Tuesday, October 17, 2023

सिद्धकुंजिका स्त्रोतम दुर्गा सप्तशती की मूल शक्ति है. आचार्य डॉ राधे श्याम द्विवेदी

शारदीय नवरात्र चल रहा है। वैसे देवी भागवत और दुर्गा सप्त शती का पूर्ण पाठ का प्रचलन हमारे देश में है, पर समय के अभाव  में जो लोग पूरा सप्तशती के पाठ का ना कर पाए वे इस स्त्रोत के पठन , वाचन और श्रवण से भी मनोवांछित फल प्राप्त कर सकते हैं।

सिद्ध कुंजिका स्त्रोत के पाठ का महत्व:-

कुंजिका का अर्थ होता है "कुंजी"। सिद्ध कुंजिका स्त्रोत मां को प्रसन्न करने की चाभी के समान होता है। कुंजिका से तात्पर्य चाबी होता है। यह दुर्गा सप्तशती से प्राप्त शक्ति को जगाने का कार्य करता है। सिद्ध कुंजिका स्रोत पूर्णता का ऐसा गीत है जो वृद्धि के कारण अब छिपा हुआ नहीं है।  सिद्ध कुंजिका स्तोत्र पाठ से व्यक्ति दुर्गाजी की कृपा सहज रूप से प्राप्त कर लेता है और उसके जीवन में आने वाली समस्याओं से जगदंबा उसे मुक्ति दिला देती है।

          जानकारों का कहना है कि जिस व्यक्ति के पास संपूर्ण दुर्गा सप्तशती चंडी पाठ का समय नहीं है तो वह केवल सिद्ध कुंजिका स्त्रोत का पाठ करके भी पूरी दुर्गा सप्तशती के पाठ का फल प्राप्त कर सकता है। इसका उपयोग बीज उत्किलन के लिए किया जाता है।  इसके बारे में दुनिया के बहुत कम लोग ही जानते हैं और ये अत्यधिक दुर्लभ स्त्रोत है  ।  वर्तमान में लोग शास्त्रों, पुराणों से दूर हो गए हैं। प्राचीन काल से सिद्ध किया जाने वाला ये मंत्र अत्यधिक प्रभावशाली है। इसमें उपस्थित शक्ति किसी का भी भाग्य चमकाकर उसे कीर्तिमान बना सकती है।
         इस स्त्रोत का आध्यात्मिक महत्व भी है क्योंकि यह हमारी ऊर्जाओं पर कार्य करता है। इस मंत्र के उच्चारण से उत्पन्न हुई ऊर्जा हमें प्रेरित करती है कि हम अपनी चेतना के स्तर से ऊपर उठें। भगवान शिव ने खुद मां पार्वती को सुनाया था ये स्त्रोत। श्री सिद्धकुंजिका स्त्रोतम के 108 दिन लगातार पाठ करने से मनुष्य की ऊर्जाएं बदल जाती हैं। मान-सम्मान, साहस, बल और आंतरिक उन्नति की प्राप्ति के लिए इस मंत्र का जाप किया जाता है।
      श्री सिद्धकुंजिका स्त्रोतम खुद भगवान शंकर के मुख से निकला है। भोले शंकर ने माता पार्वती को ये स्त्रोत सुनाया था। ये अत्यंत गोपनीय मंत्र है जिसे बिना किसी को बताए जपना चाहिए।108 दिन लगातार इस मंत्र का जाप करें यदि 108 बार नहीं कर पा रहे हैं तो नवरात्रि के दौरान तीनों वक्त यानि सुबह,दोपहर और सायंकाल इसे जपें।इसे सिर्फ सुनने मात्र से भी ये सिद्ध हो जाता है।
       शिव ने पार्वती जी से इस प्रकार कहा था --
शृणु देवि प्रवक्ष्यामि कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम्।
येन मन्त्रप्रभावेण चण्डीजाप: भवेत्।।1।।
न कवचं नार्गलास्तोत्रं कीलकं न रहस्यकम्।
न सूक्तं नापि ध्यानं च न न्यासो न च वार्चनम्।।2।।
कुंजिकापाठमात्रेण दुर्गापाठफलं लभेत्।
अति गुह्यतरं देवि देवानामपि दुर्लभम्।।3।।
गोपनीयं प्रयत्नेन स्वयोनिरिव पार्वति।
मारणं मोहनं वश्यं स्तम्भनोच्चाटनादिकम्।
पाठमात्रेण संसिद्ध् येत् कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम्।।4।।
                      अथ मंत्र:-
"ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। ॐ ग्लौ हुं क्लीं जूं स: ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा।''
                     ।।इति मंत्र:।।
शिव जी द्वारा आदि शक्ति मां दुर्गा की इस प्रकार वंदना आराधना की गई थी --
नमस्ते रुद्ररूपिण्यै नमस्ते मधुमर्दिनि।
नम: कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दिन।।1।।
नमस्ते शुम्भहन्त्र्यै च निशुम्भासुरघातिन।।
जाग्रतं हि महादेवि जपं सिद्धं कुरुष्व मे। ।2।।
ऐंकारी सृष्टिरूपायै ह्रींकारी प्रतिपालिका।।
क्लींकारी कामरूपिण्यै बीजरूपे नमोऽस्तु ते।।3।।
चामुण्डा चण्डघाती च यैकारी वरदायिनी।
विच्चे चाभयदा नित्यं नमस्ते मंत्ररूपिण।।4।।
धां धीं धू धूर्जटे: पत्नी वां वीं वूं वागधीश्वरी।
क्रां क्रीं क्रूं कालिका देवि शां शीं शूं मे शुभं कुरु।।5।।
हुं हु हुंकाररूपिण्यै जं जं जं जम्भनादिनी।
भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे भवान्यै ते नमो नमः।।6।।
अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं
धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा।। 7।।
पां पीं पूं पार्वती पूर्णा खां खीं खूं खेचरी तथा।
सां सीं सूं सप्तशती देव्या मंत्रसिद्धिंकुरुष्व मे।। 8।।
इदं तु कुंजिकास्तोत्रं मंत्रजागर्तिहेतवे।
अभक्ते नैव दातव्यं गोपितं रक्ष पार्वति।।
यस्तु कुंजिकया देवि हीनां सप्तशतीं पठेत्।
न तस्य जायते सिद्धिररण्ये रोदनं यथा।।
इतिश्रीरुद्रयामले गौरीतंत्रे शिवपार्वती संवादे
            कुंजिकास्तोत्रं संपूर्णम्।
                    ।।ॐ तत्सत।।
( श्री दुर्गासप्तशती गीता प्रेस गोरखपुर पृष्ठ 230--232)

सिद्ध कुंजिका स्त्रोत पाठ की विधि:-
नवरात्रि और गुप्त नवरात्रि में इसका नियमित पाठ विशेष फलदायी होता है। कुंजिका स्त्रोत्र का पाठ विधि से करने पर अति शीघ्र ही मनोवांछित फल मिलते हैं।
1. सिद्ध कुंजिका स्त्रोत का पाठ विशेष रूप से संधि काल (यानी वह समय जब एक तिथि समाप्त हो रही हो और दूसरी तिथि आने वाली हो) में किया जाता है। विशेष रूप से जब अष्टमी तिथि और नवमी तिथि की संधि हो तो अष्टमी तिथि के समाप्त होने से 24 मिनट पहले और नवमी तिथि के शुरू होने के 24 मिनट बाद तक का जो कुल 48 मिनट का समय होता है । उस दौरान ही माता ने देवी चामुंडा का रूप धारण किया था और चंड-मुंड नाम के राक्षसों का वध किया था। इस दौरान ही कुंजिका स्तोत्र का पाठ करना सर्वोत्तम फल दायी माना जाता है। यह समय नवरात्रि का सबसे शुभ समय भी माना गया है क्योंकि इसी समय के समाप्त होने के बाद देवी वरदान देने को तत्पर होती हैं।
2. सिद्ध कुंजिका स्त्रोत का पाठ करते समय इसका ध्यान रखना चाहिए कि जब पाठ करते समय बीच में पाठ बंद नहीं करना चाहिए।
3. वैसे सिद्ध कुंजिका स्त्रोत का पाठ दिन में किसी भी समय किया जा सकता है, लेकिन विशेष रूप से ब्रह्म मुहूर्त के दौरान इसका पाठ करना सबसे अधिक प्रभावशाली माना जाता है। (ब्रह्म मुहूर्त सूर्य उदय होने से एक घंटा 36 मिनट पहले प्रारंभ होता है और सूर्य देव के समय से 48 मिनट पहले ही समाप्त हो जाता है। इस प्रकार यह कुल 48 मिनट का समय होता है।)
4. वैसे तो अपनी सुविधानुसार किसी भी प्रकार से सिद्ध कुंजिका स्त्रोत का पाठ कर सकते हैं लेकिन यदि लाल आसन पर बैठकर और लाल रंग के कपड़े पहन कर यह स्रोत पढ़ा जाए तो इसका और भी अधिक फल प्राप्त होता है क्योंकि लाल रंग देवी दुर्गा को अत्यंत प्रिय है।
5. यदि किसी विशेष कार्य के लिए  कुंजिका स्त्रोत का पाठ कर रहे हैं तो पाठ शुक्रवार के दिन से प्रारंभ करना चाहिए और पाठ संकल्प लेकर ही शुरू करना चाहिए। जितने दिन के लिए पाठ करने का संकल्प लिया था, उतने दिन पाठ करने के बाद माता को भोग लगाकर छोटी कन्याओं को भोजन कराएं और उनके चरण छूकर आशीर्वाद लें। इससे मन वांछित फल मिलेंगे।

                 आचार्य डा. राधे श्याम द्विवेदी

            परिचय : आचार्य डॉ.राधे श्याम द्विवेदी 

27.06.1957 को उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले में जन्में डॉ. राधेश्याम द्विवेदी ने अवध विश्वविद्यालय फैजाबाद से बी.ए. और बी.एड. की डिग्री,गोरखपुर विश्वविद्यालय से एम.ए. (हिन्दी),एल.एल.बी., सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी का शास्त्री, साहित्याचार्य , ग्रंथालय विज्ञान शास्त्री B.Lib.Sc. तथा विद्यावारिधि की (पी.एच.डी) "संस्कृत पंच महाकाव्य में नायिका" विषय पर उपार्जित किया। आगरा विश्वविद्यालय से प्राचीन इतिहास से एम.ए. तथा ’’बस्ती का पुरातत्व’’ विषय पर दूसरी पी.एच.डी.उपार्जित किया। डा. हरी सिंह सागर विश्व विद्यालय सागर मध्य प्रदेश से MLIS किया। आप 1987 से 2017 तक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण वडोदरा और आगरा मण्डल में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद पर कार्य कर चुके हैं। प्रकाशित कृतिः ”इन्डेक्स टू एनुवल रिपोर्ट टू द डायरेक्टर जनरल आफ आकाॅलाजिकल सर्वे आफ इण्डिया” 1930-36 (1997) पब्लिस्ड बाई डायरेक्टर जनरल, आकालाजिकल सर्वे आफ इण्डिया, न्यू डेलही। आप अनेक राष्ट्रीय पोर्टलों में नियमित रिर्पोटिंग कर रहे हैं। साहित्य, इतिहास, पुरातत्व और अध्यात्म विषयों पर आपकी लेखनी सक्रिय है।


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