Monday, August 26, 2024

अष्टभुजी देवी के जन्मोत्सव की उपेक्षा क्यों ?

भगवान कृष्ण की बहन अष्टभुजी देवी के जन्मोत्सव  की उपेक्षा क्यों ?

आचार्य डॉ. राधेश्याम द्विवेदी 

द्वापर युग से जुड़ी हुई यह घटना है। भगवान विष्णु की माया कन्या ( अष्टभूजी) के रूप में अपने इष्टदेव के कार्य सिद्धि के लिए अवतरित होती है।अष्टभुजी मां भगवान कृष्ण की बहन के रूप में भी जानी जाती है। पापी कंस ने अपनी मृत्यु के डर से अपनी बहन देवकी को पति सहित कारागार में कैद कर लिया था।अपने विनाश के भय से वह देवकी की कोख से जन्म लेने वाले हर बच्चे को वध करता गया। इसी बीच भगवान श्री कृष्ण की प्रेरणा से ही उनके पालक मां यशोदा के कोख से ज्ञान की देवी अष्टभुजी अवतरित होती है, जो कंस के हाथों से छूट कर विंध्याचल पहाड़ी पर विराजमान होती है और तब से मां अष्टभुजी अपने भक्तों को अभय प्रदान कर रही हैं। 

अष्टभुजी देवी की चेतावनी

माँ अष्टभुजी का जन्म नन्द बाबा के घर में हुआ था और वह भगवान कृष्ण की बहन थीं। उस महामाया ने कंस को चेतावनी दी थी- 

तुम्हारे जैसा दुष्ट मेरा क्या बिगाड़ लेगा?” तुम्हें मारने वाला पहले ही पैदा हो चुका है।”

 ऐसा कहकर देवी आकाश की ओर उड़ गईं और विंध्य पर्वत पर उतर गईं, जिसका वर्णन मार्कंडेय ऋषि ने दुर्गा सप्तशती में इस प्रकार किया है - 

"नंद गोप गृहे जाता यशोदा गर्भ संभव, ततस्तो नष्टयिष्यामि विंध्याचल निवासिनी"।

नवरात्रि में विशेष महत्त्व 

विंध्य पर्वत पर त्रिकोण मार्ग पर स्थित ज्ञान की देवी मां सरस्वती रूप में मां अष्टभुजी के दर्शन के लिए नवरात्र में देश के कोने-कोने से श्रद्धालुओं का तांता लगता है।मार्कंडेय पुराण में मिलता है मां के अवतार का वर्णन विंध्याचल में नवरात्रि के आठवें दिन मां विंध्यवासिनी के महागौरी स्वरूप का दर्शन पूजन होता है। असुरों के भय से नर और नारायण को मुक्ति दिलाने वाली मां के विभिन्न रूपों में एक रूप माता अष्टभुजा का भी है। मां अष्टभुजी ज्ञान की देवी हैं। इनके दर्शन करने से सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। नवरात्रि के समय माता के दरबार में मनोकामना लेकर हजारों भक्तों पहुंचते हैं। उन्हें मां की कृपा से असीम सुख मिलता है।

अष्टभुजी देवी का मंदिर की अवस्थिति 

अष्टभुजी देवी का मंदिर विंध्याचल मां विंध्यवासिनी की मंदिर से लगभग 3 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। विंध्य पर्वत के 300 फुट ऊंचाई पर स्थित मां अष्टभुजी मंदिर पर जाने के लिए 160 पत्थर की सीढ़ियां बनी हुई है। देवी की प्रतिमा एक लंबी और अंधेरी गुफा में है।

गुफा के अंदर दीप जलता रहता है, जिसके प्रकाश में श्रद्धालु देवी मां का दर्शन गुफा में करते हैं। प्राकृतिक गोद में बसा हुआ मां का अष्टभुजी मंदिर बड़ा दिव्य और रमणीक है। यह स्थान अपने शांत और सुंदर दृश्यों के कारण भक्तों के साथ-साथ पर्यटकों के बीच भी लोकप्रिय है। तभी से मां विंध्यवासिनी विंध्य पर्वत पर निवास कर अपने भक्तों को आशीर्वाद देती आ रही हैं। नवरात्रि के दौरान विंध्यधाम में श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ जाती है। अष्टभुजा देवी मंदिर में अष्टभुजा देवी की पूजा और दर्शन के बिना त्रिकोण परिक्रमा अधूरी है। विंध्य क्षेत्र के एक तरफ आदि शक्ति माता विंध्यवासिनी हैं, जबकि दूसरी तरफ महाकाली और महासरस्वती (अष्टभुजा देवी) हैं, जो इस क्षेत्र को एक पवित्र तीर्थ स्थल बनाती हैं।

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की धूम

देशभर में कृष्ण जन्माष्टमी आज धूमधाम से मनाई जा रही है। देश के विभिन्न मंदिरों में खास तैयारियां की गई हैं और सुबह से ही श्रद्धालुजन मंदिर में कान्हा के दर्शन करने के लिए आ रहे हैं। भगवान कृष्ण के जन्मस्थली मथुरा और वृंदावन में जन्माष्टमी के भव्य तैयारियां की गई हैं और भक्तों के लिए खास व्यवस्था की गई है। लोग अपने घरों को सजाते हैं, दही-हांडी प्रतियोगिता आयोजित करते हैं और भगवान कृष्ण के बाल रूप की पूजा करते हैं।यह त्योहार प्रेम, करुणा और सच्चाई के प्रतीक भगवान कृष्ण की याद में मनाया जाता है। कृष्ण जन्मोत्सव के अवसर पर भगवान श्री कृष्ण को छप्पन भोग लगाया जाता है। साथ ही विशेष पोशाक पहनाकर उनका श्रृंगार भी किया जाता है। इस दिन भगवान कृष्ण की पूजा-अर्चना की जाती है। इस दिन व्रत रखने, दान करने और भगवान कृष्ण के मंदिरों में जाने का विशेष महत्व होता है।

नारी की त्रि-शक्तियाँ

नारी (मां) में त्रि-शक्तियाँ होती है - प्रेरक, तारक और मारक। कन्या, बहन, पत्नी, माता ऐसी जीवन की इन चार अवस्थाओं में समाज को प्रेरणा देने वालें कई स्त्री चरित्र हमारे इतिहास के पन्नों पर अंकित है। जब आसुरी वृत्ति का प्रतिरोध करने देवगण असमर्थ सिद्ध हुए। तब उन्होंने आदिशक्ति - मातृशक्ति का आवाहन किया। उसको अपने अच्छे शस्त्र अस्त्र प्रदान किये और इस संगठित सामर्थ्य से युक्त हो कर यह महाशक्ति दुष्टता के विनाश का संकल्प लेकर सिद्ध हुई और देवों को भी असंभव सा लगने वाला कार्य उसने कर दिखाया। आज भी जीवनमूल्यों को नैतिकता के पैरों तले कुचलने वाली अहंमन्य दानवी शक्ति को, जीवन के श्रेष्ठ अक्षय तत्त्वज्ञान को दुर्लक्षित कर क्षणिक भौतिक सुख को शिरोधार्य माननेवाली मानसिकता को तथा श्रद्धा को उखाडने वाली बुद्धि को हमें हटाना है, तो फिर मातृशक्ति को ललकारना होगा, उसे संगठित करना होगा। अतः ऐसी अष्टभुजी का प्रतीक हमेशा हमारे सामने रहे जो हमें अपने कर्तव्य शक्ति का, संगठन का बोध कराते रहेगा। 

भगवान कृष्ण की सहचरीअष्टभुजी देवी के जन्मोत्सव की उपेक्षा क्यों ?

श्री कृष्णा की सहचरी और उनके लक्ष्य की सहायिका के जन्म के क्षण को देश वह सम्मान नहीं दे रहा है जो मिलना चाहिए ।

"यस्य नार्यस्तु पुजंते रमंते तत्र देवता" वाले देश में इस देवी का जन्मोत्सव भी श्री कृष्णा जन्मोत्सव के समान ही मनाया जाना चाहिए। इसमें तनिक भी उपेक्षा नहीं करना चाहिए। हर श्रीकृष्णा के पंडाल में प्रमुखता के साथ मां अष्टभुजी देवी का जन्मोत्सव बड़ी धूम धाम से मनाया जाना चाहिए।

           आचार्य डा. राधे श्याम द्विवेदी 

लेखक परिचय:-

(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं। वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए सम सामयिक विषयों,साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं। )






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