Wednesday, June 7, 2017

इलाहाबाद उच्च न्यायालय का पी जी काउंसिलिंग आदेश निरस्त

नई दिल्ली । माननीय उच्चतम न्यायालय ने पी जी काउंसिलिंग से सम्बंधित डा.राम दिवाकर एवं अन्य बनाम भारत सरकार के रिट पर इलाहाबाद के दिनांक 29 मई के आदेश को निरस्त कर दिया है। उत्तर प्रदेश शिक्षा चिकित्सा ने 25 मई को माप अप काउंसिलिंग से लगभग 90 प्रतिशत प्रवेश कार्य पूरा कर लिया था। प्रशिक्षणार्थी चिकित्सक अपनी फीस जमाकर प्रवेश पा लिये थे, कि अचानक इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 29 मई के एक आदेश में उ. प्र. सरकार के सारे कार्य को निरस्त कर दिया था डा.राम दिवाकर वर्मा के रिट प्रार्थनापत्र पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि दूसरे प्रदेशों से एमबीबीएस करने वाले पीएमएस डॉक्टर पीजी में दाखिला पाने के लिए अर्हता नहीं रखते । इसके अलावा हाईकोर्ट ने एएमयू व बनारस हिंदू विवि में अपने एमबीबीएस छात्रों के लिए 50 फीसदी कोटे को भी निरस्त कर दिया था । हाईकोर्ट ने प्रदेश के राजकीय मेडिकल कॉलेजों, विवि व संस्थानों की ही तरह एएमयू व बीएचयू में भी दाखिले देने के लिए कहा थाउच्च न्यायालय ने 29 मई को इन दो केन्द्रीय विश्वविद्यालयों और सरकार द्वारा संचालित दूसरे विश्वविद्यालयों में पीजी पाठ्यक्रमों में संस्थागत कोटे की 50 प्रतिशत सीटें नीट की रैंकिंग के आधार पर ही किसी भी दूसरे मेडिकल कालेज के छात्रों को प्रवेश देकर भरने का आदेश दिया था। उच्चतम न्यायालय ने पोस्ट ग्रेज्यूएट मेडिकल सीटों पर प्रवेश के लिये 50 प्रतिशत की संस्थागत प्राथमिकता निरस्त करने संबंधी इलाहाबाद उच्च न्यायालय का आदेश आज दरकिनार कर दिया है


हाईकोर्ट के आदेश के बाद मेडिकल पीजी में प्रवेश पाने वाले 53 पीएचएमएस डॉक्टरों के दाखिले निरस्त हो गये । ये वे डॉक्टर हैं, जिन्होंने दूसरे प्रदेशों से एमबीबीएस करने के बाद सूबे के स्वास्थ्य विभाग में नौकरी कर ली है। यूपी सरकार ग्रामीण व दुर्गम इलाकों में काम करने वाले पीएचएमएस सेवा के डॉक्टरों को पीजी कोर्स के दाखिले में वेटेज देती है। स्टेट कोटे के तहत एडमिशन सूबे से एमबीबीएस करने वालों को ही मिलता है।
माननीय इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश के विरुद्ध (CIVIL APPEAL NO. 8268 to 8274 OF 2017 [@ SLP (C) NO. 16240 OF 2017 @ DIARY NO. 16874 OF 2017]DR. SAURABH DWIVEDI AND ORS.  ... APPELLANTS (& 6 OTERS APPEALS) VERSUS UNION OF INDIA AND ORS. ...RESPONDENTS.) दाखिल हो गयी थी माप अप डॉक्टरों की तरफ से माननीय उच्चतम न्यायालय में 30 मई को एक सिविल रिट डा. सौरभ द्विवेदी एवं अन्य बनाम भारत सरकार दाखिल हो गयी थी । इसके बाद 6 अन्य अपीलें विभिन्न चिकित्सक शिक्षणार्थियों तथा ए एम यू तथा बी एच यू की तरफ से भी दाखिल इुई थी। जिसमें माननीय उच्चतम न्यायालय के विद्वान न्यायाधीश ने सारे तर्कों को घ्यान से सुना तथा इलाहाबाद उच्च न्यायालय का दिनांक 29 मई का आदेश निरस्त कर दिया। माननीय उच्चतम न्यायालय के विद्वान न्यायाधीश ने अपने निर्णय के 21वें पैरा में हाई कोर्ट के आदेश को निरस्त करते हुए उसके अनुपालन में उत्तर प्रदेश तथा किसी अन्य सम्बद्ध प्राधिकरी के आदेश को भी निरस्त कर दिया है। न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता की अवकाश कालीन पीठ ने अपने आदेश में कहा कि उत्तर प्रदेश में बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय, अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय और सरकार द्वारा संचालित मेडिकल कालेजों में काउन्सलिंग जारी रहेगी और ये सीटें 12 जून तक भरी जायेंगी। (ORIGINAL ORDER : Para 21. In view of the above discussion, we set aside the judgment and order of the High Court and all consequential action taken by the State of U.P. and/or any other authority pursuant to that order.  It is clarified that those who were counselled and granted admission prior to the impugned judgement of the High Court shall be permitted to continuing their respective courses.  The time for filling up the vacant seats, if any, in AMU, BHU and Government run medical colleges/institutions in the State of U.P. is extended up to 12th June, 2017 in the peculiar facts and circumstances of the case.  We further permit the AMU, BHU and Government run medical colleges/institutions in the State to fill up the seats in the post graduate courses in the AMU, BHU and Government run medical colleges/ institutions up to 12.06.2017.)

बीएचयू और एएमयू ने इस फैसले को शीर्ष अदालत मैं चुनौती दी थी। इन दोनों केन्द्रीय विश्वविद्यालयों का तर्क था कि उच्च न्यायालय के आदेश से संस्थाओं को अपनी ही संस्था से 50 सीटों पर प्रवेश देने की अनुमति देने संबंधी उच्चतम न्यायालय के निर्णय और भारतीय चिकित्सा परिषद के नियमों का उल्लंघन होता है। भारतीय चिकित्सा परिषद ने भी इन विश्वविद्यालयों का समर्थन करते हुये कहा था कि उच्च न्यायालय ने प्रतिपादित नियमों की व्याख्या करने में चूक कर दी है। माप अप डॉक्टरों की तरफ से इस वाद की पैरवी विद्वान अधिवक्ता श्री अरुण भारद्वाज तथा उनके सहयोगियों अशीश पाण्डेय, सुमित शर्मा, एवं विश्व पाल सिंह आदि अधिवक्ता गण ने किया है।  इस मामले में अन्य 32 विद्वान अधिवक्ताओं ने अपने अपने पक्षकार का पक्ष रखा था।

(Reporting by : Dr.Radhey Shyam Dwivedi, 
Advocate, U.P. Bar council, 
Registration No. 2476/ 1979 dated 19.09.1979)

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