Friday, July 14, 2023

भारद्वाज गोत्र के कुलदेवता शिव/रुद्र। (द्विवेदी ब्राह्मण श्रृंखला संख्या 9) आचार्य डॉ. राधे श्याम द्विवेदी

 

कुलदेवता किसी भी परिवार का प्रतिनिधित्व करते हैं। हिंदू धर्म में इन्हें विशेष रूप से पूजा जाता है और किसी भी शुभ अवसर जैसे शादी, नई बहू के आगमन, बच्चे के जन्म के समय और अन्य कई संस्कारों में कुल देवी या कुल देवता की पूजा की जाती है। उन्हें एक विशेष वंश या कुल के अधिष्ठाता देवता माना जाता है। कुलदेवी या कुलदेवता की अवधारणा हिंदू परंपराओं में देखी जाती है और ये अलग-अलग समुदायों के बीच भिन्न होती है। 

कुलदेवी या कुलदेवता की पूजा करने का महत्व :-

ऐसी मान्यता है कि  प्रत्येक परिवार या वंश का एक विशिष्ट दैवीय संबंध होता है जो पीढ़ियों के माध्यम से आगे बढ़ता है। किसी भी कुलदेवी या कुलदेवता को वंश के संरक्षक के रूप में देखा जाता है, जो उस कुल के सभी सदस्यों की रक्षा करते हैं। कुलदेवी या कुलदेवता की पूजा करने से परिवार में आशीर्वाद बना रहता है और समृद्धि आती है। कुल देवी और देवता का सम्मान करने और उनकी कृपा पाने से पूरे परिवार पर कृपा बनी रहती है। उनकी पूजा परिवार और परंपराओं को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह पूजा किसी विशेष वंश के सदस्यों के बीच सांस्कृतिक पहचान की भावना को मजबूत करती है। उनकी पूजा करने से परिवार के सदस्यों के बीच एकता और सामंजस्य बढ़ता है। यही नहीं यदि नव विवाहित जोड़े को कुल देवी और देवता के दर्शन कराए जाते हैं तो उनके रिश्ते में सदैव सामंजस्य बना रहता है।

कैसे की जाती है कुलदेवता की पूजा :-

कुलदेवी या कुलदेवता की पूजा करने की प्रथा अलग समुदायों में अलग होती है और सभी कुलों के देवी-देवता भी अलग होते हैं। किसी भी विवाह संस्कार में उन्हें आमंत्रित करना अनिवार्य माना जाता है और उनका आशीर्वाद लिया जाता है जिससे कुल की समृद्धि बनी रहे। उन्हें हमारे वंश का रक्षक माना जाता है, इसलिए ऐसा कहा जाता है कि बच्चे के जन्म के बाद उसे दर्शन के लिए जरूर ले जाना चाहिए जिससे उसकी सेहत हमेशा अच्छी बनी रहे और जीवन में कोई समस्या न आए। 

पीढ़ी-दर-पीढ़ी हस्तांतरण:-

कुलदेवता पीढ़ी-दर-पीढ़ी हस्तांतरित होते हैं और आपकी रिश्तेदारी को परिभाषित करते हैं। आपसे अपेक्षा की जाती है कि आप अपना जीवन अपने कुलदेवता के गुणों के अनुसार जियें। जो लोग एक ही कुलदेवता साझा करते हैं वे एक-दूसरे को रिश्तेदार मानते हैं, भले ही वे आवश्यक रूप से रक्त रिश्तेदार नहीं हैं।

शिव एक अनादि देव :-

शिव हिन्दू धर्म के प्रमुख देवताओं में से हैं। वे त्रिदेवों में एक देव हैं। इन्हें देवों के देव भी कहते हैं। इन्हें महादेव, भोलेनाथ, शंकर, महेश, रुद्र, नीलकंठ के नाम से भी जाना जाता है। तंत्र साधना में इन्हे ‘भैरव’ के नाम से भी जाना जाता है। वेद में इनका नाम ‘रुद्र’ है। यह व्यक्ति की चेतना के अन्तर्यामी हैं। इनकी अर्धाङ्गिनी (शक्ति) का नाम पार्वती है। शि-व का मतलब है -वह जो है ही नहीं । जो है ही नहीं, वह सिर्फ सो सकता है। इसलिए शिव को हमेशा ही डार्क बताया गया है। शिव सो रहे हैं और शक्ति उन्हें देखने आती हैं। वह उन्हें जगाने आई हैं क्योंकि वह उनके साथ नृत्य करना चाहती हैं, उनके साथ खेलना चाहती हैं और उन्हें रिझाना चाहती हैं। शुरू में वह नहीं जागते, लेकिन थोड़ी देर में उठ जाते हैं। मान लीजिए कि कोई गहरी नींद में है और आप उसे उठाते हैं तो उसे थोड़ा गुस्सा तो आएगा ही, बेशक उठाने वाला कितना ही सुंदर क्यों न हो। अत: शिव भी गुस्से में गरजे और तेजी से उठकर खड़े हो गए। उनके ऐसा करने के कारण ही उनका पहला रूप और पहला नाम रुद्र पड़ गया। रुद्र शब्द का अर्थ होता है – दहाडऩे वाला, गरजने वाला।

साकार और निराकार दोनों रूप में:-
भगवान शिव साकार और निराकार दोनों ही रुपों में हर सांसारिक पीड़ा का शमन करने वाले माने गए हैं। शिव भक्ति में यही भाव और श्रद्धा मन को शांत और संतुलित कर व्यवहार के दोषों से भी दूर रखती है। जिससे सुखद परिणाम जल्द मिलते हैं। इस सृष्टि का निर्माण भगवान शिव की इच्छा मात्र से ही हुआ है। अत: इनकी भक्ति करने वाले व्यक्ति को संसार की सभी वस्तुएं प्राप्त हो सकती हैं। शिवपुराण के अनुसार, नियमित रूप से शिवलिंग का पूजन करने वाले व्यक्ति के जीवन में दुखों का सामना करने की शक्ति प्राप्त होती है।

शत्रु को रुलाने के लिए रुद्र रूप:-

भगवान शिव का एक नाम ‘रुद्र’ है । दःख का नाश करने तथा संहार के समय क्रूर रूप धारण करके शत्रु को रुलाने से शिव को रुद्र कहते हैं। वेदों में शिव के अनेक नामों में रुद्र नाम ही विशेष है। उन्हें रुद्र परमेश्वर, जगत्स्रष्टा रुद्र आदि कहकर परमात्मा माना गया है। कश्यप के पुत्र रूप में उत्पन्न ये एकादश रुद्र महान बल पराक्रम से संपन्न थे, इन्होंने संग्राम में दैत्यों का संहार कर इंद्र को पुनः स्वर्ग का अधिपति बना दिया। ये शिव रूपधारी एकादश रुद्र अब भी देवताओं की रक्षा के लिए स्वर्ग में विराजमान रहते हैं। भगवान रुद्र मूलतः तो एक ही हैं तथापि जगत के कल्याण के हेतु अनेक नाम रूपों में अवतरित होते है।

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