Thursday, July 11, 2024

बावला तपस्वी राजकुमार असमनजस (राम के पूर्वज 25)आचार्य डॉ.राधेश्याम द्विवेदी


राजा सगर संतानहीन थे :- 

राजा सगर की दो पत्नियाँ थीं जिन्होंने अपनी तपस्या से उनके पापों को दूर कर दिया था।उन्हें लंबे समय तक कोई संतान नहीं हुई, इसलिए वे अपनी दोनों पत्नियों के साथ हिमालय के भृगुप्रस्रवण पर्वत पर तपस्या करने लगे। प्रसन्न होकर भृगु मुनि ने उन्हें वरदान दिया कि एक रानी को वंश चलाने वाले एक पुत्र की प्राप्ति होगी और दूसरी के साठ हज़ार वीर उत्साही पुत्र होंगे। बड़ी रानी केशनी के एक पुत्र और छोटी सुमति ने साठ हज़ार पुत्रों की कामना की थी। सुमति के पुत्रों के चरित्र के बारे में भविष्यवाणी की गई है कि वे अधर्मी होंगे, जबकि केशिनी का पुत्र धर्मी होगा। राजा और उनकी रानियाँ अयोध्या लौट आईं थीं और समय के साथ केशिनी ने असमंजस नामक एक पुत्र को जन्म दिया। 
      राजा सगर अपने पिता बनने की ख़ुशी में राज्य में भोजन का प्रबंध करवाते हैं। रानी केशनी एक पुत्र को जब जन्म देती हैं। राज वैद्य राजा को बताते हैं की उनका बालक अपंग(बावला) पैदा हुआ है।

राजा रानी को मिला था संतान सुख ना मिलने का शाप :- 

एक बार राजा सगर और रानी केशनी दोनों शिकार पर जाते हैं और दोनों एक मृग को वन में देख कर उस पर बाण चला देते हैं। वह मृग मरते वक्त राजा और रानी दोनों को श्राप देता हैं कि तुम्हें पुत्र स्नेह नही मिलेगा। पुत्र स्नेह से तुम लोग वंचित रहोगे।राजा और रानी को अपंग पुत्र जन्मने पर हिरण द्वारा दिए शाप की याद आ जाती है और वह दुःखी हो जाते हैं। शाप के बाद दोनों पति पत्नी राजमहल वापस आते हैं । रानी केशनी अपने दुःख से रो रही थी की उनका पुत्र असमंजस वहाँ आता है और उनसे रोने का कारण पूछता है तो रानी केशनी बताती है की हम अयोध्या को उत्तराधिकारी देने में असफल हुए हैं। असमंजस रानी केशनी से कहता है कि आपको यह चिंता करने की आवश्यकता नहीं है। 
      राजा अपनी सभा में महामंत्री को कहता है कि वह अयोध्या को उत्तराधिकारी नहीं दे सकते तो महामंत्री उन्हें कहते हैं कि रानी केशनी उत्तराधिकारी नहीं दे सकती ,आप तो दे सकते हैं। इसलिए आप दूसरा विवाह कर ले। राजा सगर अपनी पत्नी केशनी को कहता है कि मैं दूसरा विवाह नहीं करूँगा। 
      राजा सगर अपने पुत्र असमंजस को बुलाते हैं।उनसे अलगअलग राजकुमारियों के चित्र दिखाते हैं और उनसे कहते हैं की इनमें से आप अपने लिए एक पत्नी को चुन लीजिए। असमंजस उनसे कहते हैं कि मुझे कोई भी पसंद नहीं है और मेरी तो शादी हो चुकी है वह भी भक्ति से। उसकी एक और बहन हैं जिसका नाम है मुक्ति । भक्ति अगर मुझसे प्रसन्न हो गयी तो वह मेरा विवाह मुक्ति से कर देगी। ये दोनों परमेश्वर की पुत्रियाँ हैं। मुक्ति से विवाह के बाद मुझे परमेश्वर के धाम में स्थान मिल जाएगा। राजा सगर अपनी पत्नी से दुःखी होकर कहते हैं की मैं दूसरा विवाह करना नहीं चाहता और राजकुमार असमंजस ने भी विवाह करने से मना कर दिया है। 

राजकुमार का बावला भेष :- 

असमंजस ने एक बावले बालक के रूप में जन्म लिया है लेकिन उसके पास सभी तरह का ज्ञान पहले से ही है। असमंजस एक महान तपस्वी है जिसके कारण उसने बालक को पुनः जीवित कर दिया।
       राजा सगर और रानी केशनी अपने पुत्र को तितली पकड़ते देखते हैं तो वो उन्हें कहते हैं की तुम्हें शिकार करने के लिए वन में जाना चाहिए। राजकुमार असमंजस वन में शिकार करने जाता है। वन में सैनिक एक हिरन असमंजस को हिरन दिखाते हुए उसका शिकार करने को कहते हैं लेकिन असमंजस उस हिरन का शिकार करने से मना कर देता है। अपनी माता और पिता के पूछने पर बताता है कि उस हिरन का शिकार करते वक्त मुझे ऐसे लगा की यदि मैंने उसका शिकार किया तो वह हिरन मुझे श्राप दे देगा। रानी को भी इसी प्रकार का सपना दिखा था। वह सपने में डर कर उठ जाती है तो राजा सगर उसे समझाते हैं। 
      रानी केशनी अपनी पति से कहती है कि हमारा पुत्र हमारे राजा बनाने के लायक़ नहीं है। वह राजनीतिज्ञ नहीं बनना चाहता उसे तो सिर्फ़ सन्यास और भक्ति से मतलब है। राजा सगर असमंजस को राजा बना कर वन में तप करने के लिए जाने की कहते हैं ताकि असमंजस अपने राज्य के कर्तव्य को सम्भालने में इतना व्यस्त हो जाएगा की उसे इन सब कार्यों के लिए समय ही नहीं मिलेगा।     
     राजा सगर अपनी सभा में असमंजस को राजकुमार बनाने की बात पर चर्चा करते हैं तो महामंत्री राजा सगर को कहते हैं कि आपको वन में तप करने तभी जा सकते हैं , जब आप अपने राज सिंहासन को उचित उत्तराधिकारी दे देंगे। महामंत्री राजा और रानी को बताते हैं कि राजकुमार असमंजस राजा बनने के लायक़ नहीं है। राजा सगर अपनी पत्नी के साथ ऋषि औरव के पास आते हैं और उनसे कहते हैं कि राजसभा ने राजकुमार असमंजस को राजा बनाने से मना कर दिया है। 

राजा सगर को असमनजस के शादी की चिंता :- 

राजा सगर अपने पुत्र राजकुमार असमंजस को समझाते हैं कि तुम्हारे बावले भेष के कारण तुमसे कोई भी राजकुमारी विवाह करने को नहीं तैयार नहीं होगी । रानी केशनी भी उससे कहती हैं कि पुत्र तुम इस बावले भेष को त्याग दो तभी तुम्हारा विवाह हो पाएगा। असमंजस उनसे कहते हैं कि मैं इस भेष को नहीं त्याग सकता , क्योंकि इसी भेष के कारण मेरा भगवान से मेल हो पाएगा।

असमंजस का प्रतिभा से विवाह:- 

विराट नगरी का राजा अपनी पुत्री के विवाह के लिए राजा सगर के पुत्र असमंजस के साथ करने के लिए पत्र भेजता है। रानी केशनी और राजा यह प्रस्ताव सुन प्रसन्न हो जाते हैं। असमंजस और प्रतिभा का विवाह कर दिया जाता है। 
      राजकुमारी प्रतिभा राजकुमार असमंजस को बताती हैं आप मेरे पति है और आपने मेरी रक्षा और सम्मान करने का अग्नि के सामने वचन लिया है। राजकुमारी प्रतिभा राजकुमार असमंजस को विवाह बंधन को स्वीकार करने के लिए कहती है। ऋषि वसिष्ठ राजा सगर और रानी सुमति को आशीर्वाद देने के लिए आते हैं। विष्णु जी कपिल मुनि को दर्शन देते हैं और उन्हें भविष्य में होने वाली घटनाओं के बारे में बताते है और उनसे कहते हैं की अब वह जंगल में तप करने के लिए चले जाए और आपको पृथ्वी वासियों को तप करने के लिए प्रेरित करना होगा। आपके मार्ग दर्शन से गंगा का पृथ्वी पर अवतरण होगा और तभी कलयुग में पृथ्वी वासियों को उद्धार हो पाएगा। ऋषि वसिष्ठ रानी सुमति और राजा सगर को आशीर्वाद देते हैं और रानी सुमति के गर्भवती होने की बधाई भी देते हैं। प्रतिभा भी गर्भवती हो जाती है तो ऋषि वसिष्ठ जी उन्हें भी आशीर्वाद देते हैं। 
    सुमति की दासी मानसी रानी सुमति को कहती है की तुम्हें राजकुमारी प्रतिभा का गर्भ गिरना होगा तभी आपका पुत्र ही राज्य का उत्तराधिकारी बनेगा। दासी सुमति से कहती है कि आप राजकुमारी के गोद भराई में उसे विष पिलाकर गर्भ को नष्ट करने के लिए कहती है। कपिल मुनि जी बहुत से ऋषि मूनियों को ज्ञान देते हैं और उनकी शंकाओं को दूर करते हैं। ऋषि मुनि कपिल मुनि जी से दोबारा सवाल करने आते हैं तो वो उन्हें वहाँ नहीं पाते। प्रतिभा की गोद भराई की रस्म में दासी मानसी प्रतिभा को विष मिलाकर खीर खिला देती है। कपिल मुनि जी ऋषि वसिष्ठ के आश्रम में पधारते हैं तो ऋषि वसिष्ठ उनका आदर सत्कार करते हैं। 
      राजा सगर दूर खड़े हो कर भगवान कपिल मुनि जी को देखते है। कपिल मुनि जी ऋषि वसिष्ठ को भी ज्ञान प्रदान करते हैं। कपिल मुनि जी के सामने एक मृत व्यक्ति को लाया जाता है जिसे कपिल मुनि जी को अपनी शक्तियों और विद्या से पुनः जीवित कर देते हैं। कपिल मुनि जी ऋषि वसिष्ठ जी को विद्या के बारे मीन बताते हैं। समस्तिपुर के राजा दासी मानसी से पूछता है की अब तक प्रतिभा का गर्भ नष्ट क्यों नहीं हुआ। दासी उन्हें बताती है कि मैंने जो विष राजकुमारी प्रतिभा को दिया है वह धीरे धीरे काम करेगा यदि वह तभी असर करता तो आप पर शक जा सकता था। राजा सगर कपिल मुनि जी को अयोध्या में चलकर उन्हें आशीर्वाद देने के लिए कहते हैं। कपिल मुनि जी उनकी बात मान लेते हैं। समस्तिपुर का राजा और दासी सूर्यास्त होने का इंतज़ार कर रहे थे कि कब प्रतिभा का गर्भ नष्ट हो। राजकुमारी प्रतिभा के पेट में दर्द शुरू हो जाता है और राज वैद्य आकर उन्हें बताते हैं की राजकुमारी का गर्भपात नहीं हुआ है। उनके पुत्र का जन्म अभी होने वाला है। 

योग साधना से उच्च स्थान:- 

केशिनी के पुत्र असमंजस पूर्वजन्म में योग साधना से उच्च स्थिति प्राप्त कर ली थी। लेकिन कुछ समय के कुसंग के कारण यह मुक्ति से वंचित रह गए और पुनर्जन्म लेना पड़ा। इन्हें पूर्वजन्म की सारी बातें याद रही। इसलिए मोह माया से दूर रहने के लिए इन्होंने बचपन से ही ऐसा काम शुरु कर दिया था जिससे घर के लोग इनसे परेशान होकर घर से निकाल दें। समय के साथ साथ राजकुमार बड़ा होता जाता है। राजकुमार असमंजस एक दिन अपने मित्रों के साथ खेल रहे थे। राज कुमार असमंजस उनकी गेंद को पत्थर में बदल देते हैं जो एक बालक को लग जाती है और उसकी मृत्यु हो जाती है। उस मृत बालक के माता पिता अपने पुत्र के शव को लेकर राजा सगर के पास आते हैं और राजा से कहते हैं की आपके पुत्र असमंजस ने हमारे पुत्र की हत्या की है।कई बार इन्होंने खेलते हुए बच्चों को उठाकर नदी में फेंक दिया। 
   राजा अपने पुत्र को बुलाते हैं और उस से बालक की हत्या के बारे में सवाल पूछते हैं तो राजकुमार असमंजस कहता है कि मैंने उसे मारा नहीं है। मैंने उसे मुक्ति दी है। राजकुमार असमंजस अपने मित्र बालक को अपने तपोबल से जीवित कर देते हैं। 

योग बल से जीवित करना :- 

समय के साथ साथ राजकुमार बड़ा होता जाता है। नगर से जाते समय असमंजस ने अपने योग बल से उन सभी बच्चों को जीवित कर दिया जिसे उन्होंने नदी में फेंक दिया था। असमंजस ने एक बावले बालक के रूप में जन्म लिया है लेकिन उसके पास सभी तरह का ज्ञान पहले से ही है। असमंजस एक महान तपस्वी रहा है जिसके कारण उसने सभी मृतक बालक को पुनः जीवित कर दिया। नगरवासी राजकुमार की शिकायत उसके पिता जी से भी किए थे । राजा नाराज होकर अपने पुत्र को पत्नी सहित देश निकाला देता है।असमंजस हाथ में कुदाल लेकर वन और पर्वतों पर घूमने लगा था।

असमंजस दिव्य पुरुष:- 

बाद लोगों को अपनी भूल का एहसास हुआ कि असमंजस दिव्य मनुष्य हैं। राजा सगर ने अपने पुत्र की खूब तलाश करवायी लेकिन असमंजस ने गुप्त स्थान पर जाकर साधना में लीन हो चुके थे इसलिए वह किसी को नहीं मिले और अंत में इन्हें मुक्ति मिल गई।

कपिल मुनि के प्रकोप से पुत्र जिन्दा जले:- 

जब राजा सगर अश्वमेध यज्ञ करते हैं,तो इंद्र बलि का घोड़ा चुरा लेते हैं। सगर अपने 60,000 पुत्रों को घोड़े को लाने के लिए कहते हैं। पुत्र पाताल लोक में जाते हैं और ध्यानमग्न ऋषि कपिल के पास बंधे घोड़े को पाते हैं । ऋषि की तपस्या में खलल डालते हुए पुत्रों ने बहुत शोर मचाया। परिणामस्वरूप, कपिल मुनि ने अपनी ज्वलंत आँखों से उन्हें जलाकर राख कर दिया।

असमंजस में राज्योचित लक्षण का अभाव 

राजा सगर और रानी केशनी अपने पुत्र को तितली पकड़ते देखते हैं तो वो उन्हें कहते हैं की तुम्हें ये बालकों की तरह हरकतें करना शोभा नहीं देता है। तुम्हें बड़े होकर अयोध्या का राज सिंहासन सम्भालना है । इस पर असमंजस अपने माता पिता को तपस्वियों की भाँति उत्तर देता है। राजा सगर उसकी तपस्वी सोच को लेकर चिंता होती है कि क्या भविष्य में असमंजस राजा बन भी पाएगा या नहीं। 

पिता सगर द्वारा देश निकाला:- 

अयोध्या के राजा सगर न्यायप्रिय शासक थे। प्रजा के दुख-सुख में वह हमेशा सहभागी रहते थे। एक दिन वह दरबाार में बैठे थे। दरबान ने आकर उन्हें बताया कि अयोध्या के कुछ प्रमुख लोग उनसे भेंट करना चाहते हैं। महाराजा सगर ने उन्हें दरबार में बुलवा लिया। उन्होंने महाराजा को सिर झुकाकर नमस्कार किया और बैठ गए। महाराजा ने कुशल-क्षेम पूछी तो उनमें से एक रो पड़ा।
    महाराजा को समझते देर न लगी कि ये सब किसी दुख से पीड़ित होकर आए हैं। महाराजा ने कहा, ‘आप निःसंकोच बताइए कि आपको मेरे राज्य में क्या कष्ट है। महाराज, हमें लाचार होकर यहां आना पड़ा है। एक वृद्ध नागरिक ने कहा, ‘महाराज, आप तो प्रजा को पुत्रों की तरह स्नेह और संरक्षण देते हैं। किंतु आपके पुत्र राजकुमार असमंजस ने राज्य में हमारा रहना दूभर कर दिया है। वह शाम को सरयू तट पर पहुंचते हैं और अबोध बालकों को नदी की उफनती धार में फेंक देते हैं।
       जब डूबते बालक रोते हैं तो राजकुमार जोर से अट्टहास कर अपना मनोरंजन करते हैं।’ सुनते ही महाराज का चेहरा गुस्से से लाल हो उठा। उन्होंने कहा, ‘आप सभी निश्चिंत होकर अपने-अपने घर लौट जाइए।’ महाराजा दरबार से महल में पहुंचे।
        उन्होंने राजकुमार असमंजस को अपने पास बुलवाया। वे बोले, ‘तुम राजकुमार हो या जल्लाद/’ तुम प्रजाजनों के निर्दोष बच्चों को सरयू में फेंक कर मनोरंजन करते हो। मेरे राज्य में ऐसा क्रूर व्यक्ति एक क्षण भी नहीं रह सकता।’ राजकुमार भय से कांपने लगे।
       हाथ जोड़कर बोले, ‘पिताजी, क्षमा करें भविष्य में ऐसा पाप नहीं करूंगा।’ सगर बोले, ‘किंतु अनेक अबोध बच्चे तुम्हारे इस क्रूरतापूर्ण मनोरंजन के शिकार बन चुके हैं। मैं ऐसे क्रूर युवक को अपना पुत्र मानकर संरक्षण नहीं दे सकता।’ राजा ने असमंजस को पत्नी सहित तुरंत अयोध्या से निष्कासित कर दिया। असमंजस हाथ में कुदाल लेकर वन और पर्वतों पर घूमने लगा था।

असमंजस ने त्यागा राज सिंहासन का प्रस्ताव:-  

बाद में परिस्थितिया सामान्य हुई तो पिता
राजा सगर अपने पुत्र असमंजस को राजा बनाने की बात करते हैं तो असमंजस उन्हें मना कर देता है कि उसे राजा नहीं बनना है। उसे ये सब मोह माया नहीं चाहिए उसे भगवान की भक्ति चाहिए। कुछ समय बाद असमंजस राजा सगर से कहता है की वह वन में तप करने के लिए जा रहा है और उसने गृहस्थ जीवन त्याग दिया है। अंशुमान की पत्नी उनसे कहती है कि मैं आपके पुत्र को जन्म देने जा रही हूँ क्या आप उसे देखे बिना ही चले जाएँगे तो असमंजस कहता है कि वह अब सब कुछ त्याग चुका है। अब वह मोह माया से परे हो चुका है और यह कह कर वहाँ से चला जाता है।

असमंजस की संतान को कपिल ने जीवन दिया :- 
राजा सगर कपिल मुनि जी को अयोध्या में चलकर उन्हें आशीर्वाद देने के लिए कहते हैं। कपिल मुनि जी उनकी बात मान लेते हैं। समस्तिपुर का राजा और दासी सूर्यास्त होने का इंतज़ार कर रहे थे कि कब प्रतिभा का गर्भ नष्ट हो। राजकुमारी प्रतिभा के पेट में दर्द शुरू हो जाता है और राज वैद्य आकर उन्हें बताते हैं की राजकुमारी का गर्भपात नहीं हुआ है। लेकिन उनके पुत्र का जन्म अभी होने वाला है। कपिल मुनि जी राजमहल में आते हैं और राजकुमार असमंजस को आशीर्वाद देते हुए समझाते हैं कि आपको अपने पति के कर्तव्य को पूर्ण करना चाहिए। राजकुमार असमंजस उनकी बात पर कहता है कि आपके होते हमारा कभी भी अमंगल नहीं हो सकता। राजकुमारी एक बालक को जन्म देती है जो मृत होता है। यह समाचार सुन कर राजा सगर राजकुमारी के कक्ष में जाते हैं तो रानी केशनी दुःख में सुध खोए रहती हैं और राजा से कहती है कि हमें युद्ध की तैयारी करनी चाहिए और काल से अपने पोते के प्राण वापस लाने होंगे। राजा सगर केशनी को समझाते हैं । 
     वह कपिल मुनि जी के सामने अपने पौत्र को रख कर उनसे विनती करते हैं कि कृपा करके आप इस बालक को पुनः जीवित कर दें। कपिल मुनि जी अपनी विद्या का इस्तेमाल करना शुरू कर देते हैं। कपिल मुनि जी अपनी विद्या और शक्तियों से उस बालक को पुनः जीवित कर देते हैं। सभी बालक को जीवित देख प्रसन्न हो जाते हैं और ऋषि वसिष्ठ से कहते हैं कि उसका नामकरण करे। ऋषि वसिष्ठ जी असमंजस के पुत्र का नाम अंशुमन रख देते हैं।
    अंशुमान का अर्थ है सूर्य (सूर्य) और0 यह नाम दो संस्कृत शब्दों, "अंश" और "मनुष्य" से लिया गया है। अंश का अर्थ है भाग या अंश, है जबकि मन का अर्थ है मन या आत्मा। इसलिए, अंशुमान का अर्थ है “ ऐसा व्यक्ति ,जिसके पास दिव्य आत्मा का अंश है या जिसके पास दिव्य मन का अंश है।”
      राजा सगर लम्बी उम्र तक शासक बने रहे । राजा सगर ने असमंजस को उसकी पत्नी समेत राज्य से निर्वासित कर दिया था। असमंजस हाथ में कुदाल लेकर वन और पर्वतों पर घूमने लगा था। 
     राजा सगर गंगा नदी को पृथ्वी पर लाने का कोई उपाय नहीं खोज सके और अंततः 30 हज़ार वर्षों तक अपने राज्य पर शासन करने के बाद उनकी मृत्यु हो गई। इसके बाद उन्होने शासन सत्ता अंशुमान को सौप दी।

           आचार्य डॉ राधेश्याम द्विवेदी 

लेखक परिचय:-

(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, आगरा मंडल ,आगरा में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं। वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए समसामयिक विषयों,साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं। )


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