक समाधि आदि पर वह गूढ़ विवेचन करते थे। कई बड़े सिद्ध सम्मेलनों में उन्हें बुलाया जाता, तो वह संबंधित विषयों पर अपनी प्रतिभा से सबको चकित कर देते। लोग यही सोचते कि इस बाबा ने इतना सब कब और कैसे जान लिया. ध्यान, प्रणायाम, समाधि की पद्धतियों के वह सिद्ध थे ही. धर्माचार्य, पंडित, तत्वज्ञानी, वेदांती उनसे कई तरह के संवाद करते थे। उन्होंने जीवन में लंबी लंबी साधनाएं कीं। जन कल्याण के लिए वृक्षों-वनस्पतियों के संरक्षण, पर्यावरण एवं वन्य जीवन के प्रति उनका अनुराग जग जाहिर था।
बाबा के आशीर्वाद कांग्रेस प्रचंड बहुमत प्राप्त किया:-देश में आपातकाल के बाद हुए चुनावों में जब इंदिरा गांधी हार गईं तो वह भी देवरहा बाबा से आशीर्वाद लेने गईं। उन्होंने अपने हाथ के पंजे से उन्हें आशीर्वाद दिया। वहां से वापस आने के बाद इंदिरा ने कांग्रेस का चुनाव चिह्न बेलो की जोड़ी से हटाकर हाथ का पंजा निर्धारित कर दिया। इसके बाद 1980 में इंदिरा के नेतृत्व में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने प्रचंड बहुमत प्राप्त किया और वह देश की प्रधानमंत्री बनीं।वहीं, यह भी मान्यता है कि इन्दिरा गांधी आपातकाल के समय कांची कामकोटि पीठ के शंकराचार्य स्वामी चन्द्रशेखरेन्द्र सरस्वती से आर्शीवाद लेने गयीं थी। वहां उन्होंने अपना दाहिना हाथ उठाकर आर्शीवाद दिया और हाथ का पंजा पार्टी का चुनाव निशान बनाने को कहा।
खेचरी मुद्रा पर बाबा की सिद्धि:- जनश्रूति के मुताबिक, वह खेचरी मुद्रा की वजह से आवागमन से कहीं भी कभी भी चले जाते थे। उनके आस-पास उगने वाले बबूल के पेड़ों में कांटे नहीं होते थे। चारों तरफ सुंगध ही सुंगध होता था। देवरहा बाबा को खेचरी मुद्रा पर सिद्धि थी जिस कारण वे अपनी भूख और आयु पर नियंत्रण प्राप्त कर लेते थे। बाबा महान योगी और सिद्ध संत थे। उनके चमत्कार हज़ारों लोगों को झंकृत करते रहे। आशीर्वाद देने का उनका ढंग निराला था। मचान पर बैठे-बैठे ही अपना पैर जिसके सिर पर रख दिया, वो धन्य हो गया। पेड़-पौधे भी उनसे बात करते थे। उनके आश्रम में बबूल तो थे, मगर कांटे विहीन। यही नहीं यह खुशबू भी बिखेरते थे। उनके दर्शनों को प्रतिदिन विशाल जनसमूह उमड़ता था। बाबा भक्तों के मन की बात भी बिना बताए जान लेते थे। उन्होंने पूरा जीवन अन्न नहीं खाया। दूध व शहद पीकर जीवन गुजार दिया। श्रीफल का रस उन्हें बहुत पसंद था
बाबा की ख्याति:- बाबा की ख्याति इतनी कि जार्ज पंचम जब भारत आया तो अपने पूरे लाव लश्कर के साथ उनके दर्शन करने देवरिया जिले के दियारा इलाके में मइल गांव तक उनके आश्रम तक पहुंच गया। दरअसल, इंग्लैंड से रवाना होते समय उसने अपने भाई से पूछा था कि, क्या वास्तव में इंडिया के साधु संत महान होते हैं। प्रिंस फिलिप ने जवाब दिया- हां, कम से कम देवरहा बाबा से जरूर मिलना। यह सन 1911 की बात है। जार्ज पंचम की यह यात्रा तब विश्वयुद्ध के मंडरा रहे माहौल के चलते भारत के लोगों को बरतानिया हुकूमत के पक्ष में करने की थी। उससे हुई बातचीत बाबा ने अपने कुछ शिष्यों को बतायी भी थी, लेकिन कोई भी उस बारे में बातचीत करने को आज भी तैयार नहीं। डाक्टर राजेंद्र प्रसाद तब रहे होंगे कोई दो-तीन साल के, जब अपने माता-पिता के साथ वे बाबा के यहां गये थे। बाबा देखते ही बोल पड़े-यह बच्चा तो राजा बनेगा। बाद में राष्ट्रपति बनने के बाद उन्होंने बाबा को एक पत्र लिखकर कृतज्ञता प्रकट की और सन 1954 के प्रयाग कुंभ में बाकायदा बाबा का सार्वजनिक पूजन भी किया। उनके भक्त उन्हें दया का महासमुंदर बताते हैं। और अपनी यह सम्पत्ति बाबा ने मुक्त हस्तज लुटाई। जो भी आया, बाबा की भरपूर दया लेकर गया। वितरण में कोई विभेद नहीं, वर्षाजल की भांति बाबा का आशीर्वाद सब पर बरसा और खूब बरसा। मान्यता थी कि, बाबा का आशीर्वाद हर रोग की दवाई है।
बाबा की दिव्यदृष्ठि :- कहा जाता है कि, बाबा देखते ही समझ जाते थे कि सामने वाले का सवाल क्या है। दिव्यदृष्ठि के साथ तेज नजर, कड़क आवाज, दिल खोल कर हंसना, खूब बतियाना बाबा की आदत थी। याददाश्त इतनी कि दशकों बाद भी मिले व्यक्ति को पहचान लेते और उसके दादा-परदादा तक का नाम व इतिहास तक बता देते, किसी तेज कम्प्युटर की तरह। बलिष्ठ कदकाठी भी थी। लेकिन देह त्याहगने के समय तक वे कमर से आधा झुक कर चलने लगे थे। उनका पूरा जीवन मचान में ही बीता। लकडी के चार खंभों पर टिकी मचान ही उनका महल था, जहां नीचे से ही लोग उनके दर्शन करते थे। मइल में वे साल में आठ महीना बिताते थे। कुछ दिन बनारस के रामनगर में गंगा के बीच, माघ में प्रयाग, फागुन में मथुरा के मठ के अलावा वे कुछ समय हिमालय में एकांतवास भी करते थे। खुद कभी कुछ नहीं खाया, लेकिन भक्तनगण जो कुछ भी लेकर पहुंचे, उसे भक्तों पर ही बरसा दिया। उनका बताशा-मखाना प्राप्त करने के लिए सैकडों लोगों की भीड हर जगह जुटती थी। 
जीवनभर अन्न ग्रहण नहीं किया:- देवरहा बाबा ने जीवनभर अन्न ग्रहण नहीं किया। वे यमुना का पानी पीते थे अथवा दूध, शहद और श्रीफल के रस का सेवन करते थे। तो क्या इसका मतलब उन्हें भूख नहीं लगती थी। इस प्रश्न का जवाब कई वैज्ञानिक अध्ययनों में मिलता है। एक अध्ययन के अनुसार अगर कोई व्यक्ति ब्रह्माण्ड की ऊर्जा से शरीर के लिए आवश्यक एनर्जी प्राप्त कर ले और उसे भूख ना लगे यह संभव है। साथ ही अगर कोई व्यक्ति ध्यान क्रिया करे और उसकी लाइफस्टाइल संयत और संतुलित हो तो भी लम्बे जीवन की अपार संभावनाएं होती हैं। इसके अतिरिक्त आयु बढ़ाने के लिए किए जाने वाली योग क्रियाएं करे, तो भी लम्बा जीवन सपना नहीं। हालांकि अध्ययन के अनुसार इन तीनों चीजों का एक साथ होना आवश्यक है।
एक समय में दो स्थानों पर उपस्थिति :- बाबा देवरहा एक साथ दो अलग जगहों पर भी प्रकट हो सकते थे।
कहा जाता है कि बाबा एक साथ दो अलग-अलग जगहों पर उपस्थित होने का दावा करते थे। इसके पीछे पतंजलि योग सूत्र में वर्णित सिद्धी थी। बाबा के पास इस तरह की कई और सिद्धियां भी थी। इनमें से एक और सिद्धी थी पानी के अंदर बिना सांस लिए आधे घंटे तक रहने की। इतना ही नहीं बाबा जंगली जानवरों की भाषा भी समझ लेते थे। कहा जाता है कि वह खतरनाक जंगली जानवरों को पल भर में काबू कर लेते थे। पलक झपकते ही हाथ में आ जाता था कुछ भी बाबा देवरहा के बारे में कहा जाता है कि उनको कहीं भी आवागमन की सिद्धी प्राप्त थी। वे पल भर में कहीं भी चले जाते थे। इसकी वजह खेचरी मुद्रा को माना जाता था। हालांकि बाबा को किसी ने कहीं आते-जाते नहीं देखा था। उनके अनुयायियों के अनुसार बाबा के पास जो भी आता उसे वे प्रसाद जरूर देते थे। बाबा मचान पर बैठे-बैठे अपना हाथ मचान के खाली भाग में करते और उनके हाथ में मेवे, फल और कई अन्य तरह के खाद्य पदार्थ आ जाते थे। कहा तो यह भी जाता है कि बाबा के रहने के स्थान के आस-पास के बबूल के पेड़ों के कांटे भी नहीं होते थे। 
दिव्यदृष्टि से करते थे समाधान- बाबा के अनुयायियों के अनुसार बाबा को दिव्यदृष्टि की सिद्धी प्राप्त थी। बाबा बिना कहे-सुने ही अपने पास आने वालों की समस्याओं और उनकी मन की बात जान लिया करते थे। याद्दाश्त उनकी इतनी गजब की थी कि वे दशकों बाद भी किसी व्यक्ति से मिलते थे उसके दादा-परदादा तक के नाम और इतिहास बता दिया करते थे।
भक्तों में नेता भी- बाबा अपनी युवावस्था में मजबूत कद-काठी के हुआ करते थे, लेकिन वृद्धावस्था में उनकी कमर झुक गई थी। चलते समय उन्हें कमर को झुका के चलना पड़ता था। आपको बता दें कि बाबा के भक्तों में ना केवल आम नागरिक थे बल्कि दिग्गज राजनीतिक हस्तियां भी थीं। इनमें से प्रमुख हैं, पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, पूर्व गृह मंत्री नेता बूटा सिंह, मौजूदा कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और देश के पहले राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद। ये कई बार बाबा का आशीर्वाद लेने के लिए उनके पास जाते थे। हालांकि ज्यादातर समय ये नेता चुनावों के दौरान बाबा के दर्शनों के लिए गए। शायद इसके पीछे बाबा से जीत का आशीर्वाद लेना ही प्रमुख वजह रही हो।
डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने लगाई बाबा की उम्र पर मोहर:- बताया जाता है कि देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद ने बाबा की लम्बी आयु होने का दावा किया था। कहा जाता है कि उन्होंने बाबा की उम्र करीब 150 साल होने की बात कही। उनके अनुसार जब वे स्वयं 73 साल के थे, तब उनके पिता उनको बाबा के दर्शनों के लिए ले गए। उनके पिता की उम्र भी कहीं ज्यादा थी। और राष्ट्रपति के पिता कई सालों से बाबा देवरहा को जानते थे। इस बात से बाबा की उम्र बहुत लम्बी रही होगी, इसका अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है। हालांकि डॉ राजेन्द्र प्रसाद के इस बयान का कोई विश्वसनीय स्त्रोत नहीं मिल पाया है।
पांच साल पहले ही बता दिया था उनकी मृत्यु का समय :- कहा जाता है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक वकील ने दावा किया था कि उसके परिवार की सात पीढिय़ों ने देवहरा बाबा को देखा है। उनके अनुसार देवहरा बाबा ने अपनी देह त्यागने के 5 साल पहले ही मृत्यु का समय बता दिया था। ऐसे ही कई और सुनी-सुनाई बाते हैं जो बाबा देवहरा के बारे में कही जाती हैं। हालांकि उन्होंने स्वयं इस तरह का दावा कभी नहीं किया। उनके अनुयायियों ने ही अपने तरीके से तथ्य बनाए और उनका प्रचार आगे से आगे होता रहा। अचानक 11 जून 1990 को उन्होंने दर्शन देना बंद कर दिया। लगा जैसे कुछ अनहोनी होने वाली है। मौसम तक का व्यवहार बदल गया। यमुना की लहरें तक बेचैन होने लगीं। मचान पर बाबा त्रिबंध सिद्धासन पर बैठे ही रहे. डॉक्टरों की टीम ने थर्मामीटर पर देखा कि, पारा अंतिम सीमा को तोड निकलने पर तैयार है। 19 जून को मंगलवार के दिन योगिनी एकादशी थी। आकाश में काले बादल छा गये, तेज आंधियां तूफान ले आयीं। यमुना जैसे समुंदर को मात करने पर उतावली थी। लहरों का उछाल बाबा की मचान तक पहुंचने लगा। और इन्हीं सबके बीच शाम चार बजे बाबा का शरीर स्पंदनरहित हो गया। भक्तों की अपार भीड भी प्रकृति के साथ हाहाकार करने लगी। बाबा ने शारीर त्याग दिया था। अपने जीवन के अन्तिम दिनों मे वह मथुरा में रहकर पवित्र यमुना तट पर 19 जून 1990 को वह इस धरा धाम से सदा सदा के लिए चले गये। हम उस परम पुण्य आत्मा को हृदय से नमन करते हैं और अपनी श्रद्धा समर्पित करते हैं।





18 comments:

  1. Baba ne apne mata pita ke bare me kisi ko bhi nahi bataya. Baba ne khud kaha hai "bacha mujhe koi nahi janta". Bahut log to ye bhi kahte hai

    baba mere sahodar bhai hai, baba mere hi bansaj hai .is prakar ki anek bate.par baba ne na to kisi ki bat ka anumodan kia or nahi khandan kia. You can read the book " Devraha baba life and personality- by prof Brajkishore. Jai baba sarkar.

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    1. BABA SIDH PURUSH HAIN
      Bina parents ke utpatti Sambhav nahi Hain.

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  2. देवरा बाबा की जय

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  3. ब्रह्मर्षि योगीराज श्री देवरहा बाबा की जय🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

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  4. बाबा जी को शत शत नमन । आप हम सभी हमेशा प्रेरणाश्रोत के रूप में बने रहेंगे। आप का नाम इतिहास के पन्नो में स्वावर्णिम अक्षरों में सदैव के लिए अमर रहेगा। आप हमेशा के लिए हमारे हृदय में अमर रहेंगें। आप सदा जयजयकार हो।

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  5. बहुत ही ज्ञानवर्धक अद्भुत जानकारी।

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  6. Unprecedented saint who enlivened yogic creativity of Maharishi Patanjali yoga.Inumerable salutations to Devraha Baba. Prof Dr Nar Deo Sharma.

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  7. Baba! Aap ko koti koti naman...pranam Om shanti ..Om shanti...Om shanti.

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  8. श्री देवरहा बावा की जय

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  9. जय श्री देवराहा बाबा 🌹🌹🙏🙏🌹🌹🙏🙏🌹🌹

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  10. परम पूज्य संत श्री देवराहा बाबा की जय श्री श्री देवराहा बाबा की कुटी दरभंगा जिला अंतर्गत कमतौल और मूरैठा के बीच खिरोहि नदी के तट पर भी अवस्थित है वह स्थान इतना पावन और अलौकिक लगता है जैसे श्री श्री बाबा आज भी हों जय हो आपकी आशिर्वाद दें 🌹🙏🙏🙏🙏🌹🌹🌹🌹🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹

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  11. Baba was born from jal and not from any mother’s womb. Www.baba Devraha.com

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  12. Jay ho mere pyare Baba ki sada hi jai ho 🙏🙏

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  13. जय देवरहा बाबा जी की

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