Tuesday, June 13, 2017

उत्तरी(आगरा) मण्डल की विकासयात्रा: आर्कालाजिकल सर्वेयर की गतिविधियां डा. राधेश्याम द्विवेदी

(भा.पु..उत्तरी मण्डल कड़ी 2 )
नार्थ वेस्टर्न प्राविंस में वर्तमान उत्तर प्रदेश तथा मध्य प्रदेश के भूभाग आते थे। कभी इस मण्डल में पंजाब अजमेर राजपुताना भी जुड़ता रहा। 1885 में इस मण्डल में मेजर जे. बी. कीथ आर्कलाजिकल सर्वेयर, डा. . फयूहरर  एसेस्टेंट पुरातत्व सर्वेयर तथा . डबलू स्मिथ आर्कटेक्चरल सर्वेयर बने थे। इनका मुख्यालय लखनऊ का संग्रहालय रहा। कीथ के बाद 1885 फयूहरर  क्यूरेटर   आर्कटेक्चरल सर्वेयर बना। उसे नार्थ वेस्टर्न प्रांविंस अवध सेंन्ट्रल इण्डिया तथा पंजाब के पुरातात्विक  सर्वेक्षक की जिम्मेदारी भी मिली थी। कंकाली टीले का उत्खनन पहले फयूहरर  ने, 1887-88 में बर्गेस ने कराया था। फयूहरर  1885-87 तक पुरातत्व सर्वेयर कुछ समय के लिए कीथ को फिर उसके बाद स्मिथ लखनऊ संग्रहालय के क्यूरेटर पद के साथ साथ आर्कलाजिकल सर्वेयर के पदों को सुशोभित किया। सेवा निवृति 28.10.1898 तक उत्तर भारत के अनेक पुरातात्विक कार्यो को फयूहरर ने अंजाम दिया था।इसके बाद स्मिथ पुरातात्विक सर्वेयर एवं क्यूरेटर बना था , जो एक सिविल सेवा का अधिकारी था।वह फैजाबाद का आयुक्त तथा कंकाली टीले में फयूहरर का सहयोगी रहा।उसने फतेहपुर सीकरी का संरक्षण काम भी कराया था। उसकी मृत्यु 1901 में मोतीपुर बहराइच एक यात्रा के दौरान कालरा से हुई थी। वह 1886 से 1901 तक लगभग 15 साल पुरातत्व की अनेक प्रकार सेवा करता रहा। सर जान स्ट्रेची ने 1 अक्तूबर 1890 को अनेक सर्वे पार्टी को पुनः स्थानीय सरकार के नियंत्रण में करके पुरातत्व स्टाफ को सीमित कर दिया था। फयूहरर एवं स्मिथ का अति सहयोगी हेड ड्राफटमैन गुलाम रसूल वेग रहा। जब कोई अधिकारी अवकाश पर अथवा वाहर किसी अन्य कार्य के लिए जाता तो वह मण्डल कार्यालय का प्रभार देखता था।
इसी बीच 1899 के शीत ऋतु में भारत के वायसराय लार्ड कर्जन ने आगरा का भ्रमण किया था। उसने फतेहपुर सीकरी ,आगरा किला, ताजमहल, सिकन्दरा तथा अन्य स्मारको का निरीक्षण किया था।उसने इन स्मारको के जीर्णोद्धार के लिए स्मिथ को विस्तृत मार्ग निर्देशन भी दिया था। 6 फरवरी 1990 को कलकत्ता के सभागार में उसने एक विस्तृत भाषण भी पढ़ा था।
बीसवीं सदी की विकास यात्रा :-  1901 में नार्थ वेस्टर्न प्राविंस एण्ड अवध के अधीन 3 उप मंडल बने -
1. आगरा
2. लखनऊ
3. इलाहाबाद
1902 में ही जब जान मार्शल भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के महानिदेशक बने तो बाद में 1906 भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण पुनः गठित होकर 5 से 6 मण्डलों मंे बना। इसमें आगरा एवं दिल्ली का पुनः गठन हुआ था। इस समय मण्डलों का गठन इस प्रकार हुआ था-
1 पाश्चात्य बेस्टर्न - बम्बई, सिंध ,हैदराबाद , मध्य भारत एवं राजपूताना
2. अवाच्य- मद्रास कुर्ग
3. उदीच्य-उत्तर प्रदेश, पंजाब,अजमेर और काश्मीर
4. प्राच्य ईस्टर्न- बंगाल असम , मध्य प्रदेश एवं बरार
5. सीमा प्रान्त- पश्मिोत्तर सीमा प्रान्त एवं बलूचिस्तान
6. वर्मा मंडल
1902 में नार्थ वेस्टर्न प्राविंस का नाम यूनाइटेड प्राविंस आफ आगरा एण्ड अवध कर दिया गया। 10 मई 1903 तक मुंशी गुलाम रसूल बेग नक्शानवीस के पास इस मंडल का प्रभार था। 11 मई 1903 को . बी. एस. शेफर्ड ने पुरातत्व सर्वेयर पद पर आसीन हुए। जुलाई 1903 में यूनाइटेड प्राविंस के साथ पंजाब का भूभाग भी जोड़ा गया। आगरा में मुस्मिल स्मारकों के बहुलता के कारण इस मण्डल का मुख्यालय सितम्बर 1903 में लखनऊ से हटाकर आगरा बनाया गया। अधीक्षक का एक पद लाहौर मे पदास्थापित किया गया। उसका मुख्यालय लाहौर बनाया गया।डा. बोगल लाहौर के प्रथम सर्वेयर /अधीक्षक रहे।
यूनाइटेड प्राविंस आफ आगरा एण्ड अवध तथा पंजाब सर्किल का मुख्यालय आगरा हो ही गया था। अक्तूबर 22, 1903में इस मण्डल के पुरातत्व सर्वेक्षक . बी. एस. शेफर्ड की शिमला में आकस्मिक मुत्यु हो गई प्रधान नक्शानवीस मुंशी गुलाम रसूल बेग के पास इस मण्डल का प्रभार आया जो 4 दिसम्बर 1903 तक पुरातत्व सर्वेक्षक कार्यालय के प्रभारी रहे। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के महानिदेशक ने डबलू एच निकोलस को 7 मार्च 1904 को आगरा के सर्वेक्षक का प्रभार लेने के लिए महानिदेशक कार्यालय कार्यमुक्त किया। इस अवधि में यूनाइटेड प्राविंस पंजाब का प्रभार महानिदेशक के पास रहा। लाहौर के अधीक्षक पद पर कार्यरत मौलवी नूर बक्श का 2 अक्तूबर 1903 में पुरातत्व सर्वेयर कार्यालय यू. पीपंजाब में स्थानान्तरण हो गया। इस वर्ष के अन्त तक डबलू एच निकोलस ने महानिदेशक कार्यालय की जिम्मेदारी भी निभायी थी।
1904 -05 तक अकालाजिकल सर्वेयर यूनाइटेड प्राविंस  एवं पंजाब का पद नाम मिलता है। इस क्षेत्र को 1905-06 में उत्तरी नार्दन सर्किल के रुप में जाना जाने लगा। अब तक डबलू एच निकोलस यहां पर सर्वेयर पद पर बना रहा। इसी समय से उत्तरी मंडल में पुस्तकालय की स्थापना हेतु पुस्तकों का क्रय किया जाना शुरु हो गया था।न से 9 दिसम्बर 1907 तक इस मण्डल का प्रभार मैलवी मोहम्मद साहब के पास रहा। वे यात्रा पर रहे। इस बीच डबलू एच निकोलस  ही उत्तरी मण्डल को देखते रहे। फिर आर. एफ. टक्कर उत्तरीय मंडल के पुरातत्व सर्वेयर बने।  वर्ष 1908-09 में मसैलवी साहब टक्कर साहब के साहित्यिक सहायक रहे। सितम्बर और अक्तुबर 1908 में टक्कर साहब के अस्वस्थ रहने पर मौलवी साहब ही उत्तरीय मंडल के प्रभारी रहे। गर्मियों में ज्यादातर स्टाफअवकाश पर चला जाया करता था। संभवतः नौनीताल शिमला अन्य किसी ठन्ढे प्रदेश में अपना समय विताना चाहता था।
मई जून 1908 में शिमला में अवकाश उपयोग करते हुए पुरातत्व सर्वेयर टक्कर साहब नें 1 जुलाई 1908 में कैन्ट के आपरेशन के दौरान एक पखवाड़े के अल्प समय के नोटिस पर आये उन्हें सिविल लाइन्स में दूसरा कार्यालय भवन खोजना था। उन्हे  एक अन्य मकान हेतु 55 रुपये प्रति डमदेमउ किराये की और स्वीकृति लेनी पड़ी।यद्यपि 1908 में सिविल लाइन्स में दूसरा किराये का मकान मिल गया था।
1909-10 में जे. पीएच. बोगल उत्तरी मण्डल के अधीक्षक के साथ साथ महानिदेशक पद का अतिरिक्त प्रभार भी संभाल रहे थे।  मुस्लिम और ब्रिटिस मानोमेट नार्दन सर्कल के सर्वेयर / अधीक्षक आर एफ टक्कर अवकाश पर इंगलैड गये हुए थे। 1 नवम्बर 1910 को समुद्र मार्ग से आते समय उनकी मृत्यु हो गयी। पूर्वी मण्डल के सहायक अधीक्षक गार्डन सैण्डर्सन 7.12.1910 को मुस्लिम और ब्रिटिस मानोमेट नार्दन सर्कल का कार्यवाहक अधीक्षक बनाया गया। उन्हें पूर्णरुपेण अधीक्षक 10 मार्च 1911 को बनाया गया। इस बीच 7 दिसम्बर 1910 तक मौलवी मोहम्मद साहब के पास मुस्लिम और ब्रिटिस मानोमेट नार्दन सर्कल का प्रभार रहा 1905-06 से 1910-11 तक यूनाइटेछ प्राविंश एवं पंजाब का भूभाग नार्दन सर्कल के रुप में प्रयुक्त होता रहा। अभी तक मण्डल प्रमुख को आर्कालाजिकल सर्वेयर के रुप में जाना जाता था। 1911 की एनुवल प्रोगे्रस रिपोर्ट में आर्कालाजिकल सर्वेयर के साथ साथ सुप्रिन्टेन्डेन्ट का पद भी प्रयुक्त होने लगा। गार्डन सैण्डर्सन उत्तरी मंडल का अन्तिम सर्वेयर तथा प्रथम सुप्रिन्टेन्डेन्ट रहा।  
(क्रमश ….)



1 comment:

  1. आपका धन्‍यवाद,तमाम जानकारि‍यों के लि‍ये। धन्‍यवाद।
    अगर आप गोकुलपुरा वाऊंड्रीवाल की दूवार को तोडे जाने तथा कंसगेट गेकुलपुरा को ए एस आई के द्वारा संरक्षि‍त करने के वर्ष तथा संबधि‍त रि‍पोर्ट की जानकारी संभव करवाासके तो नि‍जीतौर परमैं आपका अभारी हऊंगा। गोकुलपुरा की वाऊंड्री और उसके तीन अनय दरबाजे 18557 के प्रथम स्‍वतंत्रता संग्राम के बाद आगरा के कलैक्‍टर के आदेश से गि‍राये गये थे।
    राजीव सक्‍सेना

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